कहने के लिए कभी कभी हमारे पास शब्द नहीं होते और कभी माध्यम, लेकिन कहना तो है। क्योंकि मरना तय है और मरते वक्त दिल में कोई बात रह जाये तो फिर उस जीवन का मतलब ही क्या? इसलिए अपने दिल की बात कहो और अगर कोई न सुने तो शोर मचा कर कहो ताकि अंतिम समय दिल यहीं कहे कि अब बस बहुत हुआ अब शांत हो जाओ।
Tuesday, July 20, 2010
पीछे छुटते सवाल
चार महीनें और तीन मौत की खबरें
हर मौत पीछे छोड़ती कुछ सवाल?
किस माहौल में जी रहे हैं हम।
खबरों के पीछे दौड़ते हम क्यों बन रहे हैं खबर
काम का दवाब, प्रतिस्पार्धा में बने रहने की फ्रिक
और पत्रकारिता में मौजूदगी की जद्दोजहद।
एक साथ मिलते हैं तो होता है डिप्रेशन
जो कभी दिमाग को फाड़ देता है
तो कभी दिल को।
लेकिन फिर भी रहना तो यहीं हैं।
अपने सबसे प्यारे दुश्मन के साथ
जो चलता है एक कदम आगे
कभी करता है चुगली बॉस से
तो कभी हम साया होकर
उतार देता है नस्तर जिगर में।
नहीं है किसी के पास वक्त भरोसे का...
हर शख्स है परेशान यहां थोड़ा थोड़ा।
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