Thursday, January 20, 2011

नई बोतल में पुरानी शराब


मनोहन सिंह मंत्रिमंडल का विस्तार आखिरकार हो गया। इसमें तीन नये चेहरों को शामिल किया गया है। अधिकतर मंत्रियों के विभाग परिवर्तन किए गए हैं...लेकिन किसी भी मंत्री को मंत्रिमंडल से हटाया नही गया है। साथ इस विस्तार में मिशन यूपी 2012 की झलक खूब देखने को मिली। ढेड़ साल पुरानी मनमोहन सरकार के मंत्रिमंडल में पहला फेरबदल बुधवार शाम को किया गया। इसमें एक स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री और दो राज्यमंत्रियों समेत कुल तीन नए चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल किए गए। जबकि तीन राज्यमंत्रियों को प्रमोट करके कैबिन मंत्री का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा कई मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया गया है। इस मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए सरकार ने नई बोतल में पुरानी शराब डाल दी है। और साथ ही उत्तर प्रदेश में 2012 में होनें वाले विधान सभा चुनाव पर निशाना साधते हुए यूपी से बेनी प्रसाद वर्मा को मंत्रिमंडल में जगह दे दी है। सलमान खुर्शीद और श्री प्रकाश जयसवाल का प्रमोशन भी दिया गया ताकि अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग के वोटर को रिझाया जा सके। वहीं कैबिनेट में बदलाव के साथ मनमोहन ने एक बार फिर महंगाई पर काबू पाने की बात कही....और एक बार फिर आश्वासन का झुनझुना पकड़ा कर जोर का झटका धीरे से देते हुए कहा कि...वो कोई ज्योतिषी नहीं हैं जो महंगाई कब तक रूकेगी इसका ठीक समय बता दें। इसके अलावा कैबिनेट विस्तार से आम जनता को उम्मीद थी कि कैबिनेट से दागी मंत्रियों का पत्ता साफ हो जायेगा....लेकिन शहरी विकास मंत्री एस. जयपाल रेड्डी को पेट्रोलियम मंत्रालय सौंपा गया। वहीं खेलमंत्री रहे एम.एस. गिल को भी सांख्यिकी एवं क्रियान्वयन मंत्रालय सौंपकर मंत्रिमंडल में बरकार रखा गया...परफोर्मेंस और पारदर्शिता की बात करने वाली सरकार ने अपने कई और दागी और नाकाम मंत्रियों को मंत्रिमंडल में बनाए रखा है...सरकार का ये भी कहना है कि बजट के बाद मंत्रीमडंल में फिर से बदलाव किए जायेंगे। बहरहाल, मनमोहन सरकार में हुए पहले फेरबदल से देश की जनता को खासी उम्मीद थी जिसपर सरकार खरी उतरती तो बेशक नजर नहीं आयी।

Wednesday, January 19, 2011

मासूमों के नाम पर कमाई


दिल्ली सरकार ने सभी नीजि स्कूलों को ये आदेश दिए हैं कि वो अपने स्कूलों में 25 फीसद सीटों पर कमजोर वर्ग के बच्चों को दाखिला दें। लेकिन इस मामले में दिल्ली के सभी बड़े स्कूल नाक भौ सिकोड़ रहे हैं। स्कूलों का कहना है कि इस तरह से उनके स्कूल का बजट खराब हो जायेगा जिसका भुगतान शेष 75 फीसद बच्चों को बढ़ी हुई फीस चुका कर पूरा करना होगा। यानी स्कूल अपने बजट से गरीब बच्चों को नहीं पढ़ायेगा। स्कूल अपनी कमाई को किसी हाल में कम नहीं होने देगा।

यानी नीजि स्कूल किसी भी हालत में देश गरीबों को शिक्षा नहीं देंगे। वहीं अगर स्कूलों के कारनामों और घोटालों पर नजर डाली जाये तो दिल्ली के अधिकतर नीजि स्कूलों ने सरकार से बाजार से आधी से कम कीमत पर स्कूल चलाने के लिए जमीन ली है... जमीन के अलावा स्कूल टैक्स में रियायत लेते हैं। गरीबों के नाम से हर साल नीजि स्कूल लाखों रुपये की डोनेशन और फंड खा जाते हैं अलग से।

मामला यहीं रुकता तो भी ठीक था....दिल्ली के कई नामी स्कूल हर साल गरीबों के नाम से स्पेशल क्लास देने के नाम से फंड खा रहे हैं....इसमें दिल्ली का डॉन बॉस्को स्कूल और कालका पब्लिक स्कूल जैसे नामी नाम हैं। ये दोनों स्कूल गरीब बच्चों को एक्सट्रा क्लास देते हैं और वोकेशनल कोर्सस के नाम से अलग से क्लास चलाते हैं...लेकिन ये क्लासेस महज कागजी कार्यवाही है। यहां डॉनबॉस्को में गरीबों के लिए क्लास के नाम पर खैरात बांटने का काम चलता है। शाम को स्कूल बंद होने के बाद पांच से सात बजे तक गरीब बच्चों को यहां पढ़ाया जाता है वो भी स्कूल में बने प्रगाढ़ के खुले हाल में...जहां से बच्चों को न तो स्कूल में जाने की इज्जात होती है औऱ न ही क्लास में दाखिल होने की...यहीं पर बिछे मैट पर ये बच्चे पढ़ते हैं... और स्कूल दिल्ली सरकार से गरीब बच्चों के लिए मोटा फंड लेता है...कागजों में दिखाया जाता है कि उसने इन बच्चों को साधारण स्कूल के बच्चों के साथ ही पढ़ाया है औऱ उन्ही के साथ शिक्षा दीक्षा दे रहा है। ठीक इसी तरह से कालका पब्लिक स्कूल का भी हाल है। ये स्कूल गरीब बच्चों के लिए क्लास चलाते हैं...लेकिन क्लास कहां औऱ किस समय चलती हैं...ये या तो स्कूल के मैनेंजमेंट को पता है या फिर दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग को...इसके अलावा इन कक्षाओं के किसी को जानकारी नहीं है।

Thursday, January 13, 2011

दिल्ली पुलिस सदैव आपके साथ


सेठ मुझे क्या तुमने बदमाश समझा हुआ है जो दस 20 लाख रुपये का रिश्वत लेगा....लेकिन में तुम्हारा दिल नहीं तोड़ेगा....एक काम करो ....वो जो बिल्डिंग तुम बना रहे हो उसमें से ग्राउंड फ्लोर का फ्लैट मेरी बीबी के नाम कर दो...लेकिन इंस्पेक्टर साहब वो तो ढेड़ करोड़ रुपये का है...अबे तो क्या हुआ क्या तेरी जान से ज्यादा कीमती है। ये डायलॉग फिल्म वांटेड का है जिसमें संजय मांजेरकर एक पुलिसवाले का किरदार निभा रहे हैं और एक बिल्डर की शिकायत पर बदमाशों को इनकाउंटर करते हैं....जिसके बदले में वो बिल्डर से ये डिमांड रखते हैं। ये फिल्म की बात है लेकिन असल जिंदगी में भी पुलिस का चेहरा ठीक ऐसा ही है। दिल्ली पुलिस देश के सबसे तेज तर्रार और आधुनिक पुलिस मानी जाती है। लेकिन हाल ही में दिल्ली पुलिस के कमीश्नर वी के गुप्ता ने कहा है कि दिल्ली को सुधारने में अभी तीन साल का समय लगेगा। यानी तीन साल में दिल्ली में यूं ही कत्ले आम और मारकाट मची रहेगी। लोगों को सरेआम बदमाश लूट लेंगे और दिल्ली पुलिस तीन साल तक दिल्ली में सुधार करने के तरीकों पर विचार करती रहेगी।

ये कैसा बयान है और इस बयान के माध्यम से कमीश्नर साहब क्या कहना चाहते हैं। हालांकि ये बात ठीक है कि दिल्ली में लगातार भीड़ बढ़ रही है और यहां की कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए दिल्ली पुलिस को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन दिल्ली में पुलिस की तैनाती और कार्यकुशलता की अगर बात की जाये तो दिल्ली पुलिस देश की सबसे हाईटेक और भरोसेमंद पुलिस मानी जाती है। इसके पास वो सभी नयी तकनीक है जो आधुनिक पुलिस के पास होनी चाहिए। लेकिन फिर भी दिल्ली पुलिस बदमाशों के पीछे लकीर पिटती नजर आती है। इसका पहला कारण ये भी है कि दिल्ली पुलिस में कई सालों से सिपाहियों को नई तकनीकों की ट्रेनिग नहीं दी गयी है। वहीं दिल्ली पुलिस अभी भी पुराने ढर्रे पर चलकर बदमाशों को पकड़ने के लिए मुखबिरों पर ही आश्रित है। हालांकि मुखबिर हमेशा से ही एक अच्छा सोर्स ऑफ इंफोर्मेशन रहे हैं...लेकिन यहां दिल्ली पुलिस की हाईटेक तकनीक पर अगर गौर डाले तो दिल्ली पुलिस के पास लोकल एरिया पर चौंकसी ना के बराबर है। पुलिस का लोकल नेटवर्क कमजोर है। लोकल स्तर पर पुलिस केवल हफ्ता और महीने की पत्ती पर ही जोर देती है। किस थाने से कितना आ रहा है इसका पूरा ब्यौरा सिपाही थानेदार और फिर थानेदार अपने से ऊपर और ऊपर से और ऊपर तक पहुंचाता है। थानों की नीलामी होती है और हर थाने से महीना फिक्स्ड होता है। अगर आपको यकीन नहीं है तो दिल्ली पुलिस के सिपाहियों और उनके अफसरों के घर जाकर देखिए... आपको यकीन हो जायेगा कि कम समय में तरक्की कैसे पायी जाती है। दिल्ली के किसी भी सिपाही के पास कम से कम एक करोड़ रुपये की संपत्ति है। ये सिपाहियों की संपत्ति है....अगर ठीक इसी तरह से अगर अफसरों की कमाई का ब्यौरा मांगा जाये तो साधारण आदमी के होश फाख्ता हो जाएंगे। दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों की आजतक किसी ने आय का ब्यौरा नहीं मांगा न ही अफसरों की कमाई की जांच की गई। हां इक्का दुक्का अफसर जरूर छोटे मोटे घपले में आता रहा जिसे यूं ही रफा दफा कर दिया गया।