Work from Home WFH increase your sugar level, cure before risk
आज के तेज भागदौड़ के दौर में शुगर एक आम समस्या होती जा रही है। ऑफिस दफ्तर और घर में घंटों बैठकर दफ्तर का काम करना अब जान पर भारी पड़ता जा रहा है।
हालांकि शुगर की समस्या से पहले भी भारत और दुनिया के लोग जूझ रहे थे, लेकिन अब शुगर की समस्या एक नये रूप में हमारे सामने है।एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि अगर समय रहते शुगर पर नियंत्रण नहीं पाया जाए
तो यह जानलेना साबित हो सकती है।
कितने प्रकार की होती है डायबिटीज
वंशानुगत कारणों से होनेवाली डायबिटीज को टाइप-1 डायबिटीज कहा जाता है। जबकि कुछ लोगों में गलत लाइफस्टाइल के कारण यह बीमारी
घर कर जाती है। इस स्थिति को टाइप-2 डायबिटीज कहते हैं।
डायबिटीज एक और दो के फर्क को कैसे समझे
डायबिटीज टाइप-1 और डायबिटीज टाइप-2 सुनकर अक्सर लोगों के जेहन में यह सवाल उठता है कि आखिर ये
डायबिटीज एक और डायबिटीज दो है क्या? दोनों ही डायबिटीज के बीच अंतर क्या है? क्या इनके लक्षण अलग-अलग
होते हैं यह एक जैसे ही होते हैं?
सबसे पहले यह समझना आवश्यक है कि डायबिटीज की बीमारी क्यों होती है और कौन इससे ग्रस्त हो सकते हैं?
मौजूदा दौर में ज्यादातर लोगों की जीवनशैली बेहद खराब हो चली है। पार्क में
घूमना फिरना या फिर व्यायाम करना जैसे हम भूलते ही जा रहे हैं। थोड़ा बहुत योगा और
पार्क में टहल कर हमे लगता है कि बस हो गया। वहीं, खान पान की गलत आदतें, जिसमें
तला भूना, ज्यादा मसालेदार और फास्ट फूड खाने की लत ने हमारे शरीर को अंदर से
खोखला कर दिया है। एक तरफ यह हमारे अमाश्य को कमजोर बने रहे हैं तो दूसरी ओर जीभ
का स्वाद बढ़ाकर हमारे पाचन तंत्र की धज्जियां उड़ा रहे है।
धीरे धीरे जब हमारे शरीर में पैक्रियाज (अग्नाश्य) इंसुलिन का उत्पादन करना
बंद कम कर देता है या बंद कर देता है तब हमारे ब्लड में ग्लूकोज का स्तर बढ़ने
लगता है। अगर इस स्तर को कंट्रोल ना किया जाए तो हम शुगर के रोगी बन जाते हैं।
दो तरह की होती है शुगर की बीमारी
-शुगर की बीमारी दो तरह की होती है। टाइप-1 और टाइप-2, इनमें टाइप-1 शुगर वह है जो हमें अनुवांशिक तौर पर होती है। यानी जब
किसी के परिवार में मम्मी-पापा, दादी-दादा में से किसी को
शुगर की बीमारी रही हो तो ऐसे व्यक्ति में इस बीमारी की आशंका कई गुना बढ़ जाती
है।
-यदि किसी व्यक्ति को वंशानुगत कारणों से डायबिटीज होती है तो इसे टाइप-1 डायबिटीज कहा जाता है। जबकि कुछ लोगों में गलत लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण यह बीमारी घर कर जाती है। इस स्थिति को टाइप-2 डायबिटीज कहते हैं।
क्यों होती है डायबिटीज, क्या हैं इसके प्रारंभिक लक्षण? जानें हर सवाल का जवाब
जन्म से भी हो सकती है ऐसी डायबिटीज
-डायबिटीज टाइप-1की समस्या किसी बच्चे में
जन्म से भी देखने को मिल सकती है। या बहुत कम उम्र में भी यह बच्चे को अपनी गिरफ्त
में ले सकती है। इस स्थिति में शरीर के अंदर इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता है।
-ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वंशानुगत कारणों से पैंक्रियाज में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। यह एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है। यानी इसमें अपने ही शरीर की कुछ कोशिकाएं दूसरी कोशिकाओं के दुश्मन की तरह रिऐक्ट करती हैं और उन पर हमला करके उन्हें नष्ट कर देती हैं।
-डायबिटीज टाइप-1 में हमारे ही शरीर की कुछ कोशिकाएं हमारे पैक्रियाज यानी अग्नाश्य की कोशिकाओं पर हमला करके इंसुलिन के उत्पादन को बाधित कर देती हैं। इससे रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ने लगती है।
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डायबिटीज टाइप-1 और डायबिटीज टाइप-2 में अंतर
डायबिटीज-2 इन कारणों से भी होती है
-डायबिटीज टाइप-2 बहुत अधिक फैट, हाई बीपी, समय पर ना सोना, सुबह देर तक सोना, बहुत अधिक नशा करना
और निष्क्रिय जीवनशैली के कारण भी होती है।
-डायबिटीज टाइप-2 का एक कारण शरीर में इंसुलिन कम बनना भी होता है। ऐसा कुछ शारीरिक कारणों या गलत खान-पान के कारण भी हो सकता है।
-इंसुलिन कम बनने से रक्त में मौजूद कोशिकाएं इस हॉर्मोन के प्रति बहुत कम संवेदनशीलता दिखाती हैं। इस कारण भी रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है और व्यक्ति डायबिटीज टाइप-2 का शिकार हो जाता है।
-जब हमारा अग्नाश्य इंसुलिन नाम का हॉर्मोन बनाता है तो शुगर या ग्लूकोज हमारे
ब्लड में फ्लो नहीं करता। बल्कि ऊर्जा के रूप में शरीर में स्टोर हो जाता है। इसकी
मात्रा बढ़ने लगती है तब हम कहते हैं फैट बढ़ रहा है।
- जब हमारे शरीर को ऊर्जा की जरूरत होती है और हम कुछ खा नहीं पाते हैं तब हमारा शरीर इस स्टोर फैट का उपयोग करता है। ताकि सभी अंग ठीक से काम करते रहें।--लेकिन इंसुलिन के अभाव में शुगर कोशिकाओं में स्टोर ना होकर ब्लड में ही घूमती रहती है। इससे रक्त में मौजूद रेड ब्लड सेल और वाइड ब्लड सेल अपना काम नहीं कर पाती हैं। जिससे हमें जल्दी-जल्दी बीमारियां होने लगती हैं और मामूली बीमारी को ठीक होने में भी लंबा वक्त लग जाता है।
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शुगर की बीमारी और इलाज का तरीका
-किसी भी मरीज को यदि केवल शुगर की समस्या है तो उसके इलाज में उन लोगों के
इलाज से अंतर होता है, जिन्हें शुगर या डायबिटीज
के साथ ही दूसरी बीमारियां भी हों।
-एक बार शुगर हो जाने के बाद आप इसे केवल नियंत्रित कर सकते हैं, इससे मुक्ति नहीं पा सकते। इसलिए बेहतर है कि यह बीमारी
होने से पहले जितना भी सजग रह सकें, रहें।-
-डायबिटीज टाइप-1 की बीमारी वंशानुगत होती है, इसलिए इस पर जीवनशैली में बदलावों के साथ नियंत्रण का प्रयास किया जाता है।
- वहीं, डायबिटीज टाइप-2 में जरूरत होने पर ही
इंसुलिन की डोज दी जाती है। नहीं तो ऐसी दवाओं से चिकित्सा
की जाती है, जो इंसुलिन के उत्पादन को
बढ़ाने के लिए पैंक्रियाज को प्रोत्साहित करें।
-इसके साथ ही सही जीवनशैली अपनाने पर जोर दिया जाता है। तनाव को कम करने के लिए शारीरिक गतिविधियों और ध्यान की सहायता ली जाती है।
आर्युवेद में क्या इसका इलाज है?
जी हां, आर्युवेद में शुगर का इलाज है, लेकिन यह इलाज तभी कारगर सिद्ध होता है जब आप इसे सही तरीके से अपनाये। यह इलाज टाइप टू शुगर में कारगर सिद्ध होता है। इसमें व्यायाम के साथ आर्युवेद की दवाएं दी जाती है। यह दवा देश के सरकारी आर्युवेद अस्पतालों में फ्री भी दी जा रही है।
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