‘आजाद’ ने राहुल गांधी के सिर फोड़ा कांग्रेस की बदहाली का ठीकरा
गुलाम नबी आजाद ने
कांग्रेस छोड़ दी है। कांग्रेस के लिए यह झटका नहीं बल्कि बबंडर की आहट है क्योंकि
गुलाम नबी आजाद का पार्टी से जाने के मतलब यह भी है कि कांग्रेस का एक दिग्गज
स्तंभ अब भरभरा कर गिर गया है। वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस छोड़ने का
असर जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक कांग्रेस के खेमों में देखने को मिल रहा
है।
वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने आखिरकार कांग्रेस को टाटा बाय-बाय कर ही दिया। हालांकि यह कयास काफी समय से लगाया जा रहा था। अब जब गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया है। ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि अब कांग्रेस का और कितना नुकसान होगा।
कांग्रेस को पास से समझने
वाले कहते हैं कि गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस से जाना तो फिर भी ठीक है, लेकिन अगर
आजाद कांग्रेस छोड़कर किसी और दल या पार्टी में चले गए तब कांग्रेस का क्या होगा।
यानी साफ तौर पर जब से आजाद राज्य सभा से रिटायर हुए और प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा
उनकी तारीफ हुई। उसके बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि कभी भी गुलाम अब
कांग्रेस से आजाद हो जाएंगे।
गुलाम नबी आजाद ने दिल्ली
में कांग्रेस छोड़ी उधर जम्मू कश्मीर से उनके इस्तीफे के साथ ही उनके समर्थक
कांग्रेसी नेताओं के इस्तीफों की बाढ़ आ गयी। एक के बाद एक कई इस्तीफे कांग्रेस के
दफ्तर पहुंचने लगे।
गुलाम नबी आजाद ने सभी पदो से दिया इस्तीफा
26 अगस्त कांग्रेस के लिए
काला शुक्रवार बनकर आया। इसदिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी
के सभी पदों और सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसे उन्होंने अंतरिम अध्यक्ष सोनिया
गांधी को भेज दिया। 5 पन्नों के इस्तीफे में उन्होंने लिखा- दुर्भाग्य से पार्टी
में जब राहुल गांधी की एंट्री हुई और जनवरी 2013 में जब आपने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया, तब उन्होंने पार्टी के सलाहकार तंत्र को पूरी
तरह से तबाह कर दिया।
आजाद यहीं नहीं रुके,
कहा- राहुल की एंट्री के बाद सभी सीनियर और
अनुभवी नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया और गैरअनुभवी चापलूसों का नया ग्रुप खड़ा
हो गया और यही पार्टी को चलाने लगा।
दो घंटे में कैंपेन कमेटी
अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था
आजाद कई दिनों से हाईकमान
के फैसलों से नाराज थे। इसी महीने 16 अगस्त को कांग्रेस ने आजाद को जम्मू-कश्मीर प्रदेश कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष
बनाया था, लेकिन आजाद ने अध्यक्ष
बनाए जाने के 2 घंटे बाद ही पद
से इस्तीफा दे दिया था। आजाद ने कहा था कि ये मेरा डिमोशन है।
73 साल के आजाद अपनी सियासत
के आखिरी पड़ाव पर फिर प्रदेश कांग्रेस की कमान संभालना चाह रहे थे, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी बजाय 47 साल के विकार रसूल वानी को ये जिम्मेदारी दे
दी। वानी गुलाम नबी आजाद के बेहद करीबी हैं। वे बानिहाल से विधायक रह चुके हैं।
आजाद को यह फैसला पसंद नहीं आया। कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व आजाद के करीबी
नेताओं को तोड़ रहा है और आजाद इससे खफा हैं।
कांग्रेस हाईकमान से पहले भी खटपट हुई, मामला सुलझ गया
यह पहली बार नहीं है,
जब गुलाम नबी आजाद 10 जनपथ यानी सोनिय गांधी के गुड लिस्ट से बाहर हैं। 2008 में जम्मू-कश्मीर मुख्यमंत्री पद से हटने के
बाद भी उनका कांग्रेस हाईकमान से खटपट हुई थी। हालांकि, 2009 में आध्र प्रदेश कांग्रेस में विवाद के बाद हाईकमान ने
आजाद को समस्या सुलझाने की जिम्मेदारी दी। इसके बाद फिर वे गुड लिस्ट में शामिल
हुए और केंद्र में मंत्री बने। सूत्रों के मुताबिक, इस बार कांग्रेस हाईकमान से उनका समझौता नहीं हो पाया,
इस वजह से उन्होंने इस्तीफा ही दे दिया।
जी-23 ग्रुप का हिस्सा थे गुलाम नबी आजाद
गुलाम नबी आजाद पार्टी से
अलग उस जी 23 समूह का भी
हिस्सा थे, जो पार्टी में कई बड़े
बदलावों की पैरवी करता है। उन तमाम गतिविधियों के बीच इस इस्तीफे ने गुलाम नबी
आजाद और उनके कांग्रेस के साथ रिश्तों पर सवाल खड़ा कर दिया है। केंद्र ने इसी साल
गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया है।
आजाद की राज्यसभा से विदाई पर भावुक हुए थे PM मोदी
गुलाम नबी आजाद की
राज्यसभा से विदाई के वक्त अपने भाषण में PM मोदी ने उन्हें दोस्त बताया था।
गुलाम नबी आजाद की
राज्यसभा से विदाई के वक्त अपने भाषण में PM मोदी ने उन्हें दोस्त बताया था।
आजाद का राज्यसभा का
कार्यकाल 15 फरवरी 2021
को पूरा हो गया था। उसके बाद उन्हें उम्मीद थी
कि किसी दूसरे राज्य से उन्हें राज्यसभा भेजा जा सकता है, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा। आजाद का
कार्यकाल खत्म होने वाले दिन उन्हें विदाई देते हुए PM नरेंद्र मोदी भावुक हो गए थे। 2021 में मोदी सरकार ने गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान दिया
था। कांग्रेस के कई नेताओं को यह पंसद नहीं आया। नेताओं ने सुझाव दिया था कि आजाद
को यह सम्मान नहीं लेना चाहिए।
बता दें कि कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पार्टी की राज्य इकाई की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से रविवार को इस्तीफा दे दिया था। इस पर उन्होंने कहा था कि जी -23 समूह पार्टी को मजबूत करने के लिए काम कर रहा है और पार्टी हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर उतरेगी। उन्होंने ‘‘निरंतर बाहर रखे जाने एवं अपमान'' का हवाला देते हुए पार्टी की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। जी-23 उन असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं का एक समूह है जिसने संगठन में आमूल-चूल फेरबदल की मांग की है। शर्मा भी इस समूह का हिस्सा हैं।
भड़की कांग्रेस ने गुलाम नबी आजाद के DNA पर उठा दिया सवाल, कहा- धोखेबाजी का कैरेक्टर
जयराम रमेश ने कहा कि
गुलाम नबी आजाद का डीएनए मोदीफाइड हो गया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे शख्स को जिसे
कांग्रेस की लीडरशिप ने इतना सम्मान दिया, उसने बेहद निजी और घटिया हमले करके विश्वासघात किया है।
गुलाम नबी आजाद ने
कांग्रेस से अपने 51 साल पुराने
रिश्ते को तोड़ दिया है और अब नई पार्टी बनाने का ऐलान किया है। उनके इस फैसले से
कांग्रेस के नेता भड़क गए हैं। इस बीच वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने उनके डीएनए पर ही
सवाल उठा दिया है। मीडिया से बात करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि गुलाम नबी आजाद का
डीएनए मोदीफाइड हो गया है। उन्होंने कहा कि एक ऐसे शख्स को जिसे कांग्रेस की
लीडरशिप ने इतना सम्मान दिया, उसने बेहद निजी
और घटिया हमले करके विश्वासघात किया है। उन्होंने कहा कि आजाद के इस रवैये से उनका
असली कैरेक्टर सामने आ गया है।
राहुल के गार्ड-पीए लेते हैं फैसले, जाते-जाते आजाद ने निकाली भड़ास
कांग्रेस के एक अन्य नेता
संदीप दीक्षित ने भी गुलाम नबी आजाद के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि मुझे इसमें
विश्वासघात की बू आ रही है। उन्होंने कहा कि पार्टी में रहना जरूरी था। जयराम रमेश
ने कहा कि कांग्रेस इस वक्त महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ रही है और ऐसे वक्त
में गुलाम नबी आजाद का पार्टी से अलग हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। जयराम रमेश बोले,
'यह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है कि ऐसे वक्त में
यह हुआ है, जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस पार्टी भाजपा से
मुद्दों पर लड़ रहे हैं। महंगाई, बेरोजगारी और
ध्रुवीकरण के खिलाफ मुकाबला कर रहे हैं।'
यही नहीं पवन खेड़ा ने तो गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को राज्यसभा की सीट से भी जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इस बार गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा नहीं भेजा। शायद इसी वजह से उनका पार्टी से इस्तीफा आया है। पवन खेड़ा ने कहा कि जब से उनकी राज्यसभा सीट चली गई थी, वह बेचैन हो गए थे। इससे पता चल जाता है कि वह बिना पद के एक सेकेंड के लिए भी नहीं रह सकते।
गुलाम नबी आजाद ने राहुल पर अटैक कर छोड़ी है कांग्रेस
बता दें कि गुलाम नबी
आजाद ने आज ही 5 पन्नों का लंबा
खत सोनिया गांधी को लिखकर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इस पत्र में
राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि उनके राजनीति में आने के बाद से ही
कांग्रेस की वह व्यवस्था समाप्त हो गई, जिसमें सबकी सहमति और समन्वय से काम किया जाता था।
गुलाम नबी आजाद का राजनीति का सफरनामा
अटकलों के बीच दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने आज कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। वह गांधी परिवार के बेहद करीबी नेताओं में से एक माने जाते रहे हैं। लेकिन समय के साथ कांग्रेस में बदलावों के बाद वह पार्टी में जी-23 के मुख्य नेता के रूप में उभरे। राजनीति में उनके अनुभव और कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर सहित देश के करीब सभी राज्यों में उनकी सक्रियता रही है। मार्च 2022 में गुलाम नबी आजाद को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्म भूषण मिला।
1973 में गुलाम नबी आजाद ने भलस्वा में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में राजनीति की शुरुआत की थी। इसके बाद उनकी सक्रियता और शैली को देखते हुए कांग्रेस ने उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुना। उन्होंने महाराष्ट्र में वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से 1980 में पहला संसदीय चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 1982 में उन्हें केंद्रीय मंत्री के रूप में कैबिनेट में शामिल किया गया। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली दूसरी यूपीए सरकार में, आजाद ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री का पदभार संभाला। इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का विस्तार किया। साथ ही झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले शहरी गरीबों की सेवा के लिए एक राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन भी शुरू किया।
आजाद के जम्मू-कश्मीर
प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर जीत का परचम लहराया था। इसके परिणाम
स्वरूप कांग्रेस प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी।
गुलाम नबी आजाद का अब तक का सियासी सफर
2008 भद्रवाह से जम्मू-कश्मीर
विधानसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए। दया कृष्ण को 29,936 मतों के अंतर से हराया।
2009: चौथे कार्यकाल के लिए
राज्यसभा के लिए चुना गया और बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री
के रूप में नियुक्त किया गया।
2014: राज्यसभा में विपक्ष के
नेता रहे।
2015: वह पांचवीं बार राज्यसभा
के लिए फिर से चुने गए।
एक के बाद एक क्यों कांग्रेसी छोड़ रहे हैं कांग्रेस
कांग्रेस के दिग्गज नेता
गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को पार्टी छोड़ दी। आजाद ने सोनिया गांधी को पांच पेज
का इस्तीफा भेजा है। इसमें उन्होंने कई आरोप लगाए हैं। आजाद ने लिखा है कि
कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है। राहुल गांधी अनुभवहीन
लोगों से घिरे हुए हैं। यह भी लिखा है कि अब कांग्रेस में न तो इच्छा शक्ति बची है
और न ही काबिलियत।
इसके पहले 16 अगस्त को गुलाम नबी आजाद को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस की कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन आजाद ने अध्यक्ष बनाए जाने के 2 घंटे बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया था। आजाद से दो दिन पहले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने भी पार्टी छोड़ी है।
पिछले दो साल के रिकॉर्ड देखें तो इनमें कई नेताओं के नाम शामिल हो चुके हैं। फिर वह ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या जितिन प्रसाद, कपिल सिब्बल और हार्दिक पटेल। एक के बाद एक कई दिग्गज नेता कांग्रेस का दामन छोड़ दूसरी पार्टियों में शामिल हो चुके हैं। कई ऐसे भी हैं, जो पार्टी के बड़े पदों पर नहीं बैठना चाहते हैं। इनमें आनंद शर्मा जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं। आनंद शर्मा ने पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव संचालन समिति (स्टीयरिंग कमेटी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर कांग्रेस के दिग्गज नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं? क्यों कोई बड़ा नेता पार्टी के बड़े पदों को नहीं संभालना चाहता है? आइए इसके कारण जानते हैं...
इस्तीफा देने वाले
ज्यादातर नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व पर उठाए सवाल
कांग्रेस छोड़ने वाले
ज्यादातर नेताओं ने कांग्रेस नेतृत्व और खासतौर पर राहुल गांधी पर सवाल खड़े किए
हैं। गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफा में लिखा है कि कांग्रेस में अब कुछ भी ठीक
नहीं है। राहुल गांधी के आसपास अनुभवविहीन लोग हैं। पार्टी में अब न तो इच्छा शक्ति
बची है और न ही काबिलियत। लगातार पार्टी में वरिष्ठ नेताओं को किनारे किया जा रहा
है।
इसके दो दिन पहले पार्टी से इस्तीफा देने वाले जयवीर शेरगिल ने भी कुछ इसी तरह के सवाल उठाए थे। शेरगिल ने लिखा था, 'मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि निर्णय लेना अब जनता और देश के हितों के लिए नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के स्वार्थी हितों से प्रभावित है, जो चाटुकारिता में लिप्त हैं और लगातार जमीनी हकीकत की अनदेखी कर रहे हैं।'
जितिन प्रसाद, हार्दिक पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई नेताओं ने भी इस्तीफा देते हुए राहुल गांधी पर ही सवाल खड़े किए थे। सभी ने अपने इस्तीफा में लिखा था कि राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं को मिलने का समय नहीं देते हैं। वह कार्यकर्ताओं और नेताओं की बात नहीं सुनते हैं।