रिश्ते ही रिश्ते, शादी
हम करवाएं परिवार आपका बसाएं। जीवन साथी डॉट कॉम, साईकोरियन और ऐसे ही कई साइन वोर्ड और होर्डिग्स आपने देखे होगे। मैं
भी अक्सर इन्हें देखता था। जैसे की आम आदमी देखते हैं। कुछ बुजुर्ग लोग इनके पते
टेलिफोन नंबर बस स्टैड औऱ सड़कों के किनारे नोट करते दिख जाएंगे। एक दिन यानी 5 फरवरी 2007 की शाम। मैं भी आम
दिनों की ही तरह अपने दफ्तर से घर वापस आ रहा था। मैं अपनी बस का इंतजार पंचशील
पार्क के बस स्टैंड पर कर रहा था। वहां कई लोग मौजूद थे। इनमें से एक व्यक्ति जो
तकरीबन 50-55 साल का रहा होगा। वो एक मैटरिमोनियल के विज्ञापन से कुछ नंबर नोट कर
रहा था। कुछ देर के बाद जब वो नंबर लिख चुका था। और अपनी डायरी को अपनी पॉकेट में
रख चुका था। मैंने अचानक ही उनसे पूछा कि अंकल ये लोग तो शादी करवाने के लिए मोटी
फीस लेते होंगे। अंकल ने तपाक से उत्तर दिया। बेटा पैसा मोटा लेते हैं तो दिलवाते
भी तो हैं। और फिर इनसे बात ठीक हो जाए तो लेनदेन का झंझट भी खत्म हो जाता है।
यहीं सब कुछ करवा देते हैं। उनकी बात सुनकर मेरी जिज्ञासा बढ़ी। मैंने पूछा कैसे
करवाते हैं। क्योंकि आजकल तो दहेज लेना देना अपराध है। अंकल ने ये बात सुनी और
मुझे देखकर मुस्कुराएं और चुप्प बैठे रहे। मैं उनकी प्रतिक्रिया देखकर झेंप गया।
और फिर अपनी बस का इंतजार करता रहा। कुछ देर बाद मेरी बस आई मैं बस में बैठा औऱ घर
आ गया। लेकिन उनकी ये हंसी और कटुल मुस्कान मेरे जेहन से जाने का नाम ही नहीं ले
रही थी। मैं दूसरे दिन अपने दफ्तर पहुंचा और अपने बॉस अमिताभ से मैंने पूछा सर
दहेज पर स्टोरी हो सकती है। मेरे बॉस ने मेरी बात अनसुनी करते हुए कहा। कि क्या
स्टोरी करोगे यार। कोई बड़ा मामला हो तो स्टोरी हो सकती है वो भी एक दिन चलने
वाली। वाकी अब दहेज की स्टोरी में कोई दम नहीं है। कुछ और सोचो। मीटिंग खत्म हो
गयी। और मैं कुछ और दूसरी स्टोरी सोचने लगा। लेकिन मेरे दिमाग में कोई स्टोरी नहीं
आयी। फिर 20 फरवरी 2007 की दोपहर मैं एक
स्टोरी पर करोल बाग रिश्ते ही रिश्ते वाले अरोड़ा जी के पास जा पहुंचा। दिमाग में
कुछ था नहीं था। बस मिलने का दिल किया और मैं सुबह तकरीबन 10.30 बजे अरोड़ा जी की दफ्तर पहुंच गया। एक पुराना सा घर करोल बाग की एक
लेन में। जिसकी दीवारों पर सालों साल से बाइट बॉश भी नहीं हुआ था। वहां एक लड़की
ने मुझसे पूछा क्या काम है। मैंने कहा मैं अरोड़ा साहब से मिलना चाहता हूं।
पत्रकार हूं। उनका इंटरव्यूह करूंगा। लड़की ने जवाब दिया। सर इंटरव्यूह नहीं देते।
मैंने कहा चलो कोई बात नहीं मिल तो सकते हैं। उन्होंने कहा आप इंतजार कीजिए वो आने
वाले हैं। दो कमरे के इस दफ्तर में तकरीबन 30 से 35 लोग मौजूद थे। जिसमें से आधे दफ्तर के भीतर और आधे दफ्तर के बाहर
कम्पाउंड में खड़े थे। मैंने सभी को गौर से देखा कुछ अपने लड़को के साथ थे औऱ कुछ
लड़कियों के साथ। इनमें से एक से मैंने काफी हिम्मत जुटा कर पूछा की मैडम यहां कब
से आ रही है। अधेड़ उम्र की महिला भी शायद अरोड़ा साहब का इंतजार कर करके थक रही
थी। और उसे भी शायद कोई बात करने वाले की जरूरत थी। क्योंकि मैंने बात करने की
शुरुआत कर दी थी। तो महिला ने छूटते ही कहा मैं यहां पिछले एक साल से आ रही हूं।
मेरी बेटी है उसी के लिए यहां मैं आ रही हूं। मैंने आगे बात बढ़ाते हुए कहा। एक
साल का समय तो काफी होता है। आपको अभी तक कोई लड़का पसंद नहीं आया। महिला ने कहा
पसंद तो काफी आए लेकिन सभी दहेज काफी मांगते हैं। अरोड़ा जी फीस कम लेते हैं औऱ
रिश्ते अच्छे करवाते हैं इनकी लोग बात भी सुनते हैं। ये सुनकर मैंने आगे बातचीत का
सिलसिला जारी रखा। औऱ पूछा मैडम क्या रिश्ते करवाने का काम और लोग भी करवाते हैं।
उन्होंने कहा, हां बहुत से। आप एक ढूंढोगे हजार मिल जाएंगे। और आजकल तो पैसे का खेल
है। इन मैटरीमॉनिएल सर्विस वालों को तो पैसा चाहिए। उसके बाद बस आपके पास रिश्तो
की लाइन लग जाएगी। आपको आपके हिसाब से कई रिश्ते ये दिखा देंगे। चाहो तो आप ये भी
बात कर सकते है कि आपका बजट कितना है। बजट की बात ने मुझे चौंका दिया। मैंने पूछा
मैडम बजट का मतलब। महिला ने तपाक से जवाब देते हुए कहा। अरे भईया आप तो कुछ भी
नहीं जानते। बजट यानी आप कितना खर्च कर सकते हैं। पहले ये बताओ आपने किसकी शादी
करवानी है या अपनी करनी है। मैं थोड़
शर्माया औऱ फिर बोला नहीं मैंने नहीं करनी अपने चाचा की लड़की के लिए
रिश्ता देखना है। किसी ने अरोड़ा जी के बारे में बताया था। तो यहां चला आया। महिला
ने आगे कहा। अगर आपको रिश्ता अच्छा चाहिए और आपका बजट अच्छा है तो अरोड़ा जी को
छोड़िए और सफदरजंग एन्क्लेव जाइये वहां साइकोरियन है। वो अच्छा काम करते हैं।
मैंने साइकोरियन सुना तो मेरी जिज्ञासा और बढ़ी। मैंने पूछै कैसे। महिला ने कहा।
अरे भाई वो महंगे रिश्ते करवाते हैं। यहां तक की आईएएस अफसरों तक के रिश्ते वो
करवाते हैं। इसपर मैंने पूछा आईएएस के रिश्ते। वो कैसे होते हैं। महिला ने जवाब
दिया। होते कैसे हैं। वहां जाईये अपना रजिस्ट्रेशन करवाइये बजट बताइये औऱ हो गए
रिश्ते। इतना सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए। और एक अच्छी स्टोरी का आइडिया मुझे
नजर आने लगा। जब तक अरोड़ा जी तो वहां नहीं पहुंचे हां...इस बीच 11 सौ रूपये की मेरे
पास दो बार फरियाद जरूर आ गयी। जिसे अनसुना सुनकर मैं अपने ऑफिस की गाड़ी लेकर
सीधे अपने ऑफिस को निकल गया। ऑफिस पहुंचकर मैंने अपने बॉस अमिताभ से समय लिया और
उन्हें आइडिया देते हुए बोला। सर दहेज अगर देश के युवा आईएएस अफसर लेते हो जो अपनी
ट्रेनिग के बाद जॉब पर आते हैं तो कैसा रहेगा। इतनी बात सुनकर अमिताभ अपनी कुर्सी
से लगभग उछल पड़े और बोले अबे सालो की मां चुद जाएगी। यार ये स्टोरी करो। मजा आ
जाएगा। लेकिन स्टोरी बॉस भटक ना जाए। स्टोरी में सिर्फ आईएएस अफसर ही आने चाहिए।
क्योंकि स्टोरी तभी चलेगी। फिर अमिताभ का एक लंबा चौड़ा भाषण हुआ। जिसमें उन्होंने
समझाया की कैसे आईएएस बना जाता है। कैसे ट्रेनिग होती है। और जब वो एग्जाम की
तैयारी कर रहे थे तो उनके साथियों का क्या हाल था। वो बोले जा रहे थे। मुझे और
माया भूषण जो मेरे साथ ही रिपोर्टर होते थे। दोनों को समझा रहे थे। हम वो ध्यान से
सुन रहे थे। और अमिताभ आइडिया दे रहे थे। कि कैसे इस ऑपरेशन जिसका नाम भी उन्होंने
ही रखा ‘अफसर दुल्हों की मंडी’ को कैसे अंजाम दिया जाएगा। पहले आईएएस दुल्हों तक
पहुंचने के लिए हमने देश के सभी नेशनल न्यूज पेपर्स में मेटरिमॉनियल्स को खंगालने
की योजना बनाई उसके बाद दिल्ली के सभी मेटरिमॉनियल सर्विस देने वालों को खंगालने
की योजना बनाई। तीसरे चरण में हमने मीटिंग्स के लिए रखा। और चौथे चरण में स्टोरी
को कैसे पेश किया जाए। इसपर योजना बनाई गयी। हमें दिल्ली, बिहार, यूपी और मध्यप्रदेश पर फोकस करना था। क्योंकि
यहीं से सबसे ज्यादा आईएएस अफसर निकलते हैं। हमने पहले हिस्से में क्योंकि अखबारी
विज्ञापन खंगालने थे। इसके लिए हमने तकरीबन 150 से 200 फोन किए जिनमें से उस समय हमारी 15 मीटिग्स फीक्स हुई। हम पहले मीटिंग के लिए मेरठ गए। जो हमारी पहली
मीटिग थी। मैं और माया भूषण मेरठ बाईपास पर एक ऐसे लड़के के घर पर पहुंचे। जो अपने
इंटरव्यूह की तैयारी में जुटा था। इस उम्मीदवार ने अपना प्री और मेन्स क्लीयर कर
लिया था। और इंटरव्यूह की तैयारी कर रहा था। इस उम्मीदवार को हमने इस लिए भी चुना
क्योंकि हम पहले एक्सपरीमेंट करके यानी अपना ही टेस्ट करना चाहते थे। हम अपने
स्पाई गैजेट के साथ जिसमें हमारे पास बैग में छुपा हुआ कैमरा और बटन कैमरा था।
उसके साथ दोपहर तकरीबन 2 बजे के आस पास पहुंचे। घर में लड़का और लड़के का भाई और
मां थी। हमने अपना इंट्रोडक्शन एक मेटरिमॉनिएल एजेंट के रूप में दिया। जिसकी
तैयारी हम कर चुके थे। हमने जब अपना इंट्रोडक्शन दिया तो पहले लड़का बेहद खुश
दिखा। और जब हमने बातचीत शुरु की तो लड़के ने हमें अपने एक दोस्त की शादी के बारे
में बताया। उसने बताया की उसके दोस्त पिछले बैच का आईपीएस है। औऱ अपनी शादी के मैं
उसे क्या क्या मिला है। यानी लड़के का साफ कहना था कि उसे दहेज में मोटा पैसा चाहिए।
हम उसकी बात सुन रहे थे। और हमारा कैमरा उसकी बात रिकॉर्ड करता ऱहा। इसी बीच उसका
एक भाई जो हमारी मूवमेंट पर नजर बनाए हुआ था। हमसे उसने एक दम पूछा की आप अपने बैग
को पैन यानी दाएं से बाएं क्यों घुमा रहे हैं। इतना सुनते ही मैं और मायाभूषण
थोड़ा अनकंफर्ट हो गए। हम थोड़ा झिझक गए। और इसी बीच इस लड़के ने हमसे कहा की वो
हमारा बैग चैक करना चाहता है। हालांकि ऐसे सवालों से लड़ने के लिए हम स्पेशल
ट्रेनिग भी करते हैं और तैयार भी रहते हैं। हम इतना सुनते ही अपनी कुर्सी से खड़े
हो गए। और गुस्सा दिखाते हुए बोले। ये क्या मजाक है। आप अपने मेहमानों से इसी तरह
से पेश आते हैं। और ये कहकर हम कमरे से बाहर आ गए। और अपनी गाड़ी में जा बैठे।
हालांकि मायाभूषण ने ये भी कहा कि उसे गर्मी लग रही है। इसलिए वो थोड़ा बैग को
दाएं बाएं कर रहे थे। लेकिन, मैंने कुछ इस तरह से रियेक्ट किया की उनकी भी समझ में
नहीं आया की अचानक क्या हुआ। इस बीच मैंने मायाभूषण का हाथ खींचा औऱ कार में
बैठाते हुए कहा। बॉस निकल लो इसका भाई कैमरों के बारे में जानता है। नहीं तो मार
लग जाएगी। जिसके बाद हम कार में बैठे और वहां से निकल गए। रास्ते भर हम खूब हंसे
और अपनी पूरी मूवमेंट पर विचार करने लगे। जिसके बाद हमने बैग से शूट करने का फैसला
ड्राप कर दिया। और अगला शूट बटन और डायरी कैम के साथ शूट करने की योजना बनाई।
लेकिन इस एपिसोड के साथ ही हम इस बात से भी परेशान थे कि जब पहली ही बार में हमे
इतनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आगे कितनी परेशानी उठानी पड़ेगी। हमे
ये पता लग ही गया था की रास्ता उतना आसान नहीं है जितना दिखाई दे रहा था। जिसके
बाद हमने अपनी योजना में कुछ मूलभूत बदलाब किए। हमने पेपर्स में दिए गए एड के
अलावा मेटरिमॉनियल सर्विसेस को भी खंगालना शुरु किया। और पहले बगैर कैमरे ही रैकी
करने की योजना बनाई। जिसमें हमने सबसे पहले टारगेट किया दिल्ली की मशहूर
मेटरिमोनिएल सर्विस एजेंसी साइकोरियन को। साइकोरियन मैं पहले अकेला गया। जिसमें
मैंने सिर्फ ये समझा की साइकोरियन काम कैसे करती है। जिसमें हमारी पहली ही मीटिंग
में हमें बताया गया की। वो किस किस तरह की सर्विस देते हैं। उन्होंने हमें एक बेहद
सुंदर अच्छे दफ्तर में जहां मेरी मुलाकात सुमिता से। सुमिता उस समय साइकोरियन की
बिजनेस हेड होती थी। उन्होने मुझे समझाया की साइकोरियन कैसे काम करता है। और उनकी
क्लाइटेज कौन सी है। उन्होंने हमे समाझाया की अगर आप हमारे साथ 11 हजार रुपये देकर हमारे साथ रजिस्ट्रर होते
हैं तो आपको हम इकनॉमी क्लास का रजिस्ट्रेशन देंगे। जिसमें हम आपको मीटिग्स
करवाएंगे लेकिन आगे की बात चीत आप खुद करेंगे। यानी हम आपको लड़कों के प्रोफाइल दे
देंगे। जिसके बाद आपको जब प्रोफाइल पसंद आएगा तो हम आपको क्लाइंट का पता दे देंगे।
जिसके बाद आप उनके घर या कहीं भी उनके साथ मीटिंग कर सकते हैं। मीटिंग्स भी आप ही
तय करेंगे। दूसरा ऑप्शन है। प्रीमियम सर्विस इसमें आपको 51 हजार रुपये देंने होंगे। इसमें हम आपको
प्रोफाइल देंगे और मीटिंग्स फीक्स करेंगे। और तीसरी सर्विस है। गोल्डन सर्विस
जिसमें हम आपसे एक लाख 11 हजार रुपये लेंगे। इस सर्विस में हम आपकी मीटिंग अपने
दफ्तर में करवाएंगे औऱ लड़का लड़की यहीं पर एक दूसरे को देख भी सकते हैं। क्योंकि
हमारे पास कोई लड़का नहीं था औऱ ना ही लड़की तो हमने मिलकर ये तय किया की हम
प्रीमियर सर्विस लेंगे। जिसमें मीटिंग्स साइकोरियन ही फीक्सड करेगा। इसके बाद हमने
पैसा देने से लेकर हर हर मीटिंग कैमरे पर कैद की और हमारे पास लगातार दिल्ली यूपी
बिहार और मध्यप्रदेश से आईएएस अफसरों के रिश्ते आने लगे। जिसे हमने इन चारों
प्रदेशों में जाकर शूट करना शुरु कर दिया।
पहला अध्याय
हम योजनागत तरीके से आगे बढ़ रहे थे।
मायाभूषण नागवेरकर जो मेरे साथ ही मेरे ऑफिस में काम करते थे। हम दोनों रोज सुबह 10 बजे ऑफिस पहुंच जाते थे। मायाभूषण गोवा के
नामी जर्नलिस्ट हैं। और तहलका के लिए बहुत सी शानदार स्टोरी कर चुके हैं। हम
उन्हें माया कहकर बुलाते थे। शानदार कदकाठी आंखों पर चश्मा और थोड़ी थोड़ी दाढ़ी
माया को अलग ही रूप देती थी। और जब वो हिंदी बोलता था तो हम अपना सर खुजाते थे
क्योंकि वो हिंदी के साथ इग्लिश मिला दिया करते थे। हां उनकी अमिताभ से अच्छी बनती
थी। अमिताभ हमारी कंपनी DIG के मालिक थे। औऱ हमारा मुनिरका के एक घर में ऑफिस होता
था। बेहद साधारण औऱ शानदार। क्योंकि उस ऑफिस में ना तो बहुत सारे कम्प्यूटर थे। और
ना ही रिसेप्शन पर कोई था जो हर किसी के आने जाने का ध्यान रखे। हमारा ये ऑफिस कम
था औऱ घर ज्यादा। क्योंकि इसमें हम सिर्फ घंटों बैठकर अपनी खबरों पर बात करते थे।
अखबार पढ़ते औऱ फील्ड में निकल जाते थे। ऑफिस में हमारे साथ एक और महत्वपूर्ण
व्यक्ति होते थे। और वो थे प्रदीप जी। प्रदीप जी हमारे एक तरह से अकाउंटेंट कम
बॉचमैन थे। वो हमारी हर एक्टिविटी पर ध्यान देते थे। हमारे पीछे से क्या स्पोर्ट
देनी है। और जब हम फील्ड में है तो कैसे हमे पीछे से स्पोर्ट करना है। इसका ध्यान
रखते थे। कुल मिलाकर हम चार लोगों का ऑफिस था। पहले अमिताभ जो हमारे बॉस थे। दूसरे
प्रदीप जो हमारे इमिडियेट बॉस थे। तीसरे माया भूषण नागवेकर और चौथा मैं यानी
रवीन्द्र। और हां...एक और शख्स था हमारा पीओन जो हमारे लिए चाय लाता था।
उसका जिक्र बाद में।
अब आपको कुछ और अतीत में ले जाना आवश्यक है।
क्योंकि जब तक अतीत साफ नहीं होगा तब तक स्टिंग की दुनिया को समझना थोड़ा मुश्किल
है। अमिताभ एक सुलझे हुए और शानदार पर्सनल्टी के मालिक हैं। थोड़े से मोटे और
देखने से लगता है की जर्नलिस्ट कम औऱ एमबीए कर चुका कोई मैनेजर ज्यादा है। खबरों
की खबर रखने की समझ के साथ साथ खबरों को कैसे बेचा जाए इस बात को अमिताभ अच्छी तरह
से जानते थे। और यही बजह थी की अमिताभ ने आज तक जो भी स्टिंग करवाएं या करे। उन
स्टिंग्स ने पत्रकारिता की दुनिया में इतिहास रचा। वो अनिरूद्ध बहल और तरूण तेजपाल
जैसे कतई नहीं है। वो ऐसे ही जिन्हें शब्दों में बयान करना मुश्किल है। हां थोड़े
जिद्दी जरूर है और शायद वो इसलिए है क्योंकि उन्हें अपनी काबलियत का अहसास है। हम
हर रोज उनसे नहीं मिल पाते थे। हां फोन पर बात रोज हो जाया करती थी। वो हफ्ते में
दो या एक बार आया करते थे। हमारी मूवमेंट की जानकारी प्रदीप ही दिया करते थे।
प्रदीप को मैं पहले एक झक्की शख्स के रूप में जानता था। जो बॉस के कहने पर ही
हिलता था। प्रदीप सिगरेट खूब पीता था और बीच बीच में अपना सिर खुजाता था। हम सोचते
थे ये सिर क्यों खुजाता है।
माया सिगरेट तंबाकू और किसी भी तरह के नशे से
दूर थे। हां...वो चाकलेट खूब खाता था और हमें कभी कभार ही देता था।
हमेशा कहता था एक ही था। हमे भी धीरे धीरे ये अहसास हो चला था की ये एक ही खरीद कर
लाता है। जिसे धीरे से खाता रहता है। कुल मिलाकर ऑफिस का माहौल बेहद अच्छा था।
जिसमें कुछ और मजेदार चीजे जुड़ती चली गयी।
मार्च 2007 ऑफिस में मीटिंग
मैं अपनी मोटरसाइकिल से ऑफिस पहुंचा अमिताभ
मेरा इंतजार कर रहे थे। उनके साथ प्रदीप जी और माया भी मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं
जैसे ही ऑफिस पहुंचा अमिताभ ने कहा आप लेट आएं हैं। मैंने कहा हां. सर लेट हो गया। थोड़ा घर पर काम था। खैर
मीटिंग शुरु हुई। और पहली मेरठ की मीटिग पर मेरी और माया की जमकर क्लास लगी।
अमिताभ ने हमसे कहा की हम ये ऑपरेशऩ छोड़ दें। या फिर करे तो इस ऑपरेशन को ठीक से
करे समझददारी से करे। क्योंकि एक गलती इस पूरे ऑपरेशन को तबाह कर सकती है। मेरी
समझ में नहीं आ रहा था की अमिताभ ऐसा क्यों बोल रहे हैं। प्रदीप कोने में बैठकर
सिगरेट का कश लगा रहे थे और जिसका धुंआ मेरे नाथुनों से ठकराकर मुझे परेशान कर रहा
था। मैं कभी उनकी तरफ देखता औऱ कभी अमिताभ की ओर। माया शायद मेरी परेशानी समझ रहा
था। उसने हिंदी इंग्लिश की मां बहन एक करते हुए कहा। रवि आई थिंक दादा इज ऑल राइट।
इसपर प्रदीप जी ने मुझे घेरते हुए कहा। रवि जी क्या आप बताएंगे की हुआ क्या। मेरी
समझ में कुछ नहीं आ रहा था। की मैं क्या जवाब दूं । क्या कहूं। लेकिन जवाब तो देना
ही था। मैंने कहा सर शायद हमारी तैयारी पूरी नहीं थी। इस जवाब ने माहौल और खराब कर
दिया और अमिताभ अपनी कुर्सी पर से खड़े हो गए। और माया की तरफ झुककर बोले माया ‘वट दा हेल’ रवी इज न्यू पर्सन इन माई कंपनी एंड हि डज
नोट नो राइट एंड रोन्ग इन दिस प्रोफेशन लेकिन आप तो पुराने हैं। आप बगैर तैयारी
किए कैसे निकल गए। इसपर माया जो अमिताभ के सामने एक लंबी सेटी जो अमिताभ की टेबल
के सामने लगी होती थी। उसपर से नीचे जमीन पर बैठगए औऱ दाढ़ी पर हाथ फेरकर बोले।
दादा दिस इज ओवरकॉन्फिडेंस ओनली। अगली बार हम ध्यान रखेंगे। जिसके बाद अमिताभ शांत
हुए एक ग्लास पानी का गटका और कुर्ते की जेब से कुबेर निकाला मुंह में डाला। इस
बीच प्रदीप ने सिगरेट अमिताभ जी की ओर बढ़ा दी। जिसे अंगुलियों में फंसाने के बाद
माचिस की तिली से जलाकर अमिताभ ने गहरा धुंआ हवा में छोड़ा। इस बीच ऑफिस के कमरे
में मुर्दानगी छायी रही। वो कश पर कश खींचते रहे और मैं और माया उनके हवा में
उड़ते धुंए के छल्लों को गिनते रहे। सिगरेट खत्म हो गयी लेकिन ना तो अमिताभ बोले
और ना ही हम। इस बीच प्रदीप जी ने सन्नाटा तोड़ते हुए कहा। रवि जी अगली मूव क्या
है।
ये सवाल सुनकर अमिताभ और माया ने मेरी तरफ
देखा जैसे वो इसी सवाल का इंतजार कर रहे थे। मेरे मन में आया की कह दूं की गलती इस
चुतिया माया ने की है और मूव मुझसे पूछी जा रही है। लेकिन मैं शांत रहा और मैंने
कहा सर मैं साइकोरियन गया था। वहां मैं सुमिता से मिला। जिसने कुछ अच्छी लीड दी
है। अमिताभ ने कहा ठीक है। और मैंने कहा सर अभी तक तो ये ही है। बाकी जैसा
हमने प्लान किया है। 15 मीटिग्स हमारी फीक्स है। पेपर एड के माध्यम से। उन्हें
हम खंगाल लेते हैं। औऱ इससे पहले हम चीजे समझ लेते हैं और अपनी अपनी भूमिका तय कर
लेते हैं। अमिताभ को शायद इसी का इंतजार था। उन्होंने अपनी सिगरेट खत्म करते हुए
कहा। हां ये ठीक है। आज से आप इस ऑपरेशन के हेड हैं। और अब आप जैसा चाहेंगे बैसा
ये ऑपरेशन चलेगा। यानी आपको ही इस ऑपरेशन को आगे लेकर जाना है। माया आपके साथ
हमेशा की तरह साथ रहेंगे। और हर चीज पर बारीकी से ध्यान रखेंगे। प्रदीप जी आपको
बेक स्पोर्ट देंगे। और आपकी मूवमेंट पर नजर रखेंगे। आज से आप रवि कपूर हैं।
साइकोरियन के लिए और मायाभूषण सिर्फ भूषण हैं। और आप ऐसे अमीर हैं जिनकी एक बहन
है। जो लंदन के कालेज में पढ़ रही है। लेकिन शादी इंडिया में करना चाहती है।
क्योंकि संस्कारों से बंधी हुई फैमली है। लड़की का नाम क्या होगा ये आप डिसाइड
करो। अब आगे बताओं मैं बोला सर लोग जाति बगैरा बहुत पूछते हैं। इस पर अमिताभ ने
कहा यार लड़की किसी भी जाति की हो अगर अमिर हो सुंदर हो तो फिर आजकर कोई नहीं
पूछता वैसे आपको क्या लगता है। कपूर भी कम अमीर नहीं होते रश्मि कपूर रख लो। मैंने
सहर्ष ही नाम स्वीकार कर लिया। क्योंकि नाम ही ऐसा था जो अमिताभ के लिए सिर्फ नाम
था लेकिन मेरे लिए इस नाम के मायने कुछ और थे।
साइकोरियन मैरिज
ब्यूरो
अमिताभ ने मुझसे साइकोरियन के बारे में
जानकारी मांगनी शुरु की। मैंने अमिताभ को बताना शुरू किया। साइकोरियन की जानकारी
देते हुए मैंने कहना शुरू किया। सर साइकोरियन देश का जाना पहचाना एक महंगा मैरिज
ब्यूरो है। और ये आईएएस रिश्तों का एक्पर्ट कहलाता है। यहां सुमिता बिजनेस हेड हैं
जिनसे मेरी बात हुई है। उन्होंने तीन रेंज बताई हैं। इकनॉमी रेंज में 11 हजार का रजिस्ट्रेशन है जिसमें वो सिर्फ
कान्टेक्ट डिटेल देंगे और मीटिंग हमें ही फीक्सड करनी होंगी। दूसरी रेंज प्रीमियम
हैं। 51 हजार रुपये की है। इसमें ये मीटिंग फीक्सड करवायेंगे।
इसे सुनते ही अमिताभ बोले ये ठीक है। और तीसरी सर गोल्डन हैं एक लाख 11 हजार की जिसमें वो लड़के लड़की के परिवार को
अपने ऑफिस में बैठाकर ही मीटिंग करवाते हैं। इसपर अमिताभ बोले नहीं ये रहने दो। बीच वाली
ले लो। और सभी कुछ कैमरे पर कैद करना। इस बार बैग ले जाना। बैग में ही पैसे रखना
औऱ सौ के नोट रखना ताकी गिनने में समय लगे। औऱ गड्डी लूज रखना दो ही बंडल बनाना।
और 11 सौ के लिए जैसा ठीक लगे वैसा कर लेना। और इस डील पर आप
अकेले ही जाना। माया को दूसरी मीटिग में ले जाना। सभी कुछ फीक्सड हुआ। पैसे दे दिए
गए। अमिताभ ने पैसे मुझे देते हुए कहा। रवि मैं आपके ऊपर भरोसा कर रहा हूं। ये
ऑपरेशन वैसा ही होना चाहिए जैसा मैं सोच रहा हूं। अगर इसमें कहीं कोई कमी रह गयी
तो हमारी थू थू हो जाएगी। और आज आपको डांटने का मकसद ये था की एक गलती से ये खबर
आईएएस अधिकारियों के कान खड़े कर देगी। और वो एक्टिव हो जाएंगे जिसके बाद ये
स्टोरी हम कभी नहीं कर पाएंगे। इसलिए मैं गुस्सा कर रहा था। उम्मीद है आप मेरी बात
समझ गए होंगे। और अब किसी तरह का कोई संशय आपके मन में नहीं होगा। इतना सुनकर मेरा
मुंह खुला रह गया। और मैं अमिताभ की ओर देखता रह गया। इसपर भूषण और प्रदीप जी ने
मेरे कंधे पर हाथ रखा औऱ कहा रवि जी अभी आपको अमिताभ को समझने में समय लगेगा।
दूसरा अध्याय
साइकोरियन में मीटिंग और प्रदीप जी के सर खुजाने का रहस्य
मैं हर रोज की तरह मीटिग के दूसरे दिन समय से
ही पहुंच गया। ऑफिस में प्रदीप जी सिगरेट के छल्ले हवा में उड़ा रहे थे। माया अपने
अंदाज में मुछों पर ताव देकर अपनी गर्ल फ्रेंड से बात कर रहे थे। जिसका नाम
उन्होंने हमें आज तक नहीं बताया। वो छुपाते थे लेकिन हमें पता था क्योंकि हम जब भी
पूछते थे वो हमेशा बात को टाल जाते थे। खैर माया की अपनी दुनिया थी जिसे मैं
छेड़ना नहीं चाहता था। प्रदीप जी को हम प्रदीप जी क्यों कहते थे ये भी किस्सा है।
असल में प्रदीप जी को अमिताभ भी प्रदीप जी ही कहा करते थे। क्योंकि प्रदीप जी
अमिताभ के साथ कालेज में पढ़ा करते थे और अमिताभ के जीजा थे। जिसका पता मुझे कई
महीनों बाद पता चला था। जिसके बाद हम सभी प्रदीप को अमिताभ की ही तरह मान सम्मान
देते थे। इसके अलावा वो मेरे अच्छे दोस्त भी बन गए थे। ऑफिस खत्म होने के बाद हर
शाम प्रदीप मेरे साथ जेएनयू में होते थे। जहां हम दोनों अपने गम गलक किया करते थे।
और वहीं पर प्रदीप जी ने अपना सर खुजाने का खुलासा भी किया। एक दिन उन्होंने कहा
की आप पूछते हैं मैं सिगरेट पीने के दौरान कभी कभी अपना सर क्यों खुजाता हूं तो आज
बताता हूं। रवि जी असल में मेरे दिमाग में कई चीजे चलती हैं। पैसा फंडिग और चैनल
पर स्टोरी कैसे बेची जाए हालांकि अमिताभ इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन सभी
के अपने अपने काम हैं। और स्टोरी पर सभी कुछ निर्भर है। अगर स्टोरी होगी तो सभी के
चूल्हें जलेंगे। उनकी इस बात ने मेरे मन में एक नयी ताजगी भर दी। मैं औऱ माया ऑफिस
से अपने गैजेट जिसमें बैग कैमरा, बटन और दो फोन जिसमें एक मीटिंग के दौरान
हमेशा कॉलिग पर रहता है। जो प्रदीप से से कनेक्ट रहता है। ताकि अंदर की हर जानकारी
प्रदीप जी को रहे। इस फोन को हम अपने जुराब में छिपा कर रखते थे। ताकि किसी की इस
पर नजर ना जाए। हम साइकोरियन के ऑफिस में ऑटो से गए। साइकोरियन में कुछ समय के बाद
मुझे अंदर बुलाया गया। जहां सुमिता एक सधे हुए अंदाज में आयी एक अधेड़ उम्र की
महिला जिसने सुंदर कॉटन की साड़ी बांधी हुई थी। नीले रंग की साड़ी बांधे हाथों में
लैदर की फाइल। बड़े सलीके से सुमिता मेरे सामने बैठी। मैंने भी अपना बैग सलीके से
कांच की लंबी टेबल पर इस अंदाज में रखा जैसे बैग में लाखों रुपया बड़ी ही अहतीआत
से रखे गए हो। मैंने अपना इंट्रो डक्शन देने के बाद सलीके से कैमरा ऑन किया। औऱ
रुपयों का बंडल टेबल पर रख दिया। ताकि सुमिता का ध्यान रुपये पर ज्यादा और मेरे
बैग पर कम जाए। इसके बाद मैंने कैमरा चल रहा है या नहीं ये जांचने के लिए बैग खोला
और उसमें से फोटो और रश्मि का रिज्यूम निकाला। जिसे देखकर सुमिता को ये आभास हो
गया की मैं आज रजिस्ट्रेशन करवाने आया हूं। सुमिता ने अपनी बात सामने रखते हुए कहा
की क्या सिर्फ आईएएस लड़के ही चाहिए या फिर अच्छे परिवार के बिजनेस मैन या
इंजिनियर डाक्टर भी चल जाएंगे। मैंने पहले ही झटके में ना कह दिया जिसके बाद
सुमिता थोड़ी परेशान हो गयी। उसे लगा जैसे उसका क्लाइंट उसके हाथ से निकल जाएगा।
सुमिता ने आगे कहा। देखिए रवि कपूर जी हमारे पास आईएएस लड़के तो हैं। लेकिन ये आप
भी जानते हैं और हम भी की हर रोज आईएएस लड़के नहीं आते और कुंवारे भी कम ही मिलते
हैं। इसपर मैं सुमिता से बोला लेकिन मैडम हम इसी लिए तो आपको पैसा दे रहे हैं। और
जब हमें घास की खानी होगी तो जंगल जाएंगे आपकी दुकान पर क्यों आएंगे। ये जवाब
सुनकर सुमिता थोड़ी परेशान हो गयी औऱ अपनी कुर्सी से तपाक से उठी और मीटिग रूम से
बाहर निकल गयी। मुझे लगा की शायद कुछ गड़बड़ हो गयी। कुछ ही समय के बाद वो अपने
साथ एक व्यक्ति को अंदर लाई। जो 50-55 की उम्र का था। सुमिता ने पहले अंदर आते ही
मुझसे माफी मांगी और कहा की सॉरी मैं एकदम चली गयी। असल में सर को मैं मीटिंग में
लाना भूल गयी थी। इन सज्जन ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया और अपना इंट्रोडक्स देते हुए
बोला माई नेम इज नवीन अग्रवाल। और मैं आईएएस लड़कों की डील करता हूं। मैंने हाथ
मिलाया और पैर पर पैर रखकर लैदर की कुर्सी में धंसता चला गया। उसके बाद बड़े ही
सलीके से मैंने सुमिता की ओर देखा सुमिता को देखकर मुझे अंदाजा हो गया की वो नवीन
अग्रवाल को क्यों लाई है। और वो क्यों नवीन से मुझे मिलवाना भूल गयी। नवीन ने
बातचीत को आगे बढ़ाया औऱ कहा की आप के साथ कोई और भी है। औऱ शायद मुझे इस समय इसी
सवाल की आवश्यकता थी। मैंने कहा हां। मेरे ड्राइवर और मेरे दोस्त माया मेरे साथ
हैं। माया रिसेप्शन पर हैं औऱ ड्राइवर बाहर ऑडी में (जो थी ही नहीं)। नवीन ने मेरा ये अंदाज देखा तो वो थोड़ा
ढीला पड़ा जिसके बाद उसने मेरा बैग देखा और पूछा इस बैग में क्या लाए थे। मैंने
बिल्कुल बिंदास अंदाज में कहा। आप रिश्ता करवाते हैं या जासूसी। इसपर नवीन ने बेहद
बेशर्मी से कहा आप जैसा समझ लें। जिसके बाद मैंने भी बैग नवीन के सामने बैग सरका
दिया औऱ कहा तो लीजिए तलाशी।
इतना सुनकर नवीन थोड़ा सकपका गया। उसने कहा
नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन आपकी पर्सनल्टी के हिसाब से ये बैग आपको शूट
नहीं करता। आप कोई ठीक सा बैग ले लो। इसपर मैंने कहा भाई साहब अच्छा बैग चोरों को
आकर्षित करता है। गंदे से बैग पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं जाता लोग सोचते हैं
सब्जी बगैरहा लेकर जा रहा होगा। खैर, सर आपको क्या सिर्फ आईएएस दुल्हा ही चाहिए या
फिर कोई बड़ा अफसर भी चल जाएगा। इसपर मैंने कहा नवीन जी मैं सुमिता को बता चुका
हूं की हमें सिर्फ आईएएस लड़का ही चाहिए। इससे कम कुछ भी नहीं। पीसीएस या आईपीएस
भी नहीं। नहीं इन दोनों पर विचार किया जा सकता है। आप लड़कों के प्रोफाइल तो
दीजिए। इसके बाद सुमिता ने नवीन की ओऱ देखा औऱ कहा ठीक है। आप अपना रजिस्ट्रेशन
करवा दीजिए। उसके बाद हम आपको दुल्हों की जानकारी देते जाएंगे। हम आपको प्रोफाइल
भेजेंगे। जिसके बाद आप अपनी मर्जी से चुनाव करके हमें बता देना हम मीटिंग्स सेट्स
करवा देंगे। इसके बाद....मैंने पूछा लेन देन और दहेज की बात आप करेंगे या हम
करेंगे। इसपर सुमिता ने कहा। देखिए हम आपका बजट उन्हें बता देंगे जो आप हमें
बताएंगे। फिर आप दोनों पार्टियां आपस में बात कर लेना। ठीक है। मैने कहा औऱ फिर
मैंने रजिस्ट्रेशन करवा लिया। ये सारी बातचीत कैमरे पर कैद हुई। रजिस्ट्रेशन होने
के बाद मैं बाहर आया और मुझे बाहर तक सुमिता और नवीन छोड़ने आए। बाहर आकार मैंने
माया से सुमिता और नवीन का इंट्रोडक्शन करवाया। जिसके बाद हम बाहर निकल आए और ऑफिस
आ गए।
अध्याय तीन
साइकोरियन की मीटिंग के बाद....हम कई दिन तक
ऑफिस में ही तैयारी करते रहे। माया कभी लड़के वाला बनता कभी लड़की वाला और ठीक इसी
तरह से मैं भी कभी लड़का वाला बनता तो कभी लड़की वाला। और प्रदीप जी हमसे सवाल
जवाब करते। हम घंटों इसी बहस में रहते और तरह तरह से एक्टिंग करते। कैमरे की प्रैक्टिस
करते। इस बीच प्रदीप और मेरे बीच में अच्छी दोस्ती हो गयी क्योंकि वो जेएनयू में
रहते थे। औऱ उन दिनों में महरौली में रह रहा था। इसलिए मैं घर जाते वक्त औऱ आते
वक्त उन्हें घर से लेता और छोड़ता था। और शाम को हम लगभग रोग गम गलक करते ही थे। प्रदीप
अपने दिल की बात कह चुके थे औऱ हम भी धीरे धीरे अच्छे दोस्त बनते जा रहे थे। हमारे
बीच में कई घंटे लगातार बात होती थी। हम जेएनयू में बैठकर स्टोरी पर घंटों चर्चा
करते रहते थे। हमारी स्टोरी आगे बढ़ रही थी लेकिन अमिताभ को स्टोरी की स्पीड से
खुशी नहीं थी वो चाहते थे कि स्टोरी जल्द हो। हम भी यही चाहते थे लेकिन कहते हैं
समय से पहले औऱ किस्मत से ज्यादा कुछ मिलता नहीं। मैं साइकोरियन में सुमिता से मिल
आया था। स्टोरी में ठहराव आ गया था। अमिताभ आएं दिन हमसे अपडेट मांग रहे थे। इसी
बीच हमने जो अखबार के 15 आईएएस दुल्हें सिलेक्ट किए थे। उन्हें लाइनअप करना शुरु किया। मैं अगले
दिन सुबह समय से दफ्तर पहुंचा औऱ सभी को फोन करना शुरु किया। एक एक करके हमने यानी
मैंने औऱ माया ने 5 दुल्हों के परिवार से लाइन अप किया। हमने सभी से क्योंकि मिलने का सामय
मांगा था इसलिए उन्होंने हमें समय दे दिया। पहला दुल्हा हमारा हाथरस में था जिनके
पिता जज थे। और हाथरस में ही पोस्टिड थे। दो बिहार के थे और दो यूपी के लखनऊ के
थे। हमने पांचों लड़कों के परिवार के लोगों से समय फीक्सड किया। हाथरस जाने की हम लोगों ने वाय रोड योजना बनाई
थी। और आगे का सफर ट्रेन से करना था। हाथरस से आगरा और आगरा से आगे हम ट्रेन से
जाने वाले थे। हमारी योजना थी की हम एक एक करके सभी पांचों लड़कों के परिवार से
मिलने के बाद साइकोरियन पर फोकस करेंगे। क्योंकि यहां पर हमने पैसे जमा करवाये थे।
और एक स्टोरी के साथ दूसरी स्टोरी को भी एक एंगल देना था की किस तरह से मैरिज
ब्यूरों चलाने वाले दहेज प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं और कैसे आज का समाज इन मौरिज
ब्यूरो के माध्यम से दहेज प्रथा को बढ़ावा दे रहा है। हम लगातार इस बात पर भी फोकस
कर रहे थे की हमारी स्टोरी कहीं भटक ना जाए जिसको लेकर अमिताभ भी अब परेशान थे। उन्हें
हमने जब बताया की सर पांच लड़कों के परिवार के लोगों से हमने मीटिंग फीक्सड कर ली
है। जिसके बात अमिताभ ने हमसे कहा की ठीक है लेकिन हम कल ऑफिस में पहले आप सभी से
मिलेंगे औऱ पहले स्टोरी के एंगल पर बात करेंगे। स्टोरी के एंगल पर बात करने की
लाइन पर माया को थोड़ा झटका लगा। और उन्होंने मुझसे बड़ी ही सादगी से पूछा रवि
हमारी स्टोरी कहीं भटक तो नहीं रही है। मैंने कहा नहीं अभी तक तो नहीं लेकिन शायद
अमिताभ स्टोरी की लाइन से खुश ना हो इसलिए वो मिलना चाहते हो। खैर दूसरे दिन
अमिताभ ऑफिस पहुंचे। और आज वो अपने अलग ही अंदाज में ऑफिस आए। डार्क ब्ल्यू कुर्ता
सफेद पायजामा और मुंह में पान अमिताभ को अलग ही लुक दे रहा था। सभी से उन्होने हाय
हैलो कहा और अपनी कुर्सी में धंस गए। मुझे इशारा करके कहा की अपनी जगह बैठों मेरे
साथ भूषण औऱ प्रदीप ने भी अपनी अपनी जगह ले ली। प्रदीप जी ने सिगरेट निकाली और एक
लंबा कश लगाकर अमिताभ की ओर बढ़ा दी जिसके बाद अमिताभ ने हाथ में सिगरेट पकड़ी औऱ
अपनी कुर्सी से उठकर बरामदे का रूख कर लिया। मैं और भूषण अमिताभ को चुपचाप देख रहे
थे औऱ इंतजार कर रहे थे कि वो कब हम से अपडेट पूछेंगे। हम इंतजार करते रहे। और अमिताभ
पूरी सिगरेट खींच गए। इसी बीच कुछ फोन भी आए जिनका जवाब अमिताभ ने बेहद जल्दी में
दिया। जो ये साबित करने के लिए काफी थे कि अमिताभ को भी किसी चीज की जल्दी है।
सिगरेट खत्म हुई औऱ अमिताभ कमरे के अंदर दाखिल हुए। कमरे के अंदर दाखिल होते ही
अमिताभ ने मुझसे पूछा की रवि आपकी बाइफ की तबीयत अब कैसी है। मैंने कहा सर ठीक है
समय के साथ और चंगी हो जाएगी। अमिताभ ने फिर एक बार फिर अपनी कुर्सी संभाली और
प्रदीप जी की ओर मुखातिब होते हुए बोले प्रदीप जी पांच लोगों को कबर करने में
कितना पैसा खर्च हो जाएगा। प्रदीप शायद इसी बात का इंतजार कर रहे थे। प्रदीप ने
कहा सर देखिए अगर हाथरस वाय रोड कार से जाना है तो तीन हजार कार का लगा लो वाकी
वहां रहना खाना तो हाथरस के लिए पांच मान लो बाकी बिहार औऱ लखनऊ है तो 25 से 30 के बीच में मान लीजिए। ठीक है प्रदीप जी
पहली किस्त के रूप में आप 15 हजार रुपये माया को दे दीजिए उसके बाद जरूरत के हिसाब
से आप पैसे देते रहिएगा औऱ कुछ। प्रदीप जी ने कहा। नहीं इसके अलावा औऱ कुछ क्या
लगना है। कैमरा टेप औऱ लैपटॉप तो दे ही दिया है। डाटा कार्ड भी दे ही दिया है। कुछ
औऱ डिमांड है तो मैं पूछ ही लूंगा। ठीक है। आप कब की योजना बना रहे हैं। अमिताभ ने
हमसे पूछा हमने कहा सर अगले महीने के पहले सप्ताह में हम निकल जाएंगे। अमिताभ ने
कहा ठीक है। लेकिन आप इन परिवार वालों से किस रूप में मिलने वाले हैं। मैंने कहा
सर हम साइकोरियन की ही तरह एजेंट बनकर जाने वाले हैं। हमने कहा है कि हम मैरिज
ब्यूरो चलाते हैं। औऱ आपके लड़कों के लिए बेहतर रिश्ता लाएं हैं। इस पर अमिताभ ने
कहा की आपकी स्टोरी पर ये परिवार वाले भरोसा करेंगे। जिसपर मैंने कहा सर आप चिंता
ना करो हम पहले ही लड़की का फोटो और रिज्यूम मेल कर चुके हैं। पहले उन्होंने अपना
इंटरेस्ट दिखाया है। इसके बाद ही हम आगे बढ़ रहे हैं। इसपर अमिताभ बोले फिर ठीक
है। क्योंकि अगर वो बुला रहे हैं तो फिर तो मीटिंग हो ही जाएगी। तो आप अब एजेंट
बनकर इनसे मिलेंगे। हम दोनों ने कहा जी सर। ठीक है। तो मीटिंग ओवर। इसके बाद
अमिताभ कमरे से निकल गए। और जाते जाते मेरी ओर मुखातिब होते हुए बोले। रवि
साइकोरियन पर हमने स्टोरी नहीं करनी है। हमने स्टोरी सिर्फ आईएएस अफसरों पर करनी
है। साइकोरियन अगर कुछ बड़ा कर रहा है तो स्टोरी है। वरना वो तो सर्विस प्रोवाइडर
है। दलाल की भूमिका उसकी तब तय होगी। जब वो लड़की वालों पर दवाब डाले या फिर लड़के
वालों का फेबर करे। मैं अमिताभ की बात समझ चुका था। अमिताभ ये कतई नहीं चाहते थे
कि स्टोरी में किसी भी तरह का भटकाव आए या फिर हम स्टोरी से भटक जाए।
हम प्रोग्राम तय कर चुके थे। माया भूषण ने
ट्रेन की टिकट बुक करवा ली थी। हाथरस जाने के लिए गाड़ी बुक हो गयी थी। हमारे साथ
हमारे एक पुराने ड्राइवर जिनका नाम जगतार था वो हमारे साथ जाने वाले थे। जगतार
क्योंकि कई साल से हमारे साथ काम कर रहा था औऱ वो भी जानता था कि हम किस तरह का
काम करते हैं। वो जब भी हमारे साथ जाता था तो बेहद खुश होता था औऱ हमेशा हम से
मिलकर कहता था सर जी आप तो समाज का कचरा साफ कर रहे हो। असली जेम्स बॉड तो आप ही
हो। बाकी तो बस खबर देते हैं। आप तो समाज के बुरे लोगों को नंगा कर देते हो। हम
उसकी ये बात जब जब सुनते थे तब तब लगता था चलो यार कोई तो है जो हमारे काम की
तारीफ करता है। नहीं तो सभी लोग स्टिंग को पता नहीं क्या क्या कहते हैं। खैर जगतार
समय से आ गया सुबह पांच बजे उसने मुझे तारा अपार्टमेंट से उठाया। मैंने माया भूषण
को ग्रैटर कैलाश उसके घर से लिया। औऱ हम हाथरस की ओर चल दिए।
हाथरस में पहला दिन
हाथरस हम तकरीबन दोपहर में पहुंच गए थे। वहां
पहुंच कर हम जज साहब से बात कर चुके थे। जज साहब ने कहा की आज उन्हें कहीं जाना
है। औऱ शाम को 6 बजे के बाद ही मुलाकात होगी। हमने कहा ठीक है। हम भी अभी पहुंचे हैं इस
बीच हम थोड़ा आराम कर लेंगे औऱ शाम आपकी कोठी पर पहुंच जाएंगे। हम दिन भर सोते रहे
औऱ अपने कैमरे चार्ज करते रहे। शाम 6 बजे हम हाथरस के सिविल लाइन एरिया में पहुंचे जहां जज
साहब की सरकारी कोठी थी। हमारी तलाशी ली गयी। और कहा गया की बैग बाहर ही रख दो।
हमने बैग बाहर रख दिया। औऱ बगैर कैमरे के ही अंदर चले गए। अंदर जाने पर हमारा जज
साहब ने बड़ी ही गर्म जोशी से स्वागत किया। औऱ बैठने के लिए कहा। बैठने से पहले
मैंने कहा सर अगर आपको एतराज ना हो तो क्या हम अपना बैग अंदर ले आए गार्ड ने बैग
बाहर ही रखवा लिया। जिसके बाद जज साहब ने तपाक से अपने गार्ड को फटकार लगाई और कहा
गार्ड आपने साहब का बैग बाहर क्यों रखवाया। बैग अंदर दीजिए। गार्ड बैग अंदर लाया
औऱ मेरे और माया की जान में जान आयी। माया ने बड़ी ही होशियारी से कैमरा ऑन किया
औऱ बैग से लड़की की फोटो मेरे हाथों में दी दी। जज साहब हमसे तकरीबन छह या आठ फीट
की दूरी पर थे। और ठीक हमारे सामने थे। मैंने बातचीत का दौर जारी किया ही था। की
जज साहब ने मुझे रोक दिया और कहा भाई जल्दी किस बात की है। पहले कुछ चाय नाश्ता कर
लो। जिसके बाद जज साहब की मिसेस हाथ में ट्रे लेकर आई जिसमें कई कटोरियों में मटर
और आलू की चाट थी और चाय थी। हमने एक एक कटोरी ली जज साहब के साथ उनकी मिसेस ने भी
अपनी अपनी कटोरी ले ली। और बैठते ही जज
साहब की मिसेस ने कहा भाई साहब आपने जो लड़की की फोटो भेजी है अगर वो ही लड़की है
तो लड़की को बहुत सुंदर है। हमे लड़की तो पसंद है। मैंने मन ही मन में कहा हां
मैडम जब लड़की फिल्मों की हिरोईन हो तो पसंद तो आ ही जाएगी। क्योंकि मैंने जो फोटो
जज साहब को भेजी थी वो एक हिरोईन की थी जिसकी फिल्में पिट रही थी और उन दिनों वो
टीवी सीरियल पर काम कर रही थी। माया ने भी मेरी तरफ देखा और अपनी चाट पर ध्यान
देते हुए कहा जी हम तो रिश्ते ऐसे ही करवाते हैं जो बेहद हाई क्लास के हो। और फिर
माया साहब अपनी इंग्लिश हिंदी की एक करने में लग गए। जिसे जज साहब भी काफी देर तक
सुनते रहे। औऱ चाट खाते रहे। इस बीच जज साहब ने कहा की देखों लड़की तो पसंद है।
लेकिन इसके परिवार के बारे में आपने कुछ ज्यादा नहीं लिखा है। इसका गौत्र इसके
परिवार के बारे में कहां के रहने वाले हैं। आदि इत्यादी हमने क्योंकि इन सवालों की
पहले ही तैयारी कर ली थी तो हमने सभी जवाब ठीक ठीक दे दिए और बता दिया की लड़की
दिल्ली के बंसत विहार इलाके की है। हम चाय की चुस्की के साथ ही अपनी बात पर आ रहे
थे। इसी बीच हमने पूछा की सर आप शादी कैसी चाहते हैं। इसपर जज साहब की बीबी ने
हमें शादी का ब्यौरा दे दिया उन्होंने साफ कहा शादी उनकी हैसियत के हिसाब से होनी
चाहिए। जज साहब बड़े ही ध्यान से हमारी बाते सुन रहे थे और बीच बीच में बैग की ओर
देख रहे थे। जिसके बाद हमारे पिछवाड़े में भी पसीना आना शुरु हो गया था। औऱ मेरे
दिल की धड़कन मुझे साफ सुनाई दे रही थी। अप्रैल का महीना था औऱ जज साहब के घर में
एसी भी चल रहा था लेकिन मेरे माथे पर पसीना आ रहा था। औऱ इससे भी बुरा हाल भूषण का
था क्योंकि दरवाजे के दूसरी ओर खड़े दो गन मैन लगातार भूषण को देख रहे थे। भूषण ने
इसी बीच बैग को टेबल से नीचे अपने पैरों के पास रख लिया। कटोरी टेबल पर रख दी।
मैंने भी कटोरी टेवल पर रखी औऱ हम दोनों जज साहब के चाय पीने के अंदाज को देख रहे
थे। जज साहब ने कहा चाय लीजिए। हमने कहा नहीं सर हम चाय नहीं पीते। जज साहब ने कहा
ठीक है ठंडा पी लीजिए। हम ने कहा ठीक है
साहब ठंडा पी लेते हैं। जज साहब ने अपने नौकर को आवाज लगाई और हमारे लिए ठंडा
मंगाया गया। हमने अपना अपना गिलास उठाया एक एक घूंट ठंडा पीया औऱ फिर अपनी बातों
को आगे बढ़ाया। इस बीच जज साहब को पता नहीं क्या हुआ क्या नहीं। जज साहब एक दम से
मुझसे बोले की रवि साहब आपकी पर्सनल्टी एजेंट वाली नहीं है। आपकी बात चीत का अंदाज
अफसर वाला है। बातचीत से आप सीबीआई के आदमी लगते हैं। इतना सुनते ही मेरी दिल की
धड़कन और तेज हो गयी औऱ मेरा मुंह खुल गया। लेकिन मैंने फौरन ही बात संभाली और कहा
सर हम इतने लोगों से मिलते हैं तो पर्सनल्टी तो बदल ही जाती है। इस बीच माया ने भी
अपनी बात रखी औऱ कहा सर हम आप लोगों से ही सीखते हैं। हमारा काम ही ऐसा है की अगर
हम ठीक से बात नहीं करेंगे तो सर आगे आप दोनों परिवार की बात आगे कैसे बढ़ेगी।
इसपर जज साहब ने हल्की हंसी के साथ कहा। ठीक कहा आपने। खैर आप हमे पहले लड़की के
परिवार से मिलवाइये और अपना हिसाब हमे बताइये उसके बाद ही हम आगे की बात करेंगे।
लड़की हमे पसंद है। अगली मीटिंग में हम परिवार के लोगों मिलना चाहेंगे। जज साहब ने
अपना फैसला सुना दिया था। जिसके बाद हमारे सामने बातचीत के सभी दरवाजे बंद थे।
लेकिन हम भी हिम्मत नहीं हराने वालों मे से थे। हमने जज साहब की मिसेस का रूख किया
क्योंकि हमें ये अंदाजा हो गया था कि जज साहेब की मिसेस ही है जो हमारी बातों में
आ सकती है। हमने धीरे से पूछा मैडम लड़की आपको पसंद है। हम परिवार से तो आपको
मिलवा ही देंगे। लेकिन शादी आप को किस रेंज में करनी है। मैडम ने तपाक से कहा शादी
तो हम अपने बेटे की अपनी हैसियत से ही करेंगे। ये बात सुनकर मेरी और भूषण की जान
में जान आयी क्योंकि इस बात के बाद माहौल अब हमारे फेबर में होने वाला था। लेकिन
जज साहब का अब आगे बात करने का हमसे कोई मूढ़ नहीं था। उन्होंने हमसे कहा की यार
आज ही आप सभी कुछ तय कर लोगे या हमारे लिए भी कुछ छोड़ेगे। जज साहब की बात सुनकर
हम दोनों चुप हो गए क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि जज साहब को गुस्सा आए। हमने कहा
ठीक है सर हम लड़की के परिवार से बात कर लेते हैं और आपकी मीटिंग करवा देते हैं।
जज साहब ने कहा ठीक है। आप पहले बात कर लो औऱ उसके बाद हम मीटिंग कर लेंगे। जिसके
बाद हम जज साहब के कमरे से बाहर आ गए।
जज साहब के घर के बाहर
हम तेजी से जज साहब के घर के बाहर आए अपनी
टैक्सी में बैठे औऱ जागतार को कहा की होटल चलो। जगतार ने भी अपनी गाड़ी में गियर
लगाए औऱ हम होटल की ओऱ चल दिए। रास्ते में कुछ दुर तक कार में शांति रही औऱ फिर
माया ने मेरी ओर हाथ आगे बढ़ा.या औऱ कहा गुड रवि मजा आ गया। मेरी समझ में नहीं आया
की क्या हुआ क्योंकि मैं तो मीटिंग को नेगेटिव समझ रहा था। मैंन पूछा यार मीटिंग
तो अच्छी हुई नहीं मजा कहां से आ गया। इसपर भूषण बोला यार जज साहब ने कहा ने की
परिवार वालों से मिलेंगे औऱ उनकी मिसेस ने कहा शादी हैसियत के हिसाब से ही होगी। यहीं
खबर बनेगी। मुझे भी इतना सुनकर थोड़ी तसल्ली हुई और लगा की शायद स्टोरी आगे बढ़
रही है।
होटल से अमिताभ से फोन पर
बात और रम्म का किस्सा
हम होटल आ गए थे। इस बीच जगतार ने हमसे कहा
बाबू जी लगता है आपका काम बन गया। माया ने जवाब दिया। पा जी उतना तो नहीं बना
जितना सोच रहे थे। लेकिन हां काम की शुरुआत जरूर हो गयी है। इतना सुनकर जगतार ने
कहा। चलो बाऊ जी काम की शुरुआत तो हो ही गयी औऱ रब्ब दी मर्जी रही तो आगे भी काम
बनेगा। मैं जगतार की बात सुनकर खुश था कि चलो हमारे साथ एक ऐसा आदमी है जो हमे दुआ
भी देता है। हम धीरे धीरे होटल की ओर बढ़ रहे थे। और इस बीच माया फुटेज चैक कर रहे
थे। और हर टेप के बाद एक टॉफी निकलते अपने मुंह में डालते और मेरी तरफ चश्में के
पीछे देखकर अगूंठा उठाकर कहते अच्छा काम हुआ है। लेकिन मेरा माया पर ध्यान नहीं था
क्योंकि मुझे पता था की इस बाइट (जज साहब की मीटिंग के दौरान उनकी पत्नी की कही
बात की हम शादी अपनी हैसियत की चाहते हैं) का कोई महत्व नहीं था। क्योंकि हर आदमी
अपनी हैसियत से शादी करना चाहता है औऱ करवाना चाहता है। ये समाज का दस्तूर है।
माया शायद इसलिए भी इस बात को ज्यादा अहमियत दे रहे थे कि वो मेरा हौंसला पस्त
नहीं करना चाहते थे। इसी बीच जगतार ने कहा बाऊ जी शाम हो गयी। खाना किथे खाणा है।
मैंने कहा यार होटल में ही कुछ देख लेंगे। इसपर माया ने कहा नहीं यार होटल में
खाना महंगा मिलेगा। मैंने कहा यार बाहर कहां से मंगाओंगे होटल वाला की कुछ ला
देगा। माया ने कहा चलो ठीक है। होटल में ही खा लेंगे। इसके बाद मैंने कहा माया
थोड़ी रम्म हो जाए। माया ने अपने पुराने अंदाज में कहा अरे साला मैं तो भूल ही गया
कि तुझे शाम की दवा चाहिए। चल रम्म लाते हैं। जिसके बाद मैंने जगतार से कहा पा जी
रम्म दिला दो। इसपर जगतार ने कहा अभी लो बाऊ जी। हम रम्म खरीद चुके थे। और होटल
पहुंच चुके थे। मैंने अपने मंहगे कपड़े उतार दिए थे जो मैं अक्सर शूट के दौरान
पहनता था। वो मेरे सबसे अच्छे कपड़े होते थे। जिन्हें में बड़े ही सलीके से शूट
होने के बाद रख देता था। जिसमें जूते जुराब और मेरा बगैर फ्रेम का चश्मा भी होता
था। जिन्हें उतारते हुए मैं हमेशा कहता था चलो रवि बाबू आ जाओं अपनी पुरानी औकात
में और असली रूप में जिसे सुनकर माया मेरी फटी हुई टीटी की बनियान को देखकर कहता
था कपूर साहब ये बनियान तो बदल लो किसी दिन शर्ट में से छेद दिख गया तो हमारी तो
लंका लग जाएगी। और मैं कहता था ये छेद नहीं हैं मेरी हालत के गवाह है। जिसके बाद
एक ही कमरे में एक ही बेड पर मैं माया औऱ हमारा ड्राइवर जगतार ने कब्जा जमाना शुरु
कर दिया। होटल के बेटर को पानी लाने के लिए कह दिया गया। साथ ही सलाद का आर्डर भी
दे दिया गया। इस बीच माया ने अमिताभ को फोन लगा दिया। माया ने अमिताभ से तकरीबन
आधा घंटा बात की जिसकी जानकारी मुझे आज तक नहीं है। इस बीच मैंने रम्म के दो पैक
लगा लिए और जिसके बाद माया ने मुझसे कहा की अमिताभ से बात करोगे मैंने कहा नहीं
मैं सुबह बात कर लूंगा। माया ने कहा ठीक है औऱ फोन काट दिया। जिसके बाद माया ने
अपना पैग उठाया औऱ धीरे से गटक लिया। कुछ देर के बाद जब माया को थोड़ा से रम्म का
शुरुर हुआ तो माया ने कहा यार रवि ये खबर ठीक तरह से हो जाएगी ना। मैंने कहा बॉस
होगी क्यों नहीं बाकी ईश्वर की मर्जी। इस पर माया ने कहा यार वो तो ठीक है। लेकिन, DIG पर काफी दबाव है। तुझे तो पता ही है कि जमशेद
की खबर के बाद से चैनल में कितना हो हल्ला हो रहा है। कोई बाहर से खबर लेना नहीं
चाह रहा है। सभी को लगता है की स्टिंग रिपोर्टर ठीक से काम नहीं करते हैं। वो
खबरों को तोड़ते मरोड़ते हैं। इसपर मैंने कहा यार भूषण हमारा काम, काम को ठीक तरह से करना है। बाकी ईश्वर पर
छोड़ देना चाहिए। औऱ जमशेद खान (बेनकाब का रिपोर्टर जो अनिरूद्ध बहल की
ऑर्गनाइजेशन है उसके लिए काम करता था। औऱ पहले DIG के साथ ही काम करता था। ) की अपना स्टाइल है
उसका काम अच्छा है इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन चैनल उसे कैसे दिखाता है इसपर भी
तो बहुत सी बाते डिपेंड करती है। इस पर माया ने कहा हां शायद आप ठीक कह रहे हैं।
लेकिन अमिताभ इस स्टोरी को लेकर ज्यादा खुश नहीं है। उसे लगता है उसका पैसा खराब
हो रहा है। इस पर मैं बोला बॉस देखो अगर उन्हें स्टोरी पर शक है तो अभी कुछ बिगड़ा
नहीं है। स्टोरी यहीं रोकी जा सकती है। इसपर माया ने कहा यार तू रम्म पीकर बहक रहा
है। मैं या अमिताभ स्टोरी रोकने के लिए कहां कुछ कह रहे हैं। हम तो सिर्फ ये कह
रहे हैं जैसा हम सोच रहे हैं। वैसी ये खबर नहीं होगी। जिसपर मैंने कहा यार स्टोरी
अभी शुरु भी नहीं हुई है। हमने सिर्फ एक मीटिग की है। औऱ अभी से आप लोगों की फटने
लगी है। दो चार मीटिंग कर लेते हैं उसके बाद सोचेगे। माया ने कहा ठीक है मेरे भाई
अब दिमाग मत चाट और खाना मंगवा ले। इस पर दूसरे कोने में चुपचाप बैठे जगतार ने कहा
बाबू जी आपका खत्म हो गया हो तो अस्सी भी कुछ दस्सा। इसपर माया ने कहा आप भी पा जी
हमारी आज ले ही लो....अमिताभ तो हमारी ले ही रहा है। इस पर जगतार ने कहा। पा जी
लेण देण का तो मैंनू अंदाजा नहीं लेकिन रवि पा जी ठीक ही गल्ला कर रहे हैं। एक बार
दो चार मीटिंग हो जाण दो फिर देख लियांगे। जगतार की बात सुनकर माया चुप हो गए और
फिर एक बार फिर अपना फोन चैक किया शायद देख रहे थे कि कोई मैसेज तो नहीं आया। और
फिर धीरे से अपना चश्मा उतारा और तकीए को बगल में देकर धीरे से बोले। ठीक है यार
साला वैसे भी हमारे पास कोई बड़ी लीड है नहीं। (DIG पॉलिटिकल स्टिंग करने के लिए मशहूर रहा है और
लीड होती है कोई ऐसा आदमी जो खबर दे रहा हो या खबर करवाना चाहता हो) साला अमर सिंह
भी कोई खबर करवाता है तो सीधा ही स्टार से अपनी मां चुदवाता है। अमर सिंह की बात
सुनकर मेरे कान खड़े हुए। मैंने पूछा दादा क्या कहा आपने अमर सिंह मतलब। इस पर
माया ने कहा छोड़ यार ये तो होता ही है। साला जब मैं तहलका में था तो आए दिन वो
रिपोर्टर्स से मिलता था। वो लीड भी देता था। लेकिन अब साला वो छोटे रिपोर्टर्स से
मिलता नहीं है। अब उसके हाथ में बड़ी मछलियां हैं। वो उनसे ही मशविरा करता है और
साली वहीं मछली उसकी गांड मारती हैं। आज माया पूरे रंग में थे। मैंने पूछा यार
माया आप तहलका क्यों छोड़कर आए। ये सवाल सुनकर जैसे मैंने माया की दुखती रग पर हाथ
रख दिया था। माया ने पहले कहा पहले मेरा एक पैग और बनाओं फिर बताऊंगा। मैंने माया
का एक हल्का पैग बनाया क्योंकि वो शराब नहीं पीते थे। हां बीयर की कोई लिमिट नहीं
थी। और मैं औऱ प्रदीप जी हमेशा उन्हें पीने के दौरान कहा करते थे। भूषण जी आपने
गोवा का नाम डूबो दिया। इसपर भूषण कहते थे। साला पीने से ही क्या गोवा का नाम
होगा। काम करने से नहीं होगा। इसपर हम हंसते और कहते साला खोजी पत्रकार तो ताउम्र
अपनी ऐसी तैसी करवाता है और खबर का सारा श्रेय साले ये एंकर (जो खबर पढ़ते हैं औऱ
जिनका एंकर भी कॉपी एडिटर ही लिखता है) ले जाते हैं जिन्हें गाल बजाने के अलावा
कोई समझ नहीं होती। अब साला दीपक को ही देखों ना शक्ल ना सूरत ना ही बोलने की तमीज
लेकिन बीजेपी की दलाली करता रहा है। तो चल रहा है। साले ने आज तक कोई अच्छी खबर की
है हां गाल बजाकर लोगों को बेवकूफ तो बनाया है। मादरचोद अपने आप को पत्रकार कहता
है और काम क्या करता है हम सभी जानते हैं। नहीं तो ये साला अपने जीजा की आजतक में
(सुरेन्द्र प्रताप सिंह) की लात खाया करता था। इसपर मैंने कहा बॉस लगता है आपको
चढ़ गयी है। इसपर माया ने कहा अबे साले नकली कपूर मुझे पता है मैंने कितनी पी है।
लेकिन साला ये दिल जब रोता है ना तो सच कहूं बहुत रोता है। पत्रकारिता करने वाले
साले हम ये सोचते हैं कि कैसे कम से कम पैसा खर्च करके अच्छी खबर करें। और साले ये
कुछ लोग मीडिया की मां बहन एक करने पर लगे रहते हैं औऱ हैरानी इस बात की है कि
इनका सालों का कुछ होता भी कुछ नहीं। रवि चल छोड़ यार अगर बात निकलेगी तो पता नहीं
कहां तक जाएगी आगे सही। बस ये समझ ले की मीडिया में ईमानदार आदमी की जरूरत नहीं
है। और तेरे जैसे चुतिया आदमी की तो बिल्कुल जरूरत नहीं है जो खबर के पीछे भागता
है। मेरी बात मान और कुछ और धंधा कर ले। तू साले किसी दिन किसी खबर को करते करते
ही निपट लेगा। इतना सुनकर मुझे पहले हंसी आयी औऱ फिर मैं कमरे से बाहर आ गया। मैं
कमरे के बरामदे से होता हुआ होटल मैनेजर के पास पहुंचा और टेबल थपथपाते हुए बोला
की खाना मिल जाएगा क्या। इसपर मैनेजर बोला हां मिल जाएगा। बेटर आकर आर्डर ले लेगा।
मैं वापस कमरे में पहुंचा। अब भूषण अपने फोन पर बिजी थे। मैंने कहा बेटर आ रहा है
क्या खाना है। भूषण बोले जो खाना है वो ऑर्डर कर दो मेरा मन नहीं है। इसपर हमने
कहा सर कुछ तो खाना होगा। जिसपर वो बोले अच्छा मेरे लिए दाल मंगवा दो। जिसके बाद
हमने खाने का ऑर्डर दिया और खाने का इंतजार करने लगे।
हाथरस में पंडित जी की पूड़ी सब्जी का नाश्ता औऱ लड़की की हाइट
हाथरस की सुबह हमारे लिए अनूठी थी। क्योंकि
रात जो भी हुआ उसकी धुंधली याद हमारे दिमाग मैं मौजूद थी। हमने अपने कपड़े बैग में
रखे और सुबह उठकर तकरीबन 10 बजे जज साहब को फोन किया। जज साहब से हमने कहा की सर
लड़की के माता पिता आपसे मिलना चाहते हैं। लेकिन उससे पहले उनके कुछ सवाल हैं।
जिनका आपसे जिक्र करना जरूरी है। हम आपके पास कब आएं। उन्होंने कहा की दिन में लंच
के समय आ जाएं मैं घर पर ही मिलूंगा। मीटिंग लाइन अप होने के बाद आदत के मुताबिक
हम हाथरस के बाजार मे घूमने निकल गए। मैं औऱ माया भूषण कहीं नाश्ते की जगह देख रहे
थे। इसी बीच एक पान की दुकान से सिगरेट खरीदने के दौरान हमे जानकारी मिली की पंडित
जी की पूड़ी सब्जी का नाश्ता पूरे हाथरस में मशहूर है ये सुनकर हम तीनों के मुंह
मे पानी आ गया। औऱ हम पंडित जी की दुकान की ओर चल पड़े बीच बाजार में जैसा सुना था
पंडित जी की दुकान पर भारी भीड़ थी। लेकिन इस बीच हमे जगह मिल गयी। हमने पूड़ी औऱ
कई तरह की सब्जी का मजा लिया रायता पीआ। और पेट पर हाथ फेरा। हमारी तबीयत बिल्कुल
हरी हो चुकी थी। जिसके बाद एक एक सिगरेट ने हमारे दिमाग को ताजगी दे दी थी। जिसके
बाद हम एक बार फिर जज साहब की कोठी की ओर चल दिए। चैकिंग की सारी प्रक्रिया और इस
बार हमारा बैग चैक नहीं हुआ। सिर्फ कमीज के ऊपर हाथ से चेक किया गया। जिसके बाद हम
कमरे में धड़धड़ाते हुए पहुंच गए। बड़े से हॉल का अंदाजा हमे पहले से था। और कैमरे
को कहां रखना है ये भी हम पहली ही मीटिंग में समझ चुके थे। हमने कैमरा प्लेस किया
औऱ जज साहब का इंतजार करने लगे। हमारी उम्मीद के मुताबिक जज साहब आए और उनकी बेहद
सुंदर और अधेड़ पत्नी भी उनके साथ आयी। जज साहब की पत्नी ने अपने नपे तुले अंदाज
में बेहद मनमोहक मुस्कान के साथ हमारा स्वागत किया और बैठते ही पूछा क्या बात हुई
आपकी और लड़की वालों के क्या सवाल है। हमने पहला ही सवाल दागा की उनका पूछना है
आपका बजट कितना है। जिसका जवाब हमें मिला हमारी हैसियत के मुताबिक शादी कर दे।
हमने दूसरा सवाल किया आपकी हैसियत के हिसाब से शादी कितने की होनी चाहिए। उन्होंने
कहा ये परिवार से मिलकर तय होगा। हमने तीसरा सवाल दागा। आपको कैश कितना चाहिए।
इसपर जज साहब ने कहा ये छोड़िये आप ये बताईये लड़की की हाइट क्या है। क्योंकि फोटो
मे लड़की की हाईट कुछ ज्यादा लग रही है। मैंने और भूषण ने एक दूसरे को देखा और मन
ही मन तय किया की जज साहब का लड़का है खाते पीते परिवार का पांच फुच छह इंच से कम
क्या होगा। हमने तुक्का दागते हुए कहा जिसकी शुरुआत मैंने कुछ इस तरह से की कि
मैडम हाइट लगभग आपके बराबर है। जज साहब की बीबी पांच फीट छह इंच की थी। और जज साहब
भी इतने ही के थे। इसपर जज साहब की बीबी बोलीं। आपने लड़की को देखा है। इसपर माया
ने कहा हां जी देखा है। लगभग इतनी ही हैं। इसपर जज साहब बोले सॉरी जेंटलमैन ये बात
आगे नहीं बढ़ सकती। ये बात सुनकर हमारे होश फख्ता हो गए। हमने कहा सर क्यों आगे
नहीं बढ़ सकती । इसपर जज साहब ने अपने मुंह पर हाथ रखकर कहा। इसलिए की हमारे लड़के
की हाइट सिर्फ चार फुट और आठ इंच है। और हमें लड़की छोटे कद की चाहिए। इतना सुनकर
मेरे और माया के होठ सुख गए क्योंकि जज साहब से हमे अच्छी बाइट मिलने की गुजाइंश
थी हमारे हाथ में शर्बत के गिलास जैसे थे वैसे ही रह गए। हमारी समझ में नहीं आ रहा
था कि हम क्या कहे। और क्या नहीं कहे। हम दो तीन मिनट तक जैसे थे वैसे ही रह गए।
जज साहब को लग रहा था की उनके दुख में हम शामिल हो गए। और हम इसलिए परेशान हो गए
क्योंकि हमे लग रहा था की स्टोरी फिसल गयी। दोनों के अपने अपने दुख थे। जिसपर उनकी
मिसेस ने खामोशी तोड़ते हुए कहा। भाई साहब क्या करें ईश्वर की मर्जी को कौन टाल
सकता है। इस जवाब पर मेरे मन में आया की मैं पूछ ही लूं की ये ईश्वर की मर्जी है
या आपकी। फिर पता नहीं मैं क्यों रूक गया। शायद इसलिए भी की अगर ये सवाल पूछ लिया
तो बेटा यहां से जिंदा जाना तो मुश्किल है ही। साथ ही ये भी पता नहीं लगेगा की हम
कहां चले गए। मैंने भी जज साहब की ओर देखा और जज साहब ने मेरी और माया की ओर देखा
औऱ धीरे से कहा कोई छोटे कद की कन्या हो तो बताना हम जरूर मिलेंगे। आप अच्छे आदमी
हैं हम आगे बात कर सकते हैं। इतना कहकर जज साहब उठ गए। जज साहब के उठने के बाद जज
साहब की मिसेस ने हाथ जोड़ कर कहा माफ कीजिए हमे पहले पता होता तो हम बात आगे नहीं
बढ़ाते। इतना सुनकर पहले तो मुझे लगा की कह दूं जी आपका क्या नुकसान हुआ नुकसान तो
हमारा हो गया। लेकिन फिर हम दोनों ही कुछ नहीं बोले औऱ चुप चाप बाहर का रास्ता
पकड़ लिया। हम कार में बैठे और दिल्ली की ओर चल दिए। मैं औऱ भूषण कई मिनट तक नहीं
बोले औऱ जब हमारी कार आगरा दिल्ली हाईवे पर आयी तब माया ने कहा यार ये क्या था।
इसपर मैं बोला कुछ नहीं शायद हमारी किस्मत खराब है। और फिर हम दोनों से जोर का
ठहका लगाया और दिल्ली की ओर चल दिए।
अध्याय चार
7 अप्रैल 2007
मैं सुबह समय से ही ऑफिस पहुंच गया था।
अमिताभ भी कुछ समय के बाद प्रदीप जी के साथ धड़धड़ाते हुए ऑफिस में दाखिल हुए।
माया उनके पीछे पीछे कुछ समय के बाद आए। अमिताभ ने पहले पानी पीया औऱ अपनी कुर्सी
संभालते हुए मुझसे पूछा की हां रवि क्या हुआ। मीटिंग कैसी रही। मैं सवाल के लिए
तैयार नहीं था इसलिए मैंने सवाल माया की ओर बढ़ा दिया औऱ कहा माया जवाब भूषण जी जबाव
देंगे। ये सुनकर भूषण ने अंग्रेजी हिंदी की एक बार फिर लंका लगाते हुए कहा दादा
मीटिंग इज फाइन बट क्या है कि अभी कुछ और काम होना है। इसके बाद सारा वृतांत माया
ने सुना दिया। जिसके बाद अमिताभ ने लड़के की हाइट के किस्से पर जोर का ठहाका लगाया
औऱ कहा यार में वो फुटेज देखना चाहता हूं जिसमें जज साहब ने हाइट की बात कही है।
मैं उनके चेहरे के रियेक्शन देखना चाहता हूं। जिसे भूषण ने अपने लैपटॉप पर दिखा
दिया। जिसे देखकर सुनकर अब ऑफिस में माहौल हल्का था। अमिताभ ने अपनी सिगरेट जलाई
और हवा में धुंआ छोड़ते हुए गंभीर मुद्रा में कहा। भाई लोगों ये तो ठीक है। चलो जज
साहब तो बच गए। आ जाते तो स्टोरी में एक और फ्लेवर आ जाता की अफसर तो अफसर जज भी
इस काम में शामिल हैं। लेकिन जज साहब ने कुछ बोला नहीं है। इसलिए ये हिस्सा तो
टेलिकास्ट होगा नहीं। और ना ही टेलिकास्ट के लायक है। लेकिन आगे से इस बात का
ध्यान रखना आपकी तैयारी अभी भी पूरी नही है। आप लड़के के बारे में सारी जानकारी
लेकर ही आगे बढ़िए और हाइट रंग बगैरा बगैरा पता करके ही मीटिंग में जाइय़े। अमिताभ
ने ये बात एक दम काफी हल्के फुल्के अंदाज में कही थी। लेकिन उनके माथे पर खींचती
लकीरे साबित कर रही थी की उन्हें मीटिंग खराब होने का बेहद दुख है। लेकिन, वो इस बात को बयां नहीं करना चाहते थे।
10 अप्रैल 2007
मैं सुबह ही घर से निकल गया औऱ सीधा रेलवे
स्टेशन भागा। जहां माया मेरा प्लेटफार्म नंबर 7 पर इंतजार कर रहे थे। हमें लखनऊ जाना था।
जहां हमे दो दुल्हों के परिवार से मिलना था। मैं समय से ही स्टेशन पर पहुंच गया
था। जिसके बाद हम ट्रेन पर सवार हो गए। पूरे रास्ते मेरे और भूषण के बीच कोई खास
बातचीत नहीं हुई। बस घर परिवार की बात हुई।
जनाब अब तो मुस्कुराइये आप लखनऊ में हैं
हम स्टेशन पर उतरने वाले थे। और माया अपने
अंदाज में कैडवरिज की टॉफी अपने मुंह में डाल चुके थे। जिसके बाद माया ने कहा गुरू
चलो लखनऊ आ गया। औऱ आज हम आपको एक बेहद सुंदर चीज दिखाने वाले हैं जो आपको सालों
साल याद रहने वाली है। हम दोनों ने अपने अपने बैग उठाए और हम स्टेशन से बाहर
निकलने लगे। इसी बीच स्टेशन की सीढ़िया उतरते हुए माया ने मुझे एक बोर्ड दिखाया जो
स्टेशन की दीवार पर लगा था जिसपर लिखा था जवाब अब तो मुस्कुराइय़े आप लखनऊ में हैं।
जिसे पढ़कर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी औऱ भूषण ने मेरे कंधे पर हाथ रखते
हुए कहा देखा है कहीं ऐसा बोर्ड जो मुसाफिरों का आते ही मूढ़ ठीक कर दे। मैंने कहा
बाकई मजा आ गया। जिसके बाद भूषण ने उस बोर्ड की तस्वीर खींची और हम स्टेशन से बाहर
आ गए।
होटल में पहला दिन
हम लखनऊ के एक साधारण से होटल में रूके।
क्योंकि शाम होने को थी। इसलिए हमने उस दिन किसी को फोन नहीं किया। हमने उस दिन
होटल में ही आराम किया खाना खाया। और सो गए। दूसरे दिन सुबह मैंने दोनों पार्टियों
को फोन किया। जिसमें से एक ने हमें दोपहर का समय दिया। और दूसरी पार्टी ने दूसरे
दिन सुबह का। हम अपनी तैयारी के साथ पहले परिवार के पास पहुंच गए। ये परिवार बेहद
साधारण सा था। लेकिन बेटे ने मेहनत करके पीसीएस का एग्जाम पास कर लिया था। लड़का
ट्रेनिंग पर था। पिता और माता जी थे और ये लोग लखनऊ की रेलवे कॉलोनी में रहते थे।
हम जब घर पहुंचे तो एक बुजुर्ग ने हमारा स्वागत किया। साथ में उनकी पत्नी थी जो
लड़के की मां थी। हमने सोचा यार यहां बात बनेगी नहीं। हमारे लिए शर्बत और बिस्कुट
लाए गए। जिसके बाद बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा। हम धीरे धीरे अपनी बात सामने रख
रहे थे औऱ बड़े ही अनमने ढंग से शर्बत पी रहे थे। इसी बीच माया ने अचानक ही पूछा
की सर आपका शादी को लेकर बजट कितना है। जिसपर लड़के के पिता पहले चुप्प रहे और फिर
अपना चश्मा ठीक करते हुए बोले देखिए हमारे लड़के ने बहुत मेहनत की है। और हमने भी
अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। ये दो भाई बहन है। यानी
अब जो भी है लड़के का है क्योंकि लड़की की हमने शादी कर दी है। और देखिए अरी सुनती
हो। जरा वो शादी की एलबम तो लाना। लड़के की मां शादी की एलबम लाती है और टेबल पर
रखकर चली जाती हैं। जिसके बाद लड़के के पिता एलबम दिखाते हैं। और कहते हैं। देखिए
हमने कितनी शान और शौकत से अपनी बेटी की शादी की है। लड़का रेलवे में इंजीनियर है।
हमने पैसे का मुंह नहीं देखा हमने लड़के को होंडा सिटी कार दी है। और नगद में 50 लाख रुपये कैश दिया है। साथ ही लखनऊ में एक
फ्लैट दिया है। क्योंकि ये लड़का भी अकेला ही है। इसलिए हमने शादी के दौरान रूपयों
का मुंह नहीं देखा मैंने तो सारी कमाई लड़की की शादी में लगा दी। दो फ्लैट हैं। एक
लड़की को दे दिया और दूसरा लड़के के नाम है। हमें दहेज मे कुछ नहीं चाहिए लेकिन
लड़का अफसर है तो हैसियत के हिसाब से तो लेन देन करना ही होगा। वैसे मैं आपको बता
दूं की एक करोड़ कैश, कार और पार्टी का रिश्ता तो आ चुका है। लेकिन, लड़की थोड़ी कम सुंदर थी इसलिए हम अभी मामला
टाल रहे हैं। लेकिन आप जिस लड़की का रिश्ता लाएं हैं वो सुंदर है और हमारे लड़के
ने भी फोटो देखकर हामी भर दी है। इसलिए अब आप बताईये की आप क्या ऑफर कर रहे हैं।
इतना सुनकर मैं और माया के होठ सुख गए। औऱ हमारी समझ में ये नहीं आया की क्या
कहें। क्योंकि जो भी हमने पूछना था वो तो भाई साहब कह ही चुके थे। हमने अपना सिर
हिलाया और फिर से पूछा सर बजट तो आपकी हां पर निर्भर करेगा। आप बताइये आप क्या
चाहते हैं। इसपर बुजुर्ग के चेहरे पर हंसी आ गयी। उसने फिर से एक बार फिर सारी बात
दोहराई और कहा की शादी हमारी हैसियत के हिसाब से ही होनी चाहिए। जिसपर हमने सहमति
जता दी औऱ कहा ठीक है आप लड़की के परिवार वालों से कब मिलना चाहते हैं। जिसपर बुजुर्ग ने कहा देखिए मैं तो इन दिनों
खाली हूं आप जब चाहे बुला लें। मैं चला आऊंगा लेकिन रिश्ता जल्दी करवाइये क्योंकि
मेरी तबीयत खराब रहती है। और रिश्ते भी बहुत से आ रहे हैं। बुजुर्ग की बात सुनकर
हम हैरान थे और सोच रहे थे की आगे इस मामले को कैसे ले जाए। हमने कहा हम परिवार को
बुला लेते हैं लेकिन हम लड़के से मिलना चाहते हैं। इसपर लड़के के पिता ने कहा
देखिए आप लड़के से फोन पर बात कर सकते हैं। क्योंकि वो ट्रेनिंग पर है। मैं उससे
एक या दो दिन बाद बात कर लूंगा। इसके बाद वो छुट्टी लेकर आएंगा तो आप मिल सकते
हैं। लड़के की हां ही है। आप टेंशन ना लें। आप मुझे लड़की के परिवार से मिलवा दो वैसे
भी लड़के ने फोटो देखकर हां कर ही दी है। और हमारा लड़का हमारी ही बात सुनता है।
वो वहीं करेगा जो हम कहेंगे। इतना सुनकर
हमने कहा ठीक है हम लड़की के परिवार वालों से बात कर लेते हैं और आपकी मीटिंग करवा
देते हैं। अंत में आपसे ये जानना चाहते हैं कि आपकी डिमांड क्या है। इसपर लड़के के
पिता ने कहा भाई आपको दो बार बता दिया है बजट अब मीटिंग पर ही बताएंगे। औऱ वैसे भी
सभी कुछ तो क्लीयर कर दी दिया है। कैश एक कर देना औऱ गाड़ी और पार्टी तो करेंगे
ही। मीटिंग खत्म हो चुकी थी। हम अपना झोला उठाकर बाहर निकल आए और गाड़ी का रूख कर
दिया। जिसके बाद लड़के के पिता ने हमसे चलते चलते यहां तक कह दिया की अगर हम शादी
अच्छी करवाएंगे तो हमें भी वो अच्छा कमीशन देंगे। जिसे सुनकर माया का मुंह खुला रह
गया शायद ये सोचकर की यार पत्रकारिता की जगह शादी व्याह ही करवा देते कम से कम
पैसा तो अच्छा मिलता। खैर इतना सुनकर हम दोनों ने ही उनका धन्यवाद किया और हम अपनी
गाड़ी में बैठकर होटल की ओर चल दिए। रास्ते में हमने शूट किया गया वीडियो चैक किया
जो बेहतरीन था। फ्रेम वॉयस सभी ठीक था। अमिताभ को फोन किया गया मीटिंग की जानकारी
दी गयी। अमिताभ ने भी मैसेज किया की आगे भी इसी तरह से काम करते रहिए। लखनऊ में
दोपहर का समय हो चला था। इस बीच हमने अम्बेडकर चौक के पास कुल्फी खाई जिसके बाद
वहां लिखी दो लाइन ‘जेब और जुबान की गर्मी कुल्फी चखते ही खत्म’ लखनऊ का अंदाज बयां कर रही थी। कुल्फी चखने
के बाद हमने लखनऊ के बाजार में लस्सी पी औऱ खाना खाया जिसके बाद हम होटल पहुंचे और
दूसरी मीटिंग की तैयारी में जुट गए।
दूसरी मीटिंग और बैटरी में शॉर्ट सर्किट
लखनऊ में दूसरी मीटिंग के लिए हम निकल गए थे।
आज बैग के साथ बटन का इस्तेमाल भी होना था। कमीज पर मैं बटन कैमरा लगा चुका था। उस
समय में हमारे पास बटन कैमरा ऐसा नहीं होता था जैसा आज होता है। उस समय में बटन को
अलग से पावर देनी होती थी एक बैटरी के माध्यम से अलग से। रिकोर्डर अलग होता था। इस
तरह से शरीर पर कई तार और बैटरी कैरी करनी होती थी। और उस समय लीथियम आय़न बैटरी भी
नहीं थी कैडमियम बैटरी होती थी। जो गर्म हो जाया करती थी। हम स्पॉट पर पहुंचे तो
हमे पता चला आज जिस सज्जन से मीटिंग होनी हैं। वो रिटायर जज हैं और उनका बेटा भी
ट्रेनिंग पर है। हम बेहद एहतियात से उनके घर में पहुंचे वहां पहले से ही कोई
मीटिंग चल रही थी। मैंने क्योंकि पहले ही कैमरा ऑन कर लिया था क्योंकि मैं किसी
तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था। तो कैमरा ऑन था। और अंदर मीटिंग चल रही थी। 15-20 मिनट बाद मीटिंग खत्म हुई तो हमें बुलाया
गया। इस बीच मुझे थोड़ी सी गर्मी लगी जो बैटरी गर्म होने की बजह से मुझे लग रही
थी। बैटरी गर्म हो गयी थी और मेरे पेट पर लगी बेल्ट के नीचे मैंने दबाई हुई थी।
बैटरी लगातार गर्म हो रही थी। और मुझे बैचेन कर रही थी। लेकिन जज साहब सामने थे और
बात चीत भूषण शूरु कर चुके थे। एक एक करके हमने बात सामने रखी और जज साहब हमारी
बात सुनते रहे। उन्होंने फोटो देखा लड़की का जीवन वृतांत पढ़ा और कहा की लड़की
अच्छे परिवार की है। और सुंदर भी है। क्या ये लखलऊ रह पायेगी। इसपर हमने कहा की
अगर लड़का अफसर हो तो लड़की कहीं भी रह सकती है। और लड़की ने माइंड सेट किया हुआ
है कि उसका दुल्हा आईएएस ही होगा तो कहीं भी रहना हो इसके लिए लड़की पहले से तैयार
है। इसपर जज साहब ने कहा फिर ठीक है आप हमारी परिवार से मीटिंग करवाइये हम मिलना
चाहते हैं। इसपर मैंने हिम्मत जोड़कर कहा क्योंकि अब मुझे मेरे पेट पर जलन महसूस
हो रही थी। और मुझे लग रहा था जैसे बैटरी मेरे पेट में घुंस जाएगी। मैंने पूछा
आपका बजट क्या है। इसपर जज साहब ने कहा की सभी कुछ हैसियत के हिसाब से मीटिंग के
बाद तय किया जाएगा। बजट ऐसा कुछ नहीं है परिवार अच्छा हो तो बजट सोचा नहीं जाता।
आप मीटिंग करवाइये फिर बात होती है। इतना सुनने के बाद हमने जज साहब को टटोलना ठीक
नहीं समझा लेकिन भूषण ने चलते चलते पूछा फिर भी सर लड़की वालों को कई बात सोचनी
पड़ती हैं। हमें इसी लिए रखा गया है कि हम पहले बजट पूछ लें। इसपर जज साहब ने कहा
डेढ़ से दो के बीच कर दें। बाकी सामाजिक कायदे और नियम तो वो निभायेंगे ही। मैंने
इसमें कहा की सर एक करोड़ 50 लाख कैश की बात कर लें वाकी कायदे नियम ठीक रहेगा। इसपर
जज साहब ने कहा हां...देख लेना। जिसके बाद हमने जल्दी जल्दी मीटिंग खत्म की और
बाहर आ गए। मुझे इतनी हड़बड़ी मे देखकर भूषण की पहले तो समझ में नहीं आया फिर जब
हम टैक्सी में बैठे औऱ कुछ आगे आएं तो मैंने कहा भाई आज तो मामला खराब ही हो जाता
और मैंने कमीज जैसे ही ऊपर उठाई और बेल्ट खोली तो भूषण की आंखों में पानी आ गया।
उसने बेहद सावधानी से बैटरी मेरे पेट से हटाई और कैमरा बंद किया। जिसके बाद उसने
मुझसे कहा यार ये क्या है। हम मीटिंग छोड़ सकते थे औऱ बाद में मिल सकते थे। कह
देते तबीयत खराब है। मैंने कहा नहीं यार हम अंदर जा चुके थे। और फिर वापस चले जाते
तो उसे शक हो सकता था। जिसे सुनकर भूषण ने अमिताभ को फोन किया और बताया की बैटरी
से मेरा पेट जल गया। जिसके बाद अमिताभ ने मुझे फोन किया और कहा की आप दिलेर
पत्रकार हैं औऱ इस खबर के हीरो। जिसे सुनकर मेरा मन गद गद हो गया। हालांकि वो
बैटरी का निशान आज भी मेरे पेट के नीचे हैं और मैं जब भी उस निशान को देखता हूं तो
सोचता हूं कि खोजी पत्रकारिता के लिए पसीने के साथ शायद खून भी बहाना पड़ता है।
खैर हम इस शूट के बाद वापस होटल आए और टूंडे के कबाब खाकर दिल्ली वापस आ गए।
अध्याय पांच
15 अप्रैल 2007 दिल्ली ऑफिस
हम लखनऊ का दौरा कर आये थे। औऱ इस बीच हमारे
हाथ कई ऐसी बाइट आ गयी थी जिसकी हमारी कहानी को दरकार थी। लेकिन अभी भी हमें एक
ऐसी बाइट यानी एक ऐसे इंटरव्यूह की आवश्यकता थी जिसके दमपर हम अपनी स्टोरी को टांग
सकते। यानी स्टोरी का मेन कैरेक्टर अभी भी फ्रेम से बाहर था। साधारण खबर और स्टिंग
में असल में यही अंतर होता है। स्टिंग में आपको एक कैरेक्टर की जरूरत होती है।
नहीं तो आपकी पूरी स्टोरी भटक जाती है। ठीक फिल्म की तरह जिस तरह से फिल्म में एक
हीरो होता है....ठीक इसी तरह से स्टिंग में भी हीरो होते हैं...कई बार ये एक होता है। और कई बार कई। हम
दिल्ली के ऑफिस में बैठे थे। माया फोन पर बिजी थे। प्रदीप जी और मैं लखनऊ शूट पर
बात कर रहे थे। इस बीच हमारा ऑफिस बॉय हमें बीच बीच में चाय पानी दे जाता था। औऱ
टीवी पर क्रिकेट मैच देखने में मशगूल था। इसी बीच तकरीबन 11 बजे अमिताभ ने अचानक ही ऑफिस में दस्तक दी।
अमिताभ को देखकर हम थोड़ा घबरा गए क्योंकि आज अमिताभ को आना नहीं था। माया ने कहा
दादा इज इट सरप्राइज। अमिताभ ने कहा। नहीं...मैं यहां से गुजर रहा था। आप लोगों को बरामदे
में देखा सोचा मिलता चलूं। तो क्या चल रहा है। मैच। मैंने एकदम से टीवी बंद किया
ऑफिस बॉय को पानी लाने का इशारा किया। अमिताभ प्रदीप के पास आए और बोले प्रदीप जी
सिगरेट नहीं पिलाएंगे। प्रदीप जी ने पॉकेट से सिगरेट निकाली अमिताभ की ओर बढ़ाई और
कहा अरे सर ये लीजिए। अमिताभ ने अपनी अंगुलियों में सिगरेट फंसाई औऱ माचिस से
जलाकर लंबा से कश लिया औऱ फिर धुंए में कहीं खो गए। दो तीन लंबे कश लगाने के बाद
अमिताभ ने खामोशी तोड़ी औऱ पूछा की रवि टूर कैसा रहा। जिसपर मैंने जवाब दिया अच्छा
रहा सर। बस आगे की रणनीति बना रहे हैं। इसपर अमिताभ मुस्कुराएं औऱ धीरे से बोले
ऐसे खबर हो जाएगी जैसे काम कर रहे हो। अमिताभ की बात सुनकर मेरे माथे पर लकीर खींच
गयी। मेरी समझ में नहीं आया की अमिताभ ऐसा क्यों बोल रहे हैं। मेरी परेशानी शायद
माया को समझ में आ रही थी। उन्होंने बीच में ही टोकते हुए कहा। सर, अभी कई लोग लाइन अप हैं। और साइकोरियन भी
हमने फोलो करना है। आज सुमिता से बात करते हैं। देखते हैं क्या कहती है। इसके बाद
अमिताभ खामोश रहे। लंबे समय तक वो हमसे इधर उधर की बात करते रहे। कभी राजनीति की
कभी देश में मीडिया के बदलते चेहरे की और उन पत्रकारों की जो खबरों को कैसे तोड़ते
मरोड़ते हैं। उन्हें आज ‘ऑपरेशन एम. पी. लेड’ याद आ रहा था। जिसमें सांसदों से पैसे लेकर
जवाब पूछने की खबर को उन्होंने ब्रेक किया था। वो जिक्र कर रहे थे। और माया भूषण
नागवेरकर अपनी छोटी छोटी मूछों को ताव देकर उन मीठी यादों की आगोश में रह रहकर हो
आते थे। वो बीच में कई नेताओं के नाम लेते और उस दौरान घटी कहानियों को बयां करते।
जिनपर मेरा औऱ प्रदीप जी का कतई ध्यान नहीं था। इस बीच प्रदीप जी धीरे से मेरे पास
आए और बोले होने लगी बकचोदी। अब ये कितनी लंबी चलेगी साला कुछ पता नहीं। अमिताभ औऱ
माया अपनी अपनी बातों में मशगूल थे। इसी बीच मेरा फोन बजा। फोन साइकोरियन से था।
दूसरी तरफ से आवाज एक लड़की की थी। जिसने मुझे जानकारी दी की आपको हमने कई मेल
भेजी हैं। आप चैक कर लें। और पसंद आने पर हमें रिप्लाई करे ताकी आगे की मीटिंग
फीक्स्ड की जा सके। फोन सुनकर मैंने अमिताभ जी से कहा सर....लीजिए साइकोरियन से फोन आ गया। कह रहे हैं...प्रोफाइल चेक करके बताओं। अमिताभ ने जैसे ही
ये बात सुनी उनके शरीर में गजब की फुर्ती आ गयी। उन्होंने मुझे कहा आप मेल चेक
कीजिए फटाफटा। और अभी कुछ के साथ मीटिंग कीजिए। और हो सकता है मैं भी मीटिंग में
चलूं। इतना कह कह अमिताभ कम्प्यूटर की स्क्रिन में धंस गए औऱ मेल ध्यान से चेक
करने लगे। एक एक के बाद अमिताभ ने उस दिन आई चारों मेल को चेक किया औऱ फिर दो के
लिए अपनी रजामंदी जताते हुए कहा की इन दो पार्टियों को पकड़ों उम्मीद है। इसमें से
एक कोई हमारी फिल्म का हीरो निकले। इसके बाद अमिताभ ने एक बार फिर हमसे लखनऊ का
किस्सा सुना औऱ फिर आगे स्टोरी कबर करने के निर्देश देकर ऑफिस से निकल गए।
अमिताभ के ऑफिस के बाहर जाने के बाद हम घंटों
ऑफिस में इधर उधर की चर्चा करते रहे। और शाम को अपने अपने घर चलते बने।
20 अप्रैल नीलम गुप्ता से गुड़गांव में पहली
मुलाकात
हम साइकोरिन से लगातार बात कर रहे थे। इसी
बीच अमिताभ ने जो लोगों का चयन किया था उसमें से एक पार्टी गुड़गांव की थी। इसमें
नीलम गुप्ता पार्लियामेंट में कार्यरत थी और उनका बेटा आईएएस के बाद ट्रेनिंग पर
था। उनके दोनों बेटो का कैरियर बेहद शानदार था। दोनों ही पढ़ने लिखने में अच्छे
थे। दूसरी पार्टी कैलाश कालोनी की थी। ये लड़का पीसीएस था औऱ इनके पिता पहले
एक्साइज में अफसर थे और अब ओखला की एक प्राइवेट संस्था में काम किया करते थे। हम
सबसे पहले कैलाश कालोनी वाली पार्टी से मिले। हमारी पहली मुलाकात नेहरू प्लेस के
एकमात्र फाइव स्टार होटल में हुई। मैं और माया दोनों इनसे मिले और इनका बेटा भी
हमसे मिलने होटल में पहुंचा। पहली ही मीटिंग में ये साफ हो गया की ये हमारी स्टोरी
के हीरो नहीं है। जिसके बाद मैं इनसे इनके दफ्तर में भी इस उम्मीद से मिला की शायद
कुछ निकल आए लेकिन मेरे हाथ खाली ही रहे। जिसके बाद मैं औऱ माया नीलम अग्रवाल से
मिलने पहुंचे। हम नीलम अग्रवाल के घर गुड़गांव पहुंचे। पहली ही मीटिंग में नीलम
अग्रवाल ने हमें काफी पॉजिटिव रिस्पोंस दिया। और बातों बातों में बताया की उनके
पास लगातार रिश्ते आ रहे हैं। हमने उनसे पूछा की मैडम लगातार रिश्ते आ रहे हैं तो
आपने अभी तक कोई रिश्ता ओ के क्यों नहीं किया। इस पर नीलम ने कहा देखिए भाई साहब
रिश्ते तो बहुत हैं। लेकिन रिश्ता ऐसा होना चाहिए जिसपर हम फक्र कर सके। देखिए
हमारे दो ही बेटे हैं। लड़की है नहीं। और जो भी है इन्हीं दोनों लड़कों का है। फिर
हमारी फैमली ब्रेकग्राउंड भी काफी स्ट्रांग है। इस लिहाज से हमें रिश्ता मजबूत ही
चाहिए। हमने अपनी बात आगे रखनी शुरु की औऱ पूछा नीलम जी आपने लड़की की फोटो देख ली
है क्या? नीलम ने हम से कहा हां. लड़की की फोटो तो देख ली है। लेकिन असल में
भी लड़की ऐसी ही दिखती है या नहीं इसका कैसे पता चलेगा। आप हमें लड़की और लड़की के
परिवार से कब मिलवाएंगे। ये सवाल इतनी जल्दी हमारी ओर उछाला गया था जिसका हमें
भरोसा नहीं था। मैं औऱ भूषण ये सवाल सुनकर सकपका गए। हम दोनों ने ही एक साथ कहा
मैडम आप घबराइये नहीं हम जल्द ही आपको परिवार से मिलवा देंगे। लेकिन पहले जो
परिवार ने हमें काम सौंपा हुआ है। वो पूरा हो जाए। फिर हम आपको परिवार से मिलवा
देंगे। इसके बाद मैंने कहा मैडम आप अपना गौत्र वगैरा बता दीजिए। और लड़के का एक
फोटो हमें दे दीजिए। हम क्योंकि पहली ही बार में मीटिंग खत्म नहीं करना चाहते थे।
इसलिए हमने जल्दी जल्दी फोटो लिया लड़के की डिटेल लिखी और मीटिंग खत्म करके अपने
ऑफिस आ गए।
25 अप्रैल 2007 साइकोरियन का दफ्तर
हम नीलम से एक बार की मीटिंग कर चुके थे। औऱ
साइकोरियन को ये जानकारी मिल चुकी थी। साइकोरियन ने हमें अपने दफ्तर में बुलाया।
मैं और भूषण साइकोरियन पहुंचे। इस बार हमारा सामना नवीन अग्रवाल से हुआ। नवीन
अग्रवाल ने हमें शादी व्याह कैसे होते हैं। क्या रीति रिवाज और कस्टम होते हैं।
अलग अलग जातियों में किस तरह से शादी व्याह होते हैं। इसपर एक तकरीबन दो घंटे लंबा
भाषण दिया जिसे हमने दो बार काफी औऱ चार चार गिलास पानी पीकर बड़ी ही तसल्ली से
सुना और इस पूरे भाषण को अपने कैमरे पर भी रिकार्ड किया (स्पाई कैम पर )। शादी व्याह की जानकारी पर दो घंटे की लंबी
क्लास के बाद नवीन अग्रवाल अपनी बात पर आएं और बोले की रवि कपूर जी लगता है आपने
शादी बगैरा करवाई नही हैं। मैंने इसपर कहा सर शादी तो की भी है और करवाई भी है।
लेकिन इतना ज्ञान शादी व्याह को लेकर सिर्फ आपके चरणों में आकार ही प्राप्त हुआ
है। इसपर नवीन अग्रवाल का चेहरा देखने लायक था। वो अभी तक ये ही समझ रहा था की हम
सिर्फ उसकी बात सुनते रहेंगे औऱ बोलेंगे कुछ नहीं। इस जवाब के बाद उनका पहला सवाल
था की कपूर साहब आप रहने वाले कहां के हो। मैंने कहा यार यहीं दिल्ली के हैं। इसपर
नवीन ने कहा नहीं माया तो महाराष्ट्र से हैं इनका तो पता चलता है लेकिन आप प्योरली
दिल्ली के नहीं है। मैंने कहा भाई साहब क्या फर्क पड़ता है फिलहाल हम इतना तय कर
लेते हैं कि अगली मीटिंग आप कब करवाएंगे। इसपर नवीन अग्रवाल ने कहा देखिए आप
मीटिंग में ज्यादा समय खर्च कर रहे हैं। आप लगातार लोगों से मिल रहे हैं। इसकी
जानकारी हमें हैं। और हमें लगता है आपको शादी नहीं करवानी है आपको सिर्फ लोगों से
मिलना है। इस पर माया ने बड़ा ही स्टीक सा जवाब दिया। माया ने कहा भाई साहब कमाल
करते हैं आप क्या हम अपनी बहन बेटी को ऐसे ही किसी के साथ भी बांध दें। आपको 51 हजार रुपया दिया है। आने जाने पर पैसा खर्च
कर रहे हैं। यहां आते हैं यहां भी समय बर्बाद होता है। और आप कह रहे हैं हम सिर्फ
मीटिंग करने के लिए जाते हैं। इसपर नवीन अग्रवाल ने चुप्पी साध ली। औऱ धीरे से बात
संभालते हुए कहा। देखिए भाई साहब मेरा कहने का मतलब ये है की आप अगर जल्द फैसला ले
लेंगे तो अच्छा होगा। क्योंकि हम भी इतने सारे लड़के कहां से पैदा करेंगे। हमारे
पास भी तो वहीं लड़के मौजूद हैं जो हैं जो नहीं है उनके लिए तो लंबा इंतजार करना
होगा। मैंने इस पर कहा की आप परेशान मत रहिए। आप हमें सिर्फ मीटिंग लाइन अप करके
देते रहिए। हम जल्द ही फैसला ले लेंगे। नवीन अग्रवाल से हमारी मीटिंग खत्म हो चुकी
थी। हम दोनों कमरे से बाहर आए औऱ दफ्तर की ओर चल दिए।
2 मार्च 2007 नीलम गुप्ता का घर
हम लगातार नीलम गुप्ता के टच में थे। हम
लगातार उनसे फोन पर बात करते रहते थे। इस बीच हम नीलम गुप्ता से कई मामलों पर बात
कर चुके थे। की उन्हें किस तरह की शादी अपने लड़के की करनी है। उनके रीति रिवाज
क्या है। उनके परिवार में कितने सदस्य हैं। कौन सा सदस्य क्या चाहता है। हम हफ्ते
में एक मीटिंग नीलम गुप्ता से करते थे। इस तरह से हमारी उनसे चार या पांच मीटिंग
हुई। अंतिम मीटिंग से पहले नीलम गुप्ता ने हमसे कहा की उनका बेटा अगले महीने घर आ
रहा है होली की छुट्टी पर और वो चाहती हैं की लड़का लड़की एक दूसरे को देख लें। इसलिए
उन्होंने फैसला किया है की अब दोनों परिवारों को आमने सामने बैठकर बात कर लेनी
चाहिए। इतना सुनकर हमने कहा ठीक है। हम मीटिंग तय करवा देते हैं औऱ आपका संदेश आगे
पहुंचा देते हैं। इसके बाद हमने मीटिंग खत्म की औऱ हम ऑफिस चले आएं।
ऑफिस में अगली
मीटिंग की तैयारी
हम ऑफिस पहुंचे तो हमसे पहले शाम तकरीबन सात
बजे अमिताभ हमें ऑफिस में ही मिले। जो अमूमन उस समय तक ऑफिस में रूकते नहीं थे।
हमने उन्हें देखा तो हम सरप्राइज हो गए। माया ने ऑफिस में घुसते ही पूछा दादा
एवरीथिंग इज फाइन। अमिताभ ने कहा हां. ठीक है। आज की मीटिंग कैसी रही। अमिताभ की
आवाज में कड़ा पन था। जो ये साबित कर रहा था की आज उनका मूढ़ ठीक नहीं है। माया ने
कहा दादा समय आ गया है। लोहा गर्म है। अगली मीटिंग में या तो आर या पार। अमिताभ ने
कहा। ठीक है। गुड बट डोन्ट बेस्ट टाइम डू इट फास्ट। हमने कहां ठीक है। इसके बाद
अमिताभ ने कहा आप मीटिंग का समय दो सप्ताह के बाद का दीजिए। इस बीच बाकी बचे लोगों
से आप मिल लो।
अध्याय छह
बिहार के आईपीएस अफसर और
विवेकानंद की फोटो
हमने बिहार का टूर बनाया और हम बिहार निकल
गए। इस बीच नीलम से हमारी कोई बात नहीं हुई। हां हमने मेसेज कर दिया की आपका
संदेशा आगे भिजवा दिया है। जल्द ही आपसे मिलने का समय लेंगे। साथ ही मैंने ये भी
कहा की मैं कुछ दिन के लिए दिल्ली से बाहर जा रहा हूं। इसपर नीलम का एसएमएस आया की
कोई बात नहीं आप होकर आईये फिर बात होती है। इस बीच हम बिहार पहुंचे। यहां पहुंचकर
हमने फ्रेजर रोड पर एक होटल का कमरा लिया। जिसके बाद मैं और माया अपने अपने काम
में जुट गए। माया औऱ मैंने बिहार की तीन मीटिंग फीक्स्ड की थी। उसमें से पहले
मीटिंग के लिए हम गांधी मैदान के पास एक ऑफिसर कालोनी है। वहां पहुंचे। यहां
पहुंचकर हमे पता चला की हम जिस परिवार से मिलने आए हैं। उनका बेटा दो दिन के लिए
दिल्ली गया है। यहां औऱ दो दिन के बाद वो वापस आयेगा। परिवार के मुखिया यानी लड़के
के पिता एक स्कूल के प्रिसिंपल थे। वो बेहद सलीके से हमारे सामने एक साधारण से
दिखने वाले ड्राइगरूम में आएं। अदब से बैठे और पानी चाय नाश्ता करवाने के बाद
बोले। दिल्ली से आप आ रहे हैं। हमने कहा जी हां। हूं....दिल्ली में आपको लड़का नहीं मिला। हमने कहा
मिले तो बहुत लेकिन कभी लड़का मिलता है तो परिवार नहीं मिलता और कभी परिवार मिलता
है तो लड़का नहीं मिलता। जिसके बाद लड़के के पिता का माथा थोड़ा सा ऊपर उठा औऱ
उन्होंने बड़े ही गर्व से अपने कंधों को निहारा और कहा...अच्छा अब आपको क्या लगता है। क्या आपकी खोज
खत्म हुई। खत्म हो जाए तो अच्छा है। क्योंकि हर चीज तो जीवन में मिलती नहीं। फिर
भी हम बेहतर के लिए ही कोशिश करते रहते हैं। इसपर प्रिसिंपल साहब ने कहा आप बाते
अच्छी करते हैं। जिसके बाद हमने प्रिसिंपल साहब को लड़की की फोटो दिखाई और
बायोडाटा हाथ में थमा दिया। प्रिसिंपल साहब ने भी हमारे हाथों में लड़के की फोटो
और बायोडाटा देते हुए कहा की आप भी देख लीजिए। हम हालांकि लड़के का फोटो मेल पर
चेक कर ही चुके थे। औऱ बायोडाटा भी पढ़ चुके थे। फिर भी फोरमल्टी के लिए हमने
पूछा। सर आपका लड़का बेहद होनहार है। दिल्ली पुलिस में पांच साल नौकरी करने के बाद
आईएएस का एग्जाम पास करना बेहद हिम्मत का काम है। इसपर प्रिंसिपल साहब की बाछे खिल
गयी और वो कॉलर खड़े करते हुए बोले। ये तो बस हमारी शिक्षा का कमाल है। औऱ इसी तरह
की शिक्षा हम अपने स्कूल के बच्चों को भी देते हैं। हम ये जवाब सुनकर खुश भी थे औऱ
नाखुश भी। खुश इसलिए की चलो अभी भी ऐसे लोग है जो अच्छी शिक्षा दे रहे हैं। नाखुश
इसलिए थे की हमारी स्टोरी की मां बहन एक हो रही थी। खैर हमने बात आगे रखी। इस बीच
हमारे लिए एक एक गिलास शर्बत और आया औऱ शर्बत का गिलास उठाते हुए हमने प्रिंसिपल
साहब के पीछे लगी तस्वीर को देखा। प्रिंसिपल साहब के पीछे छह फुट की विवेकानंद की
तस्वीर थी। और साथ में उनके कुछ बचन लिखे थे। मैंने उनसे पूछा सर आप विवेकानंद को
बहुत मानते हैं। उन्होंने सिर उठाकर कहा। हां. क्योंकि इन्होंने समाज को सुधारा है और हम तो
इन्ही के बताएं नक्शे कदम पर चल रहे हैं। इतना सुनकर माया और मेरा चेहरा देखने
लायक था क्योंकि हमें अब अमिताभ की डांट का डर खाने लगा था। जैसे तैसे हमने शर्बत
पीया और गिलास टेवल पर रखकर पूछा। सर आप कैसी शादी चाहते हैं।
इसपर प्रिंसिपल साहब पहले कुछ देर शांत रहे
और फिर उन्होंने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा। देखिए हमारे लड़के के लिए रिश्तों
की कोई कमी नहीं है। हमारे पास आए दिन रिश्ते आते हैं। औऱ हमारी जात विरादरी में
तो हर चीज पहले से ही तय होती है। लड़का दिल्ली पुलिस में था तभी भी बहुत से
रिश्ते आएं। लेकिन हमने शादी नहीं की क्योंकि लड़के का कहना था की पहले आईएएस हो
जाए फिर शादी करेंगे। देखिए भाई साहब आपका रिश्ता हमें इसलिए अच्छा लगा की आप हैं
दिल्ली से और आपने बताया की आपका परिवार बेहद खानदानी है। लड़की भी सुंदर है
इकलौती है और बसंत बिहार में बंगले मे रहती है। हम भी पटना छोड़कर दिल्ली के किसी
अच्छे इलाके में जाकर रहना चाहते हैं। हमारा ये कहना है जब आपको अफसर चाहिए तो ठीक
है हमारा बेटा आपकी बेटी के योग्य है। रही बात शादी की तो शादी तो हम अपने रीति
रिवाज के मुताबिक ही करेंगे। हमारे यहां लड़का अफसर हो तो दांतुन सोने की छड़ी से
करता है। तो आप बताइयें आप शादी पर कितना खर्च करेंगे। प्रिंसिपल साहब की बात
सुनकर और उनका बयान सुनकर हमारे माथे पर अब तक पसीने की कई लकीर बन गयी थी। हम
सुनते जा रहे थे और विवेकानंद की तस्वीर को निहारते जा रहे थे। हम एक बार तो ऐसा
लगा की विवेकानंद जी कुछ ही समय बाद तस्वीर में से निकलकर प्रिंसिपल साहब को मुर्गा
बना देंगे। लेकिन, वो तो तस्वीर में थे और सामने हम थे। इसी उम्मीद के साथ
हमने आगे पूछा। वो तो ठीक है सर हम तो बजट बता ही देंगे लेकिन आपने भी तो कुछ सोचा
होगा। इसपर प्रिंसिपल साहब ने कहा देखों भाई हमारे और इनके जमाने में फर्क है। हम
तो ठहरे पुराने लोग। नये लोग हैं। कार फ्लैट बैंक बैलेंस जेबर हर चीज सोचकर चलते
हैं। विदेश यात्रा भी पहले ही सोच लेते हैं। हमारी तरह नहीं हैं की कमाएंगे तो
जाएंगे। ये तो कमाने से पहले ही खर्च कर देते हैं। आप बताइये। आपका क्या बजट है।
प्रिंसिपल साहब की बात हम अच्छी तरह से समझ रहे थे। वो हमसे बजट पूछना चाहते थे।
लेकिन, हम उनसे बजट पूछना चाहते थे। हमने कहा, सर हमारे बजट का क्या है हम तो बजट आपके
हिसाब से बनाएंगे। आप बताओं आप क्या सोचते हैं। इसपर प्रिंसपल साहब ने अपनी मिसेस
को बुलाया बाहर से ही कमरे से आवाज लगाकर वो दरवाजे तक आयी। और बोली....जी। जिसके बाद उन्होंने उनसे कहा....क्या जी दू से अढ़ाई बता दें। क्या कहती हो...इतना ही ना बोला था ना मिंटू। जिसके बाद
प्रिंसिपल साहब की मिसेस ने हां में सिर हिलाया और भीतर चली गयी। इसके बाद
प्रिंसिपल साहब ने दोनों हाथों की अंगुलियों को जोड़ने की मुद्रा में कहा तो ठीक
है आप नहीं मान रहे हैं तो ऐसा कीजिए दो करोड़ कैश दे देना औऱ पचास का रीति रिवाज
कर देना। दावत का खर्च अलग और दुल्हें की गाड़ी वो कौन सा बोला था हां...होन्डा एकॉर्ड वो दे देना गोल्डन कलर की। प्रिंसिपल
साहब हमारे कैमरे पर कैद हो रहे थे। और माया कभी मेरी तरफ और कभी विवेकानंद की
तस्वीर को देख रहे थे। मैं भी सिर झुकाकर प्रिंसिपल साहब की बात सुन रहा था। और
सोच रहा था की विवेकानंद को कब इस घर से मुक्ति मिलेगी। इस बीच प्रिंसिपल साहब
अपनी बात खत्म कर चुके थे। और कमरे में सन्नाटा हो चुका था। जिसके बाद सन्नाटा
तोड़ते हुए प्रिंसिपल साहब ने कहा। अरे भाई चुप्प क्यों हो...क्या ज्यादा बता दिया। हमने कहा नहीं नहीं
ऐसा नहीं है। हम तो सोच रहे थे की ये दो करोड़ आप तक कैसे पहुंचाया जाए प्रिंसिपल
साहब ने तपाक से कहा सगाई पर और कब और वो भी कैश। क्योंकि क्या है की हमारी भी
इज्जत का सवाल है। प्रिंसिपल साहब अपनी बात खत्म कर चुके थे। औऱ हमारा कैमरा भी
अपना काम कर चुका था। जिसके बाद हमने प्रिंसिपल साहब से इजाजत ली और पटना जू के
पास आकार एक एक ठंडा पिया और एक दूसरे का चेहरा देखकर काफी देर तक हंसते रहे।
जिसके बाद हम वापस होटल आ गए।
बिहार से वापसी और किस्सा सत्तु का
मैं और भूषण बिहार से आने की सोच ही रहे थे...हम
होटल पहुंचे....और दिल्ली वापस आने की योजना बनाने लगे। हमने ये डिसाइड किया की एक
मीटिंग के बाद सीधे दिल्ली चले चलेंगे। हम पटना में थे....और शाम के समय पटना की सड़कों
पर अच्छा खाना ढूंढते थे। इस बीच हमारे बीच कई मुद्दों पर बात होती। जिसमें खोजी पत्रकारिता
पर घंटों बात होती थी। माया मुझसे अक्सर कहते की स्टिंग का आने वाला समय बेहद खतरनाक
है। क्योंकि चैनल के मालिक स्टिंग को अब खोजी पत्रकारिता से कम औऱ पैसा कमाने वाला
टूल ज्यादा समझते हैं। माया ने जिसका उदहारण बेहद उम्दा तरीके से दिया। माया ने मुझसे
ऑपरेशन भीष्म की बात की ...जो एनडीए की सरकार के जमाने में जी न्यूज पर टेलिकास्ट होने
वाला था। इस स्टिंग का प्रोमो रिलीज हो गया था...लेकिन एकएक ये स्टिंग रूक गया...औऱ
जी की मार्किट वेल्यू बदल गयी। इस स्टिंग के बाद जी न्यूज का बेहद चौंकाने वाले तरीके
से एक्सपेंशन हुआ। यानी स्टिंग के पीछे की दुनिया वैसी नहीं है जैसी दिखती है। भूषण
की उस समय कही गयी बात मेरी ज्यादा समझ में नहीं आयी थी। लेकिन मैं इतना जरूर समझ गया
था की स्टिंग की दुनिया वैसी नहीं है। जैसी दिखती है। माया ने एक कहानी और सुनाई जिसमें उन्होंने बताया
की कैसे स्टिंग के बाद सरकारी तंत्र बदलता है औऱ सरकार कैसे अपनी रणनीति बनाती है।
ऑपरेशन चक्रव्यूह और ऑपरेशन एम पी लेड के बाद सांसद एलर्ट हो गए...औऱ संसद में सवाल
पूछने की खबर के बाद...संसद में सवाल पूछने से पहले सांसदों ने सवाल क्यों पूछा जा
रहा है इसकी जानकारी देनी शुरु की। खुलासे चाहे कैसे भी होते हो...लेकिन एक बात तय
होती है की खुलासे होने के बाद ही माहौल बदलता है। लेकिन देश की सरकार शायद ये बात
मानती नहीं है। इसलिए आएं दिन सबसे ज्यादा सवाल स्टिंग पर ही उठते आएं हैं। ये बात
ठीक है की कुछ स्टिंग ने पत्रकारिता का चेहरा बदल दिया। लेकिन हर स्टिंग फेक हो ये
भी गलत है। माया बोलते जा रहे थे...औऱ मैं सुनता जा रहा था। जिसके बाद माया ने कहा
यार बिहार के सत्तु का जिक्र हम खुब सुनते हैं...। लेकिन यहां कहीं सत्तु दिखाई तो
नहीं दे रहा। फिर मैंने औऱ भूषण ने ये डिसाइड किया की पटना में लिट्ठी चौखा जो सत्तु
का ही बनता है खा कर ही चलेंगे। हम लीठी चौखा खोजते खोजते होटल की ओर बढ़ रहे थे। हम
जिस जगह पर रहते थे वो पोस्ट ऑफिस के पास थी। हमने वहीं पर एक रिक्शे वाले से पूछा
की भईया यहां लिठी चोखा कहां अच्छा मिलेगा। उसने हमारी ओर देखा औऱ कहा क्या भाई साहब
आप वहीं खड़े हैं जहां पटना का बेहतरीन लीठी चोखा मिलता है...ये कोने पर ही है गरीबों
का लीठी चोखा की दकान कम कीमत में बढ़िया खाना यहीं पर मिलता है। जिसके बाद हमने कोने
वाली इस दुकान पर कई दिन तक लीठी चोखे का सेवन किया। जब तक की अमिताभ जी का फोन नहीं
आया।
अमिताभ जी का फोन औऱ बिहार की मीटिंग
मैं औऱ माया अगली मीटिंग की तैयारी कर रहे थे।
ये मीटिंग पटना में ही एक मैरिज ब्यूरो ने करवाई थी। हम पहले इस मैरिज ब्यूरो पर गए।
जहां हमारी मुलाकात शालिनी झा से हुई। ये पटना के मॉल रोड पर स्थित है। जिसमें हम जब
वहां पहुंचे तो शालिनी झा कई क्लाइंटो के साथ मशरूफ थी। इसी बीच हम अपना कैमरा ऑन कर
चुके थे। शालिनी झा पटना में झा परिवारों में आईएएस दुल्हों की शादी करवाने के लिए
मशहूर थीं। और उऩके पास एक बुजुर्ग अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढ रहे थे। हम उनकी बात
ध्यान से सुन रहे थे। हालांकि वो मैथिल भाषा में बात कर रहे थे। औऱ हमें मोटा मोटा
ही सारांश समझ में आ रहा था। जिसका सार ये था की लड़के के पिता को दहेज में अच्छा खासा
नगद औऱ बढ़िया शादी की उम्मीद थी। जिसके लिए वो शालिनी से बात कर रहे थे। ये बात पूरी
कैमरे पर कैद हुई। जिसे चैनल ने दिखाया नहीं। अब हम इस मीटिंग के बाद शालिनी के मुंह
से ही ये बात सुनना चाहते थे की आखिर बातचीत मे हुआ क्या। हमने शालिनी जी से पूछा की
मैडम सर क्या कह रहे थे। शालिनी ने बड़ी ही सादगी से कहा। अरे सर...जिनका बेटा अफसर
हो जाता है ना...उनकी डिमांड बढ़ जाती है। उन्हें लगता है की बस बेटा अफसर हो गया अब
तो लड़की वालों को लूट लो....और लड़की वाले भी ऐसे ही लड़कों को खोजते हैं। अब आपको
ही देखों आप भी तो दिल्ली से यहां चले आए। मैंने कहा हां...मैडम आपने ठीक कहा हम भी
यहां तक आईएएस दुल्हें के चक्कर में आ गए। जिसके बाद....शालिनी ने हमें दो लड़कों के
फोटो दिए पते दिए जिसमें से हमने एख लड़के को फाइनल किया। इससे पहले शालिनी ने हमसे
2000 हजार रुपये भी लिए रजिस्ट्रेशन अमाउंट के रूप में। जिसके बाद...हमारी मीटिंग फीक्स्ड
हुई।
पटना का आईएएस लड़का
हम शालिनी के बताए लड़के से मिलने पहुंचे। लड़का
मैन्स क्लीयर कर चुका था औऱ इंटरव्यूह की तैयारी कर रहा था। जिसकी जानकारी शालिनी की
भो नहीं थी। उसने हमसे कहा की लड़का ट्रेनिंग पर जाने वाला है। हम जब लड़के से मिले
तो हमारा मूढ़ ऑफ हो गया। लेकिन खबर तो करनी ही थी। हमने लड़के से पूछा की आपको क्या
उम्मीद है आप पास हो जाएंगे। लड़का कॉनफिडेंट था। उसने कहा हां...मैं पास हो जाउंगा।
और ट्रेनिग पर जरूर जाउंगा। जिसके बाद हमने बातचीत शुरु की...हमने पूछा आपके यहां शादी
व्याह किस तरह से होते हैं...लड़के ने हमें बिहार का पूरा कस्टम समझाया सगाई से लेकर
शादी में खाने पीने की शर्त तक लड़का बताता रहा औऱ हम सुनते रहे। बीच बीच में मैं औऱ
भूषण ये भी पूछते की आप इतने कस्टम कैसे निभाते हैं। इसपर लड़का कहता अरे शादी के माहौव
में मजा बहुत आता है। हमारे यहां शादी का मतलब है पूरा फेस्टिवल। तीन चार दिन तक बढ़िया
माहौल रहता है। इस बीच हमे भी अपने पूरे परिवार से मिलने झुलने का मौका मिलता है। हमारे
यहां शादी का मतलब ही है....त्यौहार। इस तरह से हम इस लड़के की बात सुनते रहे। फिर
हम इसी बीच अपनी बात पर आएं हमने पूछा भाई अगर आप शादी करोगे औऱ आईएएस बन गए तो दहेज
कितना लोगे। इसपर लड़का पहले तो शर्मा गया और फिर बोला। देखिए सर पहले तो हम दहेज वाली
लड़की से शादी नहीं करेंगे। हम तो शादी अपनी ही किसी सहयोगी से करेंगे क्योंकि जब पत्नी
पत्नी दोनों आईएएस होंगे तो खूब सारा पैसा एक साथ कूटा जाएगा। इतना सुनकर मैं औऱ भूषण
की हंसी छूट गयी और मन ही मन मैंने ये कहा की वाह बेटा आप तो दहेज के लोभिय़ों के भी
बाप निकले आप तो पहले से ही देश लूटने की योजना बना रहे हैं। जिसके बाद हमने लड़से
से ज्यादा बात नहीं की और हम लड़के के घर से चलते बने। जिसकी जानकारी हमने अमिताभ को
दी औऱ उन्होंने हमें दिल्ली आने के लिए कह दिया।
अध्याय सात
दिल्ली में मार्च का पहला सप्ताह
हम दिल्ली आ चुके थे। औऱ बिहार की थकान भी उतार
चुके थे। इस बीच साइकोरियन से कई फोन आ चुके थे। और हम नीलम गुप्ता से भी बात कर चुके
थे। नीलम से हमने लास्ट मीटिंग करनी थी....जिसकी जानकारी हम अमिताभ को दे चुके थे।
अमिताभ का जिसपर कहना था की इस मीटिंग में ही आपको सब कुछ करना है। क्योंकि नीलम पर
हम काफी समय खराब कर चुके हैं। जिसके बाद हमे दिल्ली के भी कुछ लड़कों को खंगालना था।
हम 2 मार्च को दिल्ली के ऑफिस में मिले। जहां अमिताभ को हमने अभी तक की सारी डिटेल
के बारे में जानकारी दी। जिसपर अमिताभ ने कहा यार स्टोरी तो खड़ी होती है। लेकिन अभी
तक ये तय नहीं है की इसका हीरो कौन है। और स्टोरी कैसे फोड़ी जाए...मैंने कहा सर साइकोरियन
है....शालिनी है...इसके अलावा मीटिंग्स हैं। औऱ क्या चाहिए। इसपर अमिताभ ने कहा भाई
सब कुछ ठीक है...लेकिन फिर भी कुछ कमी है। हमे एक ऐसी बाइट चाहिए...जिसपर स्टोरी टंग
जाए। आप नीलम के पास कब जा रहे हैं। हमने कहा सर वो हमारे फोन का इंचतजार कर रही है।
आप को तय करना है हम कब जाए। इसपर उन्होंने कहा ठीक है 10 मार्च को उनसे मिलो। जिसके
बाद हमने नीलम से समय लिया औऱ 10 मार्च की मीटिंग फीक्स हो गयी।
नीलम के घर मीटिंग
हम दिल्ली में साइकोरियन में सुमिता और नवीन को
भरोसा दे चुके थे की हम नीलम गुप्ता के साथ फाइनल मीटिंग करने जा रहे हैं। क्योंकि
ऐसा कहने पर साइकोरिन नीलम को ये जानकारी डिलीवर करने वाला था। जिसका फायदा हमें मिलना
ही था। क्योंकि इस तरह से नीलम भी अपना माइंड मेकअप कर लेती की 10 मार्च की मीटिंग
लास्ट है जिसके बाद उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं मिलेगा।
हमने नीलम से समय लिया और हम नीलम के घर ठीक चार
बजे एक सुंदर से बुके के साथ पहुंचे। गुलाब के लाल फूल हाथ में लेकर नीलम गुप्ता के
चेहरे पर मुस्कान तैर गयी। और उन्होंने धीरे से कहा की इसकी क्या जरूरत थी। हमने कहा
मैडम आज आपके पास आ रहे थे खाली हाथ आना अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए आपके चेहरे जैसे
खिलते गुलाब हम आपके लिए ले आए। अपनी इस अंदाज में ताऱीफ सुनकर नीलम के चेहरे पर शर्म
तैर गयी। जिसके बाद हम उनके आलीशन घर के हॉल
में बैठ गए। जहां नीलम गुप्ता ने हमारे लिए बढ़िया चाय नाश्ते का पहले से ही इंतजाम
किया हुआ था। हम लगातार उनसे बात चीत कर ही रहे थे। जिसके बाद हमने उनसे सीधे टॉपिक
की बात की....हमने पूछा मैडम हम बात चीत तो सारी कर रही चुके हैं...आप हैसियत से शादी
की बात बता ही चुकी है। अभी जैसा आपने बताया विक्रम (नीलम गुप्ता का बेटा) ट्रेनिग
पर हैं। क्या आपकी उनसे इस मामले पर बात हो गयी है। नीलम ने हमसे कहा देखिए बात हो
गयी है। जैसा मैंने बताया था की शादी हमारी हैसियत से होनी चाहिए। और इससे पहले हम
लड़की को जरूर देखेंगे। मैंने कहा आप जब चाहे लड़की को देख सकते हैं। लेकिन हम आपका
बजट जानना चाहते हैं. ताकी आगे किसी भी तरह की कोई समस्या ना हो। इसपर नीलम ने कहा
देखों भाई साहब मैं भी अब ज्यादा लागलपेट कर बात नहीं करनी चाहती। आप ही बताइये आपका
क्या बजट है। मैंने छूटते ही कहा....सवा करोड़ कैश औऱ रीति रिवाज...जिसके बाद नीलम
गुप्ता ने कहा कुछ औऱ ठीक नहीं हो सकता। मैंने पूछा कितना उन्होंने कहा डेढ़ करोड़
कैश और रीति रिवाज हमने कहा डन.....और जिसे पुख्ता करने के लिए मैंने ये बात फिर से
कहलवाई। जिसे नीलम गुप्ता ने बोल भी दिया। इतनी बाइट मिलते ही। हम दोनों आराम से नीलम
गुप्ता के घर से निकल गए। और रास्ते में हमने अमिताभ को फोन किया।
अमिताभ का नीलम पर रियेक्शन
अमिताभ को माया ने फोन किया। माया ने छुटते ही
अपनी मूछों पर ताव देते हुए कहा दादा (फोन पर) फिल्म की हीरोईन औऱ हीरो शूट हो गए।
रिलीज की डेट फाइनल कर लो। जिसपर अमिताभ को दूसरी ओर से संदेश आया की गुड आप सीधे घर
आओ मैं बाइट सुनना चाहूंगा।
अमिताभ के घर पर
मैं और माया अमिताभ के घर पर पहुंचे। समय तकरीबन
9 बज रहे थे। मैं और भूषण बुरी तरह से थके हुए थे सफर की वजह से। लेकिन स्टोरी के चलते
हमारे माथे पर शिकन नहीं थी। मैंने कहा सर बाइट सुन लो...अमिताभ जी ने बाइट सुनी औऱ
कहा...ये हुई बात अब चलेगी स्टोरी। जिसके बाद उन्होंने कहा की बॉस ये स्टोरी स्टार
न्यूज पर चलेगी। और स्टार न्यूज में मेरी बात हो गयी है। आप स्क्रिप्ट के एंड से तैयारी
कर लो। हम स्टोरी जल्द ही डीलिवर करना चाहते हैं। इतना कहने के बाद अमिताभ ने कहा की
हम कल ऑफिस में मिलेंगे और आग के लोगों के बारे में सोचेंगे की उनका क्या करना है।
जिसके बाद मैं और भूषण अमिताभ के यहां खाना खाकर अपने अपने घर चले गए।
दूसरे दिन ऑफिस में
दूसरे दिन हम समय से ऑफिस में थे। औऱ आते ही हम
काम में मशगूल हो गए थे। हम सभी टेप्स को लॉग कर रहे थे। जिसमें मुख्य बाइट निकालकर
उसे लिखना होता है हम कर रहे थे। इसी बीच अमिताभ वहां पहुंचे औऱ आते ही पूछा की टेप्स
लॉग हो गयी। हमने कहा सर अभी कुछ समय लगेगा। क्योंकि काफी टेप्स हैं। उन्होंने कहा
जल्दी कीजिए....कल टेप्स स्टार जानी है। हमने कहा सर औऱ वाकी की मीटिंग्स जिसपर अमिताभ
ने कहा अब जरूरत नहीं है। इतने काफी हैं। औऱ फिर स्टोरी खड़ी करने के लिए जो मैटिरियल
चाहिए वो मिल चुका है। अब पैसा औऱ समय खराब करने की जरूरत नहीं है। इतना सुनने के बाद
ऑफिस में सन्नाटा छा गया औऱ मैं औऱ भूषण स्किप्टिंग में मशरूफ हो गए।
ऑफिस में अमिताभ की बेचैनी
हम स्क्रिप्टिंग में मशरूफ थे। इस बीच अमिताभ लगातार चैनल में बात कर रहे
थे। अमिताभ की बातों से लग रहा था की वो उदय शंकर से बात कर रहे हैं... स्टार इंडिया
के सीईओ थे। जब वो उनसे बात कर रहे थे तो उनके माथे के ऊपर खींचती लकीरे ये साफ करने
के लिए काफी थी की वो किसी उधेड़बुन में हैं। जिसका जवाब अभी तक उन्हें मिला नहीं है।
वो फोन पर लगातार कहते थे ठीक है। लेकिन, इस तरह से स्टोरी नहीं चलेगी। हम स्क्रिप्टिंग के एंड से मजबूत हैं। औऱ
स्क्रिप्टिंग हम ही करेंगे। हां. पैकेजिंग आप करवा लेना। लेकिन, उदय शंकर शायद ये बात मानने के लिए तैयार नहीं थे। इस बीच अमिताभ ने कहा
ठीक है। मैं शाजी से मिल लेता हूं। शाजी स्टार
न्यूज जो अब एबीपी न्यूज हो चुका है उसके ग्रुप एडिटर हैं। अमिताभ ने ये कह कर फोन
रख दिया। शाजी से हम कभी नहीं मिले थे औऱ ना ही इसकी हमें कभी जरूरत भी पड़ी। क्योंकि
हम डिग में काम कर रहे थे जो स्टार औऱ आईबीएन 7 औऱ सीएनएन आईबीएन के लिए काम करते थे।
असल में डिग एक आजाद कंपनी थी और वो फ्री लांस स्टिंग ऑपरेशन करवाती थी जिसके मालिक
अमिताभ थे। अमिताभ जेएनयू के विद्यार्थी रह चुके थे और हमेशा से ही लीक से हटकर काम
करने में भरोसा करते थे। इसीलिए हम भी उन्ही के साथ हो गए थे। माया तहलका छोड़कर आया
था। उनसे पहले जमशेद खान जो आजकल इंडिया टीवी के साथ काम करते हैं। वो भी तहलका छोड़कर
अमिताभ के लिए काम किया करते थे। लेकिन धीरे धीर सभी लोग अमिताभ को छोड़ कर चले गए।
अमिताभ को छोड़ने के पीछे कोई बड़ा कारण किसी का नहीं रहा बस इतनी सी बात रही की चैनल्स
ने बाहर से स्टिंग लेना बंद कर दिया। जिसके चलते हमें काम मिलना बंद हो गया। खैर स्टार
के ग्रुप एडिटर शाजी जमान से अमिताभ की मीटिंग फीक्स हो गयी।
अध्याय आठ
मीटिंग के बाद ऑफिस में पहली मुलाकात
अमिताभ शाजी जमान से मिलकर आ चुके थे। शाजी जमान की अमिताभ से कुछ खास
बात हुईं जो हमें बेशक बताई नहीं गयी। हमें सिर्फ इतना कहा गया की अभी काम पूरा नहीं
हुआ और आप लोग औऱ मीटिंग करो। हमारी समझ में ये बात नहीं आयी क्योंकि एक दिन पहले ही
हमसे कहा गया था की काम पूरा हो गया। लेकिन फिर से उसी स्टोरी पर फोकस करना बेहद मुश्किल
काम होता है खासतौर पर एक रिपोर्टर के लिए क्योंकि स्टोरी हो जाए औऱ फिर उसे खींचना
एक रिपोर्टर के लिए किसी सजा से कम नहीं होता। लेकिन हम इसके सिवा कर भी क्या सकते
थे की हम फिर से अखबार खंगालते और मीटिंग लाइन अप करते।
दिल्ली की मीटिंग्स
हम अखबार खंगाल चुके थे और इस बीच कई दिन बीत चुके थे। हम ऑफिस जाते नयी
स्टोरी प्लान करते औऱ शाम को प्रदीप जी के साथ ऑफिस के बाहर कोने पर दो दो समोसे खाते
और अपने अपने घर चले जाते। ये रूटीन लगातार दो महीने चला और मई की एक दोपहर जब मैं
और भूषण एक औऱ स्टोरी पर काम कर रहे थे। उस समय अमिताभ का फोन आया औऱ हमसे पूछा गया
की दिल्ली की मीटिंग्स का क्या चल रहा है। माया ने कहा दादा आज शाम तक बताते हैं।
जनकपुरी की मीटिंग औऱ किस्सा बहन की शादी की
हमने अमिताभ को बताया की साइकोरियन से ज्यादा बात नहीं होती। उनके मुताबिक
अब उनके पास ज्यादा रिश्ते नहीं हैं। और क्योंकि वो सभी रिश्ते हमें बता चुके हैं तो
अब जब नये रजिस्ट्रेशन आएंगे तो वो हमें सूचित कर देंगे। इस बीच अमिताभ ने पूछा की
हम किसी औऱ मैरिज ब्यूरो को चेस क्यों नहीं कर रहे हैं। तो हमने बताया की दादा हमने
चार पांच मैरिज ब्यूरो चैक किए हैं। जिसमें अरविंद गुप्ता जो कैलाश कालोनी में हैं
उनके पास हम होकर आए हैं। उन्होंने रिश्ते बताएं लेकिन उनमें जान नहीं है। वो बिजनेस
मैन बगैरा हैं। हां...एक जनकपुरी का और एक अलकनंदा के कावेरी अपार्टमेंट का है। इसपर अमिताभ ने पूछा जनक पुरी का लड़का कौन हैं।
इसपर हमने कहा जनक पुरी का लड़का पीसीएस है औऱ कावेरी अपार्टमेंट वाला इनकम टैक्स में
है। दोनों ही अफसर हैं। इसपर अमिताभ ने कहा पहले जनक पुरी वाला कंवर्ट करो। इसके बाद
कावेरी अपार्टमेंट का देखना। हम
2 जून 2007 जनक पुरी
हम जनक पुरी लड़के के पास पहुंचे। ये लड़का पीसीएस था और अपनी नियुक्ति
की प्रतिक्षआ कर रहा था। ये लड़का क्योंकि पहले से इंशोरेंस सेक्टर में था और अच्छा
कमा रहा था। जब हम इसके घर पहुंचे तो लड़के ने ही हमारा स्वागत किया। जिसके बाद हमने
अपनी बात चीत शुरु की। बातचीत में लड़के ने अपना परिचय बड़े ही अदब से दिया। लड़के
ने बताया की उसके पिता का देहांत तीन साल पहले हो गया। जिसके बाद उसने ही परिवार को
संभाला है। घर में दो बहने हैं औऱ एक भाई है। वो सबसे बड़ा है। इस लड़के ने कहा की
वो अपनी एक बहन की शादी कर चुका है। और दूसरी की शादी के लिए लड़का देख रहा है। इस
लड़के से हमने पूछा की आपने अपनी बहन की शादी
कैसे की तो लड़के ने बताया की पिता की मेचोरिटी का पैसा था और कुछ जमा पूंजी थी जो
उसने शादी में खर्च कर दी है। हमने पूछा की कितना खर्च हो गया। इसपर लड़के ने कहा की
तकरीबन 30 लाख रुपये खर्च हो गए...क्योंकि लड़के की कोई मांग नहीं थी...लेकिन फिर भी
लड़का अच्छा था। जिसके बाद हल्की गाड़ी (एस्टीम) तो बनती ही थी औऱ जिसके बाद लेना देना
तकरीबन 21 में निपट गया। 11 सगाई में और 10 विदाई में। इसके बाद गाड़ी और पार्टी में
और पैसा लग गया। मैंने पूछा की अगर सारा पैसा आपने अपनी बहन की शादी में लगा दिया तो
अगली बहन की शादी कैसे करेंगे। लड़के ने बेहद सादगी से बताया...देखिए भाई साहब अब मैं
भी तो शादी करूंगा...और ये सारी जमीन और गांव की जायदाद भी हम दो ही भाइयों की है।
ऐसे में अपनी बहनों के प्रति हमारा भी तो फर्ज बनता ही है। औऱ अगर इन्हें नहीं देंगे
तो लेंगे कैसे। इसपर हम एकदम चुप हो गए। औऱ फिर कुछ समय के बाद चाय की चुस्की लेते
हुए माया बोले तो भाई साहब आप अपनी बहन की
शादी को इंवेस्टमेंट मान रहे हैं। इस पर लड़का थोड़ा भड़क गया। उसने हमसे कहा। नहीं
इंवेस्टमेंट नहीं है फर्ज है। और दूसरा भी अगर हमारे घर मे आएंगा तो हमारे पास भी कुछ
होना चाहिए बताने के लिए। हम लड़के की बात बेहद ध्यान से सुन रहे थे। औऱ दीरे धीर भविष्य
की योजना भी पूछ रहे थे। लड़के ने अपना भविष्य पहले ही तय किया हुआ था। लड़के के मुताबिक
वो अपनी नियुक्ति सेंट्रल गोर्वमेंट मे करवाना चाहता था..। क्योंकि उसके कई रिश्तेदारों
का पॉलटिकल बेकग्राउंड था। जिसका वो भविष्य में वो जमकर फायदा उठाना चाहता था। इसके
अलावा अपनी सगाई के साथ ही वो अपनी दूसरी बहन की शादी करना चाहता था। भाई क्योंकि अभी
पढ़ रहा था तो अभी उसे पढ़ाने के लिए पिलानी भेजना था। कुल मिलाकर खर्चे ज्यादा थे...औऱ
इनकम कम। इस हिसाब से लड़के को तकरीबन एक करोड़ रुपये की दरकार थी..जिसमें उसके भाई
की पढ़ाके साथ उसके विदेश से स्पेशल कोर्स की फीस, बहन की शादी औऱ अपने मकान को जो पूरा नहीं बना था...कई मंजिला करने की
योजना थी जिसमें अच्छी खासी रकम लगती औऱ शेष रुपयों से शानदार जीवन यापन करना था....जो
लड़के को लग रहा था की हम उसे दिलवा देंगे। इतना सुनने के बाद माया ने कहा भाई साहब
हम तो इतने अमीर हैं नहीं की आपको इतना पैसा दे दें...हां कुछ कम हो जाता तो सोच सकते
थे। माया ने ये बात शायद इसलिए बोली थी की माया ये जानना चाहते थे की लड़का कितनी पहुंची
हुई चीज है। इसप लड़ने ने पहले अपने मुंह पर हाथ फेरा औऱ कहा सर देखिए मैंने ये तो
नहीं कहा की आप मुझे एक करोड़ दे दो। आप कम भी दिलवा दो। देखिए लड़की जब घर आयेगी तो
खाली हाथ तो आएगी नहीं औऱ बहन की शादी भाई की पढ़ाई तो अगर लड़की आती भी है तो फिर
भी तो मेरे साथ हाथ बटायेगी ऐसे में एगर ये पहले ही हो जाता है तो इसमें गलत ही क्या
है। लड़के की बात हमें भी धीरे धीरे ठीक ही लगने लगी थी औऱ मैं सोचने लगा था की अगर
समाज ऐसे सोचता है तो इसमें गलत भी क्या है,,,क्योंकि एक तरफ जहां दिया जा रहा है दूसरी तरफ से लिया भी जा रहा है। मैं
अभी इस पर विचार कर ही रहा था इस बीच माया ने कहा क्यों रवि बाबू आप भी अपनी शादी के
बारे में सोचने लगे। मुझे जैसे झटका सा लगा औऱ मेरी तंद्रा टूटी और मैंने मन ही मन
कहा यार क्या सोचने लगा में इन समाज के ठेकेदारों की सुनसुनकर। मैंने अपना पाला संभाला
औऱ लड़के से पूछा भाई साहब अब आप सीधे सीधे ये बता दो की आप को अगर हम हां कहते हैं
तो कितने में बात बन जाएगी। इस पर लड़के ने कहा भाई साहब 50 लाख तो मुझे कैश चाहिए
ही चाहिए। इसके अलावा पार्टी या शादी आप जैसी भी करवाओं मंजूर है। हम एक दूसरे की शक्ल
देखने लगे औऱ सोचने लगे की लड़का एक दम से आधे में आ गया। जिसके बाद लड़के ने आगे बोलते
हुए कहा। औऱ हां भाई साहब इस शर्त पर मैं लड़की के लिए साधारण ही जेबर गहने लेकर आउंगा।
हां...वो घर से सज धज कर आना चाहे तो वो उसकी मर्जी है...क्योंकि इतने में तो बेहद
सस्ती शादी होती है। हमने एक बार फिर पूछा...तो लड़के ने फिर वहीं जवाब दिया। जिसके
बाद हम मीटिंग खत्म करने के बाद वापस ऑफिस पहुंच गए।
ऑफिस में अमिताभ से मीटिंग औऱ फाइनल शूट
हम दूसरे दिन समय से ही ऑफिस में थे। औऱ अमिताभ के आने का इंतजार कर रहे
थे। इस बीच सुमिता ने कई मेल औऱ भेजी। जिनपर हमने किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया
नहीं दी। जिसके बाद प्रदीप जी के साथ हमारी हंसी मजाक चल रही थी। हम उन्हें छेड़ते
हुए बोल रहे थे प्रदीप जी स्टोरी तो साला कोढ़ हो गया इसमें हर रोज नए घाव आ रहे हैं।
हम प्रदीप जी से मजाक कर ही रहे थे। की अमिताभ ने ये सुन लिया। और वो तपाक से बोले
रवि जी कोढ़ कैसे हो गया। क्या स्टोरी में एलिमेंट अच्छे नहीं आ रहे हैं। हमें उम्मीद
नहीं थी की अमिताभ ऑफिस में दनादना कर चले आएंगे। जिसके बाद हमारी सिटी पिट्टी गुमं
थी। हमने कहा नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं है असल में अब हम स्टोरी को और लंबा नहीं खींचना
चाहते। इस पर अमिताभ ने कहा ये फैसला आप नहीं करेंगे ये फैसला मैं करूंगा की स्टोरी
कितनी खींचनी हैं।
अमिताभ ने फरमान सुना दिया था। और हम अगले शूट को लाइन अप करने में लग
गए। माया अमिताभ के साथ किसी बात को लेकर बिजी हो गया। और इस बीच ये दोनों मुझे बार
बार देखते और देखा अनदेखा कर देते। प्रदीप जी मेरे पास ही सिगरेट के छल्ले उड़ा रहे
थे। और मैं फोन पर बात कर रहा था। इस बीच कावेरी अपार्टमेंट के लड़के की मीटिंग फीक्स
हो गयी। औऱ 20 जून की मीटिंग फीक्स हुई क्योंकि
वो दिल्ली से बाहर था औऱ 19 जून को दिल्ली वापस आ रहा था। जिसकी जानकारी मैंने अमिताभ
को दे दी। अमिताभ ने जिसके बाद कहा की माया क्या कहते हो रवि अब स्टोरी से ऊब गए हैं।
इस मीटिंग के बाद क्लोज कर दें। देखा जाएगा। जो भी होगा। माया ने कहा डन दादा वाकी
रवि से पूछ लो। अमिताभ जी ने मेरी तरफ देखकर कहा बोलो रवि मीटिंग के बाद स्टोरी क्लोज
कर दें। मैंने इसपर कहा सर जैसा आप कहे। मैं तो लाइऩ अप करता ही रहूंगा। इस पर अमिताभ
ने कहा नहीं कोई दवाब नहीं है। अगर आपका मन नहीं लग रहा है तो दूसरी स्टार्ट करते हैं।
मैंने कहा ठीक है सर ये मीटिंग लास्ट करते हैं। इसपर अमिताभ ने कहा ठीक है। मीटिंग
करो और स्टोरी क्लोज।
20 जून कावेरी आपर्टमेंट अलंकनंदा
हम तय शुदा कार्यक्रम के तहत अलकनंदा पहुंच गए थे। यहां हमारा सामना एक
बेहद शातिर व्यक्ति से होने वाला था जिसका अंदाजा हमे नहीं था। हम जैसे ही इस सज्जन
के पास पहुंचे तो इन्होंने हमें एक बड़े से ड्राइग रूम मे बैठाया औऱ बैठते ही कहा की
आजकल कुछ मीडिया वाले अफसर लड़कों के पीछे पड़े हैं। वो उन्हें फंसाने की कोशिश कर
रहे हैं। इस पर हमने एक दूसरे की ओर देखा औऱ फिर माया ने कहा सर हम समझे नहीं ये सवाल
आप हमसे आते ही क्यों कर रहे हैं। इस पर इस सज्जन ने कहा नहीं नही मैं तो यूं ही बात
स्टार्ट करने के लिए बोला था। हमने कहा जनाब बात स्टार्ट करनी थी तो किसी और अंदाज
में शुरु की जा सकती थी। ये मीडिया कहां से घुसा चला आया आपकी औऱ हमारी बात में। इस
पर लड़के के पिता को लगा की बाकई हमारा मीडिया से कोई लेना देना नहीं है। फिर वो बोले
असल में माया जी आपने जो चश्मा पहना हुआ है वो ज्यादातर सरकार अफसर या फिर मीडिया पर्सन
ही पहनते हैं। उस दिन माया ने बेहद फूहड़ प्लास्टिक के फ्रेम वाला चश्मा लगाया हुआ
था और टी शर्ट औऱ जीन्स पहनी हुई थी उसपर बुडलैंड के मोटे मोटे जूते औऱ बड़ी हुई दाढ़ी
जिन्हें देखकर कोई भी कह सकता था की ये पत्रकार है या फिर एनएसडी की भटकता हुआ कलाकार।
शायद इन सज्जन को कलाकार ये कही से नजर नहीं आये तो इन्हें पत्रकार समझ कर गोला दाग
दिया। जिसे संभालना मुझे पड़ा। खैर बातचीत का माहौल बना औऱ बात शुरु हुई लड़की की फोटो
से। लड़का क्योंकि वहीं ड्राइंगरूम में मौजूद था। औऱ हमे ध्यान से देख रहा था। इस बीच
लड़के ने कहा रवि जी क्या आपकी औऱ मेरी मुलाकात पहले भी कहीं हुई है। मैंने कहा नहीं...लेकिन
हो सकता है आपने मुझे अलकनंदा में देखा हो क्योंकि मैं अलकनंदा में ही तारा अपार्टमेंट
में रहता हूं। इस पर लड़के ने कहा हो सकता है। फिर बात चीत शुरु हुई माया ने रूमाल
निकालने के बहाने कैमरा ऑऩ किया लेकिन ये दोनों इतनी दूर थे की फ्रेम बन ही नहीं रहा
था। फिर माया ने अचानक ही बैग नीचे जमीन पर गिरा दिया। और फिर बैग उठाने के क्रम में
बैग हमारे बीच में रखी कांच की टेबल पर इस अंदाज से रखा की दोनों बाप बेटे कैमरे पर
ठीक तरह से कैद होने लगे। हम इतमीनान से बैठ गए औऱ हमने सवाल दागने शुरु किए। जिसमें
माया ने आगाज करते हुए कहा की सर आप तो इनकम टैक्स में हैं। और आपका बेटा भी अब इनकम
टैक्स अफसर बन गया। शादी का आपका बजट क्या है। इस पर लड़के के बाप ने कहा देखिए हमारे
पास रिश्ते कई हैं। और ऑफर भी अच्छे हैं। लेकिन बजट क्या होगा ये हमने अभी तय नहीं
किया। हां आप बता दीजिए जिसके बाद हम परिवार के लोगों से मिलकर लड़की को देखकर एक राय
बना लेंगे। इस पर मैंने कहा सर देखिए आप बजट बता दीजिए क्योंकि हम लड़की की नुमाइश
कतई नहीं लगाने वाले। आप बजट बताइये हमें अगर शूट करेगा तो हम डन कर देंगे। जिसके बाद
लड़के ने कहा की आप क्या लड़की से मेरी अलग से मीटिंग करवा सकते हैं। जिसे हमने सिरे
से नकार दिया। हमने कहा की नहीं मीटिंग बजट क्लीयर होने के बाद ही हो सकती है। जिसपर
लड़के के पिता ने कहा ठीक है हमारा बजट एक करोड़ का है जिसमें सभी कुछ शामिल है। इस
पर हमने कहा ठीक है ये हुई ना बात अब हम आपकी परिवार के दूसरे लोगों से मीटिंग करवा
देते हैं। जिसके बाद हमने लड़के के पिता से ये पूछा की वो शादी कहां करना चाहते हैं।
होटल में या फिर फार्म हाउस में। उन्होंने कहा फार्म हाउस क्योंकि वहां जगह की समस्या
नहीं होती औऱ ड्रिक करने के लिए भी ओपन स्पेस होता है। पार्टी भी अच्छी होती है। हमने
पूछा पार्टी में कोई खास अरेंजमेंट इस पर जनाव ने कहा की आजकल बैली डांस का बहुत क्रेज
है...वो अगर हो तो लोग एन्ज्वाय करते हैं। हमने कहा ठीक है साहब हम स्पेशल इंतजाम करवा
देंगे। क्योंकि हमने तो बस पूछना था वायदे करने थे कोई हमसे इस वक्त ताज महल में अरेंजमेंट
के लिए भी कहता तो हम कहते जनाब कर देंगे शाहजहां तो हमें ही रखरखाव का कांन्ट्रक्टे
देकर गए हैं। खैर हम वायदे करते जा रहे थे और साहब का मुंह खुलता जा रहा था जिसमें
उन्होंने लास्ट में कहा की गाड़ी उन्हों बीएमडब्लूय ही चाहिए इससे कम नहीं। हमने कहा
ठीक है। हम आगे की बात कर लेते हैं। जिसके बाद हमने मीटिंग ओवर की और हम बाहर निकल आए।
रास्ते में अमिताभ का फोन आना औऱ अमिताभ के घर डिनर
हम तकरीबन छह बजे अमिताभ के घर पहुंचे। उस दिन अमिताभ थोड़े परेशान थे।
उन्होंने हमारा वेलकम किया औऱ कहा की रवि जी स्टोरी अच्छी हो गयी। लेकिन अभी तक चैनल
ने इसे चलाने की कोई फीक्स डेट नहीं दी है। देखते हैं क्या होता है। लेकिन आप दिल छोटा
मत कीजिए आपका काम शानदार रहा । आप दोनों ने ही इस स्टोरी की बेहद अच्छे तरीके से किया
है। हम सोच रहे थे। अमिताभ ये भाषण हमें क्यों दे रहे हैं। क्योंकि हमने तो सिर्फ काम
किया है। एक रिपोर्टर का यहीं फर्ज होता है की वो स्टोरी को ठीक तरह से करें। उसके
हर एंगल को समझे। अमिताभ बोल रहे थे। औऱ हम सुनते जा रहे थे। इस बीच अमिताभ ने चैनल
के भीतर चलने वाली उठा पटक पर लंबा भाषण दिया जिसे हमने सिर्फ सुना महसूस नहीं किया।
और ना ही हमें भाषण खत्म होने के बाद उसके बारे मे कुछ याद भी रहा।
अमिताभ बोलते जा रहे थे। और भूषण टाफी पर टाफी खाते जा रहे थे। मैं भी
टेबल पर पड़े नमक पारों की जान को आ चुका था और एक कटोरी से ज्यादा नमक पारे खत्म कर
चुका था। इस बीच अमिताभ की वाइफ हमारे लिए चाय लेकर आ चुकी थी। जिसे हमने जल्दी जल्दी
खत्म किया। जिसपर अमिताभ का कहना था की जल्दी है क्या। हमने कहा नहीं सर बस ऐसे ही
भूख लग रही है इसलिए एकदम से खत्म कर दी। इस पर अमिताभ ने कहा हां भाई खाना बन रहा
है आपका बस प्रदीप जी आ जाए फिर आगे की मीटिंग शुरु करते हैं। प्रदीप जी का नाम सुनकर
हम समझ गए की बेटा अब एक आधा घंटा और अमिताभ का भाषण सुनना पड़ेगा। जिसपर माया बीच
बीच मे इंग्लिश की मां बहन एक करते हुए हवन में घी डालने का काम करते रहे। इस बीच मैं
कभी टीवी पर चलती खबर देखता तो कभी माया अमिताभ के चेहरो पर आते जाते हाव भावों को।
इस बीच अमिताभ ने हमारे लिए समोसे भी मंगवाएं जिन्हें भी हम खा चुके थे। इसके बाद प्रदीप
जी लगभग एक घंटे के भीतर आ गए। उनके साथ एक बैग था जिसमें अभी तक के सारे टेप थे जो
हमने शूट किए थे।
अध्याय नौ
हम अमिताभ के घर पर थे। और घड़ी की सुंई आठ बजा चुकी थी। इस बीच अमिताभ
औऱ माया के बीच बातचीत का सिलसिला थम चुका था औऱ प्रदीप जी टेप्स की काउंटिंग कर रहे
थे। प्रदीप ने 25वीं टेप रखी और कहा सर 25 हो गयी हैं। इस पर अमिताभ ने कहा ठीक है।
ये ओरिजनल हैं। इनकी कॉपी कैसे तैयार होगी। प्रदीप जी ने कहा सर बीटीआर से ट्रांसफर
लेकर सीडी में कंवर्ट करना होगा। अमिताभ से पूछा कितना समय लगेगा। इस पर प्रदीप जी
ने कहा सर रात दिन काम किया तो दो दिन नहीं तो चार दिन। इस पर अमिताभ ने कहा ऐसा क्यूं।
इस प्रदीप ने कहा सर एक टेप एक घंटे की है। इस हिसाब से पच्चीस घंटे का डंप हुआ तो
पच्चीस घंटे तो एक फोरमेंट से दूसरे फोरमेंट में जाने में लगेगा और 8 से 10 घंटे सीडी
बनने में लग जाएंगे। इस बीच सिस्टम भी ठीक चलने चाहिए। अगर कोई टेक्निकल फॉल्ट नहीं
आया तो 23 तक काम हो जाएगा। अमिताभ ने कहा ठीक है प्रदीप जी आप 25 तारीख की डेडलाइन
लेकर चलो। और टेप ट्रांसफर पर लगा दो। इसके अलावा स्क्रिप्ट पर फिर से काम करना होगा।
क्योंकि अब तो कई दुल्हें घोड़ी पर चढ़ने वाले हैं। इस पर माया ने कहा सर इसमें भी
दो दिन का समय लगेगा अगले दो दिन में हो जाएगा। अमिताभ ने कहा ठीक है 25 को ऑफिस में
मिलते हैं। जिसके बाद हमने साथ डिनर किया और घर चले गए।
25 जून मुनीरका ऑफिस
हम समय से ऑफिस में थे। इस बीच स्क्रिप्ट औऱ ट्रांसफर का काम पूरा हो चुका
था। अमिताभ आज बेहद शानदार कुर्ते पायजामें में आए थे। उनका नीला कुर्ता और सफेद पेजामा
उनपर खूब फब रहा था। मुंह में पान औऱ हाथ की अंगुलियों में फंसी हुई सिगरेट थोड़ी सी
दाढ़ी बढ़ी हुई गोरे चेहरे पर अलग ही दिख रही थी। अमिताभ ऑफिस में आए औऱ आते ही पीओन
से कहा क्या नाम है इसका ‘प्रमोद’ पानी पिलाओ जिसके बाद प्रमोद पानी लेकर आया।
अमिताभ ने पानी पिया और फिर सिगरेट डस्ट बीन में डालते हुए कहा की हो गयी तैयारी हमने
कहा जी सर हमारी तरफ से तैयारी पूरी है।
टेप का स्टार न्यूज ले जाना और ऑफिस की पॉलटिक्स
हम 26 तारीख को टेप लेकर ऑफिस पहुंचे जहां. हमसे टेप औऱ लॉग शीट ले ली
गयी। जिसके बाद हम इंतजार करते रहे। लेकिन उस दिन स्टोरी पर कोई काम नहीं हुआ। अमिताभ
शाजी जमान के पास बैठे हुए थे। औऱ हम बाहर रिसेप्शन पर। हमें कोई जानकार नहीं थी की
ऑफिस के भीतर क्या चल रहा है। इस बीच हमारे पास संदेश आया की आईये बाइट बता दीजिए।
मैं ऑफिस के अंदर गया औऱ उधर पूरी स्टोरी को कटवाने का जिम्मा मेरे साथ बीएजी फिल्म
में काम कर चुके एक साथी अभिषेक ने लिया हुआ था। मुझे देखकर वो बोला अरे ये खबर आपकी
है। मैंने कहा हां ये खबर हमारी है। इस पर अभिषेक ने कहा की फ्रिक मत करो मस्त स्टोरी
कटेगी। मैंने पूछा की बाइट कटवानी है क्या। उसने कहा छोड़ो यार आपसे बाइट कटवायेंगे
क्या। आप फाइनल फ्यूज से पहले स्टोरी देख लेना। ऑफिस में स्टोरी कट रही थी जिसमें साइकोरियन
कैसे काम करता है। और दूसरे मैरिज व्यूरों किस तरह से दहेज को बढ़ावा देते हैं। इसपर
दो पैकेज काटे गए। इसके अलावा तीन पैकेज अलग अलग काटे गए और इस तरह से आधे घंटे का
प्रोग्राम बनाया गया। इस प्रोग्राम का पैनल अलग था जिसमें समाजशास्त्री औऱ समाजिक कार्यकर्ता
भी शामिल होने थे।
सभी कुछ ठीक चल रहा था इसी बीच अमिताभ ने मुझे फोन करके बाहर बुलाया और
कहा रवि जी बाहर आईये मैंने अभिषेक से इजाजत ली बाहर आ गया। अमिताभ ने कहा रवि जी जिस
तरह से हम स्टोरी सोच रहे हैं उस तरह से स्टोरी चलेगी नहीं क्या करें। मैंने कहा सर
क्या मतलब स्टोरी तो स्टोरी के हिसाब से ही चलेगी। अमिताभ ने कहा वो ठीक है लेकिन कुछ
मैनेजमेंट की ओर से गाइडलांइस हैं। उनका कहना है की मार्किटिंग के लिहाज से हम मैरिज
व्यूरों को नहीं चलाएंगे। मैंने कहा सर ये क्या बात हुई । अगर मैरिज ब्यूरों नहीं चलेंगे
तो स्टोरी सिर्फ एक ही पहलू पर रह जाएगी। जिसपर अमिताभ ने एक सिगरेट निकाली और जलाते
हुए कहा ठीक है। मैं एक बार फिर बात करने की कोशिश करता हूं। और स्टोरी में से ज्यादा
कुछ ना कटे इसकी कोशिश करता हूं। लेकिन कह नहीं सकता क्योंकि लग रहा है स्टोरी में
से कुछ तो कटेगा ही। मैं इस पर खामोश रहा और सोचने लगा की ऐसा क्या चल रहा है जो हमारी
समझ में नहीं आ रहा है।
चैनल का फैसला औऱ स्टोरी पर बबाल
हम स्टोरी डिलीवर कर चुके थे। और हमारे हाथ से स्टोरी जा चुकी थी। या तो
अमिताभ स्टोरी पर कोमपरमाइज करते या फिर स्टोरी ड्रॉप होती। हम स्टोरी ड्रॉप नहीं करना
चाहते थे। हमारी कोशिश ये ही थी की स्टोरी चल जाए। हम सोचते रहे औऱ स्टोरी पर बात करते
रहे। इस बीच अमिताभ एक बार फिर शाजी जमान से मिलने उनके कैबिन में पहुंचे। औऱ हम बाहर
ही रह गए। हम सोच रहे थे की आगे क्या होगा। अमिताभ तकरीबन एक घंटे के बाद बाहर आए औऱ
बाहर आकार बोले चलिए घर चलते हैं। मैंने कहा सर क्या हुआ घर क्यों। अमिताभ ने कहा दूसरी
स्टोरी करो ये स्टोरी नहीं चलेगी। ये सुनकर मेरा औऱ माया का कलेजा मुंह को आ गया। मैंने
कहा सर लेकिन स्टोरी तो कट चुकी है। इसपर अमिताभ ने कहा हां कट चुकी है और कटी हुई
स्टोरी पर ही मार्केटिंग होती है इतनी बात आपकी समझ में नहीं आती।
अमिताभ की ये बात सुनकर मेरे पैर कांप गए। मैं समझ गया की अमिताभ बेहद
गुस्से में हैं। इस बीच माया गाड़ी में बैठ चुके थे प्रदीप ने स्टेरिंग संभाल लिया
था औऱ मैं भी आगे की सीट पर अपनी जगह ले चुका था। प्रदीप ने गाड़ी स्टार्ट की औऱ पूछा
चले अमिताभ ने कहा हां. चलो।
हम नोयडा क्रॉस कर चुके थे। और अपने घर की ओर बढ़ रहे थे। हमारी गाड़ी
लगातार आगे बढ़ रही थी। और हम सोच रहे थे की ऐसा क्या हुआ होगा. जिसरप इतना बबाल हो
रहा है। अमिताभ शायद हमारे मन की बात समझ चुके थे। अमिताभ ने खामोशी तोड़ी औऱ बोलना
शुरु किया। अमिताभ ने कहा रवि जी देखिए हमारे हाथ में स्टोरी करना है स्टोरी कैसे दिखानी
है ये काम चैनल का है। इसमें हम कुछ भी नहीं कर सकते और चैनल अगर हमारी स्टोरी चलायेगा
तो हमें पेमेंट भी देगा। और जब चैनल पैसा देगा तो वो चाहेगा की उसे भी स्टोरी से पैसा
मिले। इस तरह से हर व्यक्ति एक दूसरे से इंटर कनेक्टिड है और पैसे के लिए ही सब कुछ
हो रहा है। इस बात ने बेशक मेरे सिर में दर्द किया था। लेकिन फिर मैंने पूछा सर स्टोरी
तो अच्छी है। इसमें प्रॉब्लम क्या है। इस पर अमिताभ ने कहा यार प्रॉब्लम हैं मैरिज
ब्यूरो चैनल चाहता है की मैरिज ब्यूरो कैश हो जाए। जिसे हम नहीं चाहते।
दिल्ली ऑफिस 4 जुलाई
हम अपने अपने घर आ चुके थे। इस बीच हमने तकरीबन एक सप्ताह तक आराम किया
हम ऑफिस गए जरूर लेकिन कुछ ज्यादा काम नहीं किया। हां. इस बीच एक स्टोरी पर रैकी करने
जरूर गए। जिसकी बात बाद में । हम ऑफिस में अपनी खबर पर बात करते और सोचते की कब चलेगी
हमारी स्टोरी। जिसपर माया कहते रवि कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर। मैंने कहा यार फल
की इच्छा की क्या बात है इसमें, अगर हमारी स्टोरी चलेगी ही नहीं तो स्टोरी का फायदा
क्या होगा। इस पर माया खामोश हो जाते। औऱ कहते यार इसमें हम क्या कर सकते हैं। अमिताभ
अपने एंड से देख ही रहे होंगे। हम ऑफिस के छोटे मोटे काम करने के बाद अपने अपने घर
जा चुके थे।
हम शाम को अपने अपने घर पहुंचे ही थे। की अमिताभ जी का फोन आ गया। उन्होंने
कहा रवि जी कल दफ्तर में 10 बजे मिलते हैं। समय से आ जाना। मैंने कहा ठीक है सर मैं
आ जाउंगा। उन्होंने ये भी कहा की ये संदेश मैं माया औऱ प्रदीप जी को भी दे दूं। जिसके
बाद मैंने दोनों तक संदेश पहुंचा दिया। दूसरे दिन माया औऱ प्रदीप समय से ऑफिस में थे।
अमिताभ ने कहा की स्टोरी अभी ऑन दा होल्ड है औऱ स्टोरी कब चलेगी मुझे नहीं पता लेकिन
काम तो करना ही है। अब आगे बताइये आगे कौन सी स्टोरी करोगे। माया कई तरह के आइडिया
देते रहे और मैं भी। इस बीच मैंने कहा सर हम क्यों ना हवाला पर स्टोरी करें। मेरे पास
एक सोर्स भी है। इस पर अमिताभ ने पूछा स्टोरी का एंगल क्या होगा। मैंने कहा सर हवाला
लोगों ने सुना है लेकिन बेस्टर्न यूनियन के माध्यम से पैसा ना सिर्फ देश में जाता है
बल्कि अमेरिका और लंदन भी जाता है औऱ वो भी हवाला के जरिए। सोचिए अगर आतंकवादी इस तकनीक
को अपनाते होगें तो अभी तक कितना पैसा वो इधर से उधर अपने ऑपरेशन पर भेज चुके होंगे।
इस स्टोरी पर अमिताभ ने मेरी पीठ थपथपाई औऱ कहा कितने दिन में हो जाएगी। मैंने कहा
सर हो जाएगी 15 दिन में। जिसके बाद मैं औऱ भूषण हवाला पर स्टोरी करने में मशगूल हो
गए। औऱ अफसर दुल्हों की मंडी को लगभग भूल गए।
अध्याय दस
अक्टूबर का पहला सप्ताह
इस बीच मेरी दो स्टोरी एक हवाला पर नो ट्रेल नो ट्रेस के नाम से आयी जिसके
बाद वेस्टर्न यूनियन ने अपने कई रूल्स में बदलाब किए औऱ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनी
ट्रांसफर पर नये कानून बने। जिसकी कहानी मैं आगे लिखूंगा। जो बेहद दिलचस्प वाक्य है।
इस बीच दिवाली आने को थी औऱ उस दिन मेरी एक और स्टोरी जो रेलवे की सिक्योरिटी पर थी
टेलिकास्ट हो रही थी। उस दिन अमिताभ ने कहा की रवि बधाई आपकी स्टोरी टेलिकास्ट हो रही
है मैंने कहा हां सर मैं देख रहा हूं उन्होंने कहा यार ये वाली नहीं अफसर दुल्हों की
मंडी। मैं इतना सुनकर भावुक हो गया क्योंकि अभी तक के कैरियर में ये मेरी सबसे बड़ी
स्टोरी थी मैंने कहा सच सर वाकई टेलिकास्ट हो रही है। अमिताभ ने कहा हां...टेलिकास्ट
हो रही है। स्टार पर लेकिन कुछ मैंने समझौते किए हैं। जिसे आप समझने की कोशिश जरूर
करेंगे। मैने कहा ठीक है सर कब होगी टेलिकास्ट अमिताभ ने तारीख बताई और फोन काट दिया।
स्टोरी का टेलिकास्ट होना औऱ नीलम गुप्ता का नोटिस
अफसर दुल्हों की मंडी अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में टेलिकास्ट हुई। स्टोरी
टेलिकास्ट होने के बाद जो लड़के हमारे कैमरे पर कैद थे उनके खिलाफ कोई खास बड़ी कार्यवाही
नहीं हुई। क्योंकि ये कोई ऐसा मामला नहीं था जिसमे उन्होंने सीधा दहेज लिया हो हां
बात की थी जिसकी एक दो तारीख के बाद उनकी कालिख कोर्ट से धुल गयी। लेकिन नीलम गुप्ता
को ये नागवार गुजरा क्योंकि उऩके बेटे की ना सिर्फ तरक्की रुकी बल्कि उऩकी अपने डिपार्टमेंट
में काफी बेइज्जती हुई। उन्होंने मेरे, अमिताभ औऱ चैनल के खिलाफ मानहानी का 10 लाख रुपये का कैश डाला। ये नोटिस
देखकर मैने अमिताभ जी और माया से कहा की अब मैं भी दस लाख का आदमी हो गया। इस पर अमिताभ
जोर से हंसे और बोले यार ये नोटिस तो देख ही लेंगे। लेकिन चलो इसी के साथ ये किस्सा
खत्म हुआ लेकिन एक दुख मुझे हमेशा रहेगा की मैरिज व्यूरो वाले बच गए औऱ चैनल ने उन्हें
दिखाया नहीं। जिसके बाद हमारे ऑफिस में एक जोरदार ठहका गूंजा और फिर हम अगली स्टोरी
की तैयारी में जुट गए। एक नयी ताकत के साथ और जोश के साथ।