उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर फिर चर्चा में हैं।
क्योंकि चुनाव पास है। और हर चुनाव से पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश ना सुलगे ऐसा कई
साल से हो नहीं रहा। आखिर क्या वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मीठी जमीन हर चुनाव
से पहले लाल हो जाती है? क्यों पश्चिमी
उत्तर प्रदेश की राजनीति गर्मा जाती है। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका समय रहते हल
खोजना बेहद जरूरी है।
इस बार मुजफ्फरनगर के कैराना से भाजपा सांसद हुकुम
सिंह ने एक ऐसा कार्ड खेला जिसके बाद पूरे देश में कैराना रातों रात इस कद्र मशहूर
हो गया जैसे कैराना पर पाकिस्तान का कब्जा होने जा रहा है। देश के कुछ मीडिया चैनल
इस खबर को इस तरह से परोस रहे हैं जैसे अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान,
बेरोजगारी, गरीबी यहां तक की अपराध कोई मुद्दा ही नहीं है। मुद्दा सिर्फ एक है। औऱ
वो है पलायन। एक ऐसा मुद्दा जो इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे देश का एक वर्ग
दूसरे वर्ग पर कब्जा ही करना चाहता है।
मंशा क्या है?
बीजेपी के कैराना के सांसद हुकुम सिंह का कहना
है कि कैराना से सैकड़ों हिंदु परिवारों ने पलायान कर लिया है और ये पलायान जारी
है। इसकी वजह पर वो बेहद उटपटांग जबाव देते हैं। यहां तक की वो कई बार एक लिस्ट भी
दिखाते हैं। लेकिन, सही जबाव देने के नाम पर वो बगले झांकते नजर आते हैं। वो साफ
साफ तो कुछ नहीं कहते लेकिन, इशारों ही इशारों में ये साफ कर देते हैं कि हम ही
अपनी ओर से ये एलान कर दें कि देश के हालात बेहद नाजुक हैं। खैर ये तो वो हुकुम
सिंह हैं जिनका राजनीति में वजूद ये है कि ये किसी एक पार्टी के कभी होकर नहीं
रहे। इनके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक कहावत सुनी जा सकती है जिसे लोग अक्सर
कहते हैं। लोग कहते हैं ‘जिसके देखे तबे परात उसके गाए समिया रात’ यानी जिसकी झोली हरीभरी
होती हैं हुकुम सिंह वहीं होते हैं। यानी एक ऐसा नेता जो सिर्फ और सिर्फ मौके की
राजनीति करता है। ऐसे में जब बीजेपी के पास यूपी में कोई मुद्दा नहीं है और हुकुम
सिंह को लेकर भी भाजपा में कोई चर्चा नहीं है। ऐसे में ये मुद्दा हुकुम सिंह और
भाजपा दोनों के लिए फायदे का सौदा हो सकता है अगर उत्तर प्रदेश की जनता गंभीरता से
इस मामले को ना समझे तो।
आखिर क्यों बिगड़ाना चाहते हैं माहौल ?
हुकुम सिंह पिछले दो साल से यहां सांसद हैं। इस
क्षेत्र में इनकी पकड़ भी अच्छी है और ये एक ऐसे नेता भी हैं जिन्हें लोग जानते
हैं। लेकिन, इसी के साथ हुकुम सिंह ये भी जानते हैं कि इस बार अगर भाजपा यूपी में
नहीं आती तो उनके लिए कोई ठौर-ठिकाना बचेगा नहीं। बसपा और सपा दोनों ही पार्टी से
उनका 36 का आंकड़ा है। कांग्रेस इन्हें गोद लेना नहीं चाहती क्योंकि एक बार नहीं
बल्कि दो बार ये कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं। लोकदल का यूपी में अब अस्तित्व
शेष नहीं है। और यूपी में इनका इतना बजूद नहीं कि अकेले दम पर ये यूपी के सिरमौर
बन जाए। ऐसे में भाजपा को मुद्दा देकर ये अपनी स्थिति जरूर मजबूत कर सकते हैं। और
इन्होंने ऐसा किया भी। फिर चाहे उसके लिए माहौल थोड़ा खराब बी क्यों ना हो जाए।
क्या सांसद पिछले दो साल से सो रहे थे? सरदार वी एम सिंह,
भारतीय किसान मजदूर पार्टी
भारतीय किसान मजदूर पार्टी के अध्यक्ष सरदार वी
एम सिंह हुकुम सिंह को लेकर कहते हैं। कैराना भाजपा के सांसद द्वारा बनाया जा रहा
एक टाइम बम है जो आने वाले दिनों कभी भी फट सकता है। भाजपा के कुछ मंत्री यूपी में
लगातार हवा खराब करने की कोशिश में जुटे हैं। पहले गोहत्या पर अब पलायन पर।
सरदार वी एम सिंह कहते हैं। हुकुम सिंह पिछले दो
साल से कैराना से सांसद हैं। क्या वो पिछले दो साल से यहां सो रहे थे? क्या उन्हें इस बात की
जानकारी ही नहीं हुई कि यहां से कुछ लोग जा रहे हैं? क्या रातों रात ऐसा हो गया? वी एम सिंह कहते हैं ‘ये एक सोची समझी साजिश हैं। जिसे अब अमली जामा
पहनाने की कोशिश की जा रही है ताकि वोट बैक को डायवर्ट किया जा सके’। होना तो ये चाहिए था कि
इस समास्या को समय रहते बतौर एक सांसद ये हल करते। यहां पलायान क्यों हैं इस पर
विचार करते। लॉ एंड ऑर्डर मैनटेन करते। और रोजगार, बेरोजगारी किसानों के मुद्दें
को हल करते। लेकिन, अफसोस ऐसा हुआ नहीं। अब मुद्दा उठाकर ये लोग साबित क्या करना
चाहते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि पाकिस्तान उत्तर प्रदेश में आ सकता है या उत्तर
प्रदेश पाकिस्तान जा सकता है। ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता फिर ये मुद्दा ही क्यों हैं? सीधी सी बात है मुद्दा आपस
में फूट डालने का है ताकि माहौल खराब हो। वहीं, सांसद का घेराव करते हुए वीएम सिंह
कहते हैं कि बतौर सांसद तो हुकुम सिंह को अब इस्तीफा दे देना चाहिए और कह देना
चाहिए कि मुझसे मेरा इलाका कंट्रोल नहीं हो पाया। नैतिकता के आधार पर मैं इस्तीफा
सौंप रहा हूं। क्योंकि सांसद का काम ही होता है समास्या का समाधान, समास्या को और
ज्यादा समास्या बना देना ये सांसद का काम कतई नहीं हो सकता। भाजपा पर बरसते हुए
सरदार वीएम सिंह ये भी कहते हैं कि भाजपा के यहां 71 सांसद हैं और 2 अपना दल से
सांसद भी बीजेपी के साथ ही है। जब इतने बड़ा आंकड़ा बीजेपी के पास हैं तब ये यूपी
के हालात खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे हैरत इस बात की होती है कि क्या फूट
डलवा कर ही राजनीति में मुकाम हासिल किया जा सकता है।
सियासी लाभ के लिए दंगे
कराना चाहती हैं सपा-भाजपा : मायावती
बहुजन समाज पार्टी (बसपा)
की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना जाने के लिए
भाजपा की निर्भय यात्रा और उसके जवाब में सत्ताधारी सपा की ‘सद्भावना यात्रा’ को आपसी मिलीभगत बताया है। उन्होंने कहा कि इसका मकसद आगामी विधानसभा चुनाव से
पहले सांप्रदायिक दंगे कराकर चुनावी लाभ उठाना है। मायावती ने यहां जारी एक बयान
में कहा कि वैसे तो कैराना से कथित पलायन के मामले को भाजपा सांप्रदायिक रंग देने
के साथ-साथ उसका गलत राजनीतिक लाभ उठाने के लिए काफी जोर लगाए हुए हैं। लेकिन सपा
सरकार भी राजधर्म को भूलकर ऐसे तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।
उन्होंने कहा कि बसपा की मांग है कि भड़काने का काम करने वालों के खिलाफ तत्काल
सख्त कार्रवाई की जाए। वरना उत्तर प्रदेश एक बार फिर सांप्रदायिक दंगे की आग में
जलेगा। इसकी पूरी जिम्मेदारी सपा और उसकी सरकार की होगी।
समाजवादी पार्टी किसी हाल में यूपी का माहौल
बिगड़ने नहीं देगी : राजेन्द्र चौधरी, प्रवक्ता, सपा
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता
राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी किसी भी हाल में कैराना ही नहीं
बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में किसी भी प्रकार की साजिश को सफल नहीं होने देगी। पलायन
के मुद्दे पर जानकारी देते हुए राजेन्द्र चौधरी कहते हैं। देखिए, उत्तर प्रदेश के
बहुत से हिस्सों से लोग आसपास के शहरों मे काम धंधे के लिए जाते हैं। हम आप बहुत
से लोग अपने घरों से दूर रहकर काम कर रहे हैं। इसमें पलायन जैसा कुछ नहीं है। क्या
पलायन कर लोग देश छोड़ गए। असल में बीजेपी को ये बात अच्छी तरह से पता है कि उनके
पास उत्तर प्रदेश के लिए ना कोई मुद्दा है और ना ही कोई विकास का एजेंडा। बीजेपी
के पास सिर्फ और सिर्फ धर्म, जाति के नाम पर लोगों के बीच सियासत करना आता है। और
इसी के चलते वो यहां पर भी यही चाहते हैं। मेरा ये कहना है कि अगर दो साल से यहां
से पलायान हो रहा था तो यहां के सांसद ने इस बात को संसद में क्यों नहीं उठाया।
उन्होंने इसकी जानकारी राज्य की सरकार को क्यों नहीं दी। औऱ तो और इसकी जानकारी अब
क्यों दे रहे हैं।
कैराना की हकीकत
कैराना पर इतना राजनीतिक बबाल होने के बाद
कैराना जाना ‘अलाइव’ के लिए भी जरूरी हो गया। इसी मकसद से हमारे संवाददाता ने भी कैराना का जायजा
लिया। जमीनी हकीकत ये है कि बीजेपी के कैराना
से सांसद महोदय ने 346 एसे नाम की सूची जारी की है जो पिछले दो साल मेँ कैराना से
अपना बोरियाँ बिस्तरा समेट कर कहीं और चले गए हैष ये सूची किसी सरकारी आंकड़ों से
ताल्लुक़ नहीं रखता बल्कि बीजेपी के कर्यकर्ताओ ने घर घर जाकर जुटाई जानकारी के
आधार पर बनाई है। हमने सारा दिन कैराना में घूम घूम कर लोगों से बात की। हमे यहां
सोहन पाल मिले। 50-55 साल के सोहन पाल यहां बर्फ का काम करते हैं। मुख्य शहर से
थोड़ा बाहर मुस्लिम परिवारों की रिहायश के बीच है ये फैक्ट्री। धूप में जल कर काला
पड़ चुके चेहरे पर बढ़ी सफ़ेद दाढ़ी किसी डर का एहसास तो नहीं करा रही थी मुझे। सोचा
शायद बात करने पर वो डर दिख जाए जिस डर से यहाँ के लोग पलायन करने को मजबूर है
जैसी की माननीय सांसद महोदय हुकुम सिंह दावा कर रहे है। बात करते समय किसी भी तरह
की कोई झिझक तो दिखी नहीं, बात करते करते इक बात उसके मुँह से निकली जिसने थोड़ा
सा पलायन करने के एक कारण पर रोशनी डाल दी और वो थी ‘रंगदारी’ ।
50 हजार से लाख के बीच की
जनसंख्या वाले कैराना में हिंदू परिवार महज़ नाम मात्र के ही है, पिछले कुछ साल से बदमाश यहां के व्यापारियों को
रंगदारी के लिए मजबूर कर रहे है। जिसने दे दिया उसकी सांसें चल रही है जिसने नहीं
दी उसे सरे आम दिनदहाड़े गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया। ये ही डर यहां के
लोगों के पलायन का एक कारण भी है। इसे इत्तफ़ाक़ ही कहेंगे की ज़्यादातर पलायन
करने वाले हिंदू परिवार हैं। उसी बर्फ़ खाने के ठीक सामने चौधरी जमील की फैकट्री
है साथ में उसका भरा पूरा घर , घर के साथ एक
डेरी जो की मोहिंदर सिंह की है। सदियों से इसी कैराना में सुख दुख के पलों का
एहसास किया। बात करने के लिए जैसे ही पहले में जमील के पास गया तो उसने आवाज़
लगाकर मोहिंदर को बुलाया और कहा आप पहले इन से बात करो, ये ही बेहतर बताएंगे की आख़िर किस बात का डर है और क्या ये
भी सांसद की लिस्ट में 347वां नाम लिखवाना चाहते है । बचपन से साथ खाने खेलने वाले
दोनों दोस्त और पड़ोसी इस तरह से सांसद महोदय की सूची और दावों की धज्जियाँ उड़ा
रहे थे । सब एक ही बात दोहरा रहे थे कि माहौल ठीक है बस बिगाड़ने की कोशिश की जा
रही है। सड़क पर चलते लोग भी इसी की तस्दीक़ कर रहे थे। चैनलों पर एक पिक्चर हाल के टूटने की कहानी भी
चल रही थी, कि मालिक ने इसे बेच दिया
है और रवानगी की तैयारी में है कैराना से। हांलाकि हाल मालिक से तो बात नहीं हो
सकी लेकिन आस पास के लोगों से बात की तो पता चला की पिक्चर हाल चल नहीं रहा था,
खरीदार कोई मिल नहीं रहा था और जो भी मिल रहा था
तो दाम नहीं दे रहा था। ऐसे में मलबा बेच कर और फिर प्लॉट काट काट कर बेचना मलिक
को ज़्यादा फ़ायदे का सौदा लगा। बहरहाल सच को ढूंढ़ने में जुटी यूपी पुलिस का भी
कहना है की सूची के 150 परिवार का पलायन तो हुआ है पर कारण डर नहीं बल्कि बेहतर
रोज़गार और अपने व्यापार को बढ़ाना है। और ये कोई दो साल से नहीं बल्कि कई साल से
चल रहा है। हांलाकि सांसद महोदय इन सब के बावजूद रुकने का नाम नहीं ले रहे एक और
लिस्ट के साथ मीडिया के सामने आ खड़े हुए, इस बार कहानी
कैराना नहीं कांधला की है। लेकिन सांसद जी के सुर इस बार थोड़ा सा बदला सा है,
अब मामला सांप्रदायिक नहीं क़ानून व्यवस्था का
है।
कैराना के मामले पर अब
बीजेपी बैकफुट पर है। औऱ सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों ही बड़ी पार्टी भाजपा पर
चुटकी ले रही है। कैराना सांसद को भी शायद अपनी गलती का अहसास हो चला है और धीरे
धीरे वो भी मामले पर गाहे वगाहे अलग अलग तर्क देते दिखाई दे रहे हैं। वहीं, सवाल
ये भी उठता है कि क्या हमारे देश के कुछ नेता लोगों के बीच गलतफहमी और गफलत फैला
कर ही राजनीति करते रहेंगे या फिर कभी ठीक मुद्दों पर भी चुनाव भी लड़ेंगे या कभी
देश के लोगों की तकलीफों को भी दूर करेंगे जिसके लिए वो चुनाव लड़कर शपथ लेते हैं।
बहरहाल, कैराना में शांति हैं। और यहां के आमजन
अपने नेताओं की जमकर खिल्ली उड़ा रहे हैं। और ये शायद सही भी है क्योंकि देर सबेर
देश के लोग ऐसे लोगों की राजनीति और मंशा को समझ जो रहे हैं।
कौन हैं बाबू हुकुम सिंह
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के कैराना लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद हुकुम
सिंह इन दिनों समाचारों की सुर्खियों में बने हुए हैं। उन्होंने एक लिस्ट जारी कर
आरोप लगाया कि सांप्रदायिक ताकतों के चलते वहां बसे कई हिन्दू परिवारों को घर
छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। बाद में हुकुम सिंह अपने बयान से पलट गए और
उन्होंने कहा कि यह मामला कानून व्यवस्था का है, सांप्रदायिकता का नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सांप्रदायिक रंग देकर कुछ
लोग इलाके के गुंडों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
खैर, जो भी हो हुकुम सिंह खबरों में हैं और
चर्चा में लगातार बने हुए हैं। कैराना पर सूची जारी करने के बाद उन्होंने कांधला
तहसील की भी सूची जारी की और आरोप लगाया कि यहां के लोग भी पलायन को मजबूर हैं।
पढ़ाई में बेहद होशियार थे हुकुम सिंह
बीजेपी सांसद हुकुम सिंह मुजफ्फरनगर के कैराना के ही रहने वाले हैं। 5 अप्रैल 1938 को जन्मे बाबू हुकुम सिंह पढ़ाई में काफी
होशियार थे। कैराना में ही 12वीं तक की पढ़ाई के बाद परिजनों ने आगे की
पढ़ाई के लिए उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा। वहां पर हुकुम सिंह ने बीए और
एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। इस बीच 13 जून 1958 को उनकी शादी रेवती सिंह से हो गई। उन्होंने वकालत का पेशा अपना लिया और
प्रैक्टिस करने लगे। उस समय के जाने माने वकील ब्रह्म प्रकाश के साथ उन्होंने
वकालत शुरू की।
जज की नौकरी छोड़ सेना में हुए शामिल
इसी दौरान उन्होंने जज बनने की परीक्षा पीसीएस (जे) भी पास की। जज की नौकरी शुरू करते, इससे पहले चीन ने भारत पर हमला कर दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल
नेहरू ने युवाओं से देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने के आह्वान पर वो सेना में
चले गए। 1963 में बाबू हुकुम सिंह भारतीय सेना में
अधिकारी हो गए। हुकुम सिंह ने बतौर सैन्य अधिकारी 1965 में पाकिस्तान के
हमले के समय अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना का सामना किया। इस समय कैप्टन
हुकुम सिंह राजौरी के पूंछ सेक्टर में तैनात थे। 1969 में हुकुम सिंह ने
सेना से इस्तीफा दे दिया और वापस मुजफ्फरनगर आ गए।
मौके की राजनीति करने में माहिर के हुकुम सिंह
कुछ ही समय में वह अपने साथी वकीलों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए उनके कहने पर
बार के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ लिया और 1970 में वह चुनाव जीत भी गए। 1974 तक उन्होंने इलाके के जन आंदलनों में हिस्सा लिया और लोकप्रिय होते चले गए।
हालत ऐसे हो गए थे इस साल कांग्रेस और लोकदल दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों ने
उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के तैयार थे। काफी सोच विचार के बाद उन्होंने
कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और चुनाव जीत भी गए। अब हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश
की विधानसभा के सदस्य बन चुके थे। 1980 में उन्होंने पार्टी बदली
और लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और इस पार्टी से भी चुनाव जीत गए। तीसरी बार 1985 में भी उन्होंने लोकदल के टिकट पर ही चुनाव जीता और इस बार वीर बहादुर सिंह की
सरकार में मंत्री भी बनाए गए। बाद में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो
उन्होंने हुकुम सिंह को राज्यमंत्री के दर्जे से उठाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे
दिया।
मुजफ्फरनगर दंगों का आरोप भी लगा
2007 में हुए चुनाव में भी वह विधानसभा पहुंचे। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों
के आरोप भी हुकुम सिंह पर लगे। 2014 में बीजेपी के टिकट पर
गुर्जर समाज के हुकुम सिंह ने कैराना सीट पर पार्टी को विजय दिलाई। इस लोकसभा
चुनाव में पार्टी को यूपी में अभूतपूर्व सफलता मिली। उनको जानने वाले और उनको
मानने वाले तो यह तक मान रहे थे कि नरेंद्र मोदी सरकार में उन्हें मंत्री पद भी
मिलेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। और शायद यहीं वजह भी
है कि वो भाजपा में अब अपनी स्थिति दर्ज करवाना चाहते हैं।
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