कहने के लिए कभी कभी हमारे पास शब्द नहीं होते और कभी माध्यम, लेकिन कहना तो है। क्योंकि मरना तय है और मरते वक्त दिल में कोई बात रह जाये तो फिर उस जीवन का मतलब ही क्या? इसलिए अपने दिल की बात कहो और अगर कोई न सुने तो शोर मचा कर कहो ताकि अंतिम समय दिल यहीं कहे कि अब बस बहुत हुआ अब शांत हो जाओ।
Tuesday, April 13, 2010
क्या हमारे बुजुर्गों ने हमें नहीं पढ़ाया
आपने टोपी वाले की कहानी अवश्य सुनी होगी जिसमें एक आदमी टोपियों का कारोबार किया करता था। एक दिन वह शहर से टोपियां बेच कर अपने घर वापस आ रहा था। दोपहर का समय था टोपी वाले ने सोचा अभी गांव थोड़ा दूर है और दोपहर हो चली है। क्यों न किसी पेड़ के नीचे बैठकर खाना खाया जाये इस बहाने थोड़ा सुस्ता भी लिया जायेगा। ये सोचकर टोपीवाला एक घने बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गया और खाना खाने के बाद टोपियों का झोला एक ओर ऱखकर सुस्ताने के लिए लेट गया। पेड़ की ठंडी छांव में व्यापारी को नींद आ गयी। वह सो गया। एक घंटे के बाद उसकी आंख कुछ शोर सुनकर खुली। वह उठकर बैठ गया। उसने देखा की उसके झोले से टोपियां गायब थी। इधर उधर देखने पर भी उसे अपनी टोपियों का पता नही चला, लेकिन पेड़ पर ऊपर देखने से उसे पता चला कि ऊपर मौजूद बंदरों ने उसकी टोपियां उठा ली हैं। वह उन्हें देखकर चिल्लाया और अपनी टोपियां वापस करने के लिए इशारा किया लेकिन बंदर तो बंदर थे नहीं समझे। तभी व्यापारी को एक उपाय सुझा उसने अपनी टोपी जमीन पर दे मारी। ये देखकर नकलची बंदरों ने भी ऐसा ही किया औऱ इस तरह से व्यापारी को अपनी सारी टोपियां वापस मिल गई। ये वो कहानी थी जो आज तक हमने पढ़ी और समझी की बंदर नकलची होते हैं, और परेशानी में संयम और बुद्धिमता से हर परेशानी का हल निकल आता है।
लेकिन अब आगे सुनिये.............
एक लंबे अंतराल के बाद इसी व्यापारी का पोता फिर से इसी रास्ते से गुजरा। क्योंकि वह भी टोपियों के कारोबार में था। सभी कुछ वैसा ही हुआ जैसा उसके दादा जी के साथ हुआ। शहर से वापसी में दोपहर हुई, पेड़ आया उसने खाना खाया आराम के लिए आंखें बंद की औऱ सो गया। वह किसी आवाज की वजह से जागा देखा टोपियां गायब।
इधर उधर देखा टोपियां नहीं मिली। फिर उसे अपने दादा जी की बात याद आयी।
सर उठा कर ऊपर पेड़ पर देखा.... बंदर के सर टोपी देखकर युवक मुस्कुराया और पहले टोपी वापस देने की गुजारिश सी की। बंदर फिर बंदर कहां कहने से टोपी देने वाले थे। युवक को अपने दादा की बात याद आयी। युवक ने वही तरकीब लगाई और जोर से अपनी टोपी जमीन पर दे मारी।
फिर क्या हुआ.............
युवक ने ऊपर देखा, बंदरों की ओर से कोई रिस्पोंस नहीं आया।
युवक ने फिर अपनी टोपी जमीन पर मारी........ फिर रिस्पोंस नहीं।
एक बार, दो बार, तीन बार लगातार कई कोशिश करने के बाद भी बंदरों का कोई रिस्पोंस नहीं आया।
युवक झल्ला गया और चीखकर बोला अबे ओ बंदरों क्यों मेरी टोपियां जमीन पर नहीं फेंकते।
ये सुनकर पहले बंदर मुस्कुराये और फिर कहकहा लगाकर जोर से हंसे और बोले.... अबे मानवजात क्या कुछ सीखाने या पढ़ाने का जिम्मा तुम्हारे बुजुर्गों ने ही लिया हुआ है हमारे बुजुर्गों ने हमें कुछ नहीं सीखाया। हमें भी तो वह कुछ पढ़ा कर सीखाकर गये होंगे।
समय के साथ परिस्थितियां बदलती है।
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