दिल्ली क सत्ता पर पिछले 15 साल से काबिज शीला फिर दिल्ली
की किंग बनेंगी या फिर केजरीवाल की झाड़ू शीला के पंजे को मात देगी। ये सवाल
दिल्ली के उमस भरे माहौल में इन दिनों खासी गर्मी पैदा कर रहा है। आम लोगों का
कहना है की दिल्ली में पिछले 15 साल में कई बेहद महत्वपूर्ण काम हुए हैं। जिनमें
डीटीसी बसों का कायाकल्प और मेट्रो का जाल है। दिल्ली के आम आदमी की यातायात की
समस्या लगभग खत्म हुई है। लेकिन बात यातायात तक ही नहीं है। दिल्ली में बिजली,
पानी महंगा हुआ है। रहना सहन और जीवन यापन भी कठिन हो रहा है। कुल मिलाकार दिल्ली
के लोग इन दिनों इस मारीचिका में फंसे हैं की वो झाड़ू का साथ दे या पंजा मजबूत
करें या फिर कमल खिलाएं।
केजरीवाल की बढ़ती लोकप्रियता घटता कद !
एक ताजा सर्वे के मुताबिक अरविंद
केजरीवाल की पार्टी बीजेपी के 24 फीसदी वोट खा रही है और कांग्रेस के 22 फीसदी। इस तरह से
केजरीवाल एक मजबूत दावेदार के रूप में खड़े नजर आते हैं। लेकिन केजरीवाल के चुनावी
प्रचार और उम्मीदवारों पर नजर डाली जाए तो उनका कद छोटा नजर आता है। वो ऑटो के
पीछे लिखते हैं की ‘इस बार भी अगर शीला को वोट
दिया तो दिल्ली में होते रहेंगे बलात्कार’। दिल्ली में शीला की सरकार
में अपराध बढ़ा है। केजरीवाल मुद्दा उठाते तो नजर आते हैं लेकिन कोई सशक्त हल देते
नजर नहीं आते और वहीं उनके उम्मीदवार भी कमजोर नजर आते हैं। क्योंकि उनकी पार्टी
में ज्यादातर वो लोग हैं जो राजनीति में नए हैं।
खिल सकता है दिल्ली में कमल!
हाल ही में बदरपुर विधानसभा क्षेत्र से रामसिंह बिधुड़ी ने
भाजपा का दामन थामा है। जिससे दिल्ली में बीजेपी का गुर्जर वोट मजबूत होता नजर आता
है। दिल्ली में सात लोकसभा की सीटों पर कम से कम चार सीटों पर गुर्जर वोट्स सत्ता
का समीकरण तय करते हैं। साथ ही दिल्ली की 70 सीटों में से 40 पर गुर्जर नेताओं का
दवदवा है। इस तरह से रमेश बिधुड़ी के बाद रामसिंह बिधुड़ी भाजपा को गुर्जर वोट से
गुलजार कर सकते हैं। वहीं पुरानी दिल्ली में विजय गोयल और साउथ दिल्ली में विजय
जौली महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस तरह से अब दिल्ली की 70 सीटों में से
भाजपा को 32 सीटें मिल सकती हैं जो पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी सीटों से चार कम है।
हाशिए पर शीला सरकार ?
15 सालों तक शासन करने वाली शीला
दीक्षित लोकप्रियता की रेस में तीसरे नंबर पर हैं। 26 फीसदी वोटरों का कहना है कि
बीजेपी के अध्यक्ष विजय गोयल बेहतर मुख्यमंत्री हो सकते हैं, जबकि 24 फीसदी वोटरों के
पंसदीदा मुख्यमंत्री उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल हैं। वहीं शीला दीक्षित के समर्थन
में सिर्फ 22 फीसदी वोटर हैं।
दरअसल केन्द्र में 10 सालों से यूपीए की
सरकार है और दिल्ली में कांग्रेस की। इस तरह से केन्द्र और राज्य के एंटी
इनक्बेंसी की मार शीला सरकार पर पड़ रही है। हालांकि शीला की सरकार दिल्ली में
अच्छा काम कर रही है। लेकिन फिर भी शीला की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार आम आदमी की
नजरों में गिरता जा रहा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में किस
पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलेगा ये कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन, मौजूदा समीकरण और
आम लोगों की राय के मुताबिक केजरीवाल किंग मेकर की भूमिका जरूर निभा सकते हैं।
लेकिन, अरविंद केजरीवाल का कहना है की भाजपा और कांग्रेस एक ही सिक्के के दो पहलू
हैं। ऐसे में किस पार्टी की सरकार को वो समर्थन देंगे ये सवाल बेशक पेचिदा है।
लेकिन, सरकार तो बनेगी ही ऐसे में सवाल ये भी उठता है की क्या केजरीवाल राजनीति की
विसात पर इन दोनों पार्टियों से दो दो हाथ कर पाएंगे या फिर पाला बदल कर सत्ता की
चाबी संभालेंगे। ये अभी समय के गर्भ में हैं। लेकिन इतना तय है की दिल्ली में होने
वाला इस बार का चुनाव बेहद रोमांचक और राजनीतिक उठा पटक का होगा। जिसमें कांग्रेस
और भाजपा अपने अपने खेमे में उम्मीदावारों को खींचने के लिए दाना फेंक चुकी हैं।
रविन्द्र कुमार गौतम