Monday, November 9, 2015

नरेन्द्र दमोदरदास मोदी फेल, अब आगे होगा क्या ?


बिहार में बीजेपी अपना चुनाव हार गयी है। ये हार बीजेपी से ज्यादा देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी की हार है। और ये पहली बार नहीं है बल्कि दिल्ली के बाद दूसरी बार है। अब देश के हाई टेक और इलेक्शन को मैनेज करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आगे क्या करेंगे? या ये कहे की आगे की बीजेपी की रणनीति क्या होगी। 

क्योंकि बिहार की हार के साथ ही बिहार में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित सभी पैकेज रोक दिए जाएंगे। यानी बिहार के साथ भी दिल्ली की ही तरह वर्ताव किया जाने वाला है। क्योंकि केन्द्र में बीजेपी की सरकार होगी और राज्य में नीतिश – लालू की। ऐसे में ये ही नहीं सकता की मोदी किसी भी एंगल से नीतिश – लालू गठबंधन का समर्थन करें या बिहार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। क्योंकि अगर ऐसा करने की नीयत प्रधानमंत्री की होती तो वो सबसे पहले दिल्ली में ही दिखाई देती। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। 

वहीं दूसरी ओर चिंता की एक बड़ी वजह ये भी है कि इस पूरे राजनीतिक भूगोल में भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था भी कमजोर पड़ रही है। जाति और धर्म के नाम पर सत्ता पर पार्टियां काबिज हो रही है और ऐसे में पार्टियों की राजनीतिक सोच क्या होगी ये छुपा नहीं है।
और प्रधानमंत्री मोदी के लिए ये एक ऐसी चुनौती है जिससे पार पाना शायद उनके लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि इस हार के साथ ही उनकी ताकत पार्टी और देश दोनों में कम हो जाएंगी। और अगर हार का सिलसिला नहीं रूका तो आगे 2016 में पांच राज्यों में चुनाव होना है जिसमें पौंडिचेरी, असम, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल और केरल हैं। इन पांचों राज्य में मोदी शायद ही बीजेपी को जीत दिला पाएं। ऐसे में पूरे देश के हालात क्या हो सकते हैं। इसे दिल्ली की राजनीतिक उठापटक से समझा जा सकता है। ऐसे में होगा क्या? ऐसे हालात में पूरे देश में सिविल वॉर जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। केन्द्र और राज्य के बीच तालमेल नहीं होने के चलते पूरे देश में असमंजस की स्थिति पैदा होगी। यानी सत्ता में बीजेपी और राज्यों में दूसरी पार्टी। और केन्द्र कभी नहीं चाहेगा की उसकी सत्ता को कोई ललकारे। इस तरह से सत्ता और राज्यों के बीच टकराव होगा ही होगा। 
ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। उन्हें समझना होगा कि जब तक राज्यों में केन्द्र का दखल कम नहीं होगा और राज्यों की समस्या को केन्द्र नहीं समझेगा तब तक मुखिया की हार तय होती रहेगी। 

अब बात बीजेपी पर आरएसएस के नियंत्रण की भी होनी ही चाहिए। क्योंकि बिहार से मिली हार में संघ का भी बहुत बड़ा हाथ है। ना संघ आरक्षण के मुद्दे पर अपनी राय देता और ना ही बीजेपी के नेताओं को हर रैली, महासभा में आरक्षण पर सफाई देनी पड़ती। अब प्रधानमंत्री को ये भी समझना चाहिए कि देश में उन्हें जो समर्थन मिला वो मजदूरों से मिला। और मजदूर को जात, पात या धर्म की लड़ाई नहीं चाहिए। उसे चाहिए रोजगार, मकान, और रोटी। और मजदूर ही क्यों? देश के हर नागरिक को रोजी रोटी और कपड़े के अलावा विकास के साथ वो तमाम सुविधाएं चाहिए जिससे जीवन बेहतर बनता है। सिर्फ अच्छे दिन आ गए, कह कर काम नहीं चल सकता। अच्छे दिन लाकर भी देने आने चाहिए। 
और अब बात बीजेपी के ही अंदर फूट की। जो अब धीरे ही सही पर दिखने लगी है। आज अडवाणी जी का जन्मदिन भी है। और आज मोदी ने उनके लिए गुलदस्ता भेजा। लेकिन, अडवाणी और सुषमा स्वराज ने नीतिश को फोन पर बधाई दी और नीतिश कुमार ने अडवाणी को। अब इस बात को भी प्रधानमंत्री मोदी को समझऩा होगा की अब पार्टी में ही उनके खिलाफ आवाज जल्द ही उठ सकती है।

तो ऐसे में अब प्रधानमंत्री क्या करेंगे। क्या बीजेपी अपने पुराने ढर्रे पर जाएगी और एक बार फिर मंदिर का राग अलपेगी या फिर हिंदुत्व पर राजनीति करने वाली पार्टी नए सिरे से आत्ममंथन कर आगे की रणनीति तैयार करेगी। हो कुछ भी लेकिन इतना तय है कि अब प्रधानमंत्री को एकांत में इस हार पर आत्ममंथन करना चाहिए और सोचना चाहिए की जो मौका उन्हें मिला है वो फिर उन्हें कभी मिलेगा नहीं ऐसे में उन्हें इस मौके को कैसे स्वर्णिम इतिहास बनाना है इसपर विचार करना ही होगा। ताकि फिर कोई बजीर शंहशाह को मात ना दे।

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