एक सर्वे के मुताबिक जो 2004-05 में हुआ था उसके मुताबिक दिल्ली में 635 middle schools, 2,515 primary schools, 1,208 senior secondary schools और 504 secondary schools हैं। दिल्ली के इन स्कूलों में तकरीबन 15 लाख विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं।
इनमें प्राइवेट स्कूल शामिल नहीं हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान दिल्ली के सभी स्कूल बंद रहेंगे और इनमें पढ़ने वाले बच्चे पूरे 15 दिन शिक्षा से वंचित रहेंगे। यहां सवाल ये उठता है कि आखिर खेलों के दौरान स्कूल बंद करने की क्या आवश्यकता थी। स्कूलों के बच्चों का इसमें क्या कसूर था कि वह स्कूल ही न जाए। पहले खेलों के मद्देनजर बच्चों के मध्य सालाना इम्तहान पहले हो गए। जबरदस्ती बच्चों को स्लैबस दो महीने पहले ही पढ़ा दिया गया।
दूसरा सवाल ये है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अधिकतर गरीब घरों से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में परिवार के लोग बच्चों को सरकारी स्कूलों में इसलिए भी भेजते हैं कि उन्हें वहां एक समय का अच्छा भोजन मिलता है जिससे उनके बच्चों की शिक्षा के साथ पालन पोषण ठीक हो रहा है। कम से कम बच्चों को पढ़ाई के साथ एक समय का भोजन तो मिल ही रहा है।
अब 15 दिन इन बच्चों को न तो भोजन ही मिलेगा और न ही शिक्षा। चलो ये भी मान लिया जाए कि अगर 15 दिन भोजन नहीं भी मिला तो क्या फर्क पड़ने वाला है, लेकिन पढ़ाई अगर समय पर नहीं हुई तो उसका असर तो पड़ेगा ही। अब यहां दिल्ली सरकार ये भी कह सकती है कि हम दिल्ली के शिक्षकों को सर्दियों में एक्सट्रा कक्षाएं लेने के लिए कहेंगे। चलो ठीक है सर्दियों में एक्सट्रा कक्षाएं हो जाएगी लेकिन क्या उससे पढ़ाई अपने ट्रेक पर आ जाएगी।
ठीक इसी तरह से दिल्ली मजदूरों को 15 दिन तक दिल्ली में फेरी करने पर रोक होगी। इसमें रिक्शा चालक, सब्जी विक्रेताओं और रेहड़ी वालों को 15 दिन घर में ही बंद रहना होगा। यानी की रोज कुंआ खोदकर पानी पीने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान या तो भूखे मरेंगे या फिर हर दिन पानी पी पीकर दिल्ली सरकार को कोसते रहेंगे। ठीक ऐसा ही दिल्ली के भीखारियों के साथ होने वाला है। दिल्ली के भीखारी 15 दिन सड़कों पर नहीं दिखाई देंगे। यानी कुल मिलाकर दिल्ली के कोढ़ सरकार रंगीन पट्टी लगाकर ढांप देना चाहती है।
No comments:
Post a Comment