रविन्द्र
नोटबंदी की पहली सालगिरह पर आज एक और जहां विपक्ष काला दिवस मना रहा है। वहीं, दूसरी ओर सरकार इस दिन को ‘कालाधन विरोधी’ दिवस के तौर पर मनाएगी। नोटबंदी की पूर्व संध्या पर सरकार ने कालाधन को नैतिकता से जोड़ते हुए प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला और कहा कि नोटबंदी के बाद इकॉनोमी पारदर्शी और ईमानदार हुई है।
और वहीं अगर हम 8 नबंवर 2016 की उस
रात की बात करें तो, देश के हर उस आदमी को वो रात याद है जिसके घर में थोड़ बहुत
भी 1000-500 के नोट रखे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक एलान के बाद पूरे
देश में अफरा-तफरी मची। घोषणा होते ही देश के तमाम वो एटीएम जो कैश जमा कर सकते थे,
उनके सामने लंबी कतार लग गयी। और दूसरे दिन से बैंकों के आगे। आंकड़ों की माने तो
150 लोगों की इस दौरान मौत हुई। सरकार का कहना है कि ये वो लोग हैं जो बीमार थे।
लेकिन, मौतें हुई उन लाइनों में लगकर जिन्हें शायद होना ही नहीं चाहिए था।
वहीं, सरकार का दावा है कि नोटबंदी
के बाद काला धन देश के बैंकों में वापस आया साथ ही आतंकवाद, हवाला और रिश्वतखोरी
पर शत-प्रतिशत रोक लगी। डिजिटल ट्रांजेक्शन बढ़ा जिसके बाद कालाबजारी और पाबंदी तो
लगी ही साथ ही सरकारी टैक्स चोरी पर भी लगाम लग पायी।
फिलहाल सवाल ये पैदा होता है कि
आखिर नोटबंदी से मौजूदा सरकार को हासिल क्या हुआ? दावों के इतर कांग्रेस का दावा है कि देश के कारोबारियों में टैक्स टेरर है।
पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का कहना है कि- मोदी राज में
नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक कदमों से देश के कारोबारी के मन में टैक्स आतंकबाद
का डर बैठ गया है। सरकार ने अपनी योजनाओं की नाकामी से कोई सबक नहीं सीखा है।
उन्होंने कहा, मोदी सरकार का ज्यादा किराए वाली बुलेट ट्रेन योजना लॉन्च करना सहज
दिखावा है। परियोजना को अहंकार की कवायद बताते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि
इससे देश का कोई भला नहीं होगा। कांग्रेस की ओर से आयोजित लधु एवं मंझोले
कारोबारियों के सम्मेलन के बाद मनमोहन ने प्रेस कांफ्रेस को भी संबोधित किया।
मनमोहन ने कहा कि गुजरात में बीजेपी करीब 22 साल से लगातार सत्ता में है। सिर्फ
सूरत में 60,000 करघे बंद हो गए है। हर 100 करघों पर यदि 35 लोगों को रोजगार छिनने
की दर को लिया जाए तो सूरत में सिर्फ एक उद्योग से ही 21,000 लोग बेरोजगार हो गए
हैं। देश के अन्य हिस्सों में भी स्थिति अगर ज्यादा नहीं तो इतनी ही खराब है।
मनमोहन ने प्रधानमंत्री से सावल पूछे। उन्होंने पूछा कि जिनका रोजगार चला गया,
उनके बारे में पीएम ने क्या सोचा? नोटबंदी पर साइन करने से पहले क्या उन्होंने यह सोचा
कि छोटे सेक्टरों का क्या होगा? क्या जीएटी और नोटबंदी
के बारे में पूछने से कोई शख्स टैक्स चोर बन जाएगा? बुलेट ट्रेन लाने से पहले क्या मोदी ने हाई स्पीड ट्रेनों को लेकर रेलवे को
अपग्रेड करने के बारे में सोचा? मनमोहन ने कहा – महात्मा गांधी ने कहा था, ‘ जब भी आपको किसी योजना के बारे में कोई शक हो तो
गरीब का चेहरा सोचें। पीएम खुद से पूछे कि क्या इस कदम से गरीबों को फायदा हुआ है।
विपक्ष के इस वयान के कई मायने हो
सकते है। हिमाचल और गुजरात में इसी साल चुनाव हैं। हिमाचल में 9 नवंबर को 68 सीटों
पर कल मतदान होगा और नतीजा 18 दिसंबर आएगा। वहीं,
गुजरात में 182 सीटों पर पहले चरण के दौरान 89 सीटों पर 9 दिसंबर को मतदान
होगा और दूसरे चरण की 93 सीटों पर 14 दिसंबर को मतदान होगा। नतीजा 18 दिसंबर को
आएगा। ये कांग्रेस के लिए एक अच्छा मौका है अपनी खोयी हुई जमीन वापस पाने का।
वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस इसलिए भी हमलावर है क्योंकि उसके पास अब कोई ऐसा बड़ा
मुद्दा नहीं है जिसके दम पर वो वापस सत्ता में वापस आ सके।
लेकिन, सत्ता के गलियारों की दूसरी ओर भी नोटबंदी को लेकर अच्छी खबर नहीं है। आंकड़े भी यही सच्चाई बताते हैं। देश-विदेश के
जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने पिछले छह महीनों में इस बात को बार-बार कहा। ये दीगर
बात है कि इन तमाम तथ्यों से जनमत प्रभावित नहीं हुआ। जनता के बहुत बड़े हिस्से ने
वही माना जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया। यानी यह कि नोटबंदी का कड़वा
फैसला काला धन और आतंकवाद खत्म करने के लिए तथा डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के
लिए लिया गया। अब छह महीनों के बाद आतंकवाद बदस्तूर जारी है। पिछले दिसंबर-जनवरी
में डिजिटल पेमेंट में हुई बढ़ोतरी अब लौटकर अपने पुराने स्तर पर जा चुकी है। जहां
तक काले धन की बात है, तो ये पहले ही पता था कि नकदी नोटों के रूप में इसका बहुत कम हिस्सा रखा जाता
है। यानी नोटबंदी से ये बुराई खत्म होने वाली नहीं थी। अब संयुक्त राष्ट्र की
इकोनॉमिक एंड सोशल सर्वे ऑफ एशिया एंड द पैसिफिक रिपोर्ट-2017 में इन्हीं तथ्यों को दोहराया गया है।
प्रधानमंत्री ने अचानक नोटबंदी का फैसला लेकर सब को सकते
में डाल दिया था। मगर संयुक्त राष्ट्र इस निष्कर्ष पर है कि उस फैसले से न तो काले
धन के सृजन पर रोक लगी, ना ही अघोषित आय और संपत्ति के बारे में ज्यादा कुछ पता चला। डिजिटल भुगतान भी
नहीं बढ़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में काले धन की अर्थव्यवस्था का आकार
जी़डीपी का 20-25 फीसदी तक हो सकता
है। इसमें नकदी की हिस्सा 10 प्रतिशत के आसपास होगा। ऐसे में नोटबंदी को काले धन पर लगाम कसने के लिए कारगर
उपाय नहीं माना जा सकता। इस मकसद के लिए रिपोर्ट में दूसरे उपाय सुझाए गए हैं।
पारदर्शिता में इजाफा करने वाले व्यापक ढांचागत सुधारों पर जोर दिया गया है। आय
नीतियों का स्वैच्छिक खुलासा और करदाता की पहचान कर उच्च रकम वाले लेन-देन की
निगरानी की वकालत की गई है। इसके मद्देनजर जाने-माने अर्थशास्त्री और भारत सरकार
के पूर्व आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने कहा है कि नोटबंदी के छह महीनों के बाद अब
यह देखने का वक्त है कि इससे क्या हासिल हुआ? जवाब निराशाजनक है। जबकि बसु का कहना है कि
इससे अर्थव्यवस्था- खासकर असंगठित क्षेत्र के कारोबार एवं आदनी पर बहुत बुरा असर
पड़ा। विडंबना ही है कि इन सबके बावजूद सत्ताधारी दल की राजनीति इस फैसले के कारण
और चमक रही है।
बहरहाल, आज फिर 8 नवंबर है और सत्ता पक्ष कल से ये उम्मीद
लगाए बैठा है कि हिमाचल औऱ गुजरात ने उसे अच्छे परिणाम मिलेंगे। और देश के लोग इसी
तरह की और कड़बी दवा पीने के लिए तैयार रहेंगे।
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