Friday, July 30, 2021

अब ये देश दलितों के रहने लायक नहीं रहेगा

अब ये देश दलितों के रहने लायक नहीं रहेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिसतरह से 2014 से लेकर 2021 तक पूरे देश में दलितों की हत्या का आंकड़ा तेजी से उठा है शायद उतनी तेजी से दलितों की हत्या पहले कभी नहीं हुई।

 

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक पंचायत अधिकारी की हत्या महज इसलिए कर दी गयी क्योंकि उसने एक ब्राह्रमण कन्या से प्रेम विवाह कर लिया था। हालांकि इस मामले में लड़की ने अपनी मर्जी से ही लड़के से शादी की और लड़की का जात पात पर विश्वास भी नहीं है। लड़की का कहना है कि अब वो जब तक अपने गुनहगार परिवार को सजा नहीं करवा लेती तब तक वो चैन से नहीं बैठेंगी।

 

लड़की जिस हालात में है, उसके पीछे उसके परिवार के लोगों की वो मानसिकता है जो जातिवाद में डूबी हुई है। और इस कद्र कुंठा के घेरे में है कि उसने इंसानियत तक को ताक पर रखकर अपनी ही बेटी का परिवार उजाड़ दिया। 17 लोग हिरासत में है। आप सोचिये, जातिवाद की जड़ों से जकड़ा ये परिवार किस तरह से दलितों से घृणा करता रहा होगा। अपने आप को शिक्षित सभ्य कहलाने वाला परिवार किस तरह से दलित परिवारों और दलितों के साथ सल्लुक किया करता होगा।

 

लड़का लड़की एक ही कॉलेज में पढ़ रहे थे। लड़का भी अच्छे ही परिवार से था। धन दौलत की दोनों ही परिवार में कोई समास्या नहीं है। लेकिन, जाति एक ऐसा फैक्टर बनकर सामने आयी की दोनों ही परिवार बर्बादी की कगार पर पहुंच गये। लड़की विधवा हो गयी वो अलग और साथ ही बदले की भावना लेकर जियेगी सो अलग।

 

एक दूसरा मामला उत्तर प्रदेश का ही है। प्रयागराज के इस मामले ने तो पूरे  सियासी माहौल को गरमा या है। प्रयागराज ज़िला मुख्यालय से क़रीब चालीस किलोमीटर दूर कौंधियारा थाने में एक बेहद पिछड़ा गांव है- कठौली कंचनवा। गांव के बीच में एक मजरा है जुगल का पुरवा, जहां खेतों से घिरे चार-पांच घर दिखते हैं। सबसे पहले एक कच्चा और खपरैल का बना हुआ घर रामराज यादव का है, उससे आगे एक घर छोड़कर मिट्टी और खपरैल से बने दो छोटे घर हैं जो भगवती सिंह और उनके भाई के हैं। रामराज यादव और भगवती सिंह के घर के बीच महज़ पचास मीटर की दूरी होगी।

दोनों परिवारों के बीच अच्छा संबंध रहा है, घर वालों को एक-दूसरे के साथ उठना-बैठना रहा है। लेकिन सोमवार को संबंधों में ऐसी खटास आई कि दोनों परिवारों के बीच मार-पीट हुई और भगवती सिंह के घर के लोगों ने रामराज यादव के बेटों- सोनू यादव और संदीप यादव को पीट-पीटकर लहू-लुहान कर दिया।

दोनों परिवारों की स्थिति यह है कि एक के यहां मातम पसरा है जबकि दूसरे परिवार के चार लोग जेल में हैं और बचे हुए लोग घर में ताला लगाकर कहीं चले गए हैं।

 

सोनू यादव के पिता रामराज यादव बताते हैं, "शाम को साढ़े सात बजे हम लोग बाहर बैठे थे। उस दिन हमारे घर पूजा हुई थी। ठाकुर लोग भी प्रसाद लेकर गए थे। वो लोग अक्सर बच्चों के साथ यहां बैठते थे।" "लेकिन अचानक हम लोग देखे कि प्रियम सिंह और प्रीतम मेरे बेटों संदीप और सोनू को लाठी से पीट रहे हैं। जब तक हम लोग वहां पहुंचते तब तक सोनू को काफ़ी चोट आ गई थी और संदीप भागकर घर की ओर आ गया था।"

 

रामराज बताते हैं कि भगवती सिंह अपने बच्चों को मना करने की बजाय "और मारने" की बात कह कर उकसा रहे थे और दूसरे लोग उन्हें पीट रहे थे। सोनू के सिर में काफ़ी चोटें आईं।

"उसे पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और फिर ज़िला चिकित्सालय पहुंचाया गया, लेकिन अगले दिन उसकी मौत हो गई।" रामराज का कहना है कि भगवती सिंह अपने बच्चों को मना करने की बजाय "और मारने" की बात कह कर उकसा रहे थे

रामराज का कहना है कि भगवती सिंह अपने बच्चों को मना करने की बजाय "और मारने" की बात कह कर उकसा रहे थे

 

23 वर्षीय सोनू की अभी कुछ महीनों पहले शादी हुई थी। उनकी पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था। पत्नी और मां को समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर एक छोटी सी बात के लिए सोनू को इतना क्यों पीट दिया गया कि उसकी मौत हो गई।

सोनू की मां कहती हैं, "हम लोग बचाने को पहुंचे, लेकिन उन लोगों के ऊपर जैसे ख़ून सवार था। मुझे और मेरी बहू के ऊपर भी कई लाठियां पड़ीं। फिर जब आदमी लोग आए, तब कहीं जाकर वो लोग यहां से भागे।" इस लड़ाई के पीछे सोनू के भाई संदीप का एक व्हाट्सऐप स्टेटस माना जा रहा है जिसे उसने एक दिन पहले पोस्ट किया था।

 

यह स्टेटस प्रियम सिंह इत्यादि को नागवार गुज़रा और उन्होंने उससे उस स्टेटस को हटाने की बात कही, लेकिन संदीप ने स्टेटस नहीं हटाया।

 

चार अभियुक्तों की गिरफ़्तारी

संदीप के परिजनों का कहना है कि यह स्टेटस समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचार के लिए तैयार किए गए एक गीत का वीडियो था जबकि गांव के लोगों का कहना है कि इस वीडियो में अजीत सिंह नाम के एक बिरहा गायक का वो गीत था जिसमें वो 'यूपी के सभी ठाकुरों को अहिरों का सार (साला)' बताते हैं।

 

इसी बात से नाराज़ प्रीतम सिंह इत्यादि के साथ पहले सोनू और उनके भाई संदीप की कहासुनी हुई और फिर बात मार-पीट तक आ गई। सोनू यादव के परिजनों की तहरीर पर चार लोगों के ख़िलाफ़ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई गई और गुरुवार को पुलिस ने चारों अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लिया।

प्रयागराज के पुलिस अधीक्षक (यमुनापार) सौरभ दीक्षित ने मीडिया को बताया, "प्रीतम सिंह, प्रियम सिंह, उनके पिता शिशुपाल सिंह और चचेरे भाई भगवती सिंह को ग़िरफ़्तार कर लिया गया है। विवादित स्टेटस लगाने को लेकर ही झगड़ा हुआ था, जिसमें चार लोग नामजद किए गए थे। चारों की गिरफ्तारी हो गई है।" अस्पताल में सोनू की मौत के बाद गांव में तनाव पैदा हो गया। प्रशासन ने बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती कर दी ताकि कोई अप्रिय घटना न होने पाए।

 

दोनों परिवारों की आर्थिक स्थिति कमज़ोर

सोनू यादव गांव में ही खेती और दूध का व्यवसाय करते थे और समाजवादी पार्टी से भी जुड़े हुए थे। गांव वालों के मुताबिक, अभियुक्तों का परिवार भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा था। दोनों ही परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहद कमज़ोर है।

 

भगवती सिंह के घर पर उनकी एक बेटी सुधा मिलीं जिनके पति इस घटना के बाद उन्हें अपने साथ ले चलने के लिए आए थे। सुधा ने बताया, "चाचा के घर पर कोई नहीं है। जो लोग नामज़द थे उन्हें जेल भेज दिया गया। औरतें और बच्चे डर के मारे कहीं दूसरी जगह चले गए हैं। मैं भी अपनी बच्ची के साथ अपनी ससुराल प्रतापगढ़ जा रही हूं।"

 

सुधा सिंह इससे ज़्यादा बात नहीं करतीं और उनका कहना है कि उन्हें इससे ज़्यादा कुछ और मालूम भी नहीं है कि क्या हुआ था। समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता संदीप यादव ने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों के लोगों के प्रति नफ़रत घोल दी गई है

समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता संदीप यादव ने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों के लोगों के प्रति नफ़रत घोल दी गई है

 

समाजवादी पार्टी की प्रतिक्रिया

सोनू की मौत के बाद ही समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं का भी वहां जमावड़ा शुरू हो गया। इससे पहले समाजवादी पार्टी की ओर से ट्वीट करके घटना की निंदा की गई थी।

 

समाजवादी पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया था, "सपा कार्यकर्ता की श्री अखिलेश यादव जी का गीत बजाने पर सत्ता संरक्षित गुंडों द्वारा सोनू यादव की हत्या घोर निंदनीय। हत्यारों को मिले कठोरतम सज़ा।"

 

गुरुवार को सपा नेता संदीप यादव भी अपने कई साथियों के साथ वहां मौजूद थे। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "विपक्षी दलों के लोगों के प्रति इतनी नफ़रत घोल दी गई है और सत्ता पक्ष के लोगों को इतना संरक्षण दिया जा रहा है कि वो कुछ भी कर दे रहे हैं।"

 

"पिछले दिनों पंचायत चुनाव में आपने देखा होगा कि किस तरह विपक्षी दलों के लोगों के घर गिराए गए, एफ़आईआर दर्ज की गई, उन्हें मारा-पीटा गया। यह घटना भी ऐसी ही मानसिकता का नतीजा है।"

प्रयागराज ज़िले के कठौली कंचनवा गांव में किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए पुलिस की तैनाती कर दी गई है गांव के लोगों की मानें तो दोनों परिवारों के लोग अलग-अलग राजनीतिक दलों के प्रति आस्था ज़रूर रखते थे, लेकिन इसकी वजह से उनके बीच न तो कभी कोई रंज़िश रही और न ही कभी कोई विवाद हुआ।

 

गांव के ही रहने वाले महेंद्र यादव कहते हैं, "वो लोग भी यहीं आकर बैठते थे। रामराज के घर के सामने भगवती सिंह का खेत है। दोनों ही लोग ग़रीब हैं। राजनीति से न तो इन्हें कुछ मिल रहा था, न उन्हें। यह तो सोशल मीडिया वाला मामला पता नहीं कैसे इतना बढ़ गया कि आवेश में आकर उन लोगों ने हमला कर दिया।"

 

कठौली कंचनवा गांव की आबादी क़रीब 2800 है जिसमें ज़्यादा संख्या दलितों की है। यादव समुदाय के लोगों की संख्या क़रीब चार सौ है जबकि ठाकुर समुदाय के लोगों की आबादी भी तीन सौ के आस-पास है। यह गांव और यह पूरा इलाक़ा बेहद पिछड़ा है।

 

गांव की प्रधान अनीता देवी के पति शिव प्रसाद बताते हैं कि उनके गांव में जातीय संघर्ष कभी नहीं हुआ। शिव प्रसाद कहते हैं, "आपस में कहा-सुनी और छोटे-मोटे विवाद को छोड़ दिया जाए तो एक जाति की दूसरे जाति से लड़ाई जैसा मामला कभी नहीं हुआ है। इस घटना से हमारा पूरा गांव स्तब्ध है।"

 

'विवाद अचानक नहीं था'

पुलिस का कहना है कि दोनों ही परिवारों के लोगों का न तो कोई क्राइम रिकॉर्ड है और न ही किसी अपराध में संलिप्त रहने की कोई जानकारी है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मार-पीट की नौबत अचानक आ गई।

 

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बीबीसी को बताया, "संदीप और प्रियम इत्यादि के बीच मोबाइल पर पिछले कई दिनों से इस मुद्दे पर बातचीत हो रही थी। उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह विवाद अचानक नहीं था बल्कि इसकी पृष्ठभूमि पहले से तैयार हो रही थी। हमारे पास चैट्स के स्क्रीनशॉट्स हैं और उन सबके आधार पर ही जांच की जा रही है।"

 

वहीं कुछ ग्रामीणों का यह भी कहना है कि जुगल का पुरवा की घटना लोगों के लिए एक सबक है कि कैसे उन राजनीतिक मुद्दों को लोग आपसी विवाद का कारण बना लेते हैं जिनसे उनका कोई लेना-देना नहीं है।

 मुद्दें की बात

प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ जी का कहना है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए वो हर संभव कदम उठायेंगे और मुजरिमों को सलाखों के पीछे पहुंचायेंगे। लेकिन बात जब जाति आधारित अपराधों की आती है तब सूबे के मुख्यमंत्री भी जांच पड़ताल की बात करते ही नजर आते हैं। दूसरी बड़ी बात ये भी है कि देश में मौजूदा दौर में दलितों की हत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। आप आये दिन अखबारों की खबरों को देखकर इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि देश में दलितों का हाल क्या है। कुल मिलाकर देखा जाये तो मौजूदा दौर में ये देश अब धीरे धीरे दलितों के रहने लायक नहीं रहा है। और यहीं मंशा इस देश के ब्राह्मण और सवर्ण की है कि देश का दलित धीरे धीरे इतना कमजोर और इतना क्षीण हो जाये कि या तो वो अपनी आवाज किसी भी अन्याय के खिलाफ उठाये नहीं और अगर उठाये भी तो इतने धीरे की उसे न्याय मिल ही ना पाये।