दो साल से लगातार डूब रहा
है ऑटो सेक्टर
सरकार ऑटो सेक्टर को लेकर
क्यों मूंदेंरही आंखें!
क्या ओला ऊबर हैं ऑटो
सेक्टर की मंदी का कारण?
क्यों सरकार कोई पुख्ता
कदम उठाने से हिचक रही है.
नई दिल्ली (New Delhi)
वित्त मंत्री ने डूबते
ऑटो सेक्टर का ठीकरा ओला ऊबर पर तो फोड़ा ही साथ ये भी कहा है कि देश का युवा अब
कार खरीदने से बच रहा है. लेकिन, क्या वाकई ये बयान डूबते ऑटो सेक्टर का कारण है? या फिर सरकार सेक्टर में छायी मंदी का कारण देश
के लोगों को बताने से कतरा रहा है.
असल में ऑटो सेक्टर में
मंदी अचानक तो आयी नहीं है. क्योंकि इस उद्योग से डायरेक्ट और इनडायरेक्ट तरीके से
लाखों लोग जुड़ें हुए हैं. वहीं, मंदी की मार झेल रहा ये सेक्टर लगातार स्लो डाउन
की ओर जा रहा है.
देश में लगातार दसवें
महीने अगस्त में यात्री वाहनों की बिक्री कम हुई है. वाहन निर्माताओं के संगठन
सियाम के आंकड़ों के मुताबिक अगस्त में यात्री वाहनों की बिक्री एक साल पहले इसी
माह की तुलना में 31.57 प्रतिशत घटकर 1,96,524 वाहन रह गई. एक साल पहले अगस्त में
2,87,198 वाहनों की बिक्री हुई थी.
भारतीय आटोमोबाइल
विनिर्माता सोसायटी (सियाम) के आंकड़ों के मुताबिक अगस्त 2019 में घरेलू बाजार में
कारों की बिक्री 41.09 प्रतिशत घटकर 1,15,957 कार रह गई जबकि एक साल पहले अगस्त
में 1,96,847 कारें बिकी थी.
इस दौरान दुपहिया वाहनों
की बिक्री 22.24 प्रतिशत घटकर 15,14,196 इकाई रह गई जबकि एक साल पहले इसी माह में
देश में 19,47,304 दुपहिया वाहनों की बिक्री की गई. इसमें मोटरसाइकिलों की बिक्री
22.33 प्रतिशत घटकर 9,37,486 मोटरसाइकिल रह गई जबकि एक साल पहले इसी माह में
12,07,005 मोटरसाइकिलें बिकी थीं.
सियाम के आंकड़ों के मुताबिक
अगस्त माह में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री 38.71 प्रतिशत घटकर 51,897 वाहन रही.
कुल मिलाकर यदि सभी तरह के वाहनों की बात की जाये तो अगस्त 2019 में कुल वाहन
बिक्री 23.55 प्रतिशत घटकर 18,21,490 वाहन रह गई जबकि एक साल पहले इसी माह में कुल
23,82,436 वाहनों की बिक्री हुई थी. ये वो आंकड़े हैं जो ये दर्शातें हैं कि वाहन
बिक्री में लगातार मंदी अचानक नहीं आयी बल्कि ये मंदी पिछले दो साल से जारी है.
जिसपर सरकार का ध्यान शायद अब गया है. या सरकार ने इसपर ध्यान देना नहीं चाहा.
वहीं इस क्षेत्र में
रोजगार की बात की जाए तो सिर्फ देश में कार शॉरूम की ही बात की जाए तो देश में
करीब 15 हजार डीलर्स के पास 26 हजार ऑटोमोबाइल शोरूम हैं. इसमें से करीब 25 लाख
लोग सीधे तौर से नौकरी कर रहे हैं, जबकि 25 लाख लोग अस्थायी
रूप से जुड़े हुए हैं. इसका मतलब यह है कि ऑटोमोबाइल शोरूम देश में करीब 50 लाख
लोगों को रोजगार दे रहा है. जिसमें लगातार हो रही छटनी, शोरूम का बंद होना और
निर्माण क्षेत्र और रॉ मैटिरियल देने वाले लोगों की संख्या इससे ज्यादा है. मंदी
के कारण इन सभी पर बेरोजगारी का संकट तो है ही साथ ही इस क्षेत्र के डूबने से
तकरीबन 2.5 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने का खतरा भी है.
हालांकि बीते हफ्ते
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ऑटो कंपनियों को भरोसा दिया था कि पेट्रोल और डीजल
व्हीकल को बैन करने का कोई प्लान नहीं है. उन्होंने कहा था कि ऑटो सेक्टर में स्लोडाउन
वैश्विक आर्थिक कारणों से है. उन्होंने कहा था वित्त मंत्री जल्द इसको इसको
सुलझाएंगी.
लेकिन बतौर वित्त मंत्री
उनके पास भी डूबते ऑटो सेक्टर को लेकर कोई मजबूत रणनीति नहीं है. अब चलिए आपको हाल
ही में आये वित्त मंत्री के बयान से रूबरू करवा देते हैं. वित्त मंत्री निर्मला
सीतारमण का कहना है कि “वाहन क्षेत्र में नरमी के
कारणों में युवाओं की सोच में बदलाव भी है. लोग अब खुद का वाहन खरीदकर मासिक किस्त
देने के बजाए ओला और उबर जैसी आनलाइन टैक्सी सेवा प्रदाताओं के जरिये वाहनों की
बुकिंग को तरजीह दे रहे हैं”. सीतारमण ने कहा कि दो
साल पहले तक वाहन उद्योग के लिये अच्छा समय था. उन्होंने संवाददाताओं से कहा,
कि निश्चित रूप से उस समय वाहन क्षेत्र के उच्च
वृद्धि का दौर था. मंत्री ने कहा कि क्षेत्र कई चीजों से प्रभावित है जिसमें भारत
चरण-6 मानकों, पंजीकरण संबंधित बातें
तथा सोच में बदलाव शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ
अध्ययन बताते हैं कि गाड़ियों को लेकर युवाओं की सोच बदली है. वे स्वयं का वाहन
खरीदकर मासिक किस्त देने के बजाए ओला, उबर या मेट्रो (ट्रेन) सेवाओं को पसंद कर रहे हैं. सीतारमण ने कहा, ‘‘अत: कोई एक कारण नहीं है जो वाहन क्षेत्र को
प्रभावित कर रहे हैं. हमारी उस पर नजर है. हम उसके समाधान का प्रयास करेंगे.''
भारत चरण-6 उत्सर्जन मानक एक अप्रैल 2020 से
प्रभाव में आएगा. फिलहाल वाहन कंपनियां भारत चरण-4 मानकों का पालन कर रही हैं. यानी बयान के मायने निकाले जाए तो सीधे सीधे
वित्त मंत्री का कहना है कि उनका ध्यान वाहन क्षेत्र के अगले चरण पर है. यानी अब
वाहन कंपनियों को अपने घाटे का कारण खुद ही खोजना है.
टैक्स कटौती पर भी सरकार
की दो टूक
अब आपको यहां ये भी याद
दिला दें कि इससे पहले वित्त मंत्री ने
कहा था कि उद्योग जगत और ऑटो सेक्टर अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए जिस
टैक्स कटौती की मांग कर रहे हैं, वह वित्त मंत्रालय से
संभव नहीं है. यह काम जीएसटी काउंसिल करेगी. ये निर्मला सीतारमण ने कहा था कि जहां
तक जीएसटी का सवाल है, इस पर जीएसटी को विचार
करना है, जवाब देना है या फ़ैसला
करना है. कोलकाता में टैक्स अधिकारियों के साथ बैठक के बाद वित्त मंत्री ने साफ़ कर
दिया कि टैक्सों में कटौती पर फ़ैसला जीएसटी काउंसिल को करना है. यानी जिस जीएसटी को लेकर ऑटो सेक्टर इस उम्मीद में था की
टैक्स कटौती होगी तो शायद हालत बदलेंगे अब वैसी भी नहीं होने जा रहा है.
इससे पहले सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि वे वित्त
मंत्री से अनुरोध करेंगे कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में कुछ समय के लिए जीएसटी कम कर
दें. वैसे वित्त मंत्री को भी अंदाज़ा नहीं है कि अर्थव्यवस्था में सुधार कब तक
आएगा. निर्मला सीतारमण ने कहा कि 'मैं इस बारे में अनुमान
नहीं लगाने जा रही. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि हर क्षेत्र की चुनौतियों का सामना
करें.
फिलहाल ये तो रही सरकार
की बात जो मामले पर बॉल एक ऑटो सेक्टर और जीएसटी काउंसिल पर डाल रहा है. अब बात
देश की सबसे बडी कार निर्माता कंपनी मारूति सुजुकी की कर लेते हैं. मारूति सुजुकी
के चेयरमैन आर सी भार्गव का कहना है कि देश का बैंकिंग सिस्टम, कमजोर निर्णय शक्ति
और कारों में एयरबैग्स और एबीएस जैसे सेफ्टी फीचर्स जोड़ने के कारण छोटे सेगमेंट
की कारें महंगी होती चली गयी. और साधारण लोगों का इन कारों को खरीदना मुश्किल होता
चला गया. जिसका असर ये रहा कि इस सेक्टर में मंदी आती चली गयी और कंपनियों को
लगातार नुकसान होता चला गया.
वहीं, भार्गव का ये भी
मानना है कि पेट्रोल-डीजल पर ऊंचा टैक्स, रोड और रजिस्ट्रेशन चार्ज ने मंदी को
बढ़ाने में आग में घी का काम किया वहीं, भार्गव का ये भी कहना है कि लोग बेशक
जीएसटी को इसका कारण मानते हो. लेकिन, जीएसटी कट करने पर भी इस ऑटो इंडस्ट्री को
मंदी से बाहर नहीं लाया जा सकता.
क्योंकि ऑटो सेक्टर का एक
बड़ा फायदे का सेगमेंट बाइक-स्कूटी चलाने वाले हैं. क्योंकि एंट्री लेवल पर यहीं
वो लोग हैं. जो इस सेक्टर की जान हैं. और बैंक पिछले कई साल से लगातार एंट्री लेवल
पर कार फाइनैंस करने से डरने लगे हैं. जिसके बाद नयी कारों की सेल में कमी आयी है.
वहीं, GST कटौती को लेकर भार्गव के विचार ऑटो इंडस्ट्री
बॉडी SIAM और अन्य कंपनियों के सीईओ
से मेल नहीं खाते. इंडस्ट्री लगातार सुस्ती से निपटने को GST कट की मांग कर रही है, लेकिन भार्गव का कहना है कि इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ने
वाला.यहां आर सी भार्गव का एक और चौंकाने वाला तर्क है. उनका कहना है कि
स्ट्रक्चरल शिफ्ट से मंदी का कोई लेना देना नहीं है. ओला-ऊबर जैसी एप बेस्ट
सुविधाओं का बढ़ता इस्तेमाला इसके पीछे की वजह नहीं हो सकता क्योंकि कार खरीदना और
चलाना दोनों ही अलग-अलग बातें हैं. उन्होंने कहा, सख्त सेफ्टी व एमिशन के नियम, बीमा की ज्यादा लागत और करीब 9 राज्यों मेंअतिरिक्त रोड टैक्स जैसी वजहों से ऑटो सेक्टर
में कन्ज्यूमर सेंटिमेंट बिगड़ा है.
इन सभी फैक्टर्स की वजह
से एंट्री लेवल कारों की कीमत करीब 55,000 रुपये तक बढ़ गई है. इस बढ़ी कीमत में 20,000 रुपये का इजाफा सिर्फ रोड टैक्स की वजह से हुआ है.
लाखों नौकरियां गईं
ऑटो सेक्टर में मंदी की
मार सिर्फ उत्पादन पर ही नहीं पड़ रही है. मंदी की मार में नौकरियां भी हैं. बड़े
पैमाने पर नौकरियां जा रही हैं. सियाम का अनुमान है कि देशभर में कई वाहन शोरूम
बंद होने से करीब 2 लाख नौकरियां गईं जबकि
ऑटो कंपोनेंट निर्माता कंपनियों में 1 लाख लोग बेरोजगार हुए हैं. यानी इस सेक्टर में ये अब तक की सबसे बड़ी छटनी
कही जा सकती है.
पिछले दो साल से आ रहे थे
संकेत
जाने माने अर्थशास्त्री
प्रोफेसर अरुण कुमार का कहना है कि ऐसा नहीं है कि यह गिरावट एकाएक आई है. प्रो
अरुण कुमार का कहना है कि बीते दो तीन सालों में अर्थव्यवस्था को तीन बड़े झटके
लगे हैं- नोटबंदी, जीएसटी और गैर बैंकिंग
वित्तीय संस्थाओं का संकट, इसकी वजह से बेरोज़गारी बढ़ी है।
उनका कहना है कि "सीएमआई के आंकड़े दिखाते हैं कि देश में
कर्मचारियों की संख्या 45 करोड़ थी, जो घट कर 41 करोड़ हो गई है, यानी चार करोड़ रोजगार में कमी आई. वहीं,
अरुण कुमार का कहना है कि जमीनी हकीकत ये भी है कि ऑटो सेक्टर में सुस्ती की
शुरुआत बहुत पहले ही हो गई थी और इस प्रक्रिया में कई कंपनियों पर ताले तल गए,
हजारों नौकरियां चली गईं. हरियाणा के गुरुग्राम,
मानेसर, धारूहेड़ा, बावल औद्योगिक क्षेत्र
में इसके संकेत पिछले दो साल में देखे जा सकते थे.
मारुति उद्योग कामगार
यूनियन (एमयूकेयू) के महासचिव कुलदीप जांगू कहते हैं कि बिक्री और उत्पादन में कमी
के कारण मारुति के तीनों प्लांटों में होने वाली सीजनल भर्तियों में 25 फीसदी की कमी है. शिफ्ट कम कर दी गयी है. वे
कहते हैं कि ये सुस्ती पिछले छह महीने से चल रही थी लेकिन अभी दो महीने में हालात
काफी खराब हुए हैं.
शटडाउन, छंटनी, तालाबंदी- ग्राउंड रियलिटी
आईएमटी मानेसर में एक
कंपनी थी एंड्योरेंस टेक्नोलाजीज, जो हीरो और होंडा जैसी
दोपहिया वाहन कंपनियों के लिए ऑटो पार्ट्स बनाती थी. एंड्योरेंस कंपनी की ट्रेड
यूनियन के ज्वाइंट सेक्रेटरी अमित सैनी बताते हैं कि कंपनी ने 21 दिसम्बर 2018 को शटडाउन कर दिया और एक जनवरी 2019 को लॉकआउट की घोषणा कर दी. 164 परमानेंट वर्कर एक झटके में सड़क पर आ गए. कंपनी ने सारे
ठेका मजदूरों का कांट्रैक्ट खत्म कर दिया.
क्या नई तकनीक के विकास
से ऊभर जाएगा ऑटो सेक्टर
कयास ये भी है कि अब
क्योंकि सरकार का अगला कदम देश में इलेक्ट्रिक कार के सेगमेंट को बढ़ाने का है.
ताकि इस क्षेत्र में नई तकनीक को लाया जाए और बेहतर विकल्प पेट्रोल डीजल और सीएनजी
के मिलें. वहीं, जानकारों का कहना है कि मौजूदा समय में देश का इफ्रास्ट्रक्चर ऐसा
नहीं है कि आनन फानन में इलेक्ट्रिक गाड़ियां इंटरड्यूज करने से इस सेक्टर की मंदी
को खत्म कर दिया जा सकता हो. क्योंकि, हर एक नये सेगमेंट को लाने के लिए एक लंबी
प्रक्रिया के साथ साथ लोगों के मूढ़ को बदलने का काम भी प्रॉडक्ट को करना होता है.
और क्योंकि अभी तक देश में इलेक्ट्रिक कारों को लेकर कोई ऐसा पॉजिटिव सेंटिमेंट भी
नहीं है जिसके आधार पर देश की बड़ी कार कंपनियां पूरे परिवेश को ही बदलकर रख दें.
क्योंकि बाजार मांग के आधार पर काम करता है. और बाजार मांग की आपूर्ति करता है.
ऐसे में नई तकनीक मौजूदा मंदी को मात दे पाएगी ये दूर की कौढ़ी भर है.
लेकिन, सवाल वहीं का वहीं
है, कि आखिर ऑटो सेक्टर में आयी मंदी से कैसे बाहर आया जा सकता है जबकि मौजूदा समय
में ऑटो सेक्टर में सबसे ज्यादा संभावनाएं तलाशी जा रही थी. देश का ऑटो सेक्टर देश
की जरूरत के हिसाब से अभी भी मोटर कारों का निर्माण नहीं कर पा रहा है. ऐसे में इस
क्षेत्र की मंदी इस बात का संकेत भी है कि देश में ऑटो सेक्टर को लेकर सरकार की
कोई मजबूत पॉलिसी नहीं है और इस सेक्टर को सरकार अभी तक सिर्फ कमाई का ही साधन मान
रही थी. वहीं, सच ये भी है कि अब समय आ गया है क ऑटो सेक्टर से जुड़े लोगों को भी गंभीरता
से सोचना होगा ताकि इस क्षेत्र का विकास तो हो ही साथ ही दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर वो देश में रोजगार उत्सर्जन के साथ साथ
देश की आर्थिक ग्रोथ में भी सहायता दे सकें.