प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वांचल को लेकर हैं गंभीर, काशी विश्वनाथ कॉरीडोर और जेवर एयरपोर्ट से पहले पूर्वांचल को मिली विकास की सौगात
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई है। प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश को लगातार विकास की सौगात तो दे ही रहे हैं साथ ही योजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन भी लगातार कर रहे हैं।
देखने में ऐसा लग रहा है जैसे पीएम नरेन्द्र मोदी ने ही उत्तर प्रदेश की कमान
पूरी तरह से अपने हाथों में थाम ली है। वहीं, देखने में ये भी आ रहा है कि पीएम का
ज्यादा फोकस पूर्वांचल पर केन्द्रित है। इसी फेहरिस्त में मोदी ने सिद्धार्थनगर और
वारणसी को विकास की सौगात से भी नवाजा है।
जी हां, उत्तर प्रदेश विधानसभा
चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे–वैसे राजनीतिक दलों ने अपने सियासी अभियान तेज कर दिए हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी
ने यूपी चुनाव की कमान संभाल ली है। प्रधानमंत्री का अब पूरा फोकस पूर्वांचल पर
केन्द्रित हो चला है।
अगर अक्टूबर की ही बात की जाए, अक्टूबर में ही
प्रधानमंत्री ने पूर्वांचल क्षेत्र का दो बार दौरा किया है। साथ ही क्षेत्र के
विकास के लिए सौगात भी दी हैं। प्रधानमंत्री ने केन्द्र व राज्य सरकार की यहां
उपलब्धियां गिनाकर मिशन 2022 को सफल बनाने की यहां के
लोगों से अपील की है।
9 मेडिकल कॉलेज की सौगात
पीएम नरेन्द्र मोदी ने सिद्धार्थनगर से उत्तर प्रदेश को एक साथ 9 मेडिकल की सौगात दी है। माधव प्रसाद त्रिपाठी चिकित्सा
महाविद्यालय का लोकार्पण करने के साथ 2239 करोड़ रुपये की
लागत से देवरिया, एटा, फतेहपुर, हरदोई, गाजीपुर, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, जौनपुर के नवनिर्मित मेडिकल
कॉलेजों के राज्य स्वशासी मेजिकल कालेजों का वर्चुअल लोकार्पण प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने किया।
यूपी के लिए पूर्वांचल की जीत जरूरी
देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है तो यूपी को जीतने के लिए
पूर्वांचल को जीतना जरूरी है। इसी फॉर्मूले से लगातार दो लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाली
बीजेपी मिशन-2022 के लिए पूर्वांचल में पैठ
बनाने की कोशिश में है। इसी के मद्देनजर पीएम मोदी का फिलहाल पूरा फोकस पूर्वांचल
पर है। पीएम मोदी एक तरफ पूर्वांचल को मेडिकल कॉलेजों की सौगात दे रहे हैं तो वहीं
दूसरी ओर पूर्वांचल के विकास के लिए योजना भी तैयार करवाकर पूर्वांचल के लोगों को
सौंपने की बात कह रहे हैं।
दरअसल, किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी कांड के बाद से पश्चिम यूपी, तराई बेल्ट और अवध के इलाके में सरकार के खिलाफ माहौल गर्म है। वहीं, पूर्वांचल अभी भी बीजेपी का गढ़ माना जाता है। जिसकी सबसे बड़ी वजह पीएम नरेन्द्र मोदी का वाराणसी से सांसद होना है और गोरखपुर से सीएम योगी का होना है।
पूर्वांचल में राजभर ने बढ़ाई चुनौती
हालांकि, सुहेलदेव भारतीय समाज
पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर औऱ सपा प्रमुख अखिलेश यादव के हाथ मिलाने के बाद
बीजेपी के सामने अपने दुर्ग पूर्वांचल को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। इतना
ही नहीं बीजेपी को लोकसभा औऱ जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पूर्वांचल इलाके में ही झटका लगा था।
इसीलिए बीजेपी लगातार पूर्वांचल के सियासी समीकरण दुरुस्त करने में जुटी है।
यूपी में चुनाव तारीखों के ऐलान से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पूर्वांचल में करीब 6 जनसभा रखी हैं। इन चुनावी जनसभा में प्रधानमंत्री ने राज्य सरकार की उपलब्धियां गिनाकर मिशन 2022 को सफल बनाने की लोगों से अपील करेंगे। इसकी शुरुआत करते हुए पीएम नरेन्द्र मोदी ने 20 अक्टूबर को भगवान बुद्ध की धरती कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट का भी शुभारंभ किया और चुनावी जनसभाओं का एक तरह से आगाज भी कर दिया।
कुशीनगर में एयरपोर्ट के साथ-साथ पीएम मोदी 478.74 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की भी सौगात दी है। 116.21 करोड़ से तैयार 11 परियोजनाओं का लोकार्पण और 362.53 की लागत से मेडिकल कॉलेज सहित तीन परियोजनाओं का तोहफा पीएम मोदी ने पूर्वांचल को दिया है। इसके अलावा पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, गोरखपुर के खाद कारखाना मैदान में जनसभा भी अक्टूबर में ही की गयी। इस जनसभा के बाद खाद कारखाना व गोरखपुर एम्स का लोकार्पण भी किया जाना है।
बीजेपी का सियासी समीकरण
पूर्वांचल में बीजेपी ने अपने समीकरण को मजबूत बनाए रखने के लिए जातीय आधारित
पार्टियों के साथ भी गठबंधन कर रखा है। अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल (एस) और
संजय निषाद की निषाद पार्टी के साथ बीजेपी मिलकर इसबार चुनावी मैदान में किस्मत
आजमाएगी। बीजेपी के इन दोनों ही दलों का सियासी आधार पूर्वांचल के जिलों में है।
अनुप्रिया पटेल की कुर्मी वोटों पर पकड़ है तो संजय निषाद का मल्लाह समुदाय पर।
इसके अलावा बीजेपी की नजर ओम प्रकाश राजभर की पार्टी पर भी है। जिनके साथ गठबंधन
फिर से किये जाने की चर्चाएं तेज हैं। इस तरह बीजेपी पूर्वांचल के सियासी रण को
बीजेपी मजबूती के साथ जीतने की रणनीति तैयार कर रही है।
यूपी की 33 फीसदी सीटें पूर्वांचल में हैं
पूर्वांचल की जंग फतह करने के बाद ही यूपी की सत्ता पर कोई पार्टी काबिज हो
सकती है। क्योंकि सूबे की 33 फीसदी सीटें इसी इलाके की
हैं। यूपी के 28 जिले पूर्वांचल में आते
हैं। जिनमें कुल 164 विधानसभा सीटें हैं। 2017 के चुनाव में पूर्वांचल की 164 सीटों में से बीजेपी ने 115 सीट पर कब्जा जमाया था।
जबकि सपा ने 17, बसपा ने 14, कांग्रेस ने 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थी। हालांकि पिछले तीन दशक में पूर्वांचल का
मतदाता कभी किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा। वह एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में
एक का साथ छोड़कर दूसरे का साथ पकड़ता रहा है। यही वजह है कि बीजेपी 2022 के चुनाव में अपने गढ़ को मजबूत करने में जुट गई है।
मोदी का मिशन पूर्वांचल
पीएम मोदी ने अपने चुनावी अभियान के लिए एक बार फिर पूर्वांचल की धरती को ही
चुना। इसके पहले पीएम ने 2014 – 2019 के लोकसभा और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अभियान की शुरुआत
पूर्वांचल से ही की थी। मिशन – 2022 का आगाज भी पूर्वांचल में
कुशीनगर को इंटरनेशनल एयरपोर्ट की सौगात से किया गया और सिद्धार्थनगर और काशी का
दौरा कर चुनावी माहौल बनाया गया।
बहरहाल, पीएम मोदी और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब पूरी तरह से चुनावी मोड में हैं। और राजनीति के जानकारों की माने तो बीजेपी उत्तर प्रदेश में किसी भी हाल में अपने हाथ से छूटने नहीं देना चाहती। साथ ही बीजेपी को इस बात का भी अंदाजा है कि इसबार का उत्तर प्रदेश का चुनाव उतना भी आसान नहीं होगा और जीत का आंकड़ा भी शायद वो नहीं होगा जो पिछली विधानसभा चुनाव के समय में था। वहीं, सच ये भी है कि उत्तर प्रदेश में इस बार बीजेपी के साथ बसपा, सपा और कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी भी सत्ता में आने का सपना संजोय बैठी हैं और जोड़ तोड़ की राजनीति के साथ-साथ हर एक वो हथकंडा अपना रही हैं जिससे उन्हें उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें मिल जाए।
बॉक्स...एक
मुस्लिम वोटों के लए उलेमाओं की शरण में सपा, अबु आजमी से अखिलेश यादव तक सक्रिय
मुस्लिम वोटों के दम पर ही मुलायम सिंह यादव तीन बार और अखिलेश यादव एक बार
उत्तर प्रदेश में सत्ता की कमान संभाल चुके हैं। अब 2022 के यूपी चुनाव में मुसलमानों को सपा अपने साथ मजबूती से जोड़ने के लिए
उलेमाओं का सहारा लेने की कवायद में जुट गयी है।
उत्तर प्रदेश की सियासत में मुसलमानों की भूमिका अहम मानी जाती है। यह बात समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बेहतर भला कौन समझ सकता है।
मुस्लिम उलेमाओं से मिलकर वोटर्स को साधने की कोशिश में सपा प्रमुख
सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस ईद-मिलादुन्नबी के मौके पर लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह
पहुंचे। यहां उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना खालिद राशीद
फरंगी महली से मिलकर मोहम्मद साहब के जन्मदिन की बधाई दी। वहीं, सपा के मुस्लिम नेता व विधायक अबु आसिम आजमी ने भी लखनऊ में
मुस्लिमों के धार्मिक संगठन सुन्नी मजलिस-ए-अमल के अध्यक्ष मौलान वली फारूकी सहित
तमाम उलेमाओं के साथ मुलाकात औऱ बैठक की। इस बैठक की फोटो भी आजमी ने खुद अपने
सोशल मीडिया पर शेयर की थी।
मुस्लिमों के बीच ओवैसी की सक्रियता
उत्तर प्रदेश में इस बार के चुनाव में बीजेपी के हार्ड हिन्दुत्व के सामने
अखिलेश यादव खुलकर मुस्लिम कार्ड खेलने से अभी तक बच रहे थे। लेकिन, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन
ओवैसी की यूपी में बढ़ती सक्रियता और कांग्रेस की मुस्लिम वोटों पर नजर को देखते
हुए सपा के सामने अपने कोर वोट बैंक को साधे रखने की चुनौती है। ऐसे में अखिलेश
यादव के बाद सपा नेता अबु आसिम आजमी की सूबे के उलेमाओं के साथ हुई मुलाकात को 2022 के विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
दरअसल, ओवैसी ने सूबे की 100 सीटों पर कैंडिडेट उतारने का ऐलान किया है। पिछले 8 महीनों से ओवैसी यूपी का लगातार दौरा कर रहे हैं और उन्होंने मुस्लिम बहुल
इलाके की सीटों को टारगेट किया है। ओवैसी मुस्लिम लीडरशिप को स्थापित करने और
मुस्लिम प्रतिनिधित्व को सबसे बड़ा सियासी हथियार बना रहे हैं। मुस्लिम युवाओं के
बीच ओवैसी का सियासी ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है तो कांग्रेस भी मुस्लिम वोटों को
अपने पक्ष में लाने के तमाम जतन कर रही है। उलेमाओं से लेकर मस्जिदों तक सहारा ले
रही है।
आजम की जगह आजमी मुस्लिम चेहरा
वही, सपा के कद्दावर मुस्लिम चेहरा व रामपुर से सांसद
आजम खान के जेल में बंद होने के चलते पार्टी के पास कोई दूसरा बड़ा नेता नहीं है।
ऐसे में अखिलेश यादव ने महाराष्ट्र के मुंबई से विधायक अबु आसिम आजमी को यूपी के
लिए मुसलमानों को साधे रखने का जिम्मा सौंपा है। आजमी सूबे में अलग-अलग जिलों का
दौरा करके मुस्लिमों को सपा से जोड़ने की मुहिम में जुटे हैं। इसी कड़ी में
उन्होंने सुन्नी मुजलिस-ए-अमल के अध्यक्ष मौलाना वली फारूकी के साथ बैठक की है।
यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम वोटर अहम
उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं।
सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर
रखते हैं। इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसदी के बीच है। 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान 30 फीसदी से ज्यादा है। सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं
जबकि करीब 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं
जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को खासा प्रभावित करते हैं। इनमें ज्यादातर
सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, तराई वाले इलाके और पूर्वी
उत्तर प्रदेश की है।
क्या मुस्लिमों की पहली पसंद बनेगी सपा
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं के बाच सपा की अच्छी पैठ मानी जाती है।
सूबे में 20 फीसदी मुस्लिम औऱ 10 फीसदी यादव वोटरों के सहारे सपा के एम-वाई समीकरण के दम पर मुलायम सिंह यादव
से लेकर अखिलेश यादव यूपी की सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हो चुके हैं।
1990 का अयोध्या गोलीकांड औऱ उसके बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस के चलते सूबे में जो
माहौल बदला उसमें मुस्लिम वोटों का सबसे ज्यादा फायदा मुलायम सिंह यादव की पार्टी
सपा को मिला। इसी मुस्लिम वोटों के दम पर मुलायम सिंह से लेकर अखिलेश यादव तक सूबे
के मुख्यमंत्री बने।
यूपी के सियासी माहौल में अखिलेश यादव मुस्लिम और यादव वोटों को अपना कोर वोटबैंक मानकर चल रहे हैं। 2022 में सत्ता में वापसी के लिए मुस्लिम-यादव वोटबैंक में अन्य ओबीसी के वोटों के कुछ हिस्से को जोड़ने की कोशिश में अखिलेश यादव जुटे हैं। बीजेपी के पास सत्ता होने के चलते जिस तरह का माहौल बना हुआ है, उसमें अभी तक मुस्लिम के बीच सपा सबसे पहली पंसद मानी जा रही है, लेकिन कांग्रेस से लेकर बसा और मुस्लिम पार्टियां यादव मुस्लिम समीकरण को तोड़ने की कवायद में जुटी है। इसीलिए सपा भी मुस्लिमों के बीच अपनी पैठ कायम रखने के लिए उलेमाओं का सहारा ले रही है।