ब्लोगर जगत में पहले कदम के साथ में भी अब ब्लोगर दुनिया का हिस्सा हो चला हूं। यूं तो मैं लिखने की कई सालों से कोशिश में था, लेकिन ब्लोगर की पूरी जानकारी नहीं होने और अपने हाथ में कम्प्यूटर नहीं होने की वजह से शायद मुझे ब्लोगर लिखने में देरी हुई। लेकिन आज मैं भी ब्लोगर की दुनिया का हिस्सा हूं। मुझे इस बात की आज बेहद खुशी है और अपनी किस्मत पर फक्र है कि आज हमारे हाथ मे ब्लोगर जैसी ताकत है जिसके माध्यम से हम अपने दिल की बात सारी दुनिया के सामने ऱख सकते हैं। लोगों से न सिर्फ बातें कर सकते हैं बल्कि उनसे अपनी समझ और ख्यालातों पर राय भी बेहद सुलभ और आसन तरीके से प्राप्त कर सकते हैं।
मैंने अपने ब्लोगर की शुरूआत बेहद खास तरीके से करने की कोशशि की है, मेरा ये मानना है कि पहले आदमी को अपने पर बीती हुई चीजों को अपने सामने रख लेना चाहिए, इससे होता ये है कि आप अपने आपको ठीक से देख पाते हैं।
इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि आप अपने सामने एक ऐसा आईना रख लेते हैं जिसमें आपकी शख्सियत बिल्कुल साफ- साफ दिखाई देती है।
मैं पहले पत्रकारिता के क्षेत्र में अपबीती अपने ब्लोगर पर रखने जा रहा हूं, साथ ही मैं इस बात को भी यहां साफ करना चाहूंगा कि ये मेरे अपने पत्रकारिता के अनुभव हैं और ये उस समय की बातें हैं जब में पत्रकारिता आरंभ कर ही रहा था। मैं एक प्रशिक्षु था तो मेरे लिए ये भी आवश्यक था कि मैं पहले अपने प्रोफेशनल की आस पास की चीजों को ज्यादा से ज्यादा समझ लूं। मेरा पत्रकारिता का शुरूआती अनुभव कुछ ज्यादा अच्छे नहीं रहें। मैं लगातार आजतक ये ही सोचता रहा कि आखिर युवा पत्रकारिता में आने से पहले इसके नफे नुकसान क्यो नहीं सोचते। इसीलिये शायद मैंने अपने ब्लोगर में “पत्रकारिता का सच” पेश करने की कोशिश की है। ये वो सच है जिसें मैं आज ज्यादा पास से जानता हूं। क्योंकि राह पार कर चुका पथिक ही रास्ते की सही जानकारी दे सकता है।
मेरा मकसद अपने ब्लोगर के माध्यम से नये लोगों को पत्रकारिता की जानकारी देना मात्र है, साथ ही उन लोगों के चेहरे “बेनकाब” करना भी है, जो पत्रकारिता की आढ़ में “दलाली” करते हैं और देश के लोगों को गुमराह करते रहें हैं और लगातार कर रहें हैं।
पत्रकारिता उन लोगों के लिए मिशन नहीं है बल्कि हाथ में आयी वो तलवार है जिसके आधार पर वह इस देश पर राज करना चाहते हैं।
मेरा अपनी आने वाली पत्रकारिता की पीढ़ी से अनुरोध है कि वह इन लोगों से सावधान रहें और अपना कैरियर इनके माध्यम से आरंभ न करें। क्योंकि ये वह लोग हैं जो आज भी सामांतवादी सोच के शिकार हैं। ये ऊपर से बहुत सभ्य दिखाई देते हैं, लेकिन ये वह इंसानी भे़ड़िये हैं जो समाज को तो नोच-नोच कर खा ही नहीं रहें बल्कि पत्रकारिता का चीर हरण करके उसका लगातार परिहास उड़ा रहें हैं।
मेरे साथियों मेरा आपसे अनुग्रह हैं कि आप अपनी राह चुनने से पहले ये अवश्य तय कर लें कि आखिर आपको जाना कहां हैं।
हर क्षेत्र की तरह पत्रकारिता में भी कम बूरे और बहुत अच्छे लोग हैं। लेकिन दुख इस बात का है कि बहुत से अच्छे लोग होने के बाद भी पत्रकारिता में कोई किसी की मदद नहीं करता और हिंदी पत्रकारिता में तो बिल्कुल भी नहीं।
वैसे भी हिंदी के लोग कुछ ज्यादा ही “समझदार” होते हैं, वह हमेशा ये कोशिश करते हैं कि उनके नीचे का आदमी कभी ऊपर न आये। यहां मुझे एक दोस्त जो इन दिनों आजतक में कार्य करता है। वह कहा करता था कि “किसी बड़े होने से कोई छोटा नहीं होता” लेकिन पत्रकारिता में अगर कोई बड़ा हो जाता है तो वह अपने से नीचे वाले को तो कम से कम कभी बड़ा नहीं होने देगा। ये मेरा मानना भी है और दृण विश्वास भी कि कभी भी अपने सबसे पास के आदमी पर पत्रकारिता में विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि वही आदमी आपके बॉस से आपकी चुगली कर आयेगा और आपकी नौकरी खा जायेगा। पत्रकारिता में कुछ लोग ऐसे भी है जो जिंदगी की हर राह पर आपको अपने पास खड़े हुये दिखाई देंगे।
खैर ये अपने – अपने व्यक्तिगत अनुभव की बातें हैं।
मैं आपको पहले अपनी पहली नौकरी “आंखों देखी” के बारे में बताना चाहूंगा। आंखों देखी का मेरे लिये ऐसा अनुभव है कि उसका भूत आजतक मेरे सर पर सवार है। मैं जब भी अपनी आंखें बंद करता हूं मुझे आंखों देखी का वह बीता एक- एक पल ताजा हो आता है जो वहां बीता। हालांकि मेरी दूसरी नौकरी आंखों देखी की बदौलत ही थी, लेकिन कहते हैं ना पहली गर्लफ्रेंड, पहली बेचलर पार्टी और पहली रात आदमी ताउम्र नहीं भूलता। इसीलिये मैं भी आंखों देखी को अपनी गर्लफ्रेंड मान चुका और ये भी मान चुका की ये वही गर्लफ्रेंड है जो कालेज में समोसा-चाय तो मेरी ही पाकेट से खाया करती थी लेकिन कालेज के बाद जीवन की तपती धरती पर पैर रखने से पहले ही किसी रहीस जादे की गोद में जा बैठी।
मैंने सन् 2000 में अपनी दैनिक हिदुंस्तान से इंटर्नशिप पूरी की, चूंकि इलैक्ट्रोनिक मीडिया भी उन दिनों देश के दरबाजे पर मजबूती से दस्तक दे ही रहा था। इसलिये हमने भी मौका देखकर चौका मारा और आंखों देखी में इंटर्नशिप करने के लिये जा पहुंचे। यहां पहले दिन हमें श्री दुष्यंत कुमार जी मिले जो आंखों देखी के उन दिनों ब्यूरो हेड थे, इनके साथ ही अनंत मित्तल भी कार्यरत थे। चूंकि मेरी पहली मुलाकात दुष्यंत कुमार जी से ही हुई थी, तो मैं दुष्यंत कुमार जी के ही निकट था। आंखों देखी में उन दिनों मेरे कई साथी रहें उनमें से दिनेश पाठक भी थे जो आज भी कहने के लिए मेरे दोस्त हैं। वह आज भी आंखों देखी की सेवा में हैं। सुना है इनदिनों वहीं आंखों देखी के ब्यूरो चीफ हैं।
मैं अपने ब्लोगर में केवल पत्रकारिता की बात ही करूंगा, इसमें मैं पहले अपने अनुभव इस ब्लोगर के माध्यम से आप लोगों के सामने रखने जा रहा हूं। मैं चाहता तो बहुत कुछ लिखना हूं। लेकिन ब्लोगर आरंभ में केवल इतना ही कहना चाहता हूं कि मेरे ब्लोगर को कृपया वह लोग न पढ़े जो ये मानते है कि पत्रकारिता महज एक कार्य है।
मेरा मानना है कि पत्रकारिता केवल रोजी रोटी का जरिया ही नहीं है बल्कि ये वह ताकत है जिसके साहरे हम युवा लोग इस देश का तरक्की की राह दिखा सकते हैं।
चूंकि मैं एक हिंदी पत्रकार भी हूं तो मेरा मिशन हिंदी की सेवा करना भी है और हिंदी की सेवा तभी संभव है जब इंटरनेट बाबा की शरण में हिंदी में ज्यादा से ज्यादा काम होगा। मैं कोशिश करूंगा कि इंटरनेट बाबा की शरण में हिंदी में जमकर लिखू और अपनी आने वाली पीढ़ी को यानी पत्रकार बंधुओं को वह समस्त जानकारी उपलब्ध करवाऊ जिसकी उन्हें अक्सर आवश्यकता रहती है।
इन सभी का खुलासा में आगे करूंगा पहले आंखों देखी से निपट लिया जाये। मेरी पहली नौकरी आंखों देखी में थी। जिस दिन इंटर्शिप पूरी हुई उसी दिन शहजाद साहब जो मैडम के दाये बाये सारे हाथ हैं ने हमारे सर पर हाथ रखकर हमे आर्शीवाद की मुद्रा में कहा। जाओ बच्चा तुम्हारा कल्याण हो गया। हम और मैडम तुम्हारे काम से बहुत खुश है। तुमने जो कारनामा अपने इंटर्नशिप के दौरान किये और एक नयी खबर बड़ी ही रोचक ढ़ंग से की उसके बदले तुम्हे नौकरी दी जाती है। तुम्हे साढ़े तीन हजार के मासिक वेतन पर रखा जा रहा है और तीन महीने बाद ये तनख्वाह दो-गुना बढ़ा दी जायेगी, लेकिन शर्त यही है कि तुम इसी तरह की स्टोरी लाते रहोगें और मैडम के साथ - साथ हमे भी खुश रखोगें। मैं मुर्ख अज्ञानी पहले इन बातों को समझ ही नहीं पाया कि मान्यवर शहजाद क्या कह रहें हैं। हम तो समझे खुश का मतलब मेहनत से काम करना होता है। हमने जब ये खबर अपने माता पिता को सुनाई तो हमारी माता ने उस दिन मंदिर जाकर दस रूपये का प्रसाद बांटकर भगवान के समक्ष हमारी कामयाबी की दुआ मांगी और हमने भी उनकी आंखों में आंखों देखी की दया को आंसूओं के रूप में देखा। मेरे बूढ़े बाप ने अपनी 502 पताका बीढ़ी का लंबा कस लेकर और दम साधकर मेरी मां से कहां। अजी सुनती हो अब अपना लोंडा भी कमाने लगा, अब तो घर में मुझे अराम करने ही दिया करेगी तू। मैं भी यह बात सुनकर खुश था कि अब मुझे नौकरी मिल गयी है। दूसरे दिन मैं बड़े ही जोश से अपने दफ्तर पहुंचा और पहुंचते ही मान्यवर शहजाद जी के चरण स्पर्श करके नमस्कार करके बोला, सर आपका मेरे ऊपर बड़ा उपकार है। आप ही है जिन्होंने मेरी प्रतिभा को समझा है बस आप मुझे आर्शीवाद प्रदान कर दो फिर देखना मे पत्रकारिता के क्षेत्र में कैसे झंडे गाढ़ता हूं मेरी बातों पर मुस्कुराते हुए मान्यवर शाहजाद उर्फ आंखों देखी के वीडीयो एडिटर यानी टेक्नीकल आदमी जो दसवीं फेल हैं और पत्रकारिता किस परिंदे का नाम हैं ये उन दिनों नहीं जानता था ने अपनी आंखे ऊपर चढ़ाते हुये कहा। बेटा आर्शीवाद तो हमने तुम्हें दे ही दिया है, लेकिन आज से एक बात का ध्यान रखना कि स्टोरी आपने पहले मुझे दिखानी है हमारे ब्यूरो चीफ दुष्यंत और आनंत मित्तल को अपनी स्टोरी नहीं देनी है। हमें एक दम से तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन शाम तक समझ में आ गया जब अनंत मित्तल और दुष्यंत जी आंखों देखी को अलविदा कह गये। अब हमारी समझ में पहले ही दिन आ गया कि हमे एकदम से नौकरी पर क्यों रख लिया गया था। थोड़ा बहुत हम लिख ही लिया करते थे, बाकी कहानी पर मैडम कलम चला ही लिया करती है। आंखों देखी में हमारे साथ वाली कुर्सी पर ही हमारे दोस्त हैं दिनेश पाठक वो आज तक उसी कुर्सी पर हैं जहां हम उन्हें छोड़ गये थे क्योंकि वह वो करने में एक्सपर्ट हो गये जो हम आजतक नहीं सीख पाये। खैर हम काम करते रहें महीना बीता सभी की तनख्वाह मिली, लेकिन हमें नहीं मिली। इसका कारण जब हमने शहजाद जी से पूछा तो उन्होंने कहा तुम्हारा नाम अकाउंट सेक्शन में अपडेट नहीं हुआ इसलिये इसबार चैक नहीं बना अगले महीने बन जायेगा। हमने सोचा चलो वैसे भी 20 तारीख तो हो ही गयी है। अगला महीना भी आया जाता है। अगला महीना आया और अगले महीने तक हम भी पूरी तरह से पक चुके थे। घर पर जबाव देकर भी और दफ्तर में फोकट में काम करते करते भी। फिर अगले महीने की 10 तारीख आयी सभी को चैक मिल गया, मुझे फिर नहीं मिला। मैंने इसबार अकाउंट सेक्शन में इस बारे में मालूमात किया जो मेरी ही सीट के सामने मौजूद था जो रिसेप्सन भी था। वहां एक दक्षिण भारतीय व्यक्ति बैठा करते थे जिनका नाम राजन था। उन्हें ना तो अंग्रेजी आती थी और ना ही हिंदी। मैं पिछले तीन महीने से सोच रहा था कि इस आदमी को यहां क्यों रखा गया है। इस बात का पता भी मुझे उस दिन चल गया। मैंने पूछा मेरे चैक का क्या हुआ तो वह व्यक्ति मुझे देखकर थोड़ी देर तक तो हंसता रहा। मुझे लगा जैसे उसकी समझ में चैक का मतलब कुछ और तो नहीं आया मैंने इशारे से कहा मेरे चैक का क्या हुआ। तो वह बोला मुझे नहीं मालूम जाकर शहजाद से पूछो। मैं जब शहजाद के पास गया तो वह बोला कि अकाउंट में बात करो जब अकाउंट पर गया तो वह फिर बोला तुम क्या चैक चैक कर रहें हो मेरी समझ में नहीं आता। मुझे हिंदी नहीं आता। मैं बोला लेकिन तुम इतना तो समझते ही हो कि मैं क्या बात कर रहा हूं। वह अपने लंबे दांत दिखाकर मुस्कुराते हुआ बोला लेकिन भाई मेरे, मुझे जब तक समझ में नहीं आता जब तक शहजाद मुझे साइड में ले जाकर नहीं समझा देता। मेरी समझ में अब तक आ चुका था कि शायद घी सीधी ऊंगली से नहीं निकलेगा। इस बीच हमारे संगी साथी "आंखो देखी" के हमारे अंदर हवा भर ही चुके थे, जिसमें नईम और आंखों देखी के क्राइम रिपोर्टर शमशाद अली खास थे। हवा इन्होंने क्यों भरी इसका अंदाजा भी हमें हो चला था। क्योंकि नईम हिंदी में रिपोर्टिग नहीं कर पाता था। शमशाद को अंग्रेजी नहीं आती थी। इसलिये इन दोनों कि हमसे ......................थी? लेकिन हमने सोचा यह भी ठीक कह रहें हैं। अब भला कोई फ्री में कब तक कोई काम कर सकता है। लेकिन मैडम कि एक आदत थी वह जब तक किसी रिपोर्टर को रूला नहीं लेती और उससे अपनी रात दिन जी हुजूरी नहीं करवा लेती वह उसे नौकरी पर नहीं रखती और ये दोनों ही चीजे हमने पिछले चार महीनें में नहीं की। जब हर चीज की हद हो गयी और मैं पक गया, तो मैं मैडम के कमरे में गया और मैंने कहा। मैडम मेरा नाम जासूस पर्दाफाश करमचंद है और मैं आपके संस्थान में काम करता हूं।
इसपर मैडम ने बड़े ही रौबदार अंदाज में कहा, तो फिर मैं क्या करू कि तुम्हारा नाम जासूस पर्दाफाश करमचंद है या फिर कुछ और, मैंने घिघियाते हुए कहा मैडम मैंने इस दिवाली पर आंखों देखी के लिए एनटीपीसी दादरी से एक ब्रेकिंग स्टोरी की थी जिसपर आंखों देखी को काफी वाह वाही मिली है। मैडम बोलीं हां ये बात मैं जानती हूं आप मुझे ये बात क्यों बता रहें हैं। मैंने कहां मैंडम मेरे साथ के सारे स्टाफ को अपनी तनख्वाह मिल गयी, लेकिन मुझे पिछले दो महीने से नहीं मिल रही है। उन्होंने पूछा तुम्हे नौकरी ज्वाइन किये कितना समय हुआ है। मैंने कहा दो महीने। मैडम ने पूछा तुम्हे रखा किसने हैं, मैंने कहा शहजाद जी ने। मैडम ने कहा, जब शहजाद ने रखा है तो तनख्बाह भी तो वही देगा, मैं तुम्हे नहीं जानती की तुम मेरे यहां नौकरी करते हो। मैंने कहा मैडम मैं चार महीने से आप के यहां हूं आपको यह नहीं पता कि मैं यहां क्यों हूं। मैडम ने साफ कहा मेरे यहां लोग सालों साल से हैं, लेकिन मैं उन्हें भी नहीं जानती तो तुम कौन हो, और हां अब मेरा समय खराब मत करो और दफा हो जाओ। मैं धीरे से मैडम के कमरे से बाहर हो गया और बाहर आकार शहजाद से बोला भाई साहब आपके बारे में सुना बहुत कुछ था लेकिन आज जान भी लिया। अब ईश्वर से यही दुआ करेंगे कि आप जैसा आदमी हमें इस फील्ड मैं ना मिले। इसपर शहजाद ने अपने खींसे निपुरते हुये कहा। हमारा काम है मैडम का काम करना और वो भी मुफ्त में, अगर नहीं करेंगे तो हमारी गाड़ी में तेल नहीं पड़ेगा। मेरे भाई तू मुझे ऐसी धमकी मत दे कि मुझसे मुलाकात नहीं होगी। मैं तो तुम्हे हर मोड़ पर मिलने वाला हूं। हां ये बात अलग है कि दूसरी जगह दूसरी सूरत और नाम का आदमी मिलेगा, लेकिन मिलूंगा मैं ही। मैं आंखों देखी को छोड़ आया और सोचता रहा कि क्या शहजाद सही कह रहा है।
क्योंकि जीवन के सात साल पत्रकारिता को समर्पित करने के बाद आज मैं एक ऐसे संस्थान के साथ हूं जहां मेरे काम को सराहा भी जाता है और मुझे भी पूरा सम्मान मिल रहा है। पैसा पत्रकारिता में चैनल में भर्ती होने के बाद या फिर किसी रैकेट यानी 'पत्रकारिता की दलाली' करने के बाद ही आता है।
इस बात को बताने में या कहने में मुझे अब कोई डर इसलिये नहीं लगता कि अब मैं मान चूका की समस्त टीवी चैनल और अखबार वाले मुझे नौकरी नहीं देने वाले। जिसने मेरे और मेरे बच्चों का दाना पानी देना था, उसे मेरे काम से कोई शिकायत नही है। यानी अब मैं एक ऐसे पवित्र और अच्छे संस्थान में हूं जहां मेरी और मेरे काम की इज्जत होती है। एक पत्रकार को यही चाहिए भी होता है और रही बात पैसों की तो मैं ये मानता हूं कि पैसें तो रेड लाइट पर खड़ा भीखारी भी कमा लेता है, लेकिन इज्जत और सम्मान से मिली सूखी रोटी में शहद की मिठास होती है। ये मेरी खुशकिस्मती है कि मुझे आज एक ऐसा संस्थान मिला है जो मुझे ये दोनों चीजे प्रदान कर रहा है।
क्रमश:
मैंने अपने ब्लोगर की शुरूआत बेहद खास तरीके से करने की कोशशि की है, मेरा ये मानना है कि पहले आदमी को अपने पर बीती हुई चीजों को अपने सामने रख लेना चाहिए, इससे होता ये है कि आप अपने आपको ठीक से देख पाते हैं।
इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि आप अपने सामने एक ऐसा आईना रख लेते हैं जिसमें आपकी शख्सियत बिल्कुल साफ- साफ दिखाई देती है।
मैं पहले पत्रकारिता के क्षेत्र में अपबीती अपने ब्लोगर पर रखने जा रहा हूं, साथ ही मैं इस बात को भी यहां साफ करना चाहूंगा कि ये मेरे अपने पत्रकारिता के अनुभव हैं और ये उस समय की बातें हैं जब में पत्रकारिता आरंभ कर ही रहा था। मैं एक प्रशिक्षु था तो मेरे लिए ये भी आवश्यक था कि मैं पहले अपने प्रोफेशनल की आस पास की चीजों को ज्यादा से ज्यादा समझ लूं। मेरा पत्रकारिता का शुरूआती अनुभव कुछ ज्यादा अच्छे नहीं रहें। मैं लगातार आजतक ये ही सोचता रहा कि आखिर युवा पत्रकारिता में आने से पहले इसके नफे नुकसान क्यो नहीं सोचते। इसीलिये शायद मैंने अपने ब्लोगर में “पत्रकारिता का सच” पेश करने की कोशिश की है। ये वो सच है जिसें मैं आज ज्यादा पास से जानता हूं। क्योंकि राह पार कर चुका पथिक ही रास्ते की सही जानकारी दे सकता है।
मेरा मकसद अपने ब्लोगर के माध्यम से नये लोगों को पत्रकारिता की जानकारी देना मात्र है, साथ ही उन लोगों के चेहरे “बेनकाब” करना भी है, जो पत्रकारिता की आढ़ में “दलाली” करते हैं और देश के लोगों को गुमराह करते रहें हैं और लगातार कर रहें हैं।
पत्रकारिता उन लोगों के लिए मिशन नहीं है बल्कि हाथ में आयी वो तलवार है जिसके आधार पर वह इस देश पर राज करना चाहते हैं।
मेरा अपनी आने वाली पत्रकारिता की पीढ़ी से अनुरोध है कि वह इन लोगों से सावधान रहें और अपना कैरियर इनके माध्यम से आरंभ न करें। क्योंकि ये वह लोग हैं जो आज भी सामांतवादी सोच के शिकार हैं। ये ऊपर से बहुत सभ्य दिखाई देते हैं, लेकिन ये वह इंसानी भे़ड़िये हैं जो समाज को तो नोच-नोच कर खा ही नहीं रहें बल्कि पत्रकारिता का चीर हरण करके उसका लगातार परिहास उड़ा रहें हैं।
मेरे साथियों मेरा आपसे अनुग्रह हैं कि आप अपनी राह चुनने से पहले ये अवश्य तय कर लें कि आखिर आपको जाना कहां हैं।
हर क्षेत्र की तरह पत्रकारिता में भी कम बूरे और बहुत अच्छे लोग हैं। लेकिन दुख इस बात का है कि बहुत से अच्छे लोग होने के बाद भी पत्रकारिता में कोई किसी की मदद नहीं करता और हिंदी पत्रकारिता में तो बिल्कुल भी नहीं।
वैसे भी हिंदी के लोग कुछ ज्यादा ही “समझदार” होते हैं, वह हमेशा ये कोशिश करते हैं कि उनके नीचे का आदमी कभी ऊपर न आये। यहां मुझे एक दोस्त जो इन दिनों आजतक में कार्य करता है। वह कहा करता था कि “किसी बड़े होने से कोई छोटा नहीं होता” लेकिन पत्रकारिता में अगर कोई बड़ा हो जाता है तो वह अपने से नीचे वाले को तो कम से कम कभी बड़ा नहीं होने देगा। ये मेरा मानना भी है और दृण विश्वास भी कि कभी भी अपने सबसे पास के आदमी पर पत्रकारिता में विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि वही आदमी आपके बॉस से आपकी चुगली कर आयेगा और आपकी नौकरी खा जायेगा। पत्रकारिता में कुछ लोग ऐसे भी है जो जिंदगी की हर राह पर आपको अपने पास खड़े हुये दिखाई देंगे।
खैर ये अपने – अपने व्यक्तिगत अनुभव की बातें हैं।
मैं आपको पहले अपनी पहली नौकरी “आंखों देखी” के बारे में बताना चाहूंगा। आंखों देखी का मेरे लिये ऐसा अनुभव है कि उसका भूत आजतक मेरे सर पर सवार है। मैं जब भी अपनी आंखें बंद करता हूं मुझे आंखों देखी का वह बीता एक- एक पल ताजा हो आता है जो वहां बीता। हालांकि मेरी दूसरी नौकरी आंखों देखी की बदौलत ही थी, लेकिन कहते हैं ना पहली गर्लफ्रेंड, पहली बेचलर पार्टी और पहली रात आदमी ताउम्र नहीं भूलता। इसीलिये मैं भी आंखों देखी को अपनी गर्लफ्रेंड मान चुका और ये भी मान चुका की ये वही गर्लफ्रेंड है जो कालेज में समोसा-चाय तो मेरी ही पाकेट से खाया करती थी लेकिन कालेज के बाद जीवन की तपती धरती पर पैर रखने से पहले ही किसी रहीस जादे की गोद में जा बैठी।
मैंने सन् 2000 में अपनी दैनिक हिदुंस्तान से इंटर्नशिप पूरी की, चूंकि इलैक्ट्रोनिक मीडिया भी उन दिनों देश के दरबाजे पर मजबूती से दस्तक दे ही रहा था। इसलिये हमने भी मौका देखकर चौका मारा और आंखों देखी में इंटर्नशिप करने के लिये जा पहुंचे। यहां पहले दिन हमें श्री दुष्यंत कुमार जी मिले जो आंखों देखी के उन दिनों ब्यूरो हेड थे, इनके साथ ही अनंत मित्तल भी कार्यरत थे। चूंकि मेरी पहली मुलाकात दुष्यंत कुमार जी से ही हुई थी, तो मैं दुष्यंत कुमार जी के ही निकट था। आंखों देखी में उन दिनों मेरे कई साथी रहें उनमें से दिनेश पाठक भी थे जो आज भी कहने के लिए मेरे दोस्त हैं। वह आज भी आंखों देखी की सेवा में हैं। सुना है इनदिनों वहीं आंखों देखी के ब्यूरो चीफ हैं।
मैं अपने ब्लोगर में केवल पत्रकारिता की बात ही करूंगा, इसमें मैं पहले अपने अनुभव इस ब्लोगर के माध्यम से आप लोगों के सामने रखने जा रहा हूं। मैं चाहता तो बहुत कुछ लिखना हूं। लेकिन ब्लोगर आरंभ में केवल इतना ही कहना चाहता हूं कि मेरे ब्लोगर को कृपया वह लोग न पढ़े जो ये मानते है कि पत्रकारिता महज एक कार्य है।
मेरा मानना है कि पत्रकारिता केवल रोजी रोटी का जरिया ही नहीं है बल्कि ये वह ताकत है जिसके साहरे हम युवा लोग इस देश का तरक्की की राह दिखा सकते हैं।
चूंकि मैं एक हिंदी पत्रकार भी हूं तो मेरा मिशन हिंदी की सेवा करना भी है और हिंदी की सेवा तभी संभव है जब इंटरनेट बाबा की शरण में हिंदी में ज्यादा से ज्यादा काम होगा। मैं कोशिश करूंगा कि इंटरनेट बाबा की शरण में हिंदी में जमकर लिखू और अपनी आने वाली पीढ़ी को यानी पत्रकार बंधुओं को वह समस्त जानकारी उपलब्ध करवाऊ जिसकी उन्हें अक्सर आवश्यकता रहती है।
इन सभी का खुलासा में आगे करूंगा पहले आंखों देखी से निपट लिया जाये। मेरी पहली नौकरी आंखों देखी में थी। जिस दिन इंटर्शिप पूरी हुई उसी दिन शहजाद साहब जो मैडम के दाये बाये सारे हाथ हैं ने हमारे सर पर हाथ रखकर हमे आर्शीवाद की मुद्रा में कहा। जाओ बच्चा तुम्हारा कल्याण हो गया। हम और मैडम तुम्हारे काम से बहुत खुश है। तुमने जो कारनामा अपने इंटर्नशिप के दौरान किये और एक नयी खबर बड़ी ही रोचक ढ़ंग से की उसके बदले तुम्हे नौकरी दी जाती है। तुम्हे साढ़े तीन हजार के मासिक वेतन पर रखा जा रहा है और तीन महीने बाद ये तनख्वाह दो-गुना बढ़ा दी जायेगी, लेकिन शर्त यही है कि तुम इसी तरह की स्टोरी लाते रहोगें और मैडम के साथ - साथ हमे भी खुश रखोगें। मैं मुर्ख अज्ञानी पहले इन बातों को समझ ही नहीं पाया कि मान्यवर शहजाद क्या कह रहें हैं। हम तो समझे खुश का मतलब मेहनत से काम करना होता है। हमने जब ये खबर अपने माता पिता को सुनाई तो हमारी माता ने उस दिन मंदिर जाकर दस रूपये का प्रसाद बांटकर भगवान के समक्ष हमारी कामयाबी की दुआ मांगी और हमने भी उनकी आंखों में आंखों देखी की दया को आंसूओं के रूप में देखा। मेरे बूढ़े बाप ने अपनी 502 पताका बीढ़ी का लंबा कस लेकर और दम साधकर मेरी मां से कहां। अजी सुनती हो अब अपना लोंडा भी कमाने लगा, अब तो घर में मुझे अराम करने ही दिया करेगी तू। मैं भी यह बात सुनकर खुश था कि अब मुझे नौकरी मिल गयी है। दूसरे दिन मैं बड़े ही जोश से अपने दफ्तर पहुंचा और पहुंचते ही मान्यवर शहजाद जी के चरण स्पर्श करके नमस्कार करके बोला, सर आपका मेरे ऊपर बड़ा उपकार है। आप ही है जिन्होंने मेरी प्रतिभा को समझा है बस आप मुझे आर्शीवाद प्रदान कर दो फिर देखना मे पत्रकारिता के क्षेत्र में कैसे झंडे गाढ़ता हूं मेरी बातों पर मुस्कुराते हुए मान्यवर शाहजाद उर्फ आंखों देखी के वीडीयो एडिटर यानी टेक्नीकल आदमी जो दसवीं फेल हैं और पत्रकारिता किस परिंदे का नाम हैं ये उन दिनों नहीं जानता था ने अपनी आंखे ऊपर चढ़ाते हुये कहा। बेटा आर्शीवाद तो हमने तुम्हें दे ही दिया है, लेकिन आज से एक बात का ध्यान रखना कि स्टोरी आपने पहले मुझे दिखानी है हमारे ब्यूरो चीफ दुष्यंत और आनंत मित्तल को अपनी स्टोरी नहीं देनी है। हमें एक दम से तो कुछ समझ में नहीं आया लेकिन शाम तक समझ में आ गया जब अनंत मित्तल और दुष्यंत जी आंखों देखी को अलविदा कह गये। अब हमारी समझ में पहले ही दिन आ गया कि हमे एकदम से नौकरी पर क्यों रख लिया गया था। थोड़ा बहुत हम लिख ही लिया करते थे, बाकी कहानी पर मैडम कलम चला ही लिया करती है। आंखों देखी में हमारे साथ वाली कुर्सी पर ही हमारे दोस्त हैं दिनेश पाठक वो आज तक उसी कुर्सी पर हैं जहां हम उन्हें छोड़ गये थे क्योंकि वह वो करने में एक्सपर्ट हो गये जो हम आजतक नहीं सीख पाये। खैर हम काम करते रहें महीना बीता सभी की तनख्वाह मिली, लेकिन हमें नहीं मिली। इसका कारण जब हमने शहजाद जी से पूछा तो उन्होंने कहा तुम्हारा नाम अकाउंट सेक्शन में अपडेट नहीं हुआ इसलिये इसबार चैक नहीं बना अगले महीने बन जायेगा। हमने सोचा चलो वैसे भी 20 तारीख तो हो ही गयी है। अगला महीना भी आया जाता है। अगला महीना आया और अगले महीने तक हम भी पूरी तरह से पक चुके थे। घर पर जबाव देकर भी और दफ्तर में फोकट में काम करते करते भी। फिर अगले महीने की 10 तारीख आयी सभी को चैक मिल गया, मुझे फिर नहीं मिला। मैंने इसबार अकाउंट सेक्शन में इस बारे में मालूमात किया जो मेरी ही सीट के सामने मौजूद था जो रिसेप्सन भी था। वहां एक दक्षिण भारतीय व्यक्ति बैठा करते थे जिनका नाम राजन था। उन्हें ना तो अंग्रेजी आती थी और ना ही हिंदी। मैं पिछले तीन महीने से सोच रहा था कि इस आदमी को यहां क्यों रखा गया है। इस बात का पता भी मुझे उस दिन चल गया। मैंने पूछा मेरे चैक का क्या हुआ तो वह व्यक्ति मुझे देखकर थोड़ी देर तक तो हंसता रहा। मुझे लगा जैसे उसकी समझ में चैक का मतलब कुछ और तो नहीं आया मैंने इशारे से कहा मेरे चैक का क्या हुआ। तो वह बोला मुझे नहीं मालूम जाकर शहजाद से पूछो। मैं जब शहजाद के पास गया तो वह बोला कि अकाउंट में बात करो जब अकाउंट पर गया तो वह फिर बोला तुम क्या चैक चैक कर रहें हो मेरी समझ में नहीं आता। मुझे हिंदी नहीं आता। मैं बोला लेकिन तुम इतना तो समझते ही हो कि मैं क्या बात कर रहा हूं। वह अपने लंबे दांत दिखाकर मुस्कुराते हुआ बोला लेकिन भाई मेरे, मुझे जब तक समझ में नहीं आता जब तक शहजाद मुझे साइड में ले जाकर नहीं समझा देता। मेरी समझ में अब तक आ चुका था कि शायद घी सीधी ऊंगली से नहीं निकलेगा। इस बीच हमारे संगी साथी "आंखो देखी" के हमारे अंदर हवा भर ही चुके थे, जिसमें नईम और आंखों देखी के क्राइम रिपोर्टर शमशाद अली खास थे। हवा इन्होंने क्यों भरी इसका अंदाजा भी हमें हो चला था। क्योंकि नईम हिंदी में रिपोर्टिग नहीं कर पाता था। शमशाद को अंग्रेजी नहीं आती थी। इसलिये इन दोनों कि हमसे ......................थी? लेकिन हमने सोचा यह भी ठीक कह रहें हैं। अब भला कोई फ्री में कब तक कोई काम कर सकता है। लेकिन मैडम कि एक आदत थी वह जब तक किसी रिपोर्टर को रूला नहीं लेती और उससे अपनी रात दिन जी हुजूरी नहीं करवा लेती वह उसे नौकरी पर नहीं रखती और ये दोनों ही चीजे हमने पिछले चार महीनें में नहीं की। जब हर चीज की हद हो गयी और मैं पक गया, तो मैं मैडम के कमरे में गया और मैंने कहा। मैडम मेरा नाम जासूस पर्दाफाश करमचंद है और मैं आपके संस्थान में काम करता हूं।
इसपर मैडम ने बड़े ही रौबदार अंदाज में कहा, तो फिर मैं क्या करू कि तुम्हारा नाम जासूस पर्दाफाश करमचंद है या फिर कुछ और, मैंने घिघियाते हुए कहा मैडम मैंने इस दिवाली पर आंखों देखी के लिए एनटीपीसी दादरी से एक ब्रेकिंग स्टोरी की थी जिसपर आंखों देखी को काफी वाह वाही मिली है। मैडम बोलीं हां ये बात मैं जानती हूं आप मुझे ये बात क्यों बता रहें हैं। मैंने कहां मैंडम मेरे साथ के सारे स्टाफ को अपनी तनख्वाह मिल गयी, लेकिन मुझे पिछले दो महीने से नहीं मिल रही है। उन्होंने पूछा तुम्हे नौकरी ज्वाइन किये कितना समय हुआ है। मैंने कहा दो महीने। मैडम ने पूछा तुम्हे रखा किसने हैं, मैंने कहा शहजाद जी ने। मैडम ने कहा, जब शहजाद ने रखा है तो तनख्बाह भी तो वही देगा, मैं तुम्हे नहीं जानती की तुम मेरे यहां नौकरी करते हो। मैंने कहा मैडम मैं चार महीने से आप के यहां हूं आपको यह नहीं पता कि मैं यहां क्यों हूं। मैडम ने साफ कहा मेरे यहां लोग सालों साल से हैं, लेकिन मैं उन्हें भी नहीं जानती तो तुम कौन हो, और हां अब मेरा समय खराब मत करो और दफा हो जाओ। मैं धीरे से मैडम के कमरे से बाहर हो गया और बाहर आकार शहजाद से बोला भाई साहब आपके बारे में सुना बहुत कुछ था लेकिन आज जान भी लिया। अब ईश्वर से यही दुआ करेंगे कि आप जैसा आदमी हमें इस फील्ड मैं ना मिले। इसपर शहजाद ने अपने खींसे निपुरते हुये कहा। हमारा काम है मैडम का काम करना और वो भी मुफ्त में, अगर नहीं करेंगे तो हमारी गाड़ी में तेल नहीं पड़ेगा। मेरे भाई तू मुझे ऐसी धमकी मत दे कि मुझसे मुलाकात नहीं होगी। मैं तो तुम्हे हर मोड़ पर मिलने वाला हूं। हां ये बात अलग है कि दूसरी जगह दूसरी सूरत और नाम का आदमी मिलेगा, लेकिन मिलूंगा मैं ही। मैं आंखों देखी को छोड़ आया और सोचता रहा कि क्या शहजाद सही कह रहा है।
क्योंकि जीवन के सात साल पत्रकारिता को समर्पित करने के बाद आज मैं एक ऐसे संस्थान के साथ हूं जहां मेरे काम को सराहा भी जाता है और मुझे भी पूरा सम्मान मिल रहा है। पैसा पत्रकारिता में चैनल में भर्ती होने के बाद या फिर किसी रैकेट यानी 'पत्रकारिता की दलाली' करने के बाद ही आता है।
इस बात को बताने में या कहने में मुझे अब कोई डर इसलिये नहीं लगता कि अब मैं मान चूका की समस्त टीवी चैनल और अखबार वाले मुझे नौकरी नहीं देने वाले। जिसने मेरे और मेरे बच्चों का दाना पानी देना था, उसे मेरे काम से कोई शिकायत नही है। यानी अब मैं एक ऐसे पवित्र और अच्छे संस्थान में हूं जहां मेरी और मेरे काम की इज्जत होती है। एक पत्रकार को यही चाहिए भी होता है और रही बात पैसों की तो मैं ये मानता हूं कि पैसें तो रेड लाइट पर खड़ा भीखारी भी कमा लेता है, लेकिन इज्जत और सम्मान से मिली सूखी रोटी में शहद की मिठास होती है। ये मेरी खुशकिस्मती है कि मुझे आज एक ऐसा संस्थान मिला है जो मुझे ये दोनों चीजे प्रदान कर रहा है।
क्रमश:
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