Tuesday, September 20, 2016

परिवार का झगड़ा या मुलायम की सियासी चाल

नई दिल्ली:  कहते हैं राजनीति में जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है। और जो होता है वो दिखता नहीं है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी एक ऐसा ही भूचाल पिछले एक महीने से देखने को मिल रहा था। राजनीति के जानकारों को कहना था कि शायद अब समाजवादी पार्टी में सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा टूट जाएगा। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं और शायद होना भी नहीं था। 
क्योंकि जिसतरह से एक के बाद एक घटनाक्रम टूटे और जुड़े उससे साफ नजर आया कि ये एक ऐसी लिखी लिखाई स्क्रिप्ट थी जिसे नेता जी यानी समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बाखूबी निभाया और अब देश के सबसे बड़े राजनैतिक परिवार में छिड़ा धमासान शांत हैं।

वहीं, सवाल ये भी उठता है कि आखिर मुलायम सिंह यादव ने इस घमासान को रोका कैसे?
अगले साल यानी 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। चुनावों में समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ाएंगे भतीजे अखिलेश यादव और संगठन तैयार करेंगे चाचा शिवपाल यादव। यानि कि चुनाव लड़ने वाला अखिलेश यादव खेमे का और चुनावों में काम करने वाला शिवपाल यादव खेमे का। जी हां, यही है चाचा-भतीजे की जंग को खत्‍म कराने वाला मुलायम फार्मूला।

वहीं, दूसरा सवाल ये भी उठता है कि क्‍या समाजवादी पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के इस फार्मूले से उत्‍तर प्रदेश की सत्ता में वापसी कर पाएगी
सवाल जितना छोटा है इसका जबाव उतना ही बड़ा है। क्योंकि ये वो सवाल नहीं है जिसका हल चंद शब्दों में वयां कर दिया जाए या फिर ऐसा कोई फार्मूला पेश कर दिया जाए जिसमें यूपी का चुनाव तय हो जाए। इसका जवाब ढूंढने के लिए पहले इस पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार तरीके से समझना होगा।

पिछले चार साल में उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था चौपट!
उत्तर प्रदेश में पिछले साढ़े चार साल में कानून व्यवस्था अपने सबसे खराब दौर में गुजर रही है। पूरे राज्य में रिश्वत, जबरन उगाही और दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़े हैं। वहीं, किसान आत्महत्या का आंकड़े मे भी उछाल आया है। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश में दंबग और ऊंची जाति के लोगों का छोटी जाति के लोगों पर अत्याचार भी बढ़ रहा है। आए दिन बढ़ रही घटनाओं के चलते मौजूदा समाजवादी पार्टी की सरकार, कभी विसहड़ा में अखलाक के मामले में जबाव नहीं दे पायी तो कभी दलितों की सरेआम पिटाई पर अपने पैर पिटती नजर आई। इतना ही नहीं, सूबे के मुख्यमंत्री के द्वारा जब भी किसी तरह के सख्त कदम दंबग नेताओं या अफसरों के खिलाफ उठाए गए तो वहीं दूसरी ओर से कभी चाचा शिवपाल यादव तो कभी नेता जी ने मामलों के बीच में आकार फैसलों को गलत ठहरा दिया।

विरासत तो सौंपी लेकिन, कमान नहीं
कहते हैं राजनीति में सत्ता से बड़ा कोई सुख नहीं है। औऱ इस बात को मुलायम सिंह से ज्यादा भला कौन जानता होगा। और इसकी जीती जागती मिसाल उनका स्वंय का कुनबा ही है। उनके कुनबे से शायद ही कोई शख्स ऐसा होगा जिसका उत्तर प्रदेश की राजनीति में दखल ना हो। वहीं, स्वंय मुलायम सिंह यादव ने राजगोपाल यादव के कहने पर उत्तर प्रदेश की कमान पुत्र को सौंप तो दी, लेकिन, सत्ता के मोह से खुद को अलग नहीं कर पाए। उनका अखिलेश के हर फैसले में दखल इस बात की तस्दीक करता है। वहीं, चुनाव से पहले सियासी ड्रामा इस बात की गवाही भी दे रहा है।

क्या वाकई सियासी पारा उतर गया?
उत्‍तर प्रदेश में चार दिन से चढ़ा सियासी पारा अब उतरने का दावा किया जा रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच जो आरपार की जंग छिड़ी, उसे खत्म करने के लिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सियासी बंटवारा किया और बेटे व भाई को शांत करा दिया। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा में इस घटनाक्रम से ऐसी चिनगारी सुलगाई है जो सत्ता में वापसी के पार्टी के मंसूबों को राख के ढेर में तब्दील कर सकती है।

नए दांवपेच लगा रही पार्टी
सियासी समीकरण और सूत्रों की मानें तो यह भी माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को क्लीन फेस वाला नेता बनाए रखने के लिए पार्टी से लेकर सपा सरकार तक नए दांवपेंच से नए समीकरणों की गणित लगायी जा रही है।

मुलायम के कुनबे में कलह या फिर उनका सियासी दांवपेंच !
माना यह जा रहा है कि सपा मुखिया भी कहीं यह तो नहीं चाहते हैं कि उनके पुत्र अखिलेश यादव पर कोई दाग न लगने पाए। अब पांच साल तक प्रदेश में सपा सरकार के कारनामों का ठीकरा किसके सिर पर फोड़ा जाए, यह भी एक सियासत का हिस्सा माना जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश सपा सरकार के दौरान हुए घोटालों व तमाम कारनामों से अख‍लेश के दामन पर कोई दाग न लगे, इसके लिए कहीं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यह नया संघर्ष शुरू करवा दिया है।

क्‍या मुलायम के फॉर्मूले से हो पाएगी यूपी में सपा की वापसी?
दरअसल चुनावों का ये जाना-पहचाना फॉर्मूला है कि जीत के लिए लोकप्रिय उम्मीदवार और ताकतवर संगठन दोनों की ही जरूरत होती है। इनमें से किसी एक की कमी या दोनों के बीच समन्वय की कमी से बड़े से बड़े दिग्गज चुनावी मैदान में धूल चाट लेते हैं। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने सपा में जारी अंतर्कलह को खत्म करने का जो फॉर्मूला निकाला है उसने संगठन और उम्मीदवार के बीच ऐसी ही अंतर्कलह के बीज बो दिए हैं।
शिवपाल यादव पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए हैं। यानी यूपी में संगठन में किस पद पर कौन सा नेता बैठेगा इसका फैसला शिवपाल ही लेंगे। कहना जरूरी नहीं है कि वे संगठन पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अपने विश्वासपात्र नेताओं की ताजपोशी को तरजीह देंगे। दूसरी ओर चुनावों में टिकट बांटने की जिम्मेदारी सौंपी गई है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को। अखिलेश भी जीत के बाद विधायकों पर अपनी पकड़ कायम रखने के लिए उन्हीं को टिकट देंगे जो उनके भरोसेमंद होंगे।
यानी उम्मीदवार अखिलेश का चहेता होगा और उसके लिए वोट मांगने, घर-घर जाकर पर्चियां बांटने, चुनाव प्रचार करने का जिम्मा जिन संगठन पदाधिकारियों के हाथ में होगा वो शिवपाल यादव के चहेते होंगे। ऐसे में चुनाव के वक्त दो दलों से ज्यादा मुकाबला तो सपा के अंदर देखने को मिल सकती है। कहने की जरूरत नहीं कि अगर ऐसी स्थिति हुई तो विधानसभा के चुनाव नतीजे सामने आने से पहले ही सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की हार तय हो जाएगी।  राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव इसे न समझते हों ऐसा हो नहीं सकता। उसके बाद भी अगर उन्होंने शक्तियों का ऐसा विभाजन अपने भाई और बेटे के बीच किया है, तो जानकार मानते हैं कि वो किसी बड़े बवाल की शुरुआत भर है।

'बीजेपी ने मस्जिद गिरवाई, मुस्लिमों ने सपा सरकार बनवाई'
अखिलेश के बाद कोई और हो सकता है सीएम
सियासी दिग्गज यह भी अनुमान लगाने लगे हैं कि यह भी हो सकता है कि सपा मुखिया के कुनबे से लेकर पार्टी और सरकार तक मचे कोहराम के दौरान ही अखिलेश के बाद किसी को और मुख्यमंत्री बनाकर अखिलेश को बेदाग सपा नेता का चेहरा बनाए रखे जाने की जुगत भी हो सकती है। हालांकि अभी इस पर सपा की ओर से कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

यूपी में मजबूत उम्मीदवारों पर दांव लगाएगी भाजपा
बीजेपी ने बताया सियासी ड्रामा
पूरे मामले में यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने इस पूरे घटनाक्रम को सपा मुखिया का सियासी ड्रामा कह दिया है। साथ ही मुख्यमंत्री पद से अखिलेश यादव को इस्तीफा दिए जाने की मांग भी कर दी गई है।विपक्ष ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि सपा मुखिया अपने बेटे अखिलेश यादव को बेदाग बनाए रखने के लिए उन्हें दायित्व से भी अलग करने तक का निर्णय ले सकते हैं

बहरहाल, सियासत के जानकारों का मानना है कि मुलायम का दांव फिलहाल ठीक पड़ा है। और इस बार बेशक कुनबा संभल गया है। लेकिन, वहीं ये बात भी तय मानी जा रही है कि ये सिसासी ड्रामा महज अखिलेश को क्लिनचिट देने, प्रदेश के लोगों को उत्तर प्रदेश के मुद्दों से भटकाने और देश की सियासी पार्टियों को ये जताने के लिए लिखी लिखाई वो कहानी थी जिसे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने बाखूवी सुना भी दिया और दिखा भी दिया साथ ही ये तय भी कर दिया कि अभी भी वो समाजवादी पार्टी के सबसे मजबूत और कद्दावर नेता है और आने वाले चुनाव से पहले वो एक बार फिर अपने आप को समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेता के रूप में पेशकर सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं ताकि वो चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश की जनता से कह सके कि समाजवादी पार्टी की कमान अब उनके पास हैं और जो पिछली सरकार में गलती हुई वो अनुभव कम होने की वजह से हुई।

 मुलायम सिंह यादव का परिवार बना सबसे बड़ा सियासी कुनबा
उत्तर प्रदेश में सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार माना जाने वाला सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का सियासी कुनबा हाल में सम्पन्न पंचायत चुनावों में तीन और सदस्यों के निर्वाचन के साथ और मजबूत हो गया है।

 मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के अगुआ और पार्टी संस्थापक हैं. उन्होंने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया था. अपने राजनीतिक करियर में वह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे.
राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने की शुरुआत वैसे तो पं. जवाहरलाल नेहरू ने ही कर दी थी पर लोहिया के चेले कहे जाने वाले मुलायम सिंह ने इसे खूब आगे बढ़ाया. पिछले कुछ वर्षों में जब भी देश में तीसरे मोर्चे की चर्चा होती है, मुलायम सिंह यादव का नाम सबसे पहले लिया जाता है. पेशे से शिक्षक रहे मुलायम सिंह यादव के लिए शिक्षा के क्षेत्र ने राजनीतिक द्वार भी खोले.

शिवपाल सिंह यादव
शिवपाल यादव मुलायम सिंह यादव के अनुज 1988 में पहली बार इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए. 1996 में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपनी जसवंतनगर की सीट छोटे भाई शिवपाल के लिए खाली कर दी थी. इसके बाद से ही शिवपाल का जसवंतनगर की विधानसभा सीट पर कब्जा बरकरार है.

रामगोपाल सिंह यादव
मुलायम सिंह ने 2004 में संभल सीट रामगोपाल के लिए छोड़ दी थी और खुद मैनपुरी से सांसद का चुनाव लड़ा था. रामगोपाल इस सीट से जीत हासिल करके संसद पहुंचे थे. अभी वह राज्यसभा सांसद हैं.

अखिलेश यादव
मुलायम ने 1999 की लोकसभा चुनाव संभल और कन्नौज दोनों सीटों से लड़ा और जीता. इसके बाद सीएम अखिलेश के लिए कन्नौज की सीट खाली कर दी. हम आपको बता दे कि अखिलेश ने इसके पहले फिरोजाबाद से भी चुनाव लड़ा था और वहां से जीत हासिल की थी लेकिन बाद में उन्होने अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिये सीट छोड़ दी थी. लेकिन में डिंपल यादव को वहां से करारी शिकस्त मिली. डिंपल ने कन्नौज की सीट से चुनाव लड़ा और बाद में निर्विरोध चुनी गई. इसी के साथ उनकी भी राजनीति में एंट्री हो चुकी थी. अखिलेश यादव 2012 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. खास बात यह कि अखिलेश यादव ने सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया.

धर्मेंद्र यादव
2004 में सीएम रहते हुए मुलायम सिंह यादव के समय धर्मेन्द्र ने मैनपुरी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उस वक्त उन्होंने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाया.

डिंपल यादव
अखिलेश यादव ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज और फिरोजाबाद से जीतकर फिरोजाबाद की सीट की अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिए छोड़ दी, लेकिन इस बार पासा उलट पड़ गया और डिंपल को कांग्रेस उम्मीदवार राजबब्बर ने हरा दिया. पहली बार में इस खेल में मात खाने के बावजूद अखिलेश का भरोसा इस फार्मूले से नहीं टूटा. 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने अपनी कन्नौज लोकसभा सीट एक बार फिर डिंपल के लिए खाली की. इस बार सूबे में सपा की लहर का आलम ये था कि किसी भी पार्टी की डिंपल के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की हिम्मत नहीं हुई और वो निर्विरोध जीतीं.

तेज प्रताप यादव
तेजप्रताप यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पोते हैं. वे मैनपुरी से सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था और दोनों जगहों से जीते. इसके बाद उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट मैनपुरी खाली कर दी थी. इस सीट पर उन्होंने अपने पोते तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाया. तेजप्रताप ने भी अपने दादा को निराश नहीं किया और बंपर वोटों से चुनाव में जीत हासिल की. साथ ही राजनीति में धमाकेदार एंट्री की.

इंग्लैंड की लीड्स यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट साइंस में एमएससी करके लौटे तेजप्रताप सिंह सक्रिय राजनीति में उतरने वाले मुलायम सिंह के परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं. मुलायम के बड़े भाई रतन सिंह के बेटे रणवीर सिंह के बेटे तेजप्रताप सिंह यादव उर्फ तेजू इस समय सैफई ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित हुए हैं. क्षेत्र में समाजवादी पार्टी को मजबूत करने की पूरी जिम्‍मेदारी तेज प्रताप सिंह ने अपने कंधों पर उठा रखी है. परिवार के सदस्‍य इन्‍हें तेजू के नाम से भी पुकारते हैं.

अक्षय यादव
अक्षय यादव मौजूदा समय में फिरोजाबाद से सपा सांसद हैं. अक्षय यादव भी पहली बार चुनाव जीतकर सक्रिय राजनीति में उतरे हैं. यह सीट यादव परिवार की पारंपरिक संसदीय सीट रही है. जब अखिलेश यादव ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद और कन्नौज से चुनाव लड़ा था, उस समय फिरोजाबाद के चुनाव प्रबंधन की कमान अक्षय यादव ने संभाली थी. इसके बाद अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया. भाभी डिंपल का चुनाव प्रबंधन भी अक्षय ने संभाला था, लेकिन कांग्रेस नेता राज बब्बर ने डिंपल को हरा दिया था.

प्रेमलता यादव
मुलायम सिंह के छोटे भाई राजपाल यादव की पत्‍नी प्रेमलता यादव इस समय इटावा में जिला पंचायत अध्‍यक्ष हैं. आमतौर पर गृहिणी के तौर पर जीवन के अधिकतर वर्ष गुजारने के बाद 2005 में प्रेमलता यादव ने राजनीति में कदम रखा. यहां उन्‍होंने पहली बार इटावा की जिला पंचायत अध्‍यक्ष का चुनाव लड़ा और जीत गईं. 2005 में राजनीति में आने के बाद ही प्रेमलता मुलायम परिवार की पहली महिला बन गईं, जिन्‍होंने राजनीति में कदम रखा. उनके बाद शिवपाल यादव की पत्‍नी और मुलायम की बहू डिंपल यादव का नाम आता है.
प्रेमलता के पति राजपाल यादव इटावा वेयर हाउस में नौकरी करते थे और अब रिटायर हो चुके हैं. रिटायरमेंट के बाद से ही वह समाजवादी पार्टी में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. 2005 में चुनाव जीतने के बाद प्रेमलता ने अपना कार्यकाल बखूबी पूरा किया. इसके बाद 2010 में भी वह दोबारा इसी पद पर निर्विरोध चुनी गई हैं.


सरला यादव
यूपी के कैबिनेट मिनिस्टर शिवपाल यादव की पत्नी हैं सरला यादव. 2007 में जिला सहकारी बैंक इटावा की राज्य प्रतिनिधि बनाया गया था. सरला को दो बार जिला सहकारी बैंक का राज्य प्रतिनिधि बनाया गया. 2007 के बाद लगातार दूसरी बार चुनी गई थी और अब कमान बेटे के हाथ में है.

आदित्य यादव
शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव जसवंत नगर लोकसभा सीट से एरिया इंचार्ज थे. मौजूदा समय में वह यूपीपीसीएफ के चेयरमैन हैं.

अंशुल यादव
राजपाल और प्रेमलता यादव के बेटे हैं अंशुल यादव. 2016 में इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए हैं अंशुल यादव.

संध्या यादव
सपा सुप्रीमो की भतीजी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव ने जिला पंचायत अध्यक्ष के जरिए राजनीतिक एंट्री की है. उन्हें मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए निर्विरोध चुना गया है.

अरविंद यादव
वैसे परिवार की बात करें तो मुलायम सिर्फ अपने ही परिवार नहीं, चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव के परिवार को भी पूरा संरक्षण देते रहते हैं. इसी क्रम में मुलायम की चचेरी बहन और रामगोपाल यादव की सगी बहन 72 वर्षीया गीता देवी के बेटे अरविंद यादव ने 2006 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और मैनपुरी के करहल ब्लॉक में ब्लॉक प्रमुख के पद पर निर्वाचित हुए. अरविंद क्षेत्र की जनता में काफी पहचान रखते हैं. करहल में अरविंद ने समाजवादी पार्टी को काफी मजबूती दिलाई है. लेकिन 2011 के चुनाव में वह आजमाइश के लिए मैदान में नहीं उतर सके. कारण था कि इस चुनाव में करहल ब्लॉक प्रमुख की सीट सुरक्षित हो चुकी थी. लेकिन अरविंद ने हार नहीं मानी है और इस समय वे मैनपुरी लोकसभा सीट के तहत आने वाले करहल ब्लॉक में सपा की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं.

शीला यादव
शीला यादव मुलायम के कुनबे की पहली बेटी है जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया. शीला यादव जिला विकास परिषद की सदस्य निर्वाचित हुई हैं, साथ ही बहनोई अजंत सिंह यादव बीडीसी सदस्य चुन गए हैं।



Wednesday, June 22, 2016

मिठास पैदा करने वाली जमीन पर कड़वी राजनीति की पौध

त्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर फिर चर्चा में हैं। क्योंकि चुनाव पास है। और हर चुनाव से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश ना सुलगे ऐसा कई साल से हो नहीं रहा। आखिर क्या वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मीठी जमीन हर चुनाव से पहले लाल हो जाती है?  क्यों पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति गर्मा जाती है। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका समय रहते हल खोजना बेहद जरूरी है।
इस बार मुजफ्फरनगर के कैराना से भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने एक ऐसा कार्ड खेला जिसके बाद पूरे देश में कैराना रातों रात इस कद्र मशहूर हो गया जैसे कैराना पर पाकिस्तान का कब्जा होने जा रहा है। देश के कुछ मीडिया चैनल इस खबर को इस तरह से परोस रहे हैं जैसे अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान, बेरोजगारी, गरीबी यहां तक की अपराध कोई मुद्दा ही नहीं है। मुद्दा सिर्फ एक है। औऱ वो है पलायन। एक ऐसा मुद्दा जो इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे देश का एक वर्ग दूसरे वर्ग पर कब्जा ही करना चाहता है।

मंशा क्या है?
बीजेपी के कैराना के सांसद हुकुम सिंह का कहना है कि कैराना से सैकड़ों हिंदु परिवारों ने पलायान कर लिया है और ये पलायान जारी है। इसकी वजह पर वो बेहद उटपटांग जबाव देते हैं। यहां तक की वो कई बार एक लिस्ट भी दिखाते हैं। लेकिन, सही जबाव देने के नाम पर वो बगले झांकते नजर आते हैं। वो साफ साफ तो कुछ नहीं कहते लेकिन, इशारों ही इशारों में ये साफ कर देते हैं कि हम ही अपनी ओर से ये एलान कर दें कि देश के हालात बेहद नाजुक हैं। खैर ये तो वो हुकुम सिंह हैं जिनका राजनीति में वजूद ये है कि ये किसी एक पार्टी के कभी होकर नहीं रहे। इनके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कहावत सुनी जा सकती है जिसे लोग अक्सर कहते हैं। लोग कहते हैं जिसके देखे तबे परात उसके गाए समिया रात यानी जिसकी झोली हरीभरी होती हैं हुकुम सिंह वहीं होते हैं। यानी एक ऐसा नेता जो सिर्फ और सिर्फ मौके की राजनीति करता है। ऐसे में जब बीजेपी के पास यूपी में कोई मुद्दा नहीं है और हुकुम सिंह को लेकर भी भाजपा में कोई चर्चा नहीं है। ऐसे में ये मुद्दा हुकुम सिंह और भाजपा दोनों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है अगर उत्तर प्रदेश की जनता गंभीरता से इस मामले को ना समझे तो।  

आखिर क्यों बिगड़ाना चाहते हैं माहौल ?
हुकुम सिंह पिछले दो साल से यहां सांसद हैं। इस क्षेत्र में इनकी पकड़ भी अच्छी है और ये एक ऐसे नेता भी हैं जिन्हें लोग जानते हैं। लेकिन, इसी के साथ हुकुम सिंह ये भी जानते हैं कि इस बार अगर भाजपा यूपी में नहीं आती तो उनके लिए कोई ठौर-ठिकाना बचेगा नहीं। बसपा और सपा दोनों ही पार्टी से उनका 36 का आंकड़ा है। कांग्रेस इन्हें गोद लेना नहीं चाहती क्योंकि एक बार नहीं बल्कि दो बार ये कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं। लोकदल का यूपी में अब अस्तित्व शेष नहीं है। और यूपी में इनका इतना बजूद नहीं कि अकेले दम पर ये यूपी के सिरमौर बन जाए। ऐसे में भाजपा को मुद्दा देकर ये अपनी स्थिति जरूर मजबूत कर सकते हैं। और इन्होंने ऐसा किया भी। फिर चाहे उसके लिए माहौल थोड़ा खराब बी क्यों ना हो जाए।

क्या सांसद पिछले दो साल से सो रहे थे? सरदार वी एम सिंह, भारतीय किसान मजदूर पार्टी 
भारतीय किसान मजदूर पार्टी के अध्यक्ष सरदार वी एम सिंह हुकुम सिंह को लेकर कहते हैं। कैराना भाजपा के सांसद द्वारा बनाया जा रहा एक टाइम बम है जो आने वाले दिनों कभी भी फट सकता है। भाजपा के कुछ मंत्री यूपी में लगातार हवा खराब करने की कोशिश में जुटे हैं। पहले गोहत्या पर अब पलायन पर।  
सरदार वी एम सिंह कहते हैं। हुकुम सिंह पिछले दो साल से कैराना से सांसद हैं। क्या वो पिछले दो साल से यहां सो रहे थे? क्या उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं हुई कि यहां से कुछ लोग जा रहे हैंक्या रातों रात ऐसा हो गया? वी एम सिंह कहते हैं ये एक सोची समझी साजिश हैं। जिसे अब अमली जामा पहनाने की कोशिश की जा रही है ताकि वोट बैक को डायवर्ट किया जा सके। होना तो ये चाहिए था कि इस समास्या को समय रहते बतौर एक सांसद ये हल करते। यहां पलायान क्यों हैं इस पर विचार करते। लॉ एंड ऑर्डर मैनटेन करते। और रोजगार, बेरोजगारी किसानों के मुद्दें को हल करते। लेकिन, अफसोस ऐसा हुआ नहीं। अब मुद्दा उठाकर ये लोग साबित क्या करना चाहते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि पाकिस्तान उत्तर प्रदेश में आ सकता है या उत्तर प्रदेश पाकिस्तान जा सकता है। ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता फिर ये मुद्दा ही क्यों हैं? सीधी सी बात है मुद्दा आपस में फूट डालने का है ताकि माहौल खराब हो। वहीं, सांसद का घेराव करते हुए वीएम सिंह कहते हैं कि बतौर सांसद तो हुकुम सिंह को अब इस्तीफा दे देना चाहिए और कह देना चाहिए कि मुझसे मेरा इलाका कंट्रोल नहीं हो पाया। नैतिकता के आधार पर मैं इस्तीफा सौंप रहा हूं। क्योंकि सांसद का काम ही होता है समास्या का समाधान, समास्या को और ज्यादा समास्या बना देना ये सांसद का काम कतई नहीं हो सकता। भाजपा पर बरसते हुए सरदार वीएम सिंह ये भी कहते हैं कि भाजपा के यहां 71 सांसद हैं और 2 अपना दल से सांसद भी बीजेपी के साथ ही है। जब इतने बड़ा आंकड़ा बीजेपी के पास हैं तब ये यूपी के हालात खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे हैरत इस बात की होती है कि क्या फूट डलवा कर ही राजनीति में मुकाम हासिल किया जा सकता है।

सियासी लाभ के लिए दंगे कराना चाहती हैं सपा-भाजपा : मायावती
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना जाने के लिए भाजपा की निर्भय यात्रा और उसके जवाब में सत्ताधारी सपा की सद्भावना यात्राको आपसी मिलीभगत बताया है। उन्होंने कहा कि इसका मकसद आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सांप्रदायिक दंगे कराकर चुनावी लाभ उठाना है। मायावती ने यहां जारी एक बयान में कहा कि वैसे तो कैराना से कथित पलायन के मामले को भाजपा सांप्रदायिक रंग देने के साथ-साथ उसका गलत राजनीतिक लाभ उठाने के लिए काफी जोर लगाए हुए हैं। लेकिन सपा सरकार भी राजधर्म को भूलकर ऐसे तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि बसपा की मांग है कि भड़काने का काम करने वालों के खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई की जाए। वरना उत्तर प्रदेश एक बार फिर सांप्रदायिक दंगे की आग में जलेगा। इसकी पूरी जिम्मेदारी सपा और उसकी सरकार की होगी।

समाजवादी पार्टी किसी हाल में यूपी का माहौल बिगड़ने नहीं देगी : राजेन्द्र चौधरी, प्रवक्ता, सपा
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी किसी भी हाल में कैराना ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में किसी भी प्रकार की साजिश को सफल नहीं होने देगी। पलायन के मुद्दे पर जानकारी देते हुए राजेन्द्र चौधरी कहते हैं। देखिए, उत्तर प्रदेश के बहुत से हिस्सों से लोग आसपास के शहरों मे काम धंधे के लिए जाते हैं। हम आप बहुत से लोग अपने घरों से दूर रहकर काम कर रहे हैं। इसमें पलायन जैसा कुछ नहीं है। क्या पलायन कर लोग देश छोड़ गए। असल में बीजेपी को ये बात अच्छी तरह से पता है कि उनके पास उत्तर प्रदेश के लिए ना कोई मुद्दा है और ना ही कोई विकास का एजेंडा। बीजेपी के पास सिर्फ और सिर्फ धर्म, जाति के नाम पर लोगों के बीच सियासत करना आता है। और इसी के चलते वो यहां पर भी यही चाहते हैं। मेरा ये कहना है कि अगर दो साल से यहां से पलायान हो रहा था तो यहां के सांसद ने इस बात को संसद में क्यों नहीं उठाया। उन्होंने इसकी जानकारी राज्य की सरकार को क्यों नहीं दी। औऱ तो और इसकी जानकारी अब क्यों दे रहे हैं।

कैराना की हकीकत
कैराना पर इतना राजनीतिक बबाल होने के बाद कैराना जाना अलाइवके लिए भी जरूरी हो गया। इसी मकसद से हमारे संवाददाता ने भी कैराना का जायजा लिया। जमीनी हकीकत ये है कि बीजेपी के कैराना से सांसद महोदय ने 346 एसे नाम की सूची जारी की है जो पिछले दो साल मेँ कैराना से अपना बोरियाँ बिस्तरा समेट कर कहीं और चले गए हैष ये सूची किसी सरकारी आंकड़ों से ताल्लुक़ नहीं रखता बल्कि बीजेपी के कर्यकर्ताओ ने घर घर जाकर जुटाई जानकारी के आधार पर बनाई है। हमने सारा दिन कैराना में घूम घूम कर लोगों से बात की। हमे यहां सोहन पाल मिले। 50-55 साल के सोहन पाल यहां बर्फ का काम करते हैं। मुख्य शहर से थोड़ा बाहर मुस्लिम परिवारों की रिहायश के बीच है ये फैक्ट्री। धूप में जल कर काला पड़ चुके चेहरे पर बढ़ी सफ़ेद दाढ़ी किसी डर का एहसास तो नहीं करा रही थी मुझे। सोचा शायद बात करने पर वो डर दिख जाए जिस डर से यहाँ के लोग पलायन करने को मजबूर है जैसी की माननीय सांसद महोदय हुकुम सिंह दावा कर रहे है। बात करते समय किसी भी तरह की कोई झिझक तो दिखी नहीं, बात करते करते इक बात उसके मुँह से निकली जिसने थोड़ा सा पलायन करने के एक कारण पर रोशनी डाल दी और वो थी रंगदारी’  ।  
50 हजार से लाख के बीच की जनसंख्या वाले कैराना में हिंदू परिवार महज़ नाम मात्र के ही है, पिछले कुछ साल से बदमाश यहां के व्यापारियों को रंगदारी के लिए मजबूर कर रहे है। जिसने दे दिया उसकी सांसें चल रही है जिसने नहीं दी उसे सरे आम दिनदहाड़े गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया। ये ही डर यहां के लोगों के पलायन का एक कारण भी है। इसे इत्तफ़ाक़ ही कहेंगे की ज़्यादातर पलायन करने वाले हिंदू परिवार हैं। उसी बर्फ़ खाने के ठीक सामने चौधरी जमील की फैकट्री है साथ में उसका भरा पूरा घर , घर के साथ एक डेरी जो की मोहिंदर सिंह की है। सदियों से इसी कैराना में सुख दुख के पलों का एहसास किया। बात करने के लिए जैसे ही पहले में जमील के पास गया तो उसने आवाज़ लगाकर मोहिंदर को बुलाया और कहा आप पहले इन से बात करो, ये ही बेहतर बताएंगे की आख़िर किस बात का डर है और क्या ये भी सांसद की लिस्ट में 347वां नाम लिखवाना चाहते है । बचपन से साथ खाने खेलने वाले दोनों दोस्त और पड़ोसी इस तरह से सांसद महोदय की सूची और दावों की धज्जियाँ उड़ा रहे थे । सब एक ही बात दोहरा रहे थे कि माहौल ठीक है बस बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। सड़क पर चलते लोग भी इसी की तस्दीक़ कर रहे थे। चैनलों पर एक पिक्चर हाल के टूटने की कहानी भी चल रही थी, कि मालिक ने इसे बेच दिया है और रवानगी की तैयारी में है कैराना से। हांलाकि हाल मालिक से तो बात नहीं हो सकी लेकिन आस पास के लोगों से बात की तो पता चला की पिक्चर हाल चल नहीं रहा था,  खरीदार कोई मिल नहीं रहा था और जो भी मिल रहा था तो दाम नहीं दे रहा था। ऐसे में मलबा बेच कर और फिर प्लॉट काट काट कर बेचना मलिक को ज़्यादा फ़ायदे का सौदा लगा। बहरहाल सच को ढूंढ़ने में जुटी यूपी पुलिस का भी कहना है की सूची के 150 परिवार का पलायन तो हुआ है पर कारण डर नहीं बल्कि बेहतर रोज़गार और अपने व्यापार को बढ़ाना है। और ये कोई दो साल से नहीं बल्कि कई साल से चल रहा है। हांलाकि सांसद महोदय इन सब के बावजूद रुकने का नाम नहीं ले रहे एक और लिस्ट के साथ मीडिया के सामने आ खड़े हुए,  इस बार कहानी कैराना नहीं कांधला की है। लेकिन सांसद जी के सुर इस बार थोड़ा सा बदला सा है,  अब मामला सांप्रदायिक नहीं क़ानून व्यवस्था का है।
कैराना के मामले पर अब बीजेपी बैकफुट पर है। औऱ सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों ही बड़ी पार्टी भाजपा पर चुटकी ले रही है। कैराना सांसद को भी शायद अपनी गलती का अहसास हो चला है और धीरे धीरे वो भी मामले पर गाहे वगाहे अलग अलग तर्क देते दिखाई दे रहे हैं। वहीं, सवाल ये भी उठता है कि क्या हमारे देश के कुछ नेता लोगों के बीच गलतफहमी और गफलत फैला कर ही राजनीति करते रहेंगे या फिर कभी ठीक मुद्दों पर भी चुनाव भी लड़ेंगे या कभी देश के लोगों की तकलीफों को भी दूर करेंगे जिसके लिए वो चुनाव लड़कर शपथ लेते हैं।

बहरहाल, कैराना में शांति हैं। और यहां के आमजन अपने नेताओं की जमकर खिल्ली उड़ा रहे हैं। और ये शायद सही भी है क्योंकि देर सबेर देश के लोग ऐसे लोगों की राजनीति और मंशा को समझ जो रहे हैं।

कौन हैं बाबू हुकुम सिंह
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के कैराना लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह इन दिनों समाचारों की सुर्खियों में बने हुए हैं। उन्होंने एक लिस्ट जारी कर आरोप लगाया कि सांप्रदायिक ताकतों के चलते वहां बसे कई हिन्दू परिवारों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। बाद में हुकुम सिंह अपने बयान से पलट गए और उन्होंने कहा  कि यह मामला कानून व्यवस्था का है, सांप्रदायिकता का नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सांप्रदायिक रंग देकर कुछ लोग इलाके के गुंडों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। 
खैर, जो भी हो हुकुम सिंह खबरों में हैं और चर्चा में लगातार बने हुए हैं। कैराना पर सूची जारी करने के बाद उन्होंने कांधला तहसील की भी सूची जारी की और आरोप लगाया कि यहां के लोग भी पलायन को मजबूर हैं। 


पढ़ाई में बेहद होशियार थे हुकुम सिंह

बीजेपी सांसद हुकुम सिंह मुजफ्फरनगर के कैराना के ही रहने वाले हैं। 5 अप्रैल 1938 को जन्मे बाबू हुकुम सिंह पढ़ाई में काफी होशियार थे। कैराना में ही 12वीं तक की पढ़ाई के बाद परिजनों ने आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा। वहां पर हुकुम सिंह ने बीए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। इस बीच 13 जून 1958 को उनकी शादी रेवती सिंह से हो गई। उन्होंने वकालत का पेशा अपना लिया और प्रैक्टिस करने लगे। उस समय के जाने माने वकील ब्रह्म प्रकाश के साथ उन्होंने वकालत शुरू की।

जज की नौकरी छोड़ सेना में हुए शामिल

इसी दौरान उन्होंने जज बनने की परीक्षा पीसीएस (जे) भी पास की। जज की नौकरी शुरू करते, इससे पहले चीन ने भारत पर हमला कर दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने युवाओं से देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने के आह्वान पर वो सेना में चले गए। 1963 में बाबू हुकुम सिंह भारतीय सेना में अधिकारी हो गए। हुकुम सिंह ने बतौर सैन्य अधिकारी 1965 में पाकिस्तान के हमले के समय अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना का सामना किया। इस समय कैप्टन हुकुम सिंह राजौरी के पूंछ सेक्टर में तैनात थे। 1969 में हुकुम सिंह ने सेना से इस्तीफा दे दिया और वापस मुजफ्फरनगर आ गए। 

मौके की राजनीति करने में माहिर के हुकुम सिंह

कुछ ही समय में वह अपने साथी वकीलों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए उनके कहने पर बार के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ लिया और 1970 में वह चुनाव जीत भी गए। 1974 तक उन्होंने इलाके के जन आंदलनों में हिस्सा लिया और लोकप्रिय होते चले गए। हालत ऐसे हो गए थे इस साल कांग्रेस और लोकदल दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों ने उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के तैयार थे। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और चुनाव जीत भी गए। अब हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदस्य बन चुके थे। 1980 में उन्होंने पार्टी बदली और लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और इस पार्टी से भी चुनाव जीत गए। तीसरी बार 1985 में भी उन्होंने लोकदल के टिकट पर ही चुनाव जीता और इस बार वीर बहादुर सिंह की सरकार में मंत्री भी बनाए गए। बाद में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हुकुम सिंह को राज्यमंत्री के दर्जे से उठाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया।

मुजफ्फरनगर दंगों का आरोप भी लगा


2007 में हुए चुनाव में भी वह विधानसभा पहुंचे। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के आरोप भी हुकुम सिंह पर लगे। 2014 में बीजेपी के टिकट पर गुर्जर समाज के हुकुम सिंह ने कैराना सीट पर पार्टी को विजय दिलाई। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी को यूपी में अभूतपूर्व सफलता मिली। उनको जानने वाले और उनको मानने वाले तो यह तक मान रहे थे कि नरेंद्र मोदी सरकार में उन्हें मंत्री पद भी मिलेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। और शायद यहीं वजह भी है कि वो भाजपा में अब अपनी स्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं। 

Saturday, March 19, 2016

WORLD CULTURAL FESTIVAL- MORE CONTROVERSIES THAN CELEBRATIONS

By : Ravinder Kumar
The kumbh mela of culture began yesterday amidst a lot of controversies and troubles. Nearly 36,000 artistes from around the world were set to perform on what is possibly the world’s largest stage. With hailstorm and rains, swarms of visitors flooded the venue to have a look at the most troublesome festival in the recent years. We take a look at what exactly happened.

The World Culture Festival was given permission by the National Green Tribunal (NGT), with some terms and conditions. The Art of Living Organisation is supposed to take permission from the fire department before initiating the event and even the structure of the stage and panel had to be checked and granted approval. Sri Sri Ravi Shankar was dissatisfied because of NGT’s diktat and expressed that he would appeal to the court to oppose this.  He tweeted saying, “We are not happy with the decision, we will appeal”.What is the entire fuss about?

The National Green Tribunal has issued a notice to seek answers on this matter till 11 February to the Delhi Government, Delhi Development Authority and the Art of Living Organization.Here are the details of the entire controversy surrounding the event:The notice issued by the bench headed by the chairperson of NGT, Justice Swatantra Kumar issued a notice to the Delhi government, DDA and Sri Sri Ravi Shankar after hearing the appeal of Yamuna Jiyo Abhiyan’s director and environmentalist Manoj  Mishra.Manoj Mishra says, “Yamuna floods plain is a home to biodiversities. But the land has been leveled up and the forests surrounding the area have been burnt down to organize the event which has in turn destroyed the land around Yamuna forever.”

The accusation is that DDA went against the NGT’s orders of ‘Active Yamuna Floods Plain’ to grant approval for organizing the event.The construction work for the event comes under the 10 year tenure for the flood area whereas the NGT has prohibited any kind of construction or organization of event on the area from the past 25 years.The Principal Commissoner of DDA, JP Aggarwal however has a different approach. He argues that Akshardham temple and DTC’s Millennium bus depot have been constructed over Yamuna’s area. That didn’t cause any destruction.He also added, “There are a lot of unauthorized colonies built over Yamuna’s banks, people have inhabited the place, agricultural practices are going on. If this is not harming the environment, then how will the organization of the festival will make any difference?”According to the website of the festival 35 lakh participants are expected to participate in the event from 155 countries. But, only 2-3 lakhs of people were expected to join in according to the institution’s directive presented in the court, but the scale at which the event is organized tells a different story.

The director of Art of Living, Gautam Vig looks satisfied with the preparations for the event. He says that they have followed DDA’s orders for authorized construction and haven’t dumped anything in Yamuna. He also says, “We have been accused of dumping garbage but on the contrary we have cleaned the garbage worth 500 trucks and I have always informed the DDA on 14th December about this on a letter head.”But the pictures tell a different story. The signs of garbage dumping on the area are evident which are being used to fill the holes on Yamuna’s banks. The road roller has been used over the land to level it up later on. There are even signs of altering the direction of Yamuna’s main stream too.

The NGT asked a team of DDA officials headed by IIT Delhi’s Professor, AK Gosain to submit a report on the construction work taking place on Yamuna’s bank on 16 February.Both the reports were submitted to NGT on 19 February. Afterwards, a principle committee headed by Shashi Shekhar along with the Environment and Forest Ministry were sent by the NGT to enquire about the construction process. The reports were submitted on 23 and 26 February.

All the reports agree on common grounds that the rules were flouted for the construction process and Yamuna’s biodiversity was put at stake.The committee headed by Shashi Shekhar demand a penalty of 100-120 crores from the organizers of the event so that the garbage dumped on the banks can be cleared and the land can be revived.

On the other hand, Professor Gosain said in his report that the organization of the event is on such large scale that it is impossible to capture the ongoings on camera. He says to grant approval for the organization of this event will set a bad example for the nation.

Thursday, January 14, 2016

BIG BOYS TURN LOAN DEFAULTERS

By Ravinder Kumar 
Hori, the pauper hero of Munshi Premchand’s classic novel Godan keeps striving all through his life to grow as much quantity of grains from his fields as would be enough to pay back all of his loans. But till his last breath, Hori fails to pay his dues and just before the moment of his death he donates his last asset, a female calf, in a hope to get a better life in his next birth. This is not the anguish of Hori alone. Every person from middle and lower strata feels this pinch. For them loan is like an incurable disease which they want to get rid of at any cost.

The prevailing financing environs of the country depict a gloomy picture. Nonperforming assets (NPA) of most of the government banks is increasing at an alarming rate. In other words, it means that list of defaulters is growing every year and amount that they have usurped has put a heavy burden on the banks. This is also a burden on honest customers because it makes loan sanction conditions more stringent and difficult only because these government banks are heading towards heavy loss.
Although, banks are empowered to take direct action against the defaulters but they seem to look in different direction. Moreover, if there were one or two defaulters, it would hardly have any impact on the financial health of the concerned banks. Banks can to do their daily transactions while initiating legal action against the defaulters who are not paying their EMIs regularly. But things have gone out of control in India. Nonperforming assets (NPA) have grown to such an extent that even the Reserve Bank of India (RBI) as well as the Finance Ministry is worried about it.
If the defaulter happens to be a petty businessman or business house, their assets could be impounded and put on auction to recover the loans. But the current NPA is not a petty sum. Loans converted into NPAs run into huge sums, ranging from some crores of rupees to several thousand crores. As per the applicable rules, if a person does not pay installments of his loans for consecutive three months, then he is put in defaulters’ list. But here big fish are involved. Most of them do not payback even the capital amount for years together but still evade any legal actions by the banks. 
Then they make proposals that their loans should be reorganized so that they face no difficulty in paying back their loans. In the name of reorganizing, they are offered huge discounts also. At times bridge loans are sanctioned to ensure that they get temporary relief and do not get into the defaulters list. This gives a wrong message to those who honestly keep paying back their loans. In many cases no reorganization occurs and the loan amount is considered ‘sunk’ and declared NPA.
NPA of government banks is increasing continuously. It stood at Rs.3.14 lakh crore in September this year. This amount is equal to 5.64 percent of the total loan amounts sanctioned by the banks. Harms caused by ever growing NPA to the country’s economy is no hidden secret. Since, most of the capital of the banks is stuck in loans, it affects their income badly. Secondly, the running capital also diminishes in the same proportion. Several good projects with potential of huge job creation remains pining for finance or are shelved forever. Loan is available for meeting some basic requirements only. Thus, not only a few projects but entire economy suffers in longer terms. And ultimately it affects the growth rate of the country.
Apparently, other honest customers have to face the brunt of this defaulting tendency. In order to recover this stuck up capital, banks usually tend to increase interest rates on the new loans, which leads to increased installments of loans taken for home, vehicle and business by the common people. Commonly, increase in NPA is seen linked with shabby condition of economy. Means, if any sector of economy performs poorly for some reasons, then there are more apprehensions loans stuck up in that particular sector.
The good news, however, is that the government seems to be getting serious about NPA. Prime Minister Narendra Modi hinted at this while speaking in the parliament during a debate on NPA that his government is taking this matter seriously. Finance Minister, too, looks quite serious. Now, it is to be seen what and how contribution those people will make in country’s progress who are responsible for ever increasing NPA of government banks.
Who owes how much
Reliance ADG – 1.13 lakh crore
Headed by Anil Ambani, ADG Group has the greatest loan amount. They owe up to Rs. 1.13 lakh crore to the government banks. Anil Ambani’s company is active in the fields of defence, finance, telecom, energy and entertainment. Balance sheet of March 2015 shows a loss of Rs. 1.25 lakh crore to Anil Ambani’s company.  
VedantaGroup – 90,000 crore
According to a report of Credit Suisse, Vedanta Group of Anil Agrawal owes Rs. 90,000 crore to banks. It is the second largest defaulter after ADG. The company has to payback a loan of $100 crore (around Rs. 6.694 crore) from the next financial year and thereafter it has to pay back $ 150 crore (Rs. 10,000 crore) every year for the next two years.
Jaiprakash Associates Group 85,000 crore
JP group is active in infrastructure, power and cement business. Owned by Manoj Gaur, JP Group owed a loan of Rs. 85,726 crore till 31 March 2015; while company’s total assets were worth Rs. 1 lakh crore. The company is selling some of its assets to reduce its loss margins and under the scheme has put its Delhi-Agra Expressway for sale recently.
Adani Group Rs. 72,000 crore
Adani Group is owned by Gautam Adani. Company owes a total of Rs. 72,632 crore as loans to several banks. Financial analysts had raised questions when State Bank of India sanctioned a loan of $ 100 crore for acquiring mining contracts in Australia last year. Company is already under heavy loans. Then how much appropriate it is to sanction fresh loans for the company. Company’s short term loans stand at Rs. 17,267 crore and long term loans at Rs. 55,364 crore.
JSW Group Rs. 58,000 crore
Owned by Sajjan Jindal, JSW Group owes total Rs. 58,000 crore as loans. Sajjan Jindal has hit the news headlines for his mediatory role in arranging a meeting between Prime Minister Narendra Modi and his Pakistani counterpart Nawaz Sharif. JSW is the big Jindal group company active in steel sector.

This Story published in caravanalive.com