Thursday, February 25, 2010

किरदार की कीमत

पत्रकारिता में पत्रकार के किरदार की कीमत क्या हो सकती है? सवाल आपको थोड़ा सा अटपटा लग सकता है। लेकिन पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए ये सवाल बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि मौजूदा पत्रकार लगातार इन सवालों से परेशान हो रहा है। उसे अपना किरदार बचाने के लिए जी तोड़ कोशिश करनी पड़ रही है। हालांकि इसके लिए मीडिया के कुछ लोग ही जिम्मेदार हैं, लेकिन ये वह लोग हैं जो वर्षों से मीडिया में हैं और न तो मरने का ही नाम ले रहे हैं और न ही मीडिया से जा रहे हैं। हां मीडिया का सत्यानाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। अगर पिछले 20 साल का मीडिया का आंकड़ा खंगला जाये तो आप पायेगे कि मीडिया में जो छोटे रिपोर्टर या प्रोडक्शन आदि में कार्य कर रहे थे वह लगातार बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं और नौकरी की तलाश में दर दर की ठोकरे खा रहे हैं, जबकि मीडिया में कुछ नाम न तो आज तक कहीं गये और न ही इन्हें बेरोजगारी का सामना ही करना पड़ा।
अगर ये कहते हैं कि हम काम बेहतर करते हैं तो इनसे बात हाथ में जूता लेकर करनी चाहिए और पूछना चाहिए कि पिछले पांच सालों से इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में क्या नया काम किया है। जो आज से दस साल पहले था वहीं ये आज भी कर रहे हैं। पिछले पांच सालों में तो इन ..... ने इतना नंगा नाच किया है कि एक भी ऐसी खबर इन्होंने कबर नहीं की जो समाज या पत्रकारिता में मिसाल पैदा कर सके। हां ....ने प्रकाश सिंह की आड़ में इंवेस्टिगेसन जर्नलिज्म को एक दम से खत्म कर दिया है। अगर आजतक बात छोड़ दे तो कोई भी ऐसा चैनल आज नहीं है जिसमें एसआईटी हो। इंवेस्टिगेशन के नाम पर न्यूज 24 तो मुंबई की कॉलगर्ल्स तक ही सीमित रहता है क्योंकि इसे करना सबसे आसान काम है। इंडिया टीवी को इन दिनों भूत पिशाच से सीधी बात करने में ज्यादा दिलचस्पी है न कि सोशल इश्यू पर हां कभी कभार हमारे रजत भाई साहब राखी सांवत के साथ महिलाओं के मुद्दे पर आंखों पर चश्मा लगाये अपनी छोटी छोटी आंखों से राखी को निहारते हुए उनके कम कपड़ों पर अपने दिल की बात अवश्य लोगों के सामने रख देते हैं। जिसे सुनकर भारतीय परिवार में चैनल सर्फ के दौरान दिखने वाले इस कार्यक्रम से अपना जल्द ही बटन दबाकर पिंड छुड़ा लेते हैं। विनोद कापड़ी अब स्टिंग रिपोर्टिंग से नाता तोड़ चुके हैं क्योंकि आजकल वह प्रशांत टंडन के लखनवी अंदाज को ज्यादा तरजीह देने लगे हैं। उन्हें भी प्रशांत की तरह लगने लगा कि सभी तरह के इंवेस्टिगेशन ओपन कैम से हो सकते हैं और स्टिंग एक बाहियात काम है। शर्म आती हैं मौजूदा खोजी पत्रकारों को अपने इन सीनियर पत्रकारों पर। कभी कभी तो लगता है कि इन्हें बाजार में नंगा करके दौड़ा देना चाहिए। ये किस तरह की पत्रकारिता हो रही है। भूत टेलिविजन पर आ रहे हैं और देश का गरीब आदमी जो सोचता है कि शायद मेरी बात कभी तो पत्रकार उठायेगा या फिर सरकार तक पहुंचायेगा। वह एसी फिटेड ऑफिस में बैठकर देश की पॉलिसी पर बात करते हैं। देश में मंहगाई और भूख से लगातार मौत हो रही हैं, लेकिन चैनल पर दिखाया जाता है कि आज राहुल 17 दुल्हनों से व्याह की बात करेंगे, क्या बकवास है ये। क्या हमारे सीनियर्स का किरदार मर गया या मिलने वाली मोटी तनख्बाह में वह खाक हो गया। अगर आज चैनल्स पर देखों तो दिन में सास बहू और साजिश से घर की महिलाओं को चैनल व्यस्त रखता है ताकि शाम होते ही वह खबर न देखें बल्कि वह टीवी सीरियल देखें जिनकी बात वह दिन में कर चुके हैं। इसके बाद बाजार में क्या नये प्रोडक्ट आये मिनी स्कर्ट में आपकी टांगे कैसी लगेंगी और शार्ट टॉप में कमर की गोलाई कैसी दिखेगी ये दिखाने की कोशिश करते नजर आते हैं। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं इन चैनल के लोगों से की जिस तरह की वह खबर दिखा रहे हैं क्या वैसा ही है हमारा देश। क्या जो वह दिखा रहे हैं वही हो रहा है देश में। अवे ओ मेरे सीनियर्स......सुधर जाओं और होश में आओं और खबर दो खबर।.......देश में आग लगी हुई है। चीनी मंहगी हुई तो तुम्हारे कानों पर जूं नहीं रेंगी। मंत्री जी ने भाषण में साफ कहा कि मंहगाई आ रही है होशियार, आप लोगों ने क्या किया। जी मंत्री जी ठीक कहा बारिश ही नहीं हुई। अबे कभी सोच भी लिया करों मंत्री जी ऐसा क्यों कह रहे हैं। कही लालओं को फायदा पहुंचाने की कबायद तो नहीं हो रही। गेंहूं का तो हमारे देश में बफर स्टाक था कहां गया। चीनी कम थी तो एक्सपोर्ट क्यों कर दी। दालें नहीं थी तो इंतजाम क्यों नहीं किया। मेरे घर में राशन खत्म होता है तो क्या मैं सड़क पर शोर मचाता हूं कि मेरे बच्चें मर जायेंगे उन्हें बचाओं। मैं इंतजाम करने निकलता हूं और इंतजाम करके घर आ जाता हूं। ये कहानी हमने नयी सुनी की इंतजाम मत करों शोर मचाओं और मंहगाई बढ़ाओं। देश के चैनल मंत्री जी की हां में हां मिला रहे हैं। देश का गरीब रिक्शा चालक पुलिस वाले का उसी के सुऐ से कत्ल करता है और अपनी सफाई में आंखों में आंसू भरकर महज इतना कहता है साहब मंहगाई बहुत है और दरोगा जी मेरे रिक्शे का टायर हर दूसरे दिन इस सुऐ से फाड़ देते थे मैं भला हर दूसरे दिन नया टायर कहां से लाता। पूरे दिन की दिहाड़ी 100 रूपये होती है और टायर 500 रूपये का आता है ट्यूब के साथ। घर का चूल्हा शाम को 100 से कम में नहीं जलता। साहब मैंने मना किया दरोगा जी नहीं माने मैंने कहा कि कभी आपने कार का टायर नहीं फाड़ा वह भी तो ट्रेफ्रिक रोकते हैं। लेकिन दरोगा जी नहीं माने तो मैंने गुस्से में उनका सुंआ उन्हें मार दिया। साहब मैंने जानकर नहीं मारा। अगर मेरे सीनियर्स में थोड़ी सी भी समझ है तो समझों इस खबर को और देखों देश में क्या हो रहा है। राहुल शादी कर रहा है और करता रहेगा। राखी की चोली के पीछे क्या है हम गरीबों को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि देश की जनता राखी की चोली के पीछे का नहीं बल्कि अपनी रसोई के पीछे क्या हो रहा है इसे जानना चाहते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता भूत साले टीवी पर आये या नहीं आये लेकिन बजट में मंहगाई का भूत मर जाये इसपर विचार होना चाहिए। किरदार बचाओं किरदार। मत नंगा हो मेरे भाई क्योंकि पत्रकारिता का जब इतिहास लिखा जायेंगा तो आपका नाम उसमें शामिल नहीं होगा। क्या जबाव दोगे जब आने वाली पीढ़ी पूछेगी कि क्या किया आपने। क्या जबाव दोगे कि प्रकाश पैदा किया।

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