Thursday, March 22, 2012

मेरी याददाशत बहुत तेज है


ये दुनिया यूं तो आने जाने का नाम है...लेकिन, कुछ लोगों के जाने के बाद जीवन में एक शून्य सा पैदा हो जाता है...जो लंबे समय तक रहता है....कुछ ऐसा ही आपके जाने के बाद महसूस हो रहा है...रविन्द्र शाह से मेरी मुलाकात ज्यादा पुरानी नहीं थी...मैं उनसे पहली बार भास्कर के दफ्तर जो पहले गोल डाक खाने के पास होता था...वहां मिला था...जहां उन्होंने वो नये पत्रकारों का टेस्ट लेकर भास्कर के लिए युवा पत्रकार खोज रहे थे। मैं भी वहां अपना साक्षात्कार देने पहुंचा था...जब मैं उस दफ्तर में पहुंचा तो कुछ समय के बाद वो अपने केबिन से बाहर आए और मुस्कुराते हुए वोले आप रविन्द्र हैं...मैंने कहां जी हां...इसपर उन्होंने कहा था...मैं भी रविन्द्र हूं। उनका इस तरह से जबाव देना मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि कुछ समय के बाद वहां मौजूद एक रिपोर्टर ने मुझे बताया ये संपादक हैं।

खैर इसके बाद मेरा टेस्ट हुआ और मैं इस टेस्ट में पास ना हो सका...लेकिन, उन्होंने कहा कि आप मेहनत करो और फिर प्रयास करो। मैं लंबे समय तक फिर उनसे नहीं मिला। फिर जब वो एस बन में पहुंचे तो...मैं फिर वहां इंटरव्यूह देने पहुंचा...उन्होंने मुझे झट से पहचान लिया और कहा कि अरे भई तुम तो पहले भी हम से मिल चुके हो...मैंने बताया जी हां...मैं आपसे भास्कर में मिला था...उन्होंने कहा...ठीक कहा आपने। और फिर इंटरव्यूह हुआ...मेरा सिलेक्शन हो गया...लेकिन, उस समय मुझे अमर उजाला से अच्छा ऑफर आ गया और मैं अमर उजाला चला गया। जिसके बाद लंबे समय तक में उनसे नहीं मिला। लेकिन फिर एक साथी जो इन दिनों देश के नंबर एक चैनल में है....उसके माध्यम से मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। और फिर वहीं कहानी उन्होंने दोहराई। मैंने उनके घर की कॉलबेल बजाई वो बाहर आए...और बड़े ही सहज अंदाज से बोले रविन्द्र क्या हाल हैं। मैं उनकी याददाशत देखकर हैरान था...मेरा मुंह खुला हुआ था...उन्हें शायद पता चल गया कि मैं क्यों हैरान हूं...उन्होंने रसोई से पानी लाकर दिया और कहा भाई मैं कुछ भूलता नहीं। उसके बाद मैं लगातार उनके टच में रहा। उन्होंने मुझे आजाद में काम दिलवाया...वहीं थे...जो मुझे एक बार फिर मुख्यधारा में लेकर आए। वो लगातार मुझसे इस बीच अपनी बाते शेयर करते रहे। घंटों मुझसे अलग अलग टॉपिक पर बात करते...हमेशा खोजी पत्रकारिता पर बात करते। और साथ ही मुझे अलग से खोजी पत्रकारिता पर कुछ काम भी देते रहते। ताकि मेरी आर्थिक मदद के साथ बोद्धिक विकास भी हो सके। वो लगातार मुझसे कहते यार....ये काम मेहनत से ज्यादा अक्ल का है...इसमें मेहनत उतनी ही लगानी चाहिए...जितनी जरूरत हो...इससे ज्यादा मेहनत काम खराब करती है। स्टोरी के साथ जुड़ना अच्छा है...लेकिन, उसके पीछे लगकर दूसरी खबर भूलना उससे भी ज्यादा खतरनाक। खैर समय बीतता रहा....और पिछळे साल यानी साल 2011 में मेरी शादी की सालगिरह पर वो मेरे बुलाने पर दिल्ली हाट पहुंचे। वो 27 अप्रैल का दिन था। वो अपने वहीं शांत अंदाज में आये...मेरे दोनो बच्चों ने उनके पैर छुए....जिसके बाद उन्होंने मेरे छोटे बेटे को अपनी गोद में उठा लिया और सर पर दूसरे बेटे के हाथ रखते हुए बोले...रविन्द्र जिंदगी की धूप में कभी घबरना मत...मैं तुम्हारे साथ हूं...परिवार का ध्यान रखना और बच्चों की सेहत का ध्यान रखना। ये बात सुनकर मेरा गला भर आया और मेरी पत्नी ने भी उनके पैर छू लिए...जिसके बाद उन्होंने एक सफेद लिफापा मेरी पत्नी के हाथ में देते हुए कहा...ये रवी (जो मेरा घर का नाम है) की मेहनत की कमाई है। मैं आज इसे खास तौर पर तुम्हें सौंपने आया हूं। और इन पैसों को सही जगह खर्च करना ये बहुत खर्चीला है....इसके हाथ में इन्हें मत देना। जिसके बाद उन्होंने एक बार फिर बच्चों को आशीष दिया और साथ ही मुझे एक नया असायनमेंट देते हुए कहा...कि ये काम भी समय से ही कर देना जैसी तुम से हमेशा उम्मीद की जाती है। मैंने असायनमेंट ले लिया और मैं काम पर जुट गया....इस बीच हमारी कई बार मुलाकात हुई....मैं आउटलुक जाता रहा...उनकी डांट कभी प्यार और कभी कंधे पर हाथ रखना मुझे हिम्मत देता रहा। उनकी वो गाजर की खीर....वो चाय और उसके साथ डांट क्या गजब का कम्बीनेशन था। और फिर उसके बाद उनका मिठाई तो कभी इंदौर की नमकीन देना। शायद ही मैं भूल पाउंगा। लेकिन उस दिन उनका एक दिन पहले फोन आया था....मैंने पूछा कहां हैं सर। उन्होंने जबाव दिया बाहर हूं...आकार मिलते हैं....लेकिन, वो नहीं आये....वो चले गए...जहां...से कोई नहीं आता। लेकिन...फिर एक दिन मेरे फोन पर संदेश आया जी हां...आज से कुछ दिन पहले ही....प्लीज कॉल मी....रविन्द्र शाह.....मैं संदेश देखकर चौंक गया...मैंने वापस फोन किया....तो पता चला कि वो, रविन्द्र जी नहीं वो व्यक्ति हैं...जिनके लिए मैं उनके माध्यम से काम करता था....उन्होंने कहा आपके बारे में अक्सर रविन्द्र जी मुझे बताते रहे हैं....मेरी आपकी मुलाकात नहीं हो पायी...लेकिन, उन्होंने कहा था...कि अगर मैं अनुपस्थित रहूं...तो आप रवी से बात कर सकते हैं....जी हां...रविन्द्र शाह कभी कुछ नहीं भूलते थे।

पोलखोल: काले कर्मों वाले बाबा

पोलखोल: काले कर्मों वाले बाबा

काले कर्मों वाले बाबा


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बाबा रामदेव काफी समय से देश भर में काले धन के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। लेकिन पड़ताल बताती है कि असल में उनका खुद का हाल पर उपदेश कुशल बहुतेरे जैसा है। काले धन को लेकर सरकारों को पानी पी-पीकर कोसने वाले बाबा रामदेव खुद उसी काले धन के पहाड़ पर विराजमान हैं।
साल 2004 की बात है। बाबा रामदेव योगगुरु के रूप में मशहूर हुए ही थे। चारों तरफ उनकी चर्चा हो रही थी। टीवी चैनलों पर उनकी धूम थी। देश के अलग-अलग शहरों में चलने वाले उनके योग शिविरों में पांव रखने की जगह नहीं मिल रही थी और बाबा के औद्योगिक प्रतिष्ठान दिव्य फार्मेसी की दवाओं पर लोग टूटे पड़ रहे थे। लेकिन फार्मेसी ने उस वित्तीय वर्ष में सिर्फ छह लाख 73 हजार मूल्य की दवाओं की बिक्री दिखाई और इस पर करीब 54 हजार रुपये बिक्री कर दिया गया। यह तब था जब रामदेव के हरिद्वार स्थित आश्रम में रोगियों का तांता लगा था और हरिद्वार के बाहर लगने वाले शिविरों में भी उनकी दवाओं की खूब बिक्री हो रही थी। इसके अलावा डाक से भी दवाइयां भेजी जा रही थीं।
रामदेव के चहुंओर प्रचार और देश भर में उनकी दवाओं की मांग को देखकर उत्तराखंड के वाणिज्य कर विभाग को संदेह हुआ कि बिक्री का आंकड़ा इतना कम नहीं हो सकता। उसने हरिद्वार के डाकघरों से सूचनाएं मंगवाईं। पता चला कि दिव्य फार्मेसी ने उस साल 3353 पार्सलों के जरिए 2509.256 किग्रा माल बाहर भेजा था। इन पार्सलों के अलावा 13 लाख 13 हजार मूल्य के वीपीपी पार्सल भेजे गए थे। इसी साल फार्मेसी को 17 लाख 50 हजार के मनीऑर्डर भी आए थे।
सभी सूचनाओं के आधार पर राज्य के वाणिज्य कर विभाग की विशेष जांच सेल (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी पर छापा मारा। इसमें बिक्रीकर की बड़ी चोरी पकड़ी गई। मामला कम से कम पांच करोड़ रु के बिक्रीकर की चोरी का था।
भ्रष्टाचार और काले धन को मुद्दा बनाकर रामदेव पिछले दिनों भारत स्वाभिमान यात्रा पर निकले हुए थे। इस यात्रा का पहला चरण खत्म होने के बाद 23 नवंबर को वे दिल्ली में थे। यहां बाबा का कहना था कि यदि संसद के शीतकालीन सत्र में लोकपाल और काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने वाले बिल पारित नहीं होते हैं तो वे उन पांच राज्यों में आंदोलन करेंगे जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में उनका कहना था, ‘जिस दिन काले धन पर कार्रवाई शुरू होगी, उस दिन पता चलेगा कि जिन्हें हम खानदानी नेता समझ रहे थे उनमें से 99 प्रतिशत तो खानदानी लुटेरे हैं।
अब सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार और काले धन की जिस सरिता के खिलाफ रामदेव अभियान छेड़े हुए हैं उसी में अगर वे खुद भी आचमन कर रहे हों तो? फिर तो वही बात हुई कि औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत। पड़ताल कुछ ऐसा ही इशारा करती है।
सबसे पहले तो यह सवाल कि काला धन बनता कैसे है।
करों से बचाई गई रकम और ट्रस्टों में दान के नाम पर मिले पैसे से काला धन बनता है। काले धन को दान का पैसा दिखाकर, उस पर टैक्स बचाकर उसे फिर से उद्योगों में निवेश किया जाता है। इससे पैदा होने वाली रकम को पहले देश में जमीनों और जेवरात पर लगाया जाता है। इसके बाद भी वह पूरा न खप सके तो उसे चोरी-छुपे विदेश भेजा जाता है। यह एक अंतहीन श्रृंखला है जिसमें बहुत-से ताकतवर लोगों की हिस्सेदारी होती है।
दिव्य फार्मेसी पर छापे की कार्रवाई को अंजाम देने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा बताते हैं कि उनकी टीम ने इस छापे से पहले काफी होमवर्क किया था। राणा कहते हैं, ‘मेरी याददाश्त के अनुसार लगभग पांच करोड़ रु के राज्य और केंद्रीय बिक्री कर की चोरी का मामला बन रहा था।टीम के एक अन्य सदस्य बताते हैं, ‘पुख्ता सबूतों के साथ 2000 किलो कागज सबूत के तौर पर इकट्ठा किए गए थे।
रामदेव से जुड़ी फार्मेसी पर छापा मारने पर उत्तराखंड के तत्कालीन राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल बड़े नाराज हुए थे। उन्होंने इस छापे की पूरी कार्रवाई की रिपोर्ट सरकार से तलब की थी। उस दौर में प्रदेश के प्रमुख सचिव (वित्त) इंदु कुमार पांडे ने राज्यपाल को भेजी रिपोर्ट में छापे की कार्रवाई को निष्पक्ष और जरूरी बताया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भी इस रिपोर्ट के साथ अपना विशेष नोट लिख कर भेजा था जिसमें उन्होंने प्रमुख सचिव की बात दोहराई थी। रामदेव ने अधिकारियों पर छापे के दौरान बदसलूकी का आरोप लगाया था जिसे राज्य सरकार ने निराधार बताया था।
विभाग के कुछ अधिकारियों का मानना है कि रामदेव के मामले में अनुचित दबाव पड़ने के बाद डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने समय से चार साल पहले ही सेवानिवृत्ति ले ली थी। राणा को तब विभाग के उन उम्दा अधिकारियों में गिना जाता था जो किसी दबाव से डिगते नहीं थे। एसआईबी के इस छापे के बाद राज्य या केंद्र की किसी एजेंसी ने रामदेव के प्रतिष्ठानों पर छापा मारने की हिम्मत नहीं की। इसी के साथ रामदेव का आर्थिक साम्राज्य भी दिनदूनी रात चौगुनी गति से बढ़ने लगा।
लेकिन बिक्री कम दिखाना तो कर चोरी का सिर्फ एक तरीका था। दिव्य फार्मेसी एक और तरीके से भी कर की चोरी कर रही थी। दस्तावेज बताते हैं कि उस साल फार्मेसी ने वाणिज्य कर विभाग को दिखाई गई कर योग्य बिक्री से पांच गुना अधिक मूल्य की दवाओं (30 लाख 17 हजार रु) का स्टाक हस्तांतरणबाबा द्वारा धर्मार्थ चलाए जा रहे दिव्य योग मंदिर ट्रस्टको किया। रिटर्न में फार्मेसी ने बताया कि ये दवाएं गरीबों और जरूरतमंदों को मुफ्त में बांटी गई हैं। लेकिन वाणिज्य कर विभाग के तत्कालीन अधिकारी बताते हैं कि दिव्य फार्मेसी उस समय गरीबों को मुफ्त बांटने के लिए दिखाई जा रही दवाओं को कनखल स्थित दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से बेच रही थी।
जमीन का फेर
योग और आयुर्वेद का कारोबार बढ़ने के बाद रामदेव ने वर्ष 2005 में पतंजलि योग पीठ ट्रस्ट के नाम से एक और ट्रस्ट शुरू किया। रामदेव तब तक देश की सीमाओं को लांघ कर अंतरराष्ट्रीय हस्ती हो गए थे। 15 अक्टूबर, 2006 को गरीबी हटाओ पर हुए मिलेनियम अभियान में रामदेव ने विशेष अतिथि के रूप में संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया। अपने वैश्विक विचारों को मूर्त रुप देने के लिए अब उन्हें हरिद्वार में और ज्यादा जमीन की जरूरत थी। इस जरूरत को पूरा करने के लिए आचार्य बालकृष्ण, दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और पतंजलि ट्रस्ट के नाम से दिल्ली-माणा राष्ट्रीय राजमार्ग पर हरिद्वार और रुड़की के बीच शांतरशाह नगर, बढ़ेड़ी राजपूताना और बोंगला में खूब जमीनें खरीदी गईं। राजस्व अभिलेखों के अनुसार शांतरशाह नगर की खाता संख्या 87, 103, 120 और 150 में दर्ज भूमि रामदेव के ट्रस्टों के नाम पर है। यह भूमि कुल 23.798 हेक्टेयर (360 बीघा) के लगभग बैठती है और इसी पर पतंजलि फेज-1, पतंजलि फेज- 2 और पतंजलि विश्वविद्यालय बने हैं।
रामदेव के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को 16 जुलाई, 2008 को उत्तराखंड सरकार से औरंगाबाद, शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला आदि गांवों में पंचकर्म व्यवस्था, औषधि उत्पादन, औषधि निर्माणशाला एवं प्रयोगशाला स्थापना के लिए 75 हेक्टेयर जमीन खरीदने की इजाजत मिली थी। शर्तों के अनुसार खरीदी गई भूमि का प्रयोग भी उसी कार्य के लिए किया जाना चाहिए जिस कार्य के लिए बताकर उसे खरीदने की इजाजत ली गई है। पहले बगीचा रही इस कृषि-भूमि पर रामदेव ने योग ग्राम की स्थापना की है। श्रद्धालुओं को बाबा के इस रिजॉर्टनुमा ग्राम में बनी कॉटेजों में रहकर पंचकर्म कराने के लिए 1000 रु से लेकर 3500 रु तक प्रतिदिन देना होता है।
फर्जीवाड़े दुनिया भर के
तेलीवाला गांव में रामदेव की जमीनों के लगभग 20 बीघा वाले हिस्से में एक भव्य भवन वाला बड़ा आवासीय परिसर बना है। इस पर पर बाबा के बड़े-बड़े फोटो लगे हैं। बाबा ने तेलीवाला की अपनी सारी जमीन पर योग ग्राम की ही तरह बिजली के प्रवाह वाली सबसे महंगी तार-बाड़ लगाई है। इस परिसर के प्रभारी राजस्थान निवासी कोई शास्त्री जी हैं। परिसर में ट्रैक्टर सहित कई कृषि यंत्र दिखते हैं। बाबा के सेवक इस परिसर में शाहीवाल नस्ल की गायें भी पालते हैं। इसके पास ही पतंजलि धर्मकांटाभी लगाया गया है जहां से गन्ना तुल कर परिसर में बने गुड़ के कोल्हू पर पिराई के लिए जाता है। कोल्हू दो हैं जिन्हें चलाने के लिए रामदेव के लोग आसपास के गांवों के किसानों से गन्ना खरीदते हैं। आने वाला गन्ना तोलने के लिए उन्होंने बाकायदा धर्मकांटा तक लगाया है। विजयपाल सैनी बताते हैं, ‘बाबा की इन चरखियों में हर दिन लगभग 300 क्विंटल गन्ना पिरोया जाता है।
तेलीवाला में बिजली के दो कनेक्शन भी आचार्य बालकृष्ण के नाम व दिव्य योग मंदिर, कनखल के पते पर लिए गए हैं। बिजली के एक कनेक्शन की उपभोक्ता संख्या 711205 है। 35 हार्स पावर का एक कनेक्शन ट्यूब-वेल के नाम पर लिया गया है।
नये जमाने के जमींदार
आजादी के बाद वर्ष 1950 में जमींदारी प्रथा को खत्म करने के मकसद से एक कानून बनाया गया था जो 1952 में पूरी तरह से लागू हुआ। असल में तब समस्या यह थी कि चंद लोगों के पास जमीनें ही जमीनें थीं जबकि बाकी भूमिहीन थे। कानून का मकसद था कि यह असंतुलन दूर हो और दलित व गरीब भूमिहीनों को भी खेती के लिए जमीन मिले। लेकिन रामदेव जो कर रहे हैं वह एक झलक है कि किस तरह वही क्रूर जमींदारी प्रथा एक नयी शक्ल में फिर से सिर उठा रही है।
बाबा के ट्रस्टों द्वारा खरीदी गई भूमियों में से एक (खाता संख्या 120) की गहनता से जांच की तो पाया कि रामदेव ने जमीनों को खरीदने के लिए कानून के उन्हीं छेदों का सहारा लिया है जिनका इस्तेमाल भूमाफिया अनुसूचित जाति के गरीब किसानों की जमीन छीनने में करते हैं। बढेड़ी राजपूतान गांव निवासी कल्लू के चार पुत्रों में से तीन ने वर्ष 2007 से लेकर 2009 के बीच जमीन को बंधक रख बैंक से ऋण लेना दिखाया है। बाद में ऋण अदायगी के नाम पर अनुसूचित जाति के इन किसानों को भूमि बेचने की इजाजत उपजिलाधिकारी से दिलाई गयी और इस भूमि को पतंजलि योगपीठ ने ले लिया। अब ये परिवार भूमिहीन हैं।
पट्टे में मिली खेती की तीन बीघा जमीन पर बाबा के लोगों द्वारा कब्जा करने के बाद शकीला अब अपने बेटे गुलजार के साथ नदी की रेत में पसीना बहा कर किसी तरह दो जून की रोटी का इंतजाम करेगी। आचार्य बालकृष्ण ने सरकार को इस नदी को भी उनके ट्रस्ट को आवंटित करने का प्रस्ताव भेजा है। फिर भूमिहीन हो गए सैकड़ों ग्रामीण कहां जाएंगे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
हाल ही में रामदेव ने फिर उत्तराखंड सरकार से हरिद्वार जिले के तेलीवाला, औरंगाबाद, हजारा ग्रांट, अन्यगी आदि गांवों में 125 हेक्टेयर (1875 बीघा) भूमि खरीदने की अनुमति मांगी है। वास्तव में ये जमीनें बाबा ने अपने लिए इकट्ठा करवा कर कब्जे में ले रखी हैं। अब उन्हें खरीद का वैधानिक रूप देना है। इनमें से ज्यादातर अनुसूचित जाति के किसानों की हैं जो बाबा को जमीन बेच कर एक बार फिर भूमिहीन हो गए हैं। बाबा के ट्रस्टों के भू-विस्तार अभियान से भूमिहीन हो गए सैकड़ों ग्रामीण कहां जाएंगे, इसके बारे में सोचने की फुरसत किसी को नहीं। शकीला के पास टीवी भी तो नहीं है। कम से कम वह उस पर रोज आ रहे बाबा रामदेव के प्रवचनों को सुन कर यह संतोष तो कर लेती कि उसकी थोड़ी-सी जमीन काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ किए जा रहे बाबा के संघर्ष में कुर्बान हुई है।
दवा और उत्पादों की कीमत में हेरफेर
इसके अलावा अगर बाबा के प्रोडक्ट्स की बात की जाए...तो वो भी बाजार के दूसरे उत्पादों की तरह ही महंगे हैं....लेकिन बाबा का तर्क है...कि वो वगैर मुनाफे के अपने उत्पाद बेच रहे हैं....आईये हम आपको बाबा राम देव और दूसरे उत्पाद की कीमते दिखाते हैं...जो अपने आप ये बयां करने के लिए काफी होगें कि बाबा के उत्पाद किस भी हाल में सस्ते नहीं हैं। अगर एक दो चीजों की कीमतों को छोड़ दिया जाए तो।
आरोग्य आटा 2 KG Rs. 100
आरोग्य विस्कुट – 100GM Rs. 10
आंवला केंडी 500GM Rs.110.00
आंवला चटपटा 500GM Rs.115.00
अमृत रसायन 1000GM Rs.140.00
बादाम पाक 500GM Rs.225.00
बादाम रोगन 60ML Rs.100.00
बेसन 500GM Rs.30.00
बेव कैंडी 500GM Rs.110.00
दिव्य दलिया 500GM Rs.30.00
दिव्य शोधित हरड़ 100GM Rs.30.00
गुलकंद 400GM Rs.45.00
हींग पेड़ा 200GM Rs.55.00
महात्रिफला घृत 200GM Rs.180.00
मिक्स जैम 500GM Rs.70.00
फल घृत 200 GM Rs.200.00
पाइनएप्पल जैम 1000GM Rs.100.00
सादा च्वनप्राश 1KG Rs.140.00
सेब जैम 1000GM Rs.100.00
शिलाजीत सत 20GM Rs.60.00
ये बाबा रामदेव के उत्पादों की कीमते हैं....जिन्हें देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है...कि बाबा के कोई भी उत्पाद बाजार के दूसरे उत्पादों जैसे महंगे ही है....फिर बाबा किस आधार पर कहते हैं...कि उनके उत्पाद बाजार कीमतों से कम है...और वो किसी तरह का मुनाफा कमाने में यकीन नहीं करते।