Friday, August 26, 2022

गुलाम कांग्रेस से आजाद

आजाद ने राहुल गांधी के सिर फोड़ा कांग्रेस की बदहाली का ठीकरा

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ दी है। कांग्रेस के लिए यह झटका नहीं बल्कि बबंडर की आहट है क्योंकि गुलाम नबी आजाद का पार्टी से जाने के मतलब यह भी है कि कांग्रेस का एक दिग्गज स्तंभ अब भरभरा कर गिर गया है। वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने का असर जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कांग्रेस के खेमों में देखने को मिल रहा है।


वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने आखिरकार कांग्रेस को टाटा बाय-बाय कर ही दिया। हालांकि यह कयास काफी समय से लगाया जा रहा था। अब जब गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया है। ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि अब कांग्रेस का और कितना नुकसान होगा।

कांग्रेस को पास से समझने वाले कहते हैं कि गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से जाना तो फिर भी ठीक है, लेकिन अगर आजाद कांग्रेस छोड़कर किसी और दल या पार्टी में चले गए तब कांग्रेस का क्या होगा। यानी साफ तौर पर जब से आजाद राज्य सभा से रिटायर हुए और प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा उनकी तारीफ हुई। उसके बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि कभी भी गुलाम अब कांग्रेस से आजाद हो जाएंगे।

गुलाम नबी आजाद ने दिल्ली में कांग्रेस छोड़ी उधर जम्मू कश्मीर से उनके इस्तीफे के साथ ही उनके समर्थक कांग्रेसी नेताओं के इस्तीफों की बाढ़ आ गयी। एक के बाद एक कई इस्तीफे कांग्रेस के दफ्तर पहुंचने लगे।

गुलाम नबी आजाद ने सभी पदो से दिया इस्तीफा  

26 अगस्त कांग्रेस के लिए काला शुक्रवार बनकर आया। इसदिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी के सभी पदों और सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसे उन्होंने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेज दिया। 5 पन्नों के इस्तीफे में उन्होंने लिखा- दुर्भाग्य से पार्टी में जब राहुल गांधी की एंट्री हुई और जनवरी 2013 में जब आपने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया, तब उन्होंने पार्टी के सलाहकार तंत्र को पूरी तरह से तबाह कर दिया।

आजाद यहीं नहीं रुके, कहा- राहुल की एंट्री के बाद सभी सीनियर और अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और गैरअनुभवी चापलूसों का नया ग्रुप खड़ा हो गया और यही पार्टी को चलाने लगा।

 

दो घंटे में कैंपेन कमेटी अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था

आजाद कई दिनों से हाईकमान के फैसलों से नाराज थे। इसी महीने 16 अगस्त को कांग्रेस ने आजाद को जम्मू-कश्मीर प्रदेश कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया था, लेकिन आजाद ने अध्यक्ष बनाए जाने के 2 घंटे बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था। आजाद ने कहा था कि ये मेरा डिमोशन है।

73 साल के आजाद अपनी सियासत के आखिरी पड़ाव पर फिर प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाह रहे थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी बजाय 47 साल के विकार रसूल वानी को ये जिम्मेदारी दे दी। वानी गुलाम नबी आजाद के बेहद करीबी हैं। वे बानिहाल से विधायक रह चुके हैं। आजाद को यह फैसला पसंद नहीं आया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व आजाद के करीबी नेताओं को तोड़ रहा है और आजाद इससे खफा हैं।

कांग्रेस हाईकमान से पहले भी खटपट हुई, मामला सुलझ गया

यह पहली बार नहीं है, जब गुलाम नबी आजाद 10 जनपथ यानी सोनिय गांधी के गुड लिस्ट से बाहर हैं। 2008 में जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी उनका कांग्रेस हाईकमान से खटपट हुई थी। हालांकि, 2009 में आध्र प्रदेश कांग्रेस में विवाद के बाद हाईकमान ने आजाद को समस्या सुलझाने की जिम्मेदारी दी। इसके बाद फिर वे गुड लिस्ट में शामिल हुए और केंद्र में मंत्री बने। सूत्रों के मुताबिक, इस बार कांग्रेस हाईकमान से उनका समझौता नहीं हो पाया, इस वजह से उन्होंने इस्तीफा ही दे दिया।

जी-23 ग्रुप का हिस्सा थे गुलाम नबी आजाद

गुलाम नबी आजाद पार्टी से अलग उस जी 23 समूह का भी हिस्सा थे, जो पार्टी में कई बड़े बदलावों की पैरवी करता है। उन तमाम गतिविधियों के बीच इस इस्तीफे ने गुलाम नबी आजाद और उनके कांग्रेस के साथ रिश्तों पर सवाल खड़ा कर दिया है। केंद्र ने इसी साल गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया है।

आजाद की राज्यसभा से विदाई पर भावुक हुए थे PM मोदी

गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के वक्त अपने भाषण में PM मोदी ने उन्हें दोस्त बताया था।

गुलाम नबी आजाद की राज्यसभा से विदाई के वक्त अपने भाषण में PM मोदी ने उन्हें दोस्त बताया था।

आजाद का राज्यसभा का कार्यकाल 15 फरवरी 2021 को पूरा हो गया था। उसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि किसी दूसरे राज्य से उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता है, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा। आजाद का कार्यकाल खत्म होने वाले दिन उन्हें विदाई देते हुए PM नरेंद्र मोदी भावुक हो गए थे। 2021 में मोदी सरकार ने गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान दिया था। कांग्रेस के कई नेताओं को यह पंसद नहीं आया। नेताओं ने सुझाव दिया था कि आजाद को यह सम्मान नहीं लेना चाहिए।

बता दें कि कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पार्टी की राज्य इकाई की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से रविवार को इस्तीफा दे दिया था। इस पर उन्होंने कहा था कि जी -23 समूह पार्टी को मजबूत करने के लिए काम कर रहा है और पार्टी हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर उतरेगी। उन्होंने ‘‘निरंतर बाहर रखे जाने एवं अपमान'' का हवाला देते हुए पार्टी की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। जी-23 उन असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं का एक समूह है जिसने संगठन में आमूल-चूल फेरबदल की मांग की है। शर्मा भी इस समूह का हिस्सा हैं।

भड़की कांग्रेस ने गुलाम नबी आजाद के DNA पर उठा दिया सवाल, कहा- धोखेबाजी का कैरेक्टर

जयराम रमेश ने कहा कि गुलाम नबी आजाद का डीएनए मोदीफाइड हो गया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे शख्स को जिसे कांग्रेस की लीडरशिप ने इतना सम्मान दिया, उसने बेहद निजी और घटिया हमले करके विश्वासघात किया है।

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से अपने 51 साल पुराने रिश्ते को तोड़ दिया है और अब नई पार्टी बनाने का ऐलान किया है। उनके इस फैसले से कांग्रेस के नेता भड़क गए हैं। इस बीच वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने उनके डीएनए पर ही सवाल उठा दिया है। मीडिया से बात करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि गुलाम नबी आजाद का डीएनए मोदीफाइड हो गया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे शख्स को जिसे कांग्रेस की लीडरशिप ने इतना सम्मान दिया, उसने बेहद निजी और घटिया हमले करके विश्वासघात किया है। उन्होंने कहा कि आजाद के इस रवैये से उनका असली कैरेक्टर सामने आ गया है।

राहुल के गार्ड-पीए लेते हैं फैसले, जाते-जाते आजाद ने निकाली भड़ास

कांग्रेस के एक अन्य नेता संदीप दीक्षित ने भी गुलाम नबी आजाद के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुझे इसमें विश्वासघात की बू आ रही है। उन्होंने कहा कि पार्टी में रहना जरूरी था। जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस इस वक्त महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ रही है और ऐसे वक्त में गुलाम नबी आजाद का पार्टी से अलग हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। जयराम रमेश बोले, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है कि ऐसे वक्त में यह हुआ है, जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी भाजपा से मुद्दों पर लड़ रहे हैं। महंगाई, बेरोजगारी और ध्रुवीकरण के खिलाफ मुकाबला कर रहे हैं।'

यही नहीं पवन खेड़ा ने तो गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को राज्यसभा की सीट से भी जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इस बार गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा नहीं भेजा। शायद इसी वजह से उनका पार्टी से इस्तीफा आया है। पवन खेड़ा ने कहा कि जब से उनकी राज्यसभा सीट चली गई थी, वह बेचैन हो गए थे। इससे पता चल जाता है कि वह बिना पद के एक सेकेंड के लिए भी नहीं रह सकते।

गुलाम नबी आजाद ने राहुल पर अटैक कर छोड़ी है कांग्रेस

बता दें कि गुलाम नबी आजाद ने आज ही 5 पन्नों का लंबा खत सोनिया गांधी को लिखकर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इस पत्र में राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि उनके राजनीति में आने के बाद से ही कांग्रेस की वह व्यवस्था समाप्त हो गई, जिसमें सबकी सहमति और समन्वय से काम किया जाता था।

गुलाम नबी आजाद का राजनीति का सफरनामा

अटकलों के बीच दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने आज कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। वह गांधी परिवार के बेहद करीबी नेताओं में से एक माने जाते रहे हैं। लेकिन समय के साथ कांग्रेस में बदलावों के बाद वह पार्टी में जी-23 के मुख्य नेता के रूप में उभरे। राजनीति में उनके अनुभव और कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर सहित देश के करीब सभी राज्यों में उनकी सक्रियता रही है। मार्च 2022 में गुलाम नबी आजाद को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्म भूषण मिला।

1973 में गुलाम नबी आजाद ने भलस्वा में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में राजनीति की शुरुआत की थी। इसके बाद उनकी सक्रियता और शैली को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना। उन्होंने महाराष्ट्र में वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से 1980 में पहला संसदीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1982 में उन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली दूसरी यूपीए सरकार में, आजाद ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री का पदभार संभाला। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का विस्तार किया। साथ ही झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले शहरी गरीबों की सेवा के लिए एक राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन भी शुरू किया।

आजाद के जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। इसके परिणाम स्वरूप कांग्रेस प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी।

गुलाम नबी आजाद का अब तक का सियासी सफर

2008 भद्रवाह से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए। दया कृष्ण को 29,936 मतों के अंतर से हराया।

2009: चौथे कार्यकाल के लिए राज्यसभा के लिए चुना गया और बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।

2014: राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे।

2015: वह पांचवीं बार राज्यसभा के लिए फिर से चुने गए।


एक के बाद एक क्यों कांग्रेसी छोड़ रहे हैं कांग्रेस

कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी छोड़ दी। आजाद ने सोनिया गांधी को पांच पेज का इस्तीफा भेजा है। इसमें उन्होंने कई आरोप लगाए हैं। आजाद ने लिखा है कि कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। राहुल गांधी अनुभवहीन लोगों से घिरे हुए हैं। यह भी लिखा है कि अब कांग्रेस में न तो इच्छा शक्ति बची है और न ही काबिलियत। 

इसके पहले 16 अगस्त को गुलाम नबी आजाद को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस की कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन आजाद ने अध्यक्ष बनाए जाने के 2 घंटे बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था। आजाद से दो दिन पहले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने भी पार्टी छोड़ी है।

पिछले दो साल के रिकॉर्ड देखें तो इनमें कई नेताओं के नाम शामिल हो चुके हैं। फिर वह ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या जितिन प्रसाद, कपिल सिब्बल और हार्दिक पटेल। एक के बाद एक कई दिग्गज नेता कांग्रेस का दामन छोड़ दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं। कई ऐसे भी हैं, जो पार्टी के बड़े पदों पर नहीं बैठना चाहते हैं। इनमें आनंद शर्मा जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं। आनंद शर्मा ने पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव संचालन समिति (स्टीयरिंग कमेटी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। 

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर कांग्रेस के दिग्गज नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं? क्यों कोई बड़ा नेता पार्टी के बड़े पदों को नहीं संभालना चाहता है? आइए इसके कारण जानते हैं...

इस्तीफा देने वाले ज्यादातर नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व पर उठाए सवाल

कांग्रेस छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व और खासतौर पर राहुल गांधी पर सवाल खड़े किए हैं। गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफा में लिखा है कि कांग्रेस में अब कुछ भी ठीक नहीं है। राहुल गांधी के आसपास अनुभवविहीन लोग हैं। पार्टी में अब न तो इच्छा शक्ति बची है और न ही काबिलियत। लगातार पार्टी में वरिष्ठ नेताओं को किनारे किया जा रहा है।

इसके दो दिन पहले पार्टी से इस्तीफा देने वाले जयवीर शेरगिल ने भी कुछ इसी तरह के सवाल उठाए थे। शेरगिल ने लिखा था, 'मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि निर्णय लेना अब जनता और देश के हितों के लिए नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के स्वार्थी हितों से प्रभावित है, जो चाटुकारिता में लिप्त हैं और लगातार जमीनी हकीकत की अनदेखी कर रहे हैं।'

जितिन प्रसाद, हार्दिक पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई नेताओं ने भी इस्तीफा देते हुए राहुल गांधी पर ही सवाल खड़े किए थे। सभी ने अपने इस्तीफा में लिखा था कि राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं को मिलने का समय नहीं देते हैं। वह कार्यकर्ताओं और नेताओं की बात नहीं सुनते हैं। 

Saturday, August 13, 2022

बिहार में बड़ा गेम होने से पहले ही नीतीश कुमार ने बाजी पलट दी

 

बिहार की राजनीति में बड़ा गेम होता इससे पहले ही नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति की शतरंज पर एक तीर से तीन शिकार कर डाले जिसके बाद बीजेपी बिहार में औंधे मुंह जा गिरी।

बीजेपी ने कहां तो यह सोचा था कि आरसीपी सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर वह महाराष्ट्र की तर्ज पर बिहार को जीत लेगी,




लेकिन नीतीश कुमार ने उससे पहले आरसीपी सिंह के भ्रष्टाचार के सबूत देकर न सिर्फ आरसीपी सिंह पर शिकंजा कसा बल्कि उनका बंगला भी खाली करवाकर उनका एक तरह से राजनीतिक करियर भी खत्म कर दिया। दूसरी ओर इस कदम से बीजेपी के ऑपरेशन लोटस पर नीतीश कुमार रोक लगाने में कामयाब तो हुए ही साथ ही तीसरा सबसे बड़ा कदम उनका 2024 के लिए एक तरह से विपक्ष को खड़ा कर देना का भी रहा। अब आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने मिलकर बिहार में सत्ता पर काबिज होने का फैसला कर लिया है।

इससे पहले नीतीश कुमार को समझाने की कोशिश भी गृह मंत्री अमित शाह ने की, लेकिन पिछले दिनों बिहार में जेपी नड्डा के दौरे के दौरान उनके द्वारा दिये गए भाषण, सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुभ गए।  जेपी नड्डा ने साफ कहा कि बिहार में सिर्फ बीजेपी ही विकल्प है। क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व अब खत्म हो चला है और जो 20 साल पुरानी पार्टी के सदस्य रहे आज वह बीजेपी के साथ है। यह बात सीएम नीतीश कुमार को इस तरह नागवार गुजरी कि बीजेपी की टॉप लीडरशिप भी नीतीश कुमार को समझा नहीं पायी और ऑपरेशन लोटस के शुरू होने से पहले ही नीतीश कुमार ने इस ऑपरेशन को अपनी राजनीतिक सूझबूझ से बूट तले रौंद दिया।

अब आपको बिहार की सत्ता के समीकरण को भी बताते चले। बिहार में 243 विधानसभा की सीटें हैं जिसमें से आरजेडी के खाते में 79 बीजेपी के खाते 77 और जेडीयू के खाते में 45 सीटें हैं। इसी तरह से कांग्रेस के खाते में 19 लेफ्ट के खाते में 16 हम के हिस्से में 4 और एक निर्दलीय उम्मीदवार है वहीं, एक सीट खाली भी है। कुल मिलाकर देखा जाए तो स्थिति बहुत कुछ ऐसी है कि बगैर किसी मेल मिलाप के किसी भी पार्टी की सरकार बिहार में बनती नहीं दिखती।

पिछले 6 महीने से भी ज्यादा समय से नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गठबंधन में घुटन महसूस कर रहे थे। नीतीश कुमार जिन्होंने बिहार की सत्ता पर सात बार कब्जा जमाया है और इसबार आठवीं बार सूबे के मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे वह नीतीश कुमार राजनीति में ऐसी पैंठ रखते हैं कि सत्ता बिहार में या केन्द्र में किसी की भी रही हो, लेकिन नीतीश पिछले तीन दशक से सत्ता की धुरी बने रहे।

बिहार में जब लालू प्रसाद यादब की सरकार थी तब केन्द्र में यूपीए सरकार में नीतीश कुमार रेल मंत्री रहे। बिहार की बात की जाए तो मौजूदा समय में बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद अब जेडीयू कांग्रेस, आरजेडी के साथ सरकार बना रही है। ऐसे में यह तय है कि बिहार में अब नये राजनीतिक समीकरण तैयार होंगे और कहा यह भी जाता है कि उत्तर प्रदेश बिहार की राजनीति सत्ता की चाबी का निर्धारण भी करती है। देखना दिलचस्प होगा आने वाले समय में बिहार की राजनीति में क्या कुछ बदलता है और क्या कुछ होता है। फिलहाल बिहार के 8वें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को हमारी ओर से बधाई। 

 

Tuesday, August 2, 2022

Diabetes Type 1 And Diabetes Type 2 Causes and Treatment

Work from Home WFH increase your sugar level, cure before risk

आज के तेज भागदौड़ के दौर में शुगर एक आम समस्या होती जा रही है। ऑफिस दफ्तर और घर में घंटों बैठकर दफ्तर का काम करना अब जान पर भारी पड़ता जा रहा है।

हालांकि शुगर की समस्या से पहले भी भारत और दुनिया के लोग जूझ रहे थे, लेकिन अब शुगर की समस्या एक नये रूप में हमारे सामने है।

एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि अगर समय रहते शुगर पर नियंत्रण नहीं पाया जाए तो यह जानलेना साबित हो सकती है।

कितने प्रकार की होती है डायबिटीज

वंशानुगत कारणों से होनेवाली डायबिटीज को टाइप-1 डायबिटीज कहा जाता है। जबकि कुछ लोगों में गलत लाइफस्टाइल के कारण यह बीमारी घर कर जाती है। इस स्थिति को टाइप-2 डायबिटीज कहते हैं।

डायबिटीज एक और दो के फर्क को कैसे समझे

डायबिटीज टाइप-1 और डायबिटीज टाइप-2 सुनकर अक्सर लोगों के जेहन में यह सवाल उठता है कि आखिर ये डायबिटीज एक और डायबिटीज दो है क्या? दोनों ही डायबिटीज के बीच अंतर क्या है? क्या इनके लक्षण अलग-अलग होते हैं यह एक जैसे ही होते हैं?

सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि डायबिटीज की बीमारी क्यों होती है और कौन इससे ग्रस्त हो सकते हैं?

मौजूदा दौर में ज्यादातर लोगों की जीवनशैली बेहद खराब हो चली है। पार्क में घूमना फिरना या फिर व्यायाम करना जैसे हम भूलते ही जा रहे हैं। थोड़ा बहुत योगा और पार्क में टहल कर हमे लगता है कि बस हो गया। वहीं, खान पान की गलत आदतें, जिसमें तला भूना, ज्यादा मसालेदार और फास्ट फूड खाने की लत ने हमारे शरीर को अंदर से खोखला कर दिया है। एक तरफ यह हमारे अमाश्य को कमजोर बने रहे हैं तो दूसरी ओर जीभ का स्वाद बढ़ाकर हमारे पाचन तंत्र की धज्जियां उड़ा रहे है।

धीरे धीरे जब हमारे शरीर में पैक्रियाज (अग्नाश्य) इंसुलिन का उत्पादन करना बंद कम कर देता है या बंद कर देता है तब हमारे ब्लड में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने लगता है। अगर इस स्तर को कंट्रोल ना किया जाए तो हम शुगर के रोगी बन जाते हैं।

दो तरह की होती है शुगर की बीमारी

-शुगर की बीमारी दो तरह की होती है। टाइप-1 और टाइप-2, इनमें टाइप-1 शुगर वह है जो हमें अनुवांशिक तौर पर होती है। यानी जब किसी के परिवार में मम्मी-पापा, दादी-दादा में से किसी को शुगर की बीमारी रही हो तो ऐसे व्यक्ति में इस बीमारी की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

-यदि किसी व्यक्ति को वंशानुगत कारणों से डायबिटीज होती है तो इसे टाइप-1 डायबिटीज कहा जाता है। जबकि कुछ लोगों में गलत लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण यह बीमारी घर कर जाती है। इस स्थिति को टाइप-2 डायबिटीज कहते हैं।

क्यों होती है डायबिटीज, क्या हैं इसके प्रारंभिक लक्षण? जानें हर सवाल का जवाब

जन्म से भी हो सकती है ऐसी डायबिटीज

-डायबिटीज टाइप-1की समस्या किसी बच्चे में जन्म से भी देखने को मिल सकती है। या बहुत कम उम्र में भी यह बच्चे को अपनी गिरफ्त में ले सकती है। इस स्थिति में शरीर के अंदर इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता है।

-ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वंशानुगत कारणों से पैंक्रियाज में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। यह एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है। यानी इसमें अपने ही शरीर की कुछ कोशिकाएं दूसरी कोशिकाओं के दुश्मन की तरह रिऐक्ट करती हैं और उन पर हमला करके उन्हें नष्ट कर देती हैं।

-डायबिटीज टाइप-1 में हमारे ही शरीर की कुछ कोशिकाएं हमारे पैक्रियाज यानी अग्नाश्य की कोशिकाओं पर हमला करके इंसुलिन के उत्पादन को बाधित कर देती हैं। इससे रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ने लगती है।

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डायबिटीज टाइप-1 और डायबिटीज टाइप-2 में अंतर

डायबिटीज-2 इन कारणों से भी होती है

-डायबिटीज टाइप-2 बहुत अधिक फैट, हाई बीपी, समय पर ना सोना, सुबह देर तक सोना, बहुत अधिक नशा करना और निष्क्रिय जीवनशैली के कारण भी होती है।

-डायबिटीज टाइप-2 का एक कारण शरीर में इंसुलिन कम बनना भी होता है। ऐसा कुछ शारीरिक कारणों या गलत खान-पान के कारण भी हो सकता है।

-इंसुलिन कम बनने से रक्त में मौजूद कोशिकाएं इस हॉर्मोन के प्रति बहुत कम संवेदनशीलता दिखाती हैं। इस कारण भी रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है और व्यक्ति डायबिटीज टाइप-2 का शिकार हो जाता है।

 शुगर इस तरह करती है परेशान

-जब हमारा अग्नाश्य इंसुलिन नाम का हॉर्मोन बनाता है तो शुगर या ग्लूकोज हमारे ब्लड में फ्लो नहीं करता। बल्कि ऊर्जा के रूप में शरीर में स्टोर हो जाता है। इसकी मात्रा बढ़ने लगती है तब हम कहते हैं फैट बढ़ रहा है।

- जब हमारे शरीर को ऊर्जा की जरूरत होती है और हम कुछ खा नहीं पाते हैं तब हमारा शरीर इस स्टोर फैट का उपयोग करता है। ताकि सभी अंग ठीक से काम करते रहें।--लेकिन इंसुलिन के अभाव में शुगर कोशिकाओं में स्टोर ना होकर ब्लड में ही घूमती रहती है। इससे रक्त में मौजूद रेड ब्लड सेल और वाइड ब्लड सेल अपना काम नहीं कर पाती हैं। जिससे हमें जल्दी-जल्दी बीमारियां होने लगती हैं और मामूली बीमारी को ठीक होने में भी लंबा वक्त लग जाता है।

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शुगर की बीमारी और इलाज का तरीका

 ट्रीटमेंट से जुड़ी बातें

-किसी भी मरीज को यदि केवल शुगर की समस्या है तो उसके इलाज में उन लोगों के इलाज से अंतर होता है, जिन्हें शुगर या डायबिटीज के साथ ही दूसरी बीमारियां भी हों।

-एक बार शुगर हो जाने के बाद आप इसे केवल नियंत्रित कर सकते हैं, इससे मुक्ति नहीं पा सकते। इसलिए बेहतर है कि यह बीमारी होने से पहले जितना भी सजग रह सकें, रहें।- -डायबिटीज टाइप-1 का इलाज करते समय पेशंट को समय-समय पर इंसुलिन देना होता है। क्योंकि इस स्थिति में शरीर में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता है।

-डायबिटीज टाइप-1 की बीमारी वंशानुगत होती है, इसलिए इस पर जीवनशैली में बदलावों के साथ नियंत्रण का प्रयास किया जाता है।

- वहीं, डायबिटीज टाइप-2 में जरूरत होने पर ही
इंसुलिन की डोज दी जाती है। नहीं तो ऐसी दवाओं से चिकित्सा की जाती है
, जो इंसुलिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पैंक्रियाज को प्रोत्साहित करें।

-इसके साथ ही सही जीवनशैली अपनाने पर जोर दिया जाता है। तनाव को कम करने के लिए शारीरिक गतिविधियों और ध्यान की सहायता ली जाती है।

आर्युवेद में क्या इसका इलाज है?

जी हां, आर्युवेद में शुगर का इलाज है, लेकिन यह इलाज तभी कारगर सिद्ध होता है जब आप इसे सही तरीके से अपनाये। यह इलाज टाइप टू शुगर में कारगर सिद्ध होता है। इसमें व्यायाम के साथ आर्युवेद की दवाएं दी जाती है। यह दवा देश के सरकारी आर्युवेद अस्पतालों में फ्री भी दी जा रही है।

Monday, March 14, 2022

पंजाब में चला ‘आम आदमी’ का झाड़ू , बही बदलाव की बयार

 

 

पंजाब में चला आम आदमीका झाड़ू , बही बदलाव की बयार

-लोगों ने कॉमेडियन भगवंत सिंह मान को लिया गंभीरता से

-मान ने कहा अब पंजाब गांवों-मोहल्लों से चलेगा, महलों-हवेलियों से नहीं

 

केजरीवाल-भगवंत मान की जोड़ी पर पूरा भरोसा जताते हुए पंजाब के आम आदमी ने विधान सभा चुनाव 2022’ में आम आदमी पार्टी(आप) को 92 सीटों के ऐतिहासिक बहुमत के साथ एक अप्रत्याशित जीत दिलवाई है।


1966 में हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद 56 साल के इतिहास में आम आदमी पार्टी ने 117 में से 92 सीटें जीत कर आज तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की है। पंजाब में अन्तर्कलह की मारी कांग्रेस मात्र 18 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। पंजाब के पारंपरिक राजनैतिक दल शिरोमणि अकाली दल को पंजाब क ी  जनता ने पूरी तरह  नकारते हुए अकाली-बसपा के बेमेल गठबंधन को केवल 4 सीटें ही दी। वहीं पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री महाराजा कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस, भाजपा और शिरोमणि अकाली दल(संयुक्त)की चुृनावी खिचड़ी ने भी केवल 2 सीटों पर सिमट कर, पंजाब में अपना जनाधार पूरी तरह खो दिया।

1992 में आतंकवाद के दौर में कांग्रेस ने पंजाब में 87 सीटें जीतकर सबसे बड़ी जीत का रिकार्ड दर्ज किया था, मगर उस समय शिरामणि अकाली दल ने चुनावों का बहिष्कार किया था। उसके बाद 1997 में अकाली भाजपा गठबंधन ने मिलक र 97 सीटें जीती थी। अकाली दल को 75 व भाजपा को 18 सीटों पर जीत मिली थी।

इस बार यानी 2022 में कुल वोट प्रतिशत की बात करें तो इसमें भी आम आदमी पार्टी ने 44 प्रतिशत वोट हासिल कर सबको चौंका दिया है। दूसरे नंबर पर रही कांग्रेस को इस बाद 23 प्रतिशत और अकाली बसपा गठबंधन को 18.4 प्रतिशत वोट मिले हैं। यदि कुल वोट प्रतिशत की बात करें तो पंजाब में इस बार 2017 के मुकाबले लगभग 5 प्रतिशत मतदान कम हुआ। 2017 में जहां 77.20 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया वहीं 2022 में 71.95 प्रतिशत लोगों ने मतदान में भाग लिया।

इस बार पंजाब में आम आदमी पार्टी की सुनामी का अंदाजा इसी बात बात से लगाया जा सकता है कि 1920 में स्थापित हुई पार्टी शिरोमणि अकाली दल केवल 3 सीटें जीत कर तीसरे नंबर पर पहुंच गई। शिरोमणि अकाली दल के भीष्म पितामह 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल भी इस बार अपनी साख नहीं बचा पाए और लंबी से शायद अपना आखिरी चुनाव हार गए। आम आदमी पार्टी के गुरमीत सिंह खुड्डिया ने अकाली सुप्रीमो प्रकाश सिंह बादल को 66313 मतों के भारी अंतर से शिकस्त दी। अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल भी जलालाबाद विधानसभा क्षेत्र से अपनी सीट नहीं बचा पाए। सुखबीर बादल को आम आदमी पार्टी के लॉ गे्रजुएट जगदीप कंबोज गोल्डी ने 30930 वोटों से हराया। भगवंत मान ने संगरूर जिले की धुरी विधान सभा सीट से कांग्रेस के दलबीर सिंह गोल्डी को 58206 रिकार्ड वोटों से हराया।

 

 

विभिन्न क्षेत्रों में पार्टियों को सीटें (कुल सीटें-117)

मालवा कुल सीटें     69

आम आदमी पार्टी       66

कांग्रेस                02

शिअद                01

 

माझा  कुल सीटें      25

आम आदमी पार्टी     16

कांग्रेस               07

शिअद                01

भाजपा              01

 

दोआबा कुल सीटें     23 

आम आदमी पार्टी     10

कांग्रेस              09

शिअद             01

बसपा             01

भाजपा            01

आजाद            01

 

 

अपनी कॉमेडी वीडियो में कहा था यदि ज्यादा नहीं पढ़ सका तो चुनाव लडक़र विधायक, मंत्री बन जाउंगा

कॉमेडियन से राजनेता बने भगवंत मान ने अपने एक पुराने कॉमेडी वीडिया में कहा था कि यदि मैं पढ़ लिख गया तो इंजीनियर डाक्टर बनूंगा और यदि ज्यादा नहीं पढ़ सका तो चुनाव लडक़र विधायक मंत्री तो बन ही जाउंगा। भगवंत मान की यही बात सच हुई। उन्होंने अपनी पढ़ाई बी-काम फस्र्ट इयर के बाद छोडक़र ही पहले कॉमेडी और उसके बाद राजनीति में हाथ आजमाए।

 

भगवंत मान का जन्म 17 अक्तूबर 1973 को पंजाब के  संगरूर जिले के संतोजत गांव में एक स्कूल टीचर महिंदर सिंह के घर हुआ। भगवंत मान की मां हरपाल कौर का कहना है कि वो बचपन से ही अपनी कामेडी से सभी को खूब हंसाता था। 1992 में मान ने संगरूर के शहीद उधम सिंह गवर्नमेंट कालेज में बी.कॉम में दाखिला लिया मगर बीच में ही पढ़ाई छोड़ कॉमेडी को ही अपना कैरियर बना लिया। भगवंत मान ने एक के बाद एक कॉमेडी की 35 एलबम रिलीज की। भगवंत मान अपने प्रत्येक कॉमेडी एलबम में कोई ना कोई गंभीर संदेश अवश्य देते रहे। चाहे वे सरकारी विभागों या राजनीति में भ्रष्टाचार हो समाज में फैली कुरीतियां हों या फिर युवाओं में बेरोजगारी या फिर नशे का मुद्दा हो। उनकी कॉमेडी एलबम कुल्फी गर्मा गरमऔर मिठियां मिर्चां  ने  भगवंत मान को रातों रात स्टार बना दिया। इसके अलावा मान ने कई हिंदी पंजाबी फिल्मों टीवी पर चलने वाले कॉमेडी शोज में भी अपनी प्रतिभा से सभी को प्रभावित किया। मान ने एक स्टैंडअप कामेडियन और राजनेताओं जोक्स व कटाक्ष से अपनी एक अलग पहचान बनाई। राजनेताओं पर कटाक्ष करते करते भगवंत मान ने 1992 पंजाब के पूर्व मंत्री व प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल द्वारा अकाली दल से अलग होकर बनाई गई पंजाब पीपल्स पार्टी(पीपीपी)से अपना  राजनैतिक कैरियर शुरु किया।

उन्होंने 2012 में विधान सभा चुनाव भी लड़ा मगर हार गए। 2014 में भगवंत मान आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए और अकाली दल के नेता सुखदेव सिंह ढींढसा के विरुद्ध संगरूर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और मान सुखदेव सिंह ढींढसा को 2 लाख से अधिक मतों से हराकर पहली बार सांसद बने। 2017 में मान ने सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ जलालाबाद से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा मगर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। 2019 में भगवंत मान ने एक बाद फिर से संगरूर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और अपने प्रतिद्वंद्वी  कांग्रेस के केवल सिंह ढिल्लों को एक लाख से अधिक मतों से हराया। कॉमेडी और लिखने के साथ साथ भगवंत मान को स्पोर्ट्स का भी बहुत शौक है। वह वालीबाल के भी खिलाड़ी रहे हैं। इसके साथ ही उन्हें एनबीए, हॉकी, फुटबाल और क्रिकेट के मैच देखने का भी बहुत शौक है।

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पहली हरी कलम बेरोजगारी दूर करने के लिए चलाएंगे

अपनी पार्टी की इस ऐतिहासिक जीत के बाद भगवंत सिंह मान ने लोगों को देश-विदेश में बसे सभी पंजाबियों का धन्यवाद किया और कहा कि आपने अपनी जिम्मेदारी बेहद बखूबी के साथ निभाई है, अब जिम्मेदारी निभाने की बारी हमारी है। मान ने लोगों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि हमारी नीयत अच्छी है, इसीलिए पंजाब के लोगों ने हम पर भरोसा किया है। मुझपर यकीन रखें, एक महीने में बदलाव दिखने लगेगा। अब आपको सरकारी दफ्तरों में बाबुओं के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब सरकारी बाबू आपके गांवों व मोहल्लों के चक्कर लगाएंगे और आपके घर पहुंचकर आपका काम करेंगे।

 

मान ने कहा कि मुझे सबसे ज्यादा फिक्र बेरोजगारी की है। बेरोजगार युवक मजबूर होकर नशे में डूब रहे हैं और विदेश जा रहे हैं। महंगी उच्च शिक्षा और रोजगार के अभाव के  कारण पंजाब का पैसा और प्रतिभा का पलायन हुआ है। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद हम पहले दिन ही अपनी हरी कलम बेरोजगारी दूर करने के लिए चलाएंगे। हम युवाओं के हाथ से टीका छीनकर टिफिन पकड़ाएंगे और उन्हें पंजाब में ही शिक्षा व रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराएंगे। मान ने कहा कि कांग्रेस-अकाली सरकार में पंजाब मोती महल, सिसवां फार्म हाउस और बड़ी-बड़ी हवेलियों से चला करता था। अब पंजाब की सरकार गांवों और मोहल्लों से चलेगी। हम पंजाब के सभी पौने तीन करोड़ लोगों की भलाई के लिए काम करेंगे और पंजाब को फिर से पंजाब बनाएंगे।

 

मान ने कहा कि अब पंजाब के सरकारी दफ्तरों में मुख्यमंत्री और नेताओं की तस्वीर नहीं लगेगी। सरकारी दफ्तरों में अब शहीद-ए-आजम भगत सिंह और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लगेगी। भगत सिंह ने अपनी जान कुर्बान कर हमें आजादी दिलाई और आजादी मिलने के बाद बाबा साहब ने देश का संविधान लिख कर हमें स्वतंत्रता व समानता का अधिकार दिलाया। हमारा कर्तव्य है कि हम उनके मान को बढ़ाएं और उनके सपनों को साकार करें।

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पहली बार लुढक़े इतने बड़े बड़े दिग्गज

पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 अपने चौंकाने वाले परिणामों, नए नए रिकार्डों व भारी उलट फेर के लिए लंबे समय तक याद रखा जाएगा। यह तो चुनाव से पहले ही तय हो चुका था कि पंजाब की जनता ने पंजाब की दोनों रवायती पार्टियों को बदलने का मन बना लिया है। पंजाब में आम आदमी पार्टी के पक्ष में बदलाव की बयार पहले ही चलनी शुरु हो चुकी थी। आम आदमी पार्टी और इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल, पंजाब प्रभारी राघव चड्ढा ने चुनावों से काफी पहले ही पंजाब में आम आदमी पार्टी के हक में हवा बनानी शुरु कर दी थी और आम आदमी पार्टी ने इस काम में अपने जनसंपर्क अभियान के तहत आम आदमी से डोर टू डोर मिलने के कार्यक्रम भी चुनावों तक निरंतर जारी रख कांग्रेस व अकालियों को काफी पीछे छोड़ दिया था। इस बार पंजाब की जनता ने केवल बदलाव के मद्देनजर कांग्रेस और अकाली दल के बड़े बड़े दिगगजों को धूल चटा दी। इनमें 5 बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल, पूर्व उप मुख्यमंत्री व अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल, बड़े अकाली नेता और पूर्व मंत्री बिक्रमजीत मजीठिया, पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, कांग्रेस के पूर्व उप मुख्यमंत्री ओपी सोनी, पूर्व मंत्री मनप्रीत सिंह बादल, पूर्व मंत्री रजिया सुल्तान तथा पूर्व मंत्री आदेश प्रताप कैरों प्रमुख नाम हैं।

 

इनमें सबसे दिलचस्प बात तो यह रही कि लगभग तीस साल बाद इस बार 16वीं विधान सभा में बादल परिवार का कोई भी सदस्य विधानसभा में नहीं जा पाएगा, क्योंकि स्वयं प्रकाश सिंह बादल, उनके पुत्र सुखबीर बादल, सुखबीर बादल के साले बिक्रमजीत मजीठिया, प्रकाश सिंह बादल के दामाद आदेश प्रताप सिंह कैरों, प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल भी इस बार चुनाव हार गए हैं।

पूर्व मुख्यमंत्रियों की बात करें तो इस बार के चुनावों में पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री(अब पंजाब लोक कांगे्रस) के कैप्टन अमरिंदर सिंह पटियाला शहरी से, कांग्रेस की पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल लैहरा से, पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भदौड़ व श्री चमकौर साहिब से चुनाव हार चुके हैं।

मुख्यमंत्री चन्नी सहित पंजाब के वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल बठिंडा से, ओपी सोनी अमृतसर सेंट्रल से, राजकुमार वेरका अमृतसर वेस्ट से, विजय इंदर सिंगला संगरूर से, भारत भूषण आशु लुधियाना वेस्ट से, रजिया सुल्ताना मलेर क ोटला से, पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बेअंत सिंह के पौत्र गुरकीरत कोटली खन्ना से चुनाव हार गए हैं।

 

पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा डेरा बाबा नानक, पूर्व ओलंपियन परगट सिंह जालंधर कैंट, अरूणा चौधरी दीनानगर, तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा फतेहगढ़ चूडिय़ां, राणा गुरजीत सिंह, अमरिंदर सिंह राजा वडिंग गिदड़बाहा, सुखविंदर सरकारिया राजा सांसी सहित कुल आठ मंत्री तथा पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व राज्य सभा सांसद पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा कादियां, से जीत दर्ज कर कांग्रेस की कुछ साख बचाने में सफल हुए।

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पंजाब की पैड वूमेन के नाम से मशहूर जीवन ज्योत कौर ने सिद्धू और मजीठिया को दी मात

आम आदमी पार्टी की एक आम वालंटियर तथा लंबे समय से समाज सेवा से जुड़ी जीवन ज्योत कौर ने पंजाब के दो सबसे ताकतवर नेताओं को मात देकर इतिहास रच दिया है। जीवन ज्योत कौर ने अमृतसर ईस्ट से पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू व माझा के बादशाह कहे जाने वाले पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को हरा कर सबको चौंका दिया। कानून में स्नातक जीवन ज्योत कौर को लोग पंजाब की पैड वूमैन के तौर पर भी जानते हैं। उन्होंने गांवों में महिलाओं को हाइजिन सैनेटरी पैड उपलब्ध करवाने और रियूजेबल सैनेटरी नैपकिन प्रोमोट करने में बहुत काम किया है। पंजाब की जेलों में बंद महिलाओं को भी जीवन ज्योत सैनेटरी पैड उपलब्ध करवाने ाक काम करती रही हैं। वह महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलवाने और महिला सशक्तिकरण के लिए निरंतर काम कर रही हैं। चुनाव से पहले सभी नवजोत सिंह सिद्धू और बिक्रमजीत मजीठिया के बीच क ड़ा मुकाबला मान रहे थे और सभी ने जीवन ज्योत को बहुत हल्के में लिया था। परंतु जीवन ज्योत ने इन दोनो महारथियों को पटखनी देकर सिद्ध कर दिया कि कितना भी बड़ा नेता हो, जनता जिसका साथ देती है उसे कोई नहीं हरा सकता।

अमृतसर ईस्ट से जीवन ज्योत कौर को 39520, नवजोत सिंह सिद्धू को 32807 तथा बिक्रमजीत मजीठिया को 25112 वोट मिले। 

 

13 विजयी महिलाओं में से 10 पहली चुनाव लड़ी

पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में 13 महिलाओं ने अपनी ताकत का अहसास करवाते हुए चुनावों में जीत दर्ज की है। इनमें आम आदमी पार्टी की नरिंदर कौर भरज संगरूर से, जीवन ज्योत कौर अमृतसर ईस्ट से, राजिंदरपाल कौर लुधियाना साउथ से, प्रोफेसर बलजिंदर कौर तलवंडी साबो से, डा.अमनदीप कौर मोगा से, सर्वजीत कौर मनूके जगरांव से, इंदरजीत कौर मान नकोदर से, संतोष कुमारी कटारिया बलाचौर से, नीना मित्तल राजपुरा से, अनमोल गगन मान खरड़ से, डा.बलजीत कौर मलोट से विजयी हुई हैं। कांग्रेस की अरुणा चौधरी दीनानगर से तथा शिरोमणि अकाली दल की गुनीव कौर मजीठिया मजीठा से चुनाव जीती हैं।

 

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