Wednesday, June 9, 2010

जमीर बेच कर हासिल की है दो गज जमीन

दो प्रोपर्टी डीलर कब्रिस्तान के पास आपस में बात कर रहे थे।
एक बोला दूसरे से यार हम से तो ये मुर्दें भले हैं
कम से कम ढाई बाई छह के प्लाट में तो पड़े हैं।

हम दूसरो को प्लॉट मकान दिलवाते हैं
और खुद किराए के मकान में रहते हैं।

इतने में ही एक जलजला उठा
और एक कब्र में से एक मुर्दा उठा

मुर्दा देखकर पहले डीलर घबरा गए
और फिर सहमकर बोले हम से क्या कोई गलती हो गयी
जो आप इतने खफा हो गए
अपना आराम और प्लॉट छोड़कर हमारे पास आ गए
मुर्दा पहले मुस्कुराया और सर पर हाथ रखकर
गंभीर होकर बोला
यार तुम इतना क्यों घबरा रहे हो
मैं तो सफाई देने आया हूं
तुम जिसे मेरा प्लॉट समझ रहे हो
और मुझे बड़ा ही भाग्यवान के रूप में देख रहे हो
असल में ये प्लॉट तो मैंने अपना जमीर देकर कमाया है
प्लॉट पाने के लिए पहले अपनों को धोखा दिया
और फिर खुद धोखा खाया है।
वो तो भला हो उस आंतकबादी का
जिसने मुझे गोलियों से भून दिया
और सरकार ने शहीद के रूप में मेरे परिवार को मुआवजा दे दिया
नहीं तो मेरे बच्चें तो मेरी पेंशन पहले ही खा गए थे
बचा तो घर वो बांट चूके थे।
मैंने मरने से पहले अपना जमीर बेच दिया
अंतिम सांस लेने से पहले खुद का फकीर कह दिया।

5 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत करारा व्यंग

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत जोरदार रचना है।बधाई।

अनामिका की सदायें ...... said...

sateek rachna.aabhar.

Udan Tashtari said...

मार्मिक यथार्थ.

Ravinder Kumar said...

आप सभी का ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद। आपकी द्वारा भेजी गई प्रतिक्रियाएं मुझे निरंतर लेखन की प्रेरणा देती हैं।