Thursday, December 29, 2011

गुरू


दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग हैं...जो ये समझ पाते हैं...कि जिंदा रहना ही इस दुनिया में काफी नहीं है...इसके आगे भी एक दुनिया है....एक दुनिया ऐसी भी है...जहां मौत जिंदगी से हार जाती है। ये फिलॉसिफिकल बातें हो सकती हैं...खासतौर पर उन लोगों के लिए जिनके लिए जिंदगी जीने का मतलब ही दो समय का खाना खाकर इस दुनिया में आबादी बढ़ाना है। ये काम सभी करते हैं... जो इस दुनिया में आते हैं...लेकिन, इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं...जो ये काम नहीं करते...उनकी प्यास उनकी थ्रस्ट आबादी नहीं आबादी की यादों में सालों साल बना रहना होता...वो जिंदा रहते हैं...तो भी और जब वो जिंदा नहीं भी होते तब भी।

मेरे एक दोस्त हैं...वो अक्सर कहते हैं...रवि ये दुनिया लोगों को भूल जाती है...कोई फर्क नहीं पड़ता कितने ही रोज आते हैं... कितने ही चले जाते हैं...लेकिन, कुछ को ये दुनिया पता है क्यों चाहकर भी नहीं भूला पाती क्योंकि वो लोग कभी भी इस दुनिया का हिस्सा नहीं रहे...वो कभी इस दौड़ में शामिल नहीं हुए कि शाम का खाना कहां से आयेगा...उन्हें ये नहीं पता होता था कि आज खाकर फिर कब मिलेगा...और ना ही वो इस बात की फ्रिक किया करते थे...कि कल खाना कपड़ा या सिर छुपाने के लिए छत कहां मिलेगी...वो चलते गए...चलते गए...और वो मंजिल पा गए...लेकिन अक्सर हम ऐसे लोगों को मूर्ख, फकीर या फिर पागल मानते रहे हैं...लेकिन असल मायने में वो हमारे गुरू हैं। वो इसलिए क्योंकि ये समाज से अलग रहे हैं...इनकी राह अलग रही है...सवाल ये भी उठता है कि आखिर इस जीवन का मतलब क्या है...हम एक समाजिक प्राणी है...समाज में रहकर अपना औऱ समाज का विकास करना हमारा मूलमंत्र है....और एक अनूठा काम ये है कि हमने आने वाली नस्लों को इतना मजबूत बनाना है..कि वो आने वाले समय में औऱ ज्यादा से ज्यादा सही तरीके से इस दुनिया में रह पाये। यहां मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल कर पाये...लेकिन एक नजर डाले तो क्या समाजिक परिवेश दिन पर दिन और और कठिन नहीं होता जा रहा है...मानव जीवन लगातार एकाकी की ओर बढ़ रहा है। परिवार टूट रहे हैं...आत्महत्या बढ़ रही हैं..और मानव कुठा में इजाफा हो रहा है। क्या बजह हो सकती है। समाज तो सुधर रहा है...समाज में बड़े बड़े परिवर्तन हो रहे हैं....समाज लगातार विकास कर रहा है। आज का युवा गांव से शहर शहर से देश और देश से विदेश में काम कर रहा है। बावजूद इसके आज का युवा क्यों विचलित है। क्यों उसके मन में रह रह कर ये सवाल उठता है कि अभी मंजिल दूर है। क्यों युवा आज भीड़ में अपने आप को अकेला महसूस करता है। इसका जबाव इकनॉमी के एक्सपर्ट अलग अलग तरह से बता सकते हैं। वह कहेंगे कि मानव की मांग और इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पा रही हैं... और मानल की मांग लगातार बढ़ रही हैं। उसकी जरूरतों में इजाफा हो रहा है। पहले कम आय में गुजारा होता था। औऱ आदमी उसमें खुश था। लेकिन जैसे जैसे मानव का समग्र विकास हुआ है। मानल की जरूरतें बढ़ गयी हैं। ऐसे में इच्छाओं की पूर्ति होना मुश्किल होता जा रहा है...और इसका नतीजा ये है कि आत्महत्या और एकांकी बढ़ रही है। अब इसी बात को हम समाजशास्त्रीयों के नजरिए से समझने की कोशिश करते हैं। समाजशास्त्रियों की माने तो उनका मानना है कि समाज का जब जब विकास होता है...उसमें असंतोष बढ़ता है...क्योंकि समाज में प्रतिस्पार्धा बढ़ती है। और जब प्रतिस्पार्धा बढ़ती है...तो उस समाज में अवसाद होना स्वाभाविक है। खैर ये तो समाजशास्त्रियों की सोच है। लेकिन जब बात प्रतिस्पार्धा की हो तो मानव समाज में तो प्रतिस्पार्धा उसी दिन से आरंभ हो जाती है...जब पहला शुक्राणु अपना अंडा पाने के लिए गर्भ में तेजी से दौड़ लगाता है। और जो शुक्राणु जीत जाता है...वो अपना अंडा निषेचित करने में कामयाब हो जाता है। और फिर मानव के पैदा होने से लेकर जीवन जीने और उसे सुंदर बनाने में मानव लगातार प्रतिस्पार्धा में रहता है। फिर अचानक क्या हो जाता है...कि आदमी आत्महत्या करता है। क्यों आदमी इस अमूल्य जीवन को जो मिलता ही है एक भरसक प्रयास और कड़ी प्रतिस्पार्धा के बाद उसे खत्म, समाप्त करने की वीड़ा उठा लेता है। इसके लिए हमें आज से कुछ समय पीछे चलना होगा। हमें महाभारत काल में जाना होगा। जहां श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हैं...और उन्हें गीता के माध्यम से जीवन का मर्म समझा रहे हैं। अर्जुन जीवन युद्ध से खिन्न है। और गांडीव छोड़ जमीन पर घुटनों के बल बैठे हैं। कृष्ण जो अर्जुन के गुरू भी हैं... और सारथी भी। वो अर्जुन को देखर स्तब्ध है। वह पहले मुस्कुराते हैं...और फिर अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर कहते हैं। पार्थ....ये जो भी तुम देखरहे हो...औऱ जिन्हें तुम अपना कह रहे हो...ये सभी उतने ही मेरे भी है...जितने तुम्हारे। और ये युद्ध तुम्हारा नहीं है। ये उस मानव जाति का है जो इस युद्ध के बाद सालों साल नहीं बल्कि युगों तक इस युद्ध को याद रखेगा। वो इस युद्ध को इसलिए याद नहीं रखेगा कि ये युद्ध तुमने या मैंने लड़ा है। बल्कि इस युद्ध को इस लिए याद रखा जाएगा...क्योंकि इस युद्ध में ये तय होगा कि घरती पर असल मायने में जीने का अधिकार किसे है। वो कौन है...जो इस अनमोल धरती पर सालों साल राज करेगा। और वो कैसा होगा...जो इस धरती पर इस अनमोल जीवन जीयेगा। हम और तुम और ये सभी एक दिन इस धरती पर नहीं रहेंगे। लेकिन आने वाली पीढ़ी को हम जीवन का वो अनमोल रत्न सौंपकर जाएंगे जिसे पाकर आने वाली पीढ़ी इस धरती पर सालों साल दुख दर्द और एकांकी से दूर रहकर सुखी जीवन व्यतीत करेगी। तो पार्थ गांडीव उठाओं और कर्म करते हुए....पाप, घृणा, नफरत, लालच, व्यविचार और समस्त गलत कार्यों को करने वाले इन शरीरों का नाश करो...नाश करो उन शरीरों को जो इनको धारण किए हुए हैं...नाश करो...उस विचार को जिसे पालकर मानवजाति काल शौक और दुख के गर्त में धंसती जाती है...और अंत में मुक्ति और मोक्ष को नहीं बल्कि अक्रांत दुख को हासिल करता है। पार्थ खत्म करो ये शोक और उठाओं गांडीव। तब अर्जुन श्री हरि से आज्ञा लेकर अक्रांत दुख शोक, लालच का विनाश करते हैं। अगर हम इस बात को और आसान तरीके से समझने की कोशिश करे तो श्री हरि ने कृष्ण के माध्यम से सिर्फ ये समझाने की कोशिश की है...कि जो भी कुछ हम देखते समझते या इस लोक पर महसूस करते हैं...वो सभी कुछ नश्वर है। जीवन कर्म के आधार पर सुख या दुख तय करता है। कर्म प्रधान है। औऱ कर्म का साफ सुथरा और समाज के प्रति ईमानदार अपने प्रति ईमानदार होना ही सभी दुखों पर विजय प्राप्त करना है। अर्जुन ने भी वहीं किया। लेकिन जीवन के इस महाभारत में सभी को कृष्ण कैसे मिले। ये भी एक बड़ा सवाल है। और इसका जबाव हमें महाभारत काल से पहले अयोध्या में मिलता है। जहां श्री राम को उनके गुरू वशिष्ठ गुरुकुल में शिक्षा दे रहे हैं। वहां गुरू राम से कह रहे हैं....राम तुम्हारे लिए सबसे बड़ा कौन है...और राम कहते हैं...आप। और फिर वशिष्ठ राम से पूछते हैं...मैं कैसे। इसपर राम मुस्कुरा कर कहते हैं...क्योंकि आपने मुझे जीवन का मर्म समझाया है। आपने इस जीवन को जीने का तरीका मुझे बताया है...मुझे अस्त्र शस्त्र से लेकर समाजिक परिवेश में रहने की चुनौतियों का सामना करने का तरीका समझाया है। ऐसे में आप ही मेरे लिए सबसे बड़े हैं। यानी कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो हर हाल में गुरू सबसे बड़ा है। और जिसके जीवन में गुरू है...उसका जीवन किसी अल्हड़ मस्त फकीर जैसा मस्त होगा।

Monday, November 28, 2011

चेहरे

ऑफिस में पहुंचते ही आज मुझे अचानक बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। दो दिन रिपोर्टर और वीडियो एडिटर एक ऐसी लड़की का वीडियो डाउनलोड करने में मशगूल थे...जिसने विदेश की कई ब्लू फिल्मों में काम किया है। इस लड़की की देश के बिग बॉस में एंट्री हुई थी। इसपर ऑफिस के एक विभाग को कार्यक्रम बनाना था। ऐसे में इस लड़की की वीडियो और फोटो को ये सभी लोग बड़ी ही ईमानदारी से डॉउनलोड कर रहे थे औऱ निहार रहे थे। ये ऑफिस में खुल्लम खुल्ला हो रहा था। यानी आज ऑफिस में उन इस मॉडल के तो पता नहीं कितने कपड़े उतरे थे...लेकिन ऑफिस के कुछ लोगों की नंगनियत खुलकर दिखाई दे रही थी।

ऐसा इसलिए भी था...क्योंकि ये लोग ज्यादातर काम में मशरूफ रहते थे औऱ सिर्फ काम की ही बाते करते नजर आते थे। लेकिन इस खबर के साथ एक साथ इतने लोगों का क्रेज मेरे लिए किसी पहेली से कम नहीं था। हालांकि इससे पहले भी मैं ऐसे स्थितियों से दो चार हुआ हूं। जब कभी भी किसी भी लड़की के एमएमएस की कहानी या खबर ऑफिस में आती है..तो उसकी फुटेज भी आती है...उस फुटेज को ऑफिस का हर कर्मचारी बड़ी ही शालीनता से देखता है...और ये सिद्ध करने में कतई कोर कसर नहीं छोड़ता की उसका इस खबरे से कितना लगाव है। ऑफिस में एमएमएस को बड़ी सिद्धत से देखा औऱ सुना जाता है...इसमें फिर चाहे काफी एडिटर हो या फिर एडिटर सभी को एमएमएस देखने की दिलचस्पी होती है...और हो भी भला क्यूं नहीं जब माल फ्री का हो तो उसपर हाथ भला कौन नहीं साफ करना चाहेगा। कुछ ऐसा ही इस मॉडल के साथ भी हुआ। ऑफिस में जमकर लोग इसके फोटो देख रहे थे।

Saturday, November 26, 2011

जिंदगी

कभी कभी लगता है जैसे ये जिंदगी होने या ना होने के बीच भटक रही है

कभी कभी ये भी लगता है कि जिंदा होने या ना होने के बीच का अंतर ही जिंदगी है।

फिर लगता है कि मासूम बच्चों की किलकारी

घर में उनका कलरव

घर आने पर उनका खुली बाजूओं से छूना ही जिंदगी है।

सुबह से शाम के बीच ऑफिस में जूझना

अपने को जिंदा रखना

या फिर अपने कंपीटिटरों को पछाड़ देना

शायद यहीं जिंदगी है।

फिर अहसास होता है...

एक दिन मैं भी हारूंगा।

हार जाउंगा किसी दौड़ में

क्योंकि उम्र की ढलान मैं कब तक रोक पाउंगा

कब तक मैं दौड़ मैं बना रहूंगा।

एक दिन मैं कम से कम सांस लेने के लिए तो रुकूंगा ही।

फिर उसके बाद

शायद थक कर बैठा तो बैठा ही रहूंगा।

फिर उसके बाद...

खामोश सी सड़क

सड़क पर मुसाफिर जो चला जा रहा है

किसी अज्ञात मंजिल की ओर

बगैर थके बगैर रूके लेकिन कहा कब तक

Monday, September 26, 2011

आखिर राजबाला ने दम तोड़ दिया



दिल्ली में बाबा रामदेव के साथ योग से अपनी काया दुरुस्त करने और देश से भ्रष्टाचार खत्म करने की मुहिम में शामिल राजबाला अब हमारे बीच नहीं है...आज उनका तीन महीने चली लंबी जद्दोजेहद खत्म हो गयी..वो आम आदमी की तरह सरकार रूपी मौत के आगे हार गयी। बेहद, दुख के साथ सभी लोग एक या दो दिन बाद राजबाला को भूल भी जाएंगे...क्योंकि प्रणब की मुलाकात चिंदबरम पर कोई ना कोई रंग लाकर रहेगी...मीडिया आज इस खबर को तभी तक चलाएगा...जब तक की चिंदबरम पर कोई पुख्ता बयान सरकार की ओर से नहीं आ जाता...एक बार सरकार का बयान आया नहीं की राजबाला पुरानी खबर हो जाएगी...राजबाला के घर पर शायद ही कोई रिपोर्टर पहुंचेगा...लेकिन राजबाला ने तो अपनी जान दी है...हालांकि रामदेव उनकी मौत को शहादत मान रहे हैं...जिसपर सरकार के कानून मंत्री ने धीरे से मोटी धमकी रामदेव को दे भी डाली है...उन्होंने साफ रामदेव को चेतावनी के अंदाज में कहा है कि राजबाला पर देश में राजनीति नहीं होनी चाहिए....कानून मंत्री के हाथ क्योंकि देश का कानून है...तो शायद उनसे कोई ये बात भी ना पूछे कि आखिर क्यों देश के लोग राजबाला की बात ना करें...क्यों राजबाला की मौत की जिम्मेदारी सरकार पर क्यों ना डाली जाए...अगर राजबाला की मौत की बजह दिल्ली पुलिस की लाठियां हैं...तो क्यों सरकार ने राजबाला का इलाज अच्छे से अच्छे अस्पताल में क्यों नहीं करवाया...क्यों राजबाला को तीन महीने तक मौत का इंतजार करवाया गया...क्यों उसे तिल तिल करके मर जाने दिया गया... राजबाला जीबी पंत अस्पताल में भर्ती थीं। राजबाला की मौत के विपक्ष राजनीतिक तौर पर इसे मुद्दा भी बनायेगा....वहीं ये मामला सुप्रीम कोर्ट और आयोगों के स्तर पर भी उठाए जाने की संभावना है। 51 वर्षीय राजबाला 4 जून की रात से ही जीबी पंत अस्पताल में एडमिट थीं। उनके शरीर में कई फ्रैक्चर थे। डॉक्टरों के मुताबिक राजबाला दो दिन से वेंटिलेटर पर थीं। गहरी चोट ही उनकी मौत की वजह बनीं। बाबा रामदेव के साथ अनशन पर बैठे लोगों पर पुलिस लाठीचार्ज का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। कोर्ट ने उस रात की पुलिस कार्रवाई की सीडी तलब की है। किन हालात में, किसने पुलिस ऐक्शन के आदेश दिए और किस तरह सोते हुए लोगों पर एक्शन हुआ, यह सब सवालों के घेरे में है। मानवाधिकार आयोग में भी शिकायतें हैं। राजबाला की मौत के बाद उन शिकायतों की गंभीरता और बढ़ गई हैं खैर राजबाला चली गयी...लेकिन अपने पीछे कई ऐसे सवाल छोड़ गयी जिसके सवाल आने वाले दिनों में देश की सरकार को देने ही होंगे।

Tuesday, August 16, 2011

क्या ये सरकार आम आदमी की है ?


अन्ना हजारे को सात दिनों की हिरासत में भेजने के बाद दिल्ली पुलिस कमीश्नर वी के गुप्ता का ये कहना उन्होंने अन्ना हज़ारे और उनके कुछ समर्थकों को शांति भंग होने की आंशका की वजह से गिरफ़्तार किया है। बेहद ही शर्मनाक और हास्यपद वाकया प्रतीत होता है। हालांकि गिरफ्तारी से पहले अन्ना हजारे को विशेष अदालत में पेश किया गया है जहां निजी मुचलका देने से इनकार करने के बाद उन्हें सात दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। जबकि दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन कर रहे क़रीब 1400 लोगों को हिरासत में लिया गया।
ये वो खबर है...जो मीडिया के लोग चिल्ला चिल्ला कर चैनलों पर गा रहे थे....उन्हें टीआरपी की रेस में रहने के लिए लगातार ऐसी खबर देनी थी...जिसपर आम और खास आदमी की लगातार नजर बनी रहे...टीवी पर दनादन खबरों के बीच में चैनल बदलता जा रहा था...तभी देश के नंबर एक चैनल पर आकार मेरा हाथ रूक गया...यहां देश के दो बड़े पत्रकार आपस में बात कर रहे थे...इनमें से एक पत्रकार ऐसे हैं...जो देश का सबसे बड़ा अखबार चलाने का दम भरते हैं...दूसरे वो है जो अखबार के दफ्तर में कम और मनमोहन सोनिया के दरबार में ज्यादा दिखाई देते हैं। यहां बीच बहस में देश के जाने माने कुछ फिल्मी कलाकार भी कोढ़ में खाज की तरह उटपटांग सवाल इनसे पूछ रहे थे...जो बेशक पेट पकड़कर हंसाने के लिए काफी थे....इनमें से एक ने दूसरे से पूछा कि अन्ना को भला इतनी क्या जल्दी थी...लोकपाल बिल को लेकर अनशन करने की...और देश की व्यवस्था बिगाड़ने की...हमने इमरजेंसी का दौर देखा है...कहां है इमरजेंसी सभी कुछ तो ठीक चल रहा है...कहां हो रहा है ऐसे भ्रष्टाचार जिसपर इतनी चीख चिल्लाहाट अन्ना मचा रहे हैं...कहां है....ऐसे हालात की जनता त्राही त्राही कर रही है...इसपर दूसरे ने हां जी हां जी में सिर हिलाते हुए कहा आप ठीक कह रहे हैं...अन्ना बेवजह ही चीख चिल्ला रहे हैं...अन्ना को चाहिए कि वो चुनाव लड़े और संसद में आये और उसके बाद अपनी बात पटल पर रखे....पहले ने इसपर रियेक्ट करते हुए कहा...अगर वो चुनाव भी नहीं लड़ना चाहते तो देश के संविधान पर भरोसा रखे...और एक बहस हो जाने दें...जिसके बाद वो अपनी बात रखे...वाह रे हमारे देश के बुढ़े गिद्दों...तुम्हारी मां.......सालों...
खैर ये तो रही उन लोगों की बात जो समाज के ठेकेदार बनने का दावा करते हैं...अब जरा दिल्ली पुलिस का पूरा बयान पर भी गौर कर लेते हैं......दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बीके गुप्ता ने पत्रकारों को बताया कि किसी संज्ञेय अपराध की आशंका और शांति भंग की आशंका को देखते हुए अन्ना हज़ारे
, अरविंद केजरीवाल और उनके पांच अन्य सहयोगियों को धारा 107, 151 के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया। कमिश्नर बीके गुप्ता के अनुसार किरण बेदी और शांति भूषण सहित क़रीब 14 सौ लोगों को धारा 65 के तहत हिरासत में लिया गया।
क्या अजीब बात है...एक समाजसेवी को दिल्ली पुलिस इसलिए गिरफ्तार कर लेती है...क्योंकि वो आम आदमी की आवाज उठाना चाहता है....उसके साथ आम जनता को इसलिए गिरफ्तार किया जाता है...क्योंकि वो अन्ना की आवाज बुलंद करके देश में एक ऐसा कानून लाना चाहते हैं...जो भ्रष्टाचार को खत्म करने का माद्दा रखता है.....वहीं कांग्रेसी नेता अन्ना को समाज का दुश्मन बताकर अपनी बांहों की आस्तीनों को ऊपर चढ़ाकर कामयाबी का दंभ भर रहे हैं....किसका देश है...ये कौन है ये कुछ लोग...जिन्हें इतने अधइकार मिल गए कि देश में कौन सही कर रहा है कौन गलत....ऐसा क्या कह दिया अन्ना ने जिसपर सरकार के कारिंदों को इतना गुस्सा है...खैर अन्ना अब तिहाड़ में हैं...और मैं यहीं सोच रहा हूं...कि आजादी के 64 साल बाद भी क्या ये देश आम आदमी का देश बन पाया है।

Monday, March 28, 2011

कुत्ता


एक दिन अचानक मेरे ऊपर एक कुत्ता भौंकते हुए झपटा

पहले मुझे गुस्सा आया और फिर अचानक ही एक ख्याल

मैंने सोचा कि यार कुत्ता आदमी का वफादार है...

फिर ये क्यों मुझपर भौंका क्यों मुझे काटने दौड़ा....

ये सोचते सोचते मैं घर पहुंचा

हाथ मुंह धोए, खाना खाया और सो गया...

लेकिन कहीं ना कहीं ये ख्याल मेरे दिमाग में घूमता ही रहा...

फिर दूसरे दिन दफ्तर जाते वक्त मैंने फिर से उसी कुत्ते को देखा

आज कुत्ता अपनी पूछ दवाएं बैठा था...

उसकी आंखों में जब मैंने झांक कर देखने की कोशिश की

तो पाया आंखें भी उसकी नम थी...

हिम्मत जुटाई पास गया...

बीती रात मुझपर भौंकने वाला कुत्ता आज शांत था...

देखकर मुझे पूछ हिलाता कुत्ता मेरे पैर चाटने लगा...

मुझे पहले हैरानी हुई...लेकिन तभी एक बदबू का भवका मेरे नाथुनों से टकराया

पास ही में एक मरे हुए कुत्ते के बच्चे का शव था...

जिसे कोई मोटर चालक कुचल गया था..

Thursday, January 20, 2011

नई बोतल में पुरानी शराब


मनोहन सिंह मंत्रिमंडल का विस्तार आखिरकार हो गया। इसमें तीन नये चेहरों को शामिल किया गया है। अधिकतर मंत्रियों के विभाग परिवर्तन किए गए हैं...लेकिन किसी भी मंत्री को मंत्रिमंडल से हटाया नही गया है। साथ इस विस्तार में मिशन यूपी 2012 की झलक खूब देखने को मिली। ढेड़ साल पुरानी मनमोहन सरकार के मंत्रिमंडल में पहला फेरबदल बुधवार शाम को किया गया। इसमें एक स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री और दो राज्यमंत्रियों समेत कुल तीन नए चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल किए गए। जबकि तीन राज्यमंत्रियों को प्रमोट करके कैबिन मंत्री का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा कई मंत्रियों के विभागों में फेरबदल किया गया है। इस मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए सरकार ने नई बोतल में पुरानी शराब डाल दी है। और साथ ही उत्तर प्रदेश में 2012 में होनें वाले विधान सभा चुनाव पर निशाना साधते हुए यूपी से बेनी प्रसाद वर्मा को मंत्रिमंडल में जगह दे दी है। सलमान खुर्शीद और श्री प्रकाश जयसवाल का प्रमोशन भी दिया गया ताकि अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग के वोटर को रिझाया जा सके। वहीं कैबिनेट में बदलाव के साथ मनमोहन ने एक बार फिर महंगाई पर काबू पाने की बात कही....और एक बार फिर आश्वासन का झुनझुना पकड़ा कर जोर का झटका धीरे से देते हुए कहा कि...वो कोई ज्योतिषी नहीं हैं जो महंगाई कब तक रूकेगी इसका ठीक समय बता दें। इसके अलावा कैबिनेट विस्तार से आम जनता को उम्मीद थी कि कैबिनेट से दागी मंत्रियों का पत्ता साफ हो जायेगा....लेकिन शहरी विकास मंत्री एस. जयपाल रेड्डी को पेट्रोलियम मंत्रालय सौंपा गया। वहीं खेलमंत्री रहे एम.एस. गिल को भी सांख्यिकी एवं क्रियान्वयन मंत्रालय सौंपकर मंत्रिमंडल में बरकार रखा गया...परफोर्मेंस और पारदर्शिता की बात करने वाली सरकार ने अपने कई और दागी और नाकाम मंत्रियों को मंत्रिमंडल में बनाए रखा है...सरकार का ये भी कहना है कि बजट के बाद मंत्रीमडंल में फिर से बदलाव किए जायेंगे। बहरहाल, मनमोहन सरकार में हुए पहले फेरबदल से देश की जनता को खासी उम्मीद थी जिसपर सरकार खरी उतरती तो बेशक नजर नहीं आयी।

Wednesday, January 19, 2011

मासूमों के नाम पर कमाई


दिल्ली सरकार ने सभी नीजि स्कूलों को ये आदेश दिए हैं कि वो अपने स्कूलों में 25 फीसद सीटों पर कमजोर वर्ग के बच्चों को दाखिला दें। लेकिन इस मामले में दिल्ली के सभी बड़े स्कूल नाक भौ सिकोड़ रहे हैं। स्कूलों का कहना है कि इस तरह से उनके स्कूल का बजट खराब हो जायेगा जिसका भुगतान शेष 75 फीसद बच्चों को बढ़ी हुई फीस चुका कर पूरा करना होगा। यानी स्कूल अपने बजट से गरीब बच्चों को नहीं पढ़ायेगा। स्कूल अपनी कमाई को किसी हाल में कम नहीं होने देगा।

यानी नीजि स्कूल किसी भी हालत में देश गरीबों को शिक्षा नहीं देंगे। वहीं अगर स्कूलों के कारनामों और घोटालों पर नजर डाली जाये तो दिल्ली के अधिकतर नीजि स्कूलों ने सरकार से बाजार से आधी से कम कीमत पर स्कूल चलाने के लिए जमीन ली है... जमीन के अलावा स्कूल टैक्स में रियायत लेते हैं। गरीबों के नाम से हर साल नीजि स्कूल लाखों रुपये की डोनेशन और फंड खा जाते हैं अलग से।

मामला यहीं रुकता तो भी ठीक था....दिल्ली के कई नामी स्कूल हर साल गरीबों के नाम से स्पेशल क्लास देने के नाम से फंड खा रहे हैं....इसमें दिल्ली का डॉन बॉस्को स्कूल और कालका पब्लिक स्कूल जैसे नामी नाम हैं। ये दोनों स्कूल गरीब बच्चों को एक्सट्रा क्लास देते हैं और वोकेशनल कोर्सस के नाम से अलग से क्लास चलाते हैं...लेकिन ये क्लासेस महज कागजी कार्यवाही है। यहां डॉनबॉस्को में गरीबों के लिए क्लास के नाम पर खैरात बांटने का काम चलता है। शाम को स्कूल बंद होने के बाद पांच से सात बजे तक गरीब बच्चों को यहां पढ़ाया जाता है वो भी स्कूल में बने प्रगाढ़ के खुले हाल में...जहां से बच्चों को न तो स्कूल में जाने की इज्जात होती है औऱ न ही क्लास में दाखिल होने की...यहीं पर बिछे मैट पर ये बच्चे पढ़ते हैं... और स्कूल दिल्ली सरकार से गरीब बच्चों के लिए मोटा फंड लेता है...कागजों में दिखाया जाता है कि उसने इन बच्चों को साधारण स्कूल के बच्चों के साथ ही पढ़ाया है औऱ उन्ही के साथ शिक्षा दीक्षा दे रहा है। ठीक इसी तरह से कालका पब्लिक स्कूल का भी हाल है। ये स्कूल गरीब बच्चों के लिए क्लास चलाते हैं...लेकिन क्लास कहां औऱ किस समय चलती हैं...ये या तो स्कूल के मैनेंजमेंट को पता है या फिर दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग को...इसके अलावा इन कक्षाओं के किसी को जानकारी नहीं है।