Tuesday, September 20, 2016

परिवार का झगड़ा या मुलायम की सियासी चाल

नई दिल्ली:  कहते हैं राजनीति में जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है। और जो होता है वो दिखता नहीं है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी एक ऐसा ही भूचाल पिछले एक महीने से देखने को मिल रहा था। राजनीति के जानकारों को कहना था कि शायद अब समाजवादी पार्टी में सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा टूट जाएगा। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं और शायद होना भी नहीं था। 
क्योंकि जिसतरह से एक के बाद एक घटनाक्रम टूटे और जुड़े उससे साफ नजर आया कि ये एक ऐसी लिखी लिखाई स्क्रिप्ट थी जिसे नेता जी यानी समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बाखूबी निभाया और अब देश के सबसे बड़े राजनैतिक परिवार में छिड़ा धमासान शांत हैं।

वहीं, सवाल ये भी उठता है कि आखिर मुलायम सिंह यादव ने इस घमासान को रोका कैसे?
अगले साल यानी 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। चुनावों में समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ाएंगे भतीजे अखिलेश यादव और संगठन तैयार करेंगे चाचा शिवपाल यादव। यानि कि चुनाव लड़ने वाला अखिलेश यादव खेमे का और चुनावों में काम करने वाला शिवपाल यादव खेमे का। जी हां, यही है चाचा-भतीजे की जंग को खत्‍म कराने वाला मुलायम फार्मूला।

वहीं, दूसरा सवाल ये भी उठता है कि क्‍या समाजवादी पार्टी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के इस फार्मूले से उत्‍तर प्रदेश की सत्ता में वापसी कर पाएगी
सवाल जितना छोटा है इसका जबाव उतना ही बड़ा है। क्योंकि ये वो सवाल नहीं है जिसका हल चंद शब्दों में वयां कर दिया जाए या फिर ऐसा कोई फार्मूला पेश कर दिया जाए जिसमें यूपी का चुनाव तय हो जाए। इसका जवाब ढूंढने के लिए पहले इस पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार तरीके से समझना होगा।

पिछले चार साल में उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था चौपट!
उत्तर प्रदेश में पिछले साढ़े चार साल में कानून व्यवस्था अपने सबसे खराब दौर में गुजर रही है। पूरे राज्य में रिश्वत, जबरन उगाही और दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़े हैं। वहीं, किसान आत्महत्या का आंकड़े मे भी उछाल आया है। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश में दंबग और ऊंची जाति के लोगों का छोटी जाति के लोगों पर अत्याचार भी बढ़ रहा है। आए दिन बढ़ रही घटनाओं के चलते मौजूदा समाजवादी पार्टी की सरकार, कभी विसहड़ा में अखलाक के मामले में जबाव नहीं दे पायी तो कभी दलितों की सरेआम पिटाई पर अपने पैर पिटती नजर आई। इतना ही नहीं, सूबे के मुख्यमंत्री के द्वारा जब भी किसी तरह के सख्त कदम दंबग नेताओं या अफसरों के खिलाफ उठाए गए तो वहीं दूसरी ओर से कभी चाचा शिवपाल यादव तो कभी नेता जी ने मामलों के बीच में आकार फैसलों को गलत ठहरा दिया।

विरासत तो सौंपी लेकिन, कमान नहीं
कहते हैं राजनीति में सत्ता से बड़ा कोई सुख नहीं है। औऱ इस बात को मुलायम सिंह से ज्यादा भला कौन जानता होगा। और इसकी जीती जागती मिसाल उनका स्वंय का कुनबा ही है। उनके कुनबे से शायद ही कोई शख्स ऐसा होगा जिसका उत्तर प्रदेश की राजनीति में दखल ना हो। वहीं, स्वंय मुलायम सिंह यादव ने राजगोपाल यादव के कहने पर उत्तर प्रदेश की कमान पुत्र को सौंप तो दी, लेकिन, सत्ता के मोह से खुद को अलग नहीं कर पाए। उनका अखिलेश के हर फैसले में दखल इस बात की तस्दीक करता है। वहीं, चुनाव से पहले सियासी ड्रामा इस बात की गवाही भी दे रहा है।

क्या वाकई सियासी पारा उतर गया?
उत्‍तर प्रदेश में चार दिन से चढ़ा सियासी पारा अब उतरने का दावा किया जा रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच जो आरपार की जंग छिड़ी, उसे खत्म करने के लिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने सियासी बंटवारा किया और बेटे व भाई को शांत करा दिया। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सपा में इस घटनाक्रम से ऐसी चिनगारी सुलगाई है जो सत्ता में वापसी के पार्टी के मंसूबों को राख के ढेर में तब्दील कर सकती है।

नए दांवपेच लगा रही पार्टी
सियासी समीकरण और सूत्रों की मानें तो यह भी माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को क्लीन फेस वाला नेता बनाए रखने के लिए पार्टी से लेकर सपा सरकार तक नए दांवपेंच से नए समीकरणों की गणित लगायी जा रही है।

मुलायम के कुनबे में कलह या फिर उनका सियासी दांवपेंच !
माना यह जा रहा है कि सपा मुखिया भी कहीं यह तो नहीं चाहते हैं कि उनके पुत्र अखिलेश यादव पर कोई दाग न लगने पाए। अब पांच साल तक प्रदेश में सपा सरकार के कारनामों का ठीकरा किसके सिर पर फोड़ा जाए, यह भी एक सियासत का हिस्सा माना जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश सपा सरकार के दौरान हुए घोटालों व तमाम कारनामों से अख‍लेश के दामन पर कोई दाग न लगे, इसके लिए कहीं सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने यह नया संघर्ष शुरू करवा दिया है।

क्‍या मुलायम के फॉर्मूले से हो पाएगी यूपी में सपा की वापसी?
दरअसल चुनावों का ये जाना-पहचाना फॉर्मूला है कि जीत के लिए लोकप्रिय उम्मीदवार और ताकतवर संगठन दोनों की ही जरूरत होती है। इनमें से किसी एक की कमी या दोनों के बीच समन्वय की कमी से बड़े से बड़े दिग्गज चुनावी मैदान में धूल चाट लेते हैं। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने सपा में जारी अंतर्कलह को खत्म करने का जो फॉर्मूला निकाला है उसने संगठन और उम्मीदवार के बीच ऐसी ही अंतर्कलह के बीज बो दिए हैं।
शिवपाल यादव पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए हैं। यानी यूपी में संगठन में किस पद पर कौन सा नेता बैठेगा इसका फैसला शिवपाल ही लेंगे। कहना जरूरी नहीं है कि वे संगठन पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अपने विश्वासपात्र नेताओं की ताजपोशी को तरजीह देंगे। दूसरी ओर चुनावों में टिकट बांटने की जिम्मेदारी सौंपी गई है मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को। अखिलेश भी जीत के बाद विधायकों पर अपनी पकड़ कायम रखने के लिए उन्हीं को टिकट देंगे जो उनके भरोसेमंद होंगे।
यानी उम्मीदवार अखिलेश का चहेता होगा और उसके लिए वोट मांगने, घर-घर जाकर पर्चियां बांटने, चुनाव प्रचार करने का जिम्मा जिन संगठन पदाधिकारियों के हाथ में होगा वो शिवपाल यादव के चहेते होंगे। ऐसे में चुनाव के वक्त दो दलों से ज्यादा मुकाबला तो सपा के अंदर देखने को मिल सकती है। कहने की जरूरत नहीं कि अगर ऐसी स्थिति हुई तो विधानसभा के चुनाव नतीजे सामने आने से पहले ही सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की हार तय हो जाएगी।  राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव इसे न समझते हों ऐसा हो नहीं सकता। उसके बाद भी अगर उन्होंने शक्तियों का ऐसा विभाजन अपने भाई और बेटे के बीच किया है, तो जानकार मानते हैं कि वो किसी बड़े बवाल की शुरुआत भर है।

'बीजेपी ने मस्जिद गिरवाई, मुस्लिमों ने सपा सरकार बनवाई'
अखिलेश के बाद कोई और हो सकता है सीएम
सियासी दिग्गज यह भी अनुमान लगाने लगे हैं कि यह भी हो सकता है कि सपा मुखिया के कुनबे से लेकर पार्टी और सरकार तक मचे कोहराम के दौरान ही अखिलेश के बाद किसी को और मुख्यमंत्री बनाकर अखिलेश को बेदाग सपा नेता का चेहरा बनाए रखे जाने की जुगत भी हो सकती है। हालांकि अभी इस पर सपा की ओर से कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है।

यूपी में मजबूत उम्मीदवारों पर दांव लगाएगी भाजपा
बीजेपी ने बताया सियासी ड्रामा
पूरे मामले में यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने इस पूरे घटनाक्रम को सपा मुखिया का सियासी ड्रामा कह दिया है। साथ ही मुख्यमंत्री पद से अखिलेश यादव को इस्तीफा दिए जाने की मांग भी कर दी गई है।विपक्ष ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि सपा मुखिया अपने बेटे अखिलेश यादव को बेदाग बनाए रखने के लिए उन्हें दायित्व से भी अलग करने तक का निर्णय ले सकते हैं

बहरहाल, सियासत के जानकारों का मानना है कि मुलायम का दांव फिलहाल ठीक पड़ा है। और इस बार बेशक कुनबा संभल गया है। लेकिन, वहीं ये बात भी तय मानी जा रही है कि ये सिसासी ड्रामा महज अखिलेश को क्लिनचिट देने, प्रदेश के लोगों को उत्तर प्रदेश के मुद्दों से भटकाने और देश की सियासी पार्टियों को ये जताने के लिए लिखी लिखाई वो कहानी थी जिसे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने बाखूवी सुना भी दिया और दिखा भी दिया साथ ही ये तय भी कर दिया कि अभी भी वो समाजवादी पार्टी के सबसे मजबूत और कद्दावर नेता है और आने वाले चुनाव से पहले वो एक बार फिर अपने आप को समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े नेता के रूप में पेशकर सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं ताकि वो चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश की जनता से कह सके कि समाजवादी पार्टी की कमान अब उनके पास हैं और जो पिछली सरकार में गलती हुई वो अनुभव कम होने की वजह से हुई।

 मुलायम सिंह यादव का परिवार बना सबसे बड़ा सियासी कुनबा
उत्तर प्रदेश में सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार माना जाने वाला सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का सियासी कुनबा हाल में सम्पन्न पंचायत चुनावों में तीन और सदस्यों के निर्वाचन के साथ और मजबूत हो गया है।

 मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के अगुआ और पार्टी संस्थापक हैं. उन्होंने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया था. अपने राजनीतिक करियर में वह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे.
राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने की शुरुआत वैसे तो पं. जवाहरलाल नेहरू ने ही कर दी थी पर लोहिया के चेले कहे जाने वाले मुलायम सिंह ने इसे खूब आगे बढ़ाया. पिछले कुछ वर्षों में जब भी देश में तीसरे मोर्चे की चर्चा होती है, मुलायम सिंह यादव का नाम सबसे पहले लिया जाता है. पेशे से शिक्षक रहे मुलायम सिंह यादव के लिए शिक्षा के क्षेत्र ने राजनीतिक द्वार भी खोले.

शिवपाल सिंह यादव
शिवपाल यादव मुलायम सिंह यादव के अनुज 1988 में पहली बार इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए. 1996 में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपनी जसवंतनगर की सीट छोटे भाई शिवपाल के लिए खाली कर दी थी. इसके बाद से ही शिवपाल का जसवंतनगर की विधानसभा सीट पर कब्जा बरकरार है.

रामगोपाल सिंह यादव
मुलायम सिंह ने 2004 में संभल सीट रामगोपाल के लिए छोड़ दी थी और खुद मैनपुरी से सांसद का चुनाव लड़ा था. रामगोपाल इस सीट से जीत हासिल करके संसद पहुंचे थे. अभी वह राज्यसभा सांसद हैं.

अखिलेश यादव
मुलायम ने 1999 की लोकसभा चुनाव संभल और कन्नौज दोनों सीटों से लड़ा और जीता. इसके बाद सीएम अखिलेश के लिए कन्नौज की सीट खाली कर दी. हम आपको बता दे कि अखिलेश ने इसके पहले फिरोजाबाद से भी चुनाव लड़ा था और वहां से जीत हासिल की थी लेकिन बाद में उन्होने अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिये सीट छोड़ दी थी. लेकिन में डिंपल यादव को वहां से करारी शिकस्त मिली. डिंपल ने कन्नौज की सीट से चुनाव लड़ा और बाद में निर्विरोध चुनी गई. इसी के साथ उनकी भी राजनीति में एंट्री हो चुकी थी. अखिलेश यादव 2012 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. खास बात यह कि अखिलेश यादव ने सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया.

धर्मेंद्र यादव
2004 में सीएम रहते हुए मुलायम सिंह यादव के समय धर्मेन्द्र ने मैनपुरी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उस वक्त उन्होंने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाया.

डिंपल यादव
अखिलेश यादव ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज और फिरोजाबाद से जीतकर फिरोजाबाद की सीट की अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिए छोड़ दी, लेकिन इस बार पासा उलट पड़ गया और डिंपल को कांग्रेस उम्मीदवार राजबब्बर ने हरा दिया. पहली बार में इस खेल में मात खाने के बावजूद अखिलेश का भरोसा इस फार्मूले से नहीं टूटा. 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने अपनी कन्नौज लोकसभा सीट एक बार फिर डिंपल के लिए खाली की. इस बार सूबे में सपा की लहर का आलम ये था कि किसी भी पार्टी की डिंपल के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की हिम्मत नहीं हुई और वो निर्विरोध जीतीं.

तेज प्रताप यादव
तेजप्रताप यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पोते हैं. वे मैनपुरी से सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था और दोनों जगहों से जीते. इसके बाद उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट मैनपुरी खाली कर दी थी. इस सीट पर उन्होंने अपने पोते तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाया. तेजप्रताप ने भी अपने दादा को निराश नहीं किया और बंपर वोटों से चुनाव में जीत हासिल की. साथ ही राजनीति में धमाकेदार एंट्री की.

इंग्लैंड की लीड्स यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट साइंस में एमएससी करके लौटे तेजप्रताप सिंह सक्रिय राजनीति में उतरने वाले मुलायम सिंह के परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं. मुलायम के बड़े भाई रतन सिंह के बेटे रणवीर सिंह के बेटे तेजप्रताप सिंह यादव उर्फ तेजू इस समय सैफई ब्लॉक प्रमुख निर्वाचित हुए हैं. क्षेत्र में समाजवादी पार्टी को मजबूत करने की पूरी जिम्‍मेदारी तेज प्रताप सिंह ने अपने कंधों पर उठा रखी है. परिवार के सदस्‍य इन्‍हें तेजू के नाम से भी पुकारते हैं.

अक्षय यादव
अक्षय यादव मौजूदा समय में फिरोजाबाद से सपा सांसद हैं. अक्षय यादव भी पहली बार चुनाव जीतकर सक्रिय राजनीति में उतरे हैं. यह सीट यादव परिवार की पारंपरिक संसदीय सीट रही है. जब अखिलेश यादव ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद और कन्नौज से चुनाव लड़ा था, उस समय फिरोजाबाद के चुनाव प्रबंधन की कमान अक्षय यादव ने संभाली थी. इसके बाद अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया. भाभी डिंपल का चुनाव प्रबंधन भी अक्षय ने संभाला था, लेकिन कांग्रेस नेता राज बब्बर ने डिंपल को हरा दिया था.

प्रेमलता यादव
मुलायम सिंह के छोटे भाई राजपाल यादव की पत्‍नी प्रेमलता यादव इस समय इटावा में जिला पंचायत अध्‍यक्ष हैं. आमतौर पर गृहिणी के तौर पर जीवन के अधिकतर वर्ष गुजारने के बाद 2005 में प्रेमलता यादव ने राजनीति में कदम रखा. यहां उन्‍होंने पहली बार इटावा की जिला पंचायत अध्‍यक्ष का चुनाव लड़ा और जीत गईं. 2005 में राजनीति में आने के बाद ही प्रेमलता मुलायम परिवार की पहली महिला बन गईं, जिन्‍होंने राजनीति में कदम रखा. उनके बाद शिवपाल यादव की पत्‍नी और मुलायम की बहू डिंपल यादव का नाम आता है.
प्रेमलता के पति राजपाल यादव इटावा वेयर हाउस में नौकरी करते थे और अब रिटायर हो चुके हैं. रिटायरमेंट के बाद से ही वह समाजवादी पार्टी में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. 2005 में चुनाव जीतने के बाद प्रेमलता ने अपना कार्यकाल बखूबी पूरा किया. इसके बाद 2010 में भी वह दोबारा इसी पद पर निर्विरोध चुनी गई हैं.


सरला यादव
यूपी के कैबिनेट मिनिस्टर शिवपाल यादव की पत्नी हैं सरला यादव. 2007 में जिला सहकारी बैंक इटावा की राज्य प्रतिनिधि बनाया गया था. सरला को दो बार जिला सहकारी बैंक का राज्य प्रतिनिधि बनाया गया. 2007 के बाद लगातार दूसरी बार चुनी गई थी और अब कमान बेटे के हाथ में है.

आदित्य यादव
शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव जसवंत नगर लोकसभा सीट से एरिया इंचार्ज थे. मौजूदा समय में वह यूपीपीसीएफ के चेयरमैन हैं.

अंशुल यादव
राजपाल और प्रेमलता यादव के बेटे हैं अंशुल यादव. 2016 में इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए हैं अंशुल यादव.

संध्या यादव
सपा सुप्रीमो की भतीजी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव ने जिला पंचायत अध्यक्ष के जरिए राजनीतिक एंट्री की है. उन्हें मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए निर्विरोध चुना गया है.

अरविंद यादव
वैसे परिवार की बात करें तो मुलायम सिर्फ अपने ही परिवार नहीं, चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव के परिवार को भी पूरा संरक्षण देते रहते हैं. इसी क्रम में मुलायम की चचेरी बहन और रामगोपाल यादव की सगी बहन 72 वर्षीया गीता देवी के बेटे अरविंद यादव ने 2006 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और मैनपुरी के करहल ब्लॉक में ब्लॉक प्रमुख के पद पर निर्वाचित हुए. अरविंद क्षेत्र की जनता में काफी पहचान रखते हैं. करहल में अरविंद ने समाजवादी पार्टी को काफी मजबूती दिलाई है. लेकिन 2011 के चुनाव में वह आजमाइश के लिए मैदान में नहीं उतर सके. कारण था कि इस चुनाव में करहल ब्लॉक प्रमुख की सीट सुरक्षित हो चुकी थी. लेकिन अरविंद ने हार नहीं मानी है और इस समय वे मैनपुरी लोकसभा सीट के तहत आने वाले करहल ब्लॉक में सपा की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं.

शीला यादव
शीला यादव मुलायम के कुनबे की पहली बेटी है जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया. शीला यादव जिला विकास परिषद की सदस्य निर्वाचित हुई हैं, साथ ही बहनोई अजंत सिंह यादव बीडीसी सदस्य चुन गए हैं।