Monday, April 30, 2012

गोश्त


सड़क पर बिकता गोश्त
कभी कटा हुआ कभी लटका हुआ
और कभी
कई रंगों में लिपटकर इशारा करता हुआ।
दोनों ही तरह का गोश्त करता है इंतजार
एक किसी के पेट की भूख शांत करने का
और दूसरा किसी के दिमाग की।
दोनों ही भूख के बदले गोश्त के हिस्से में आते हैं
निशान दांतों के।
गोश्त कटने से पहले टटोला जाता है।
अपनी भूख और हवस के हिसाब से तोला जाता है।
कभी भींचकर तो कभी टांग उठाकर परखा जाता है।
गर्दन काटने से पहले कलमा तक पढ़ा जाता है।
और बदन से कपड़े उताराने से पहले गंडा ताबीज अलग किए जाते हैं।
दोनों ही बार दिमाग में एक ही तूफान होता है जल्दी निपटाने
और आराम से पैर सीधे कर सोने का इंतजाम देखने का।




4 comments:

शेखचिल्ली का बाप said...

yhan bi ubhar ???????????

रविकर said...

आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
बुधवारीय चर्चा-मंच पर |

charchamanch.blogspot.com

Ravinder Kumar said...

आपका ब्लॉग पर आने का धन्यवाद, औऱ इसपर अपनी राय देने का भी।

Ravinder Kumar said...

आपका ब्लॉग पर आने का धन्यवाद, औऱ इसपर अपनी राय देने का भी।