Thursday, March 4, 2010

आंखों देखी -3

यूं तो उन दिनों की आंखों देखी में ऐसा बहुत कुछ था जिसे में अपने आने वाले उन पत्रकार साथियों का बताना चाहूंगा जो आंखों देखी संस्था में जाना चाहते हैं। लेकिन मैं यहां केवल उन घटनाओं को सामने रखना चाहूंगा जो मेरी आंखों के सामने ही घटित हुईं। हमारे असाइनमेंट इंचार्ज होते थे श्री दुष्यंत कुमार जी, वह इन दिनों दैनिक हिंदुस्तान में कार्यरत हैं। आंखों देखी में हमारे एक और इमिडियेट बॉस होते थे जो स्टोरी फाइनल किया करते थे और उन दिनों शायद प्रोग्राम हेड भी थे। अनंत मित्तल साहब। मेरी अनंत मित्तल जी से ज्यादा बातचीत नहीं हुई और ना ही उन दिनों भी होती थी। लेकिन स्टोरी चूंकि वही फाइनल किया करते थे तो एक दो बार उनसे भी मैंने डांट खाई है। खैर वह सीखने के दिन थे और उन दिनों सभी सीनियर अपने जूनियर्स को डांटते ही है जैसा कि दुनिया का दस्तूर भी है और नियम भी। अनंत मित्तल और दुष्यंत उन दिनों एक दूसरे के काफी गहरे दोस्त हुआ करते थे शायद अभी भी हैं। आंखों देखी में चूंकि ये दोनों ही बड़े पद पर थे तो मैडम का प्यार भी और दुत्कार भी इन्ही पर ज्यादा था। मुझे याद है दुष्यंत जी और मित्तल साहब को जब तनख्वाह नहीं दी गई और उन्हें आंखों देखी से रूखसत किया गया तो शहजाद के चेहरे पर बड़ी ही कुटिल हंसी थी। वह हमसे बोला कि चले गये 'साले' अपने आप को बहुत बड़े पत्रकार समझते थे। मैं यह बात इस दावे से भी बोल रहा हूं क्योंकि उस दिन दिनेश पाठक जो आज तक आंखों देखी में अपनी ऐढ़िया रगड़ रहें हैं वहीं मौजूद थे। दिनेश पाठक का तारुफ ये है कि दिनेश पाठक जी आज से छह साल पहले तक गंजे हुआ करते थे। इनके मुख के भीतर कुबेर की गोली हमेशा लगी रहा करती थी और जब भी मौका मिल जाया करता था यह फ्री की चाय जो अक्सर शहजाद मंगवाया करता था पी लिया करते थे। दिनेश पाठक ने अभी दो साल पहले शादी के बाद ही अपने सर पर नकली बालों की खेती करवायी है। सुना है उनकी बीबी को उनका गंजा सर अच्छा नही लगा करता था तो उन्होंने इसी के चलते अपने सर पर बालों की खेती करवा ली। खैर हम बात कर रहें थे दिनेश के तारूफ की तो दिनेश मेरा अच्छा दोस्त हुआ करता था लेकिन मुझे हमेशा से ऐसा क्यों लगता रहा कि दिनेश के शरीर में पहले कभी रीढ़ थी और ही आज है। वह शहजाद का जाने कैसे और कब इतना बड़ा चेला बन गया कि पूरी मीडिया को आज तक कभी चमचों की मिसाल देनी होती है तो वह दिनेश पाठक की दी जाती है। कहा जाता है साला चमचा हो तो दिनेश पाठक जैसा हो जिसे जितना भी दुत्कारों शाम को आकर मालिक के पैर चाटेगा ही चाटेगा। अब इस लेख को पढ़ने के बाद बेशक वो मेरा दोस्त तो रहेगा नही लेकिन कम से कम उसे अपनी छवि जरूर दिखाई देगी। अगर ऐसा हो जाये तो मेरे लिये ये भी संतोष की बात होगी क्योंकि उसे कम से कम अपनी असल शख्सियत का तो अहसास हो जायेगा और वह आंखों देखी से बाहर आकार देखने की कोशिश करेगा। अब हम वापस आते हैं दुष्यंत और अनंत पर। दुष्यंत जी और मित्तल साहब की नौकरी छोड़ दी या छुड़वा दी गई। मैडम का कहना था कि इन दोनों आदमियों को काम करना नहीं आता यानी स्टोरी लिखनी नहीं आती। ये मैडम ने किस आधार पर कहा ये बात वहीं अच्छी तरह समझा सकती है। क्योंकि मैडम के लिये कौन सी स्टोरी सही है और कौन सी गलत इसका अंदाजा आंखों देखी में आज तक कोई नही लगा पाया तो हम और हमारे ये दोनों शो-कॉल्ड बास कैसे लगाते। तो दोनों ही लोगों को रुखसत कर दिया गया और इनकी तनख्वाह भी नही दी गई। बैसे मैडम का ये रुल भी है कि वह जब कभी भी किसी से नाराज होती है तो उसकी तुनख्वाह वह किसी भी हाल में नही देती, चाहे फिर कोई उनका बीस साल से पुराना ड्राइवर हो या फिर नया रिपोर्टर। वह सभी को एक ही तराजू में तौल देती हैं। ऐसा इसलिये भी है क्योंकि मैडम को आजतक देश में कोई अपने आप से बेहतर पत्रकार दिखाई ही नही देता। दुष्यंत जी को जब जवाब दिया दिया गया तो हमने भी अपने रास्ता खोजना आरंभ कर ही दिया था। उन्हीं दिनों दुष्यंत जी और मित्तल साहब ने अपनी तनख्वाह लेने के लिए एक कोर्ट से नोटिस भी भेजा था जिसका जवाब मैडम ने आज तक नहीं दिया। अगर दिया होता तो दुष्यंत जी को अपनी सैलरी मिल गई होती। हालांकि मेरे दोनों सीनियर्स ने बाजार में यही कहा कि हमने अपने पैसे ले लिये, लेकिन शहजाद ने हमे जो बताया वो कुछ इस तरह से है। अगर ऐसे मैडम हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे को पैसे देने लगी तो बस चल ली आंखों देखी। उन्होंने आज तक अपने बीस साल पुराने ड्राइवर को तनख्वाह समय पर नही दी वह इन्हें कल के काम करने वाले भूक्खड़ पत्रकारों को पैसें दे देंगी। मित्तल साहब तो कई बार ये भी कहते पाये गये कि उन्होंने मैडम से माफी मंगवा ली जवकि हकिकत ये है कि मैडम ने मेरे इन दोंनों सीनियर्स को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद इन लोगों से कभी फोन पर भी सही से बात नहीं की। ये बाते हमें शहजाद से ही पता चला करती थी। वहीं सुबह हमें सारी बाते बताया करता था। हालांकि इसका आज मेरे पास कोई सबूत नहीं है लेकिन ये सच है कि शहजाद हमें पल पल की खबर दिया करता था और वही हमें बताया करता था कि आज क्या हुआ कल क्या होगा। हालांकि वह तो इसलिये बताया करता था कि इसमें उसे लगता था कि ये मेरी शान है। वह इसलिये भी हमें बताया करता था कि हमें हमेशा ये याद रहे कि उससे पंगा लेने वाले का वह क्या हाल करवा सकता है। क्योंकि जिस तरह से वह मित्तल और दुष्यंत जी की बात किया करता था उससे तो यही लगता था कि मैडम फोन पर ही दोनों की ठीक तरह से क्लास ले ही लिया करती होंगी। खैर हर व्यक्ति की सोच अलग होती है स्वाद अलग होता है और पसंद अलग होती है। मैडम को शहजाद जैसे लोग चाहिए तो वह उन्हें मिल ही रहें हैं और आज तक वह काम भी कर रहें हैं। लेकिन सवाल ये उठता है कि हम जैसे युवा लोग जो अपने भविष्य को इन संस्थानों में खोजते हैं। उन्हें क्या ऐसे संस्थानों के बारे में और वहां के काम करने वालों के बारे में पूरी जानकारी हासिल नही कर लेनी चाहिए। मेरा ये मानना है कि कोई भी युवा पत्रकार खासकर के आजका पत्रकार इतना बेवकूफ तो हरगिज नही हो सकता जो पहले ऐसे संस्थानों के बारे में पता नहीं करना चाहेगा। अब एक दो लोग जो गांव देहात से आकार यहां शहर में किसी भी तरह से स्थापित हो जाना चाहते हैं उनके लिए पहला कोई भी अवसर अपने आप में बड़ा ही होता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से आया साधारण युवक था और इंटर्नशिप के साथ जो भी मिल गया कबूल कर लिया। खैर मेरा मकसद केवल नये लोगों को ऐसे संस्थानों और वहां काम करने वाले लोगों से आगाह करवाने का है, इसके बाद भी मर्जी युवा लोगों की है कि वह मेरी बात माने या माने। आखिर मैं किसी के भविष्य का फैसला करने वाला होता कौन हूं। तो चलिये अब हम आपको बताते हैं कि आंखों देखी में जाने से पहले आपको क्या करना होगा और आंखों देखी जब आप जायेगे तो पहल पहल आपको क्या दिखाई देगा। दो हैली रोड़ पर मैडम ने अपना प्रोडक्शन हाउस लगाया हुआ है। हालांकि सरकारी फरमान के मुताबिक किसी भी ऐसी दो हैली रोड़ जैसी रिहायशी इलाके में बिजनेस कार्य करना अनैतिक है। लेकिन मैडम को कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि सरकार का आदमी और सरकार दोनों उनके कंट्रोल में रहती ही है। इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि मैडम की सरकार में आज भी इतनी चलती है जितनी की एनडीए के कार्यकाल में चला करती थी। आज भी आंखों देखी दूरदर्शन पर ठीक उसी तरह से टीका हुआ है जिस तरह से संसद में महिला आरक्षण बिल, जो हर बार पास होने की कगार तक तो पहुंचता है लेकिन पास नहीं होता, ठीक बैसे ही आंखों देखी को दूरदर्शन टाटा तो कहना चाहता है लेकिन कह नही पाता। कहे भी तो कैसे मैडम का रौब और नाम से दूरदर्शन में आधे से ज्यादा अफसरों की हवा गायब रहती है। खैर कुछ भी हो आंखों देखी चल रहा है और दनदना कर चल रहा है। वहां लोग काम भी कर रहें हैं और पत्रकारिता भी सीख रहें हैं। तो भाईयों जब आप दो हैली रोड़ में कदम रखेंगे तो आपको एक पुराने से घर के आंगन में एक बूढ़ा आदमी सफेद जंधी और पयजामा पहने लकडी की कुर्सी पर बैठा मिलेगा। यह आदमी अक्सर अखबार पढ़ता या उंधता सा मिलता है कभी - कभार वह आपकी तरफ मात्र देखेगा कहेगा कुछ नही। वह आपको ऐसे देखेगा जैसे एक शिकारी किसी शिकार को जाल में आता हुआ देखता है। लेकिन उसका मकसद आपका शिकार करना नहीं होगा वह आपको देखकर कभी मुस्कुरा भी सकता है और कभी आपको अनदेखा भी कर सकता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आपकी पर्सनल्टी कैसी है। ये सज्जन मैडम के पति है। इनका आंखों देखी और मैडम के किसी भी कार्य जो आंखों देखी से जुड़ा है किसी भी तरह से कोई लेना देना नही है। इसके बाद आपको गेट के भीतर मैडम का ड्राइवर तंबाकू खाता मिल जायेगा और एक दो बेकार के लोग भी यहां देखने को मिल सकते हैं जो केवल यहां अपने किसी परिचित से मिलने आये होते हैं। इसके बाद आप सामने एक शीशे का पुराना दरवाजा दिखेंगे जो बहुत सी जगह से टूटा हुआ होगा और इसे खोलते ही आपको एक भंयकर आवाज ------कीर्र कीर्र कीर्र सुनाई देगी जो आपके दांत यहां कदम रखते ही खट्टे करने के लिए काफी होगी। इसके बाद आपके घुसते ही उल्टे हाथ पर एक टेबल दिखाई देगी जो आपको आदिकाल की याद दिला देगी। इस टेबल पर आपको एक लाल और एक ब्राउन रंग का एमटीएनएल का फोन दिखाई देगा। यहीं पर कोई रिपोर्टर आपको अपनी स्टोरी लाइन अप करता भी दिखाई दे सकता है। यहां पर आपसे पूछा जायेगा कि आपको किससे मिलना है। यहीं से आपको ठीक सामने एक काला अधेड़ आदमी दिखाई देगा जो गंजा और एक थका थका सा दिखाई देगा। इसके मुंह के दोनों कोने से झाग निकलता रहता है और इसका पेट थोड़ा सा निकला हुआ होगा। ये आदमी आपको एक नजर में बीमार दिखाई देगा। इस आदमी का नाम नईम अख्तर है जो पिछले 15 - 16 साल से यही पाये जाते हैं। ये हर आने जाने वाले को बड़े ही ध्यान से देखते हैं। इनके पीछे कुछ नये लोग होते हैं जो बेकार की बातों में व्यस्त होते हैं क्योंकि यहां दोपहर एक बजे से पहले कोई काम ही नहीं होता। वह इधर -उधर की बाते करते हैं और उनके पीछे के एक कोने में आपको छत से कुछ ही नीचे लटकता हुआ एक ऐसा AC दिखाई देगा जो कभी नहीं चलता और ठीक उसी के नीचे आपको रद्दी का ढ़ेर दिखाई देगा। ये दफ्तर का एक हिस्सा है। यूं तो सारा ऑफिस ही बहुत शानदार है जिसमें से लगातार मछर मार दवा की बदबू आती रहती है। इसी के बीच मे आपको एक आदम काल का कम्प्यूटर दिख जायेगा जिसपर चार पांच लोग काम करते दिखेंगे। ये आपस में इसी बात पर लड़ते रहते हैं कि आज इस कम्प्यूटर का की-बोर्ड कौन प्रैस करेगा। इसपर काम शाम के समय बढ़ जाता है जब मैडम को तीन मिनट की आंखों देखी को दो मिनट मे निपटाना होता है। इसपर स्टोरी फाइनल होती है और मैडम के हाथों द्वारा लिखा गया एंकर बड़े मोटे शब्दों मे लिखा जाता है ताकि मैडम की आंखों को और उनकी आंखों पर लगे कंटेक्ट लैंस को ज्यादा मेहनत करनी पड़े। इसके बाद आपको शहजाद साहब मिलेंगे जो साथ वाले मैडम के कमरे के साथ बने एक और कमरे में रहते हैं। रहने से मेरा मतलब ये भी है कि वह अक्सर वही मिलते हैं। इन्हें देखकर आपको किसी ऐसे 70 के दशक के हीरों की याद जायेगी जो पैदा तो पचास मे हुआ था लेकिन वह 2008 तक बूढ़ा नहीं होने की कसम खाये पर्दे पर लगातार 18 साल की हीरोइन का हीरो बनकर आने पर उतारू हो। लंबे - लंबे काले किये हुए बाल, चेहरे में घंसी हुई छोटी - छोटी आंखें और गंदे से ऊंचे दांत वाला ये आदमी जैसे ही आपके सामने आयेगा पहले तो आपको इसके कपड़ो से एक डीयों की खुशबू आयेगी लेकिन जैसे ही आप इसके निकट जायेगे आपको समझ में जायेगा कि इसने अपने शरीर और कपड़ो पर डीयो क्यों लगाया हुआ है। इसका मुंह आपको सुबह-सुबह रात खाये किसी पार्टी के बदबूदार चिकन की याद दिला देगी जो सुबह तक शहजाद के जबड़ो में फंसा रहता है और रात को जब तक उस पुराने मुर्गें की जगह नया नही ले लेता वह पुराने का साथ नहीं छोड़ता। ये आपसे प्यार से बात करेगा क्योंकि वह जानता है कि आप ही वह फ्री का मुर्गा हैं जिसे वह अगले तीन चार महीने तक अराम - अराम से काटेगा और अपनी पसंद का काम करवायेगा। आपको लगेगा आपका उद्धार हो गया। आपको काम मिल गया। आप इसके बाद यहां पानी पीने की इच्छा जाहिर करेंगे तो आपको यहां रखी कुछ पुरानी बोतलों से पानी दिया जायेगा, जिनका प्रयोग मैडम ने कभी अपनी प्यास बुझाने के लिए खरीदा था लेकिन इनका पानी पीने के बाद मैडम को दफ्तर याद आयी तो उन्होंने इन बोतलो को फेंकना गवारा नहीं समझा और इन्हे दफ्तर में लाकर रख दिया। अब इन खाली बोतलों का इससे बढ़कर और अच्छा क्या प्रयोग हो सकता है। इसके बाद अगर आपका दिल थोड़ा हल्का होने का कर जाये तो फिर आपको एक कोना दिखा दिया जायेगा। वहां पर मैडम का नौकर और खानश्यमा भी रहता है। वही पर आपको एक टूटा हुआ दरबाजा दिखाई देगा जो कब गिर जायेगा किसी को नहीं पता। यही वह जगह है जहां आपको हल्का होना है। इसका हाल आपको किसी ऐसे टॉयलेट की याद जरूर दिला देगा जहां आप गये तो सांस लेते हुये थे और आये रोककर थे। यहां पर आपको पब्लिक शौचालय का पूरा आनंद मिलेगा और साथ ही प्रणायम का सूख भी क्योंकि यहां आप सांस बाबा राम देव की तरह से लेंगे और छोड़ेगे। यहां मैं आपको एक बात से अवगत और करवा देना चाहूंगा कि यही वो जगह भी है जहां से आंखों देखी के स्टाफ के लिये पीने का पानी जाता है। यही पर एक अधर में लगा नल्का है जिसमें म्यूनिसिपल्टी का पानी आता है। यहीं पानी स्टाफ को पीना होता है। इस पानी को मैडम नहीं पीती हां उनकी गाड़ी इस पानी से जरूर धुलती है। इसी पानी से पौधों और यहां काम करने वाले लोगों की सिंचाई भी की जाती है। अब जब आप यहां ही जायेगे तो चाय भी जरूर पीना चाहेंगे। चाय यहां पर बाहर से आती है। बाहर यानी दफ्तर के बाहर ही सड़क पर एक बहादुर है जो दो हैली रोड़ की दीवार के उस पार टक टकी लगाये देखता रहता है और पुरानी चाय पत्ती को उबालता रहता है कि कब आंखों देखी से कोई चाय का आर्डर आये। इस चाय का बिल दफ्तर नहीं देता आपको अपनी जेब से भरना होता है। यही पर दीवार के साथ आपको भैया जी की दुकान भी मिल जायेगी जो पान बीड़ी सिगरेट के साथ गुटखों की सप्लाई आपके लिये दफ्तर के भीतर ही कर देंगे। अगर आपके पास पैसे नहीं भी हैं तो कुछ दिन का उधार भी ये कर ही लेते हैं। तो फिलहाल की आंखों देखी में सिर्फ इतना ही

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