Thursday, April 15, 2010

सोशल नेटवर्किंग


आपने खरगोश और कछुये की कहानी जरूर सुनी होगी। जिसमें धीरे धीरे चलने वाला कछुआ तेज दौड़ने वाले कछुए से जीत जाता है। कहानी का सार कुछ इस तरह से है कि एक दिन कछुए और खरगोश में शर्त लगती है कि इन दोनों में से कौन तेज है। कछुआ कहता है मैं तेज हूं। खरगोश अनाड़ी को ये बात हजम ही नहीं होती। वह कहता है भला धीरे धीरे चलने वाला कछुआ कैसे तेज हो सकता है। खरगोश गलतफहमी का शिकार होता है औऱ वह कछुए से शर्त लगा बैठता है। जंगल के सभी जानवरों को जब इस बात का पता चलता है तो सभी लोग कछुए और खरगोश की दौड़ देखने के लिए आते हैं। कछुए औऱ खरगोश के बीच प्रतिस्पर्धा का निर्णय लेने का हक कछुए के मुंह बोले मामा शियार को दिया जाता है। दौड़ आरंभ होती है। खरगोश औऱ कछुआ भागते हैं, खरगोश काफी आगे निकल जाता है और पीछे मुड़कर देखता है तो उसे लगता है कि कछुआ अभी धीरे धीरे आ रहा है क्यों न थोड़ा सा आराम कर लिया जाये और वह छांव में जाकर सो जाता है। खरगोश सो जाता है लेकिन अपने निरंतर प्रयास से कछुआ चलता रहता है चलता रहता है और दौड़ जीत जाता है। ये तो थी वह कहानी जो हमने आजतक पढ़ी और सुनी अब सुनिये बाबा पोलखोल की जुबानी नयी खरगोश और कछुए की कहानी.............

कछुआ और खरगोश दो दोस्त थे। कछुए का सोशल नेटवर्क बड़ा ही स्ट्रोंग था वही खरगोश को ये लगता था कि वह काम करने और मेहनत करने में तेज है इसलिए वह सारी दुनिया में सबसे अच्छा औऱ गुणवान व्यक्ति है। खरगोश को अपनी मेहनत करने औऱ तेजी पर गलत फहमी हो जाती है। जबकि खरगोश उसे बार बार समझता था कि भाई तेजी से नहीं समझदारी, जुगा़ड़ और सोशल नेटवर्किंग कामयाबी का रास्ता हैं। इसपर एक दिन दोनों दोस्तों में ठन गई। खरगोश को आ गया ताब उसने कछुए को चैलेंज करते हुए दौड़ लगाने के लिए कह दिया साथ ही कहा जो इस जंगल का एक चक्कर सबसे पहले लगा देगा वहीं तेज औऱ मेहनतकश होगा। कछुए ने खरगोश को बहुत समझाया कि भाई आप नहीं जीत पायेंगे इस जंगल में मुझसे, लेकिन खरगोश नहीं माना और लगा ली शर्त।
खरगोश ने एक सप्ताह का समय कछुए को तैयारी का भी दे दिया। कछुए ने शर्त स्वीकार कर ली। यहां तो खरगोश दिन रात एक करके दौड़ की तैयारी करने लगा जबकि दूसरी ओर कछुआ जंगल के हर जानवार और अपने मामा शियार से मीटिंग्स में व्यस्त रहा। कछुए ने एक सप्ताह जंगल में दावते दी जानवारों को उनकी पसंद का भोजन करवाया शराब पिलवाई और मुम्बई से बार बालाओं को बुलवा कर रैव पार्टी का आयोजन भी किया। जंगल के सारे जानवर खुश जबकि खरगोश पूरे सप्ताह दंड पैलने में लगा रहा औऱ अपनी टांगों को मजबूत करने में लगा रहा। दौड़ का समय आ गया। शियार भाई आंखों पर काला चश्मा लगा कर झंडी लिये ट्रेक पर आ गया। खरगोश ने अपने नाईकी के स्पाइक शू कस लिये और अपना स्पोर्टर कसकर अपनी कमर कस ली। वहीं दूसरी ओर खरगोश सफेद कुर्तें पयजामा पहन कर साधारण चप्पल में ट्रेक पर उतरे। कछुए को इन कपड़ों में देखकर खरगोश बोला भाई दौड़ लगाने आये हो या राजनीति करने। कछुआ बोला भाई कुछ भी समझों अपुन ऐसे ही दौड़ेगे। खैर खरगोश ने एक बार कछुए को देखा और अपनी मंजिल की ओर देखकर ट्रैक की ओर देखने लगा। शियार ने गोली दागी औऱ दोनों प्रतियोगियों के बीच दौड़ होने लगी। खरगोश जंगल में नदी नाले पेड़ पौधे सभी को कूदता फांदता भागा जा रहा था। जबकि खरगोश अपनी मस्त होकर चल रहा था। जब खरगोश ने आधे से ज्यादा जंगल पार कर लिया तो उसने सोचा कि देखा जाये कछुआ भाई कहा हैं उसने इधर उधर देखा लेकिन दूर दूर तक कहीं कछुआ दिखाई नहीं दिया। खरगोश ने सोचा शायद भाई पीछे रह गये हैं। वह अपनी मंजिल की ओर चलता गया और न तो कही रूका और न ही कही सोया वह तेज दौड़ा और मंजिल तक पहुंच गया। लेकिन उसने देखा की उससे पहले वहां कछुआ मौजूद है और जंगल के सभी जानवार उसका स्वागत फूल मालाओं से कर रहे हैं। खरगोश ने जब ये देखा तो उसका सर भन्ना गया उसे चक्कर आ गये। वह कछुए के पास गया और बोला अबे साले न तो तू मेरे साथ दौड़ा न ही तू भागा फिर मुझसे पहले यहां कैसे पहुंच गया। इस पर कछुआ धीरे से मुस्कुराया और अपने कुर्तें के आस्तीनों को ऊपर करते हुए बोला अबे मैंने तुझसे कहा था न की इस दुनिया की कोई भी दौड़ दौड़ने से नहीं सोशल नेटवर्किंग से जीती जाती है। इतना सुनते ही खरगोश सन्न रह गया और जंगल के सारे जानवर कछुए की जयघोष करते उसे अपनी पीठपर बैठाकर उसकी जय जयकर करते जंगल में चले गये। अब कछुआ उनका नया चैंपियन था।

8 comments:

AKHRAN DA VANZARA said...

अच्छी कहानी है कही कही कछुये की जगह खरगोश लिखा गया है

सीमा सचदेव said...

आईडिया अच्छा है लेकिन आपका अपना नहीं । कहानी को आपने तोड-मरोड कर पेश कर दिया है । वास्तव में पांच-छ: साल पहले सातवीं कक्षा में पंजाब में सी.बी.एस.ई सिलेबस में अपने स्टूडैण्ट्स को मैने यही कहानी पढाई है ,वो अलग बात है कि मेरी भी एक ऐसी ही बाल-कथा है लेकिन इससे हटकर , उसे तो आप नहीं चुरा सकते क्योंकि वह अभी पब्लिश ही नहीं हुई है । जिसे आपने सोशल नैट्वर्किंग का नाम देकर अपने नाम से पब्लिश कर लिया है वह हास्य व्यंग्य कहानी है ,लेखक का नाम मुझे याद नहीं , शायद आपने भी वही कहानी पढी हो जो मैनें पढाई , ये तो आप ही की पोल खुल गई ।

Ravinder Kumar said...

आपका ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद। हां ये सही है कि ये कहानियां मेरी नहीं हैं, लेकिन ये कहानियां कुछ ऐसी हैं जिन्हें समय के साथ बदलना चाहिए था। अब समय औऱ हालात दूसरे हैं लेकिन कहानी वही क्यों? कभी कभी मन मैं इन कहानियों के प्रति सवाल उठता है और ऐसे में जवाब खोजते खोजते मैं इन नतीजों पर पहुंचता हूं। खैर अपनी अपनी सोच है। मेरा कहानी के माध्यम से मौजूदा समाज का आईना पेश करने की कोशिश है। आपके सुझाव और प्रतिक्रियाओं से मुझे प्रेरणा प्राप्त होगी। कृपया लगातार प्रतिक्रिया और प्रेऱणा देते रहें। धन्यवाद

Anonymous said...

मैं पहली कहानी की बात नहीं कर रही , वो तो पहली कक्षा के बच्चे भी जानते हैं । मैं दूसरी कहानी , जिसमें कछुए नें चालाकी से फ़िर से दौड जीती है उसकी बात कर रही हूं ,जो मैं पांच साल पहले पढा चुकी हूं मुझे अभी भी लेखक का नाम याद नहीं है । खैर ब्लाग आपका , सोच आपकी , कहानी किसी और की , मुझे क्या मतलब ? लेकिन इतना तो होना चाहिए था कि किसी और की रचना को अपने ब्लाग पर लगाते हुए उसका आभार ही व्यक्त करदो या उसके नाम के साथ लगाओ तो कोई संदेह की गुंजाईश ही न रहे । यह बात आप बेहतर समझते होंगे ।

और हां यह आईना आप नहीं किसी और नें पहले ही दिखा दिया है , न तो यह सोच आपकी है और न ही कहानी ......seema sachdev

Ravinder Kumar said...

मेरी कहानी पर सीमा जी को कुछ गलतफहमी है। सीमा जी मैंने पहले ही सफाई देते हुए कहा है कि पहली कहानी मेरी नहीं है, वह हमने बचपन में पढ़ी। लेकिन दूसरी कहानी इसी तरह से किसी और ने पहले लिखी है, ये असंभव है। क्योंकि ये मेरी सोच है। खैर क्या पता ये हो भी सकता हो। लेकिन मैंने ये कहानी चुराई नहीं है और न ही मैं चोरी करने पर विश्वास रखता हूं। हां अगर किसी को इस कहानी जैसी कहानी कहीं दिखाई दे तो वह मुझे सूचना अवश्य दें। अगर ऐसा हुआ तो मैं सार्वजनिक रूप से माफी मांगूगा और फिर से कहानी लिखने से पहले सोचूंगा अवश्य। रही बात समाज का आईना दिखाने की और नहीं दिखाने की और अपनी सोच की। तो मेरा मानना है कि समाज हमारी सोच का ही दूसरा रूप होता है। हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। कहानी के माध्यम से मैंने भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश की है जो वेशक नयी नहीं हैं, लेकिन कोशिश नयी है। ब्लाग पर बने रहने और प्रतिक्रिया भेजने के लिए धन्यवाद

seema sachdev said...

मुझे कोई सन्देह नहीं है , मैनें कहा न कि पांच साल पहले मैं यह कहानी पढा चुकी हूं । वास्तव में मुझे लेखक का नाम याद नहीं है । हो सकता है कि यह एक इत्तेफ़ाक हो कि आपसे भी वही कहानी लिखी गई जो बहुत पहले किसी और नें लिखी जो सी.बी.एस.सी.की पाठ्य पुस्तक में है , निश्चय ही वह कोई मामूली लेखक नहीं है ।
आपने कहा----सी तरह से किसी और ने पहले लिखी है, ये असंभव है। यह केवल आपकी सोच है ।मैं कोशिश करुंगी , यह कहानी मुझे बहुत पसंद थी , क्योंकि तब मेरे लिए नई थी , इस लिए कभी दिमाग से उतरी नहीं ।मैं वही शब्दावली तो नहीं लिख सकती लेकिन कहानी जरूर लिखुंगी अपने ब्लाग पर ।

शैलेन्द्र नेगी said...

सीमा जी मैंने भी ऐसी कई कहानियां पढ़ी हैं जिसमें कछुए और खरगोश को पात्र के रूप मैं पेश किया गया है. लेकिन सीमा जी इस दुनिया में कोई भी आईडिया नया नहीं होता. हर लेखक को समय के अनुसार अपने पात्रों की भूमिका बदलनी पड़ती है. आज से आठ दस साल पहले जब आपने सीबीएससी कोर्स में कहानी पढ़ी होगी तब भारत में सोसिअल नेटवर्किंग नाम का शब्द आया भी नहीं था. सोसिअल नेटवर्किंग शब्द को भारत में लाने का श्रेय ऑरकुट और फेसबुक जैसी सोसिअल नेटवर्किंग साइट्स को जाता है. कहानी का पात्र भले वही जंगली खरगोश और कछुआ क्यों ना हो लेकिन कछुए और खरगोश को इंटरनेट पर देखने के लिए उसे समकालीन परिवेश से जोड़ना आवश्यक है. वही लेखक ने किया है. अगर कहानी के पात्र समय के अनुसार नहीं बदलते तो उनका भी वही हाल होता है जो हमारे यहाँ उर्दू और संस्कृत भाषा का हुआ है यानि उसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है. और इस खतरे से बचने के लिए और पात्र को जीवित करने के लिए कहानी में ऐसे प्रयोग आवश्यक हैं. आपको लेखक को इस बात के लिए उत्साहित करना चाहिए की उसने कछुए और खरगोश जैसे जंगली पात्र को सोसिअल नेटवर्किंग से जोड़कर आधुनिकता प्रदान की और एक पठनीय कहानी हमारे सामने पेश की. मुझे दुःख है की आप केवल पात्रों तक ही सीमित रह गई दरअसल कहानी बदलते समाज में सोसिअल नेटवर्किंग के महत्व को भी बताती है. सीमा जी अब तो कछुआ भी सोसिअल नेटवर्किंग सीख गया आप कहाँ जानवरों में खोई पड़ी हैं. आपकी कहानी का इंतज़ार रहेगा जो लेखक को चोर सिद्ध करेगी...

सीमा सचदेव said...

shailendar ji aapne shaayad bina meri tippani padhe aur samajhe apani baat kahi hai , ab internet ki duniya se mai bhi judi hoo to itana to mai bhi samjhati hoo ki kachchuaa bhi social networking samajh gayaa hai , maine keval itana kahnaa chaahaa hai ki jis social networking ki baat yahaa lekhak ne kahi hai vah naii nahi hai , vahi kahaani mai paanch saal pahle apne students ko padhaa chuki hoo( mere paach saal ko aapne das saal banaa diya ) jise lekhak ne apne naam se publish kar diya hai (mai kahaani ke doosare bhaag ki baat kar rahi hoo jisame kachchuye ne fir se social networking ke sahaare race jeet lee , pahle bhaag ki nahi , vo to hitopadesh ki kahaani hai aur first class ke bachche bhi jaante hai ) mai fir se kahungi kisi ki rachana publish karte samay uska naam avashay likhe , varna mujhe kyaa....? jiski origional kahaani hai vah apne-aap nipate ,mai to origional lekhak kaa naam bhi bhool chuki hoo , mai to keval itana jaanti hoo ki yah kahaani C.B.S.E. syllabus me hai ,to pol-khol lekhak ne koee naee pol nahi kholi hai , balki khuli-khulaaee pol ko apne naam karne kaa paryaas kiya hai .mujhe jab bhi lekhak kaa naam milega aapko soochit avashay karungi . thanks.....seema sachdev