मीडिया में अनगिनत मगरमच्छ हैं, इनमें से कुछ तो मीडिया के भीतर ही है और कुछ खुले में विचरण कर रहें हैं। जो भीतर हैं वह नये लोगों को हिकारत की नजर से देखते हैं और जो बाहर हैं वह अपनी नयी नौकरी की तलाश में हैं।
यह लोग नये लोगों के द्वारा की गई इज्जत को चापलूसी समझकर उनका जमकर शोषण करते हैं। ये दोनों तरह के मगरमच्छ ज्यादातर वह पत्रकार हैं जो कुछ नाम कमा चुके हैं और ये समझते हैं कि अब वह इस फील्ड के 'बाबा' हो गये हैं।इनमें चालीस की दहलीज पार कर चुके अधिकतर वह पत्रकार हैं जो युवा महिला पत्रकारों पर अधिक और पुरुष पत्रकारों से थोड़ी सी कन्नी काटते हैं। लेकिन जब इन्हें पता चलता है कि आज शाम की दारु का जुगाड़ लोंडे के पास हैं तो वे इससे भी प्यार से बात कर ही लेते हैं। इस तरह के जीव आपको आईएनएस(INS) के सामने के पार्क और अधिकतर प्रैस क्लब में विचरण करते मिल जायेंगे। आईएनएस के सामने वाले पार्क में शाम के समय आठ दस झुंड में ये लोग मिल जाते हैं। इनमें से अधिकतर वह बेरोजगार पत्रकार होते हैं जो यहां काम कर रहें पत्रकारों से अपनी नौकरी की सिफारिश या फिर किसी अखबार अथवा इलैक्ट्रोनिक मीडिया के दफ्तर में अपनी गोटी सैट करने आये हुय़े होते हैं।
यहां पर इन्हें ऐसे लोग मिल ही जाते हैं जो नये होते हैं और जिनके लिये आईएनएस किसी हज से कम नही होता। नये लोगों को लगता है कि आईएनएस ही एक मात्र ऐसी जगह है जहां से उन्हें काम या फिर इस क्षेत्र में ऊभर रही नयी संभावनाओं की जानकारी मिलेगी। ये ठीक भी है, लेकिन पुराने लोग इसी बात का फायदा उठाकर नये युवा पत्रकारों का शिकार यहां करते हैं। पहले ये उसे अपनी जेब से एक दो बार चाय पिलाते हैं। पत्रकारिता पर लंबे लंबे भाषण देते हैं। चूंकि इन्हें कोई और काम तो होता नहीं है इसलिये ये अपनी तारीफ के कसीदें भी गढ़ने से यहां पर बाज नही आते। इसके बाद इनका नये लोगों को फंसाने का काम आरंभ होता है। ये पहले उससे उसका फोन नंबर और फिर धीरे धीरे बड़े ही प्यार से उससे अपनी चापलूसी करवाते हैं। वह इससे कुछ इस तरह से बात करते हैं जैसे सारी दुनिया के पत्रकार इनके चेले हैं और ये गुरू। अब ये गुरू घंटाल इन नये लोगों से कुछ छोटी स्टोरी करने के लिए या फिर कोई रिसर्च का काम करने के लिए कहते हैं। युवा पत्रकार को लगता है कि उसकी परीक्षा शुरू हो गयी। वह लाइब्रेरी में घंटों बैठकर रिसर्च करता है और एक दो दिन बाद गुरू घंटाल को सौप आता है। बस फिर क्या गुरू खुश, दे डालते हैं चेले को आर्शीवाद। बेटा आपने काम बढ़िया किया। देखना ये जल्द ही छपेगा। फिर वह छपता भी है, लेकिन गुरू घंटाल के नाम से। ऐसे गुरू घंटालों ने अपने घरों में भी एक दो पीसी लगाकर अपनी प्रैस खोली हुई है।
ये नये लड़को से काम करवाते हैं और उसे अपने नाम से धड़ाधड़ छपवा कर मोटा पैसा कमाते हैं बदले में ये युवा पत्रकार को ये कहकर की अभी तो आप काम ही सीख रहें हैं। इसे ये प्रत्येक लेख के सौ या फिर ज्यादा से ज्यादा दो सौ रुपये थमा देते हैं। इन गुरू घंटालों में वह पत्रकार हैं जिनका काम फ्रीलांसर के रूप में देश के कुछ प्रमुख अखबारों में छपता रहता है। ऐसे लोग अगर आपको मिल जाये तो इनके सामने से ऐसे गायब हो जाना जैसे गधे के सिर से सिंग। इसी तरह से कुछ मोटे दारूबाज पत्रकार आपको शाम के समय अपनी 'गोटी सैट' करने प्रैस क्लब आते हैं। ये वह पत्रकार होते हैं, जो इधर उधर से कमा चुके हैं और मोटा कमाने की चाह में यहां आते हैं। ये दारूबाज यहां बैठकर ये सुनिश्चित करते हैं कि किस चैनल में हमारी दाल ठीक से गल सकती है और कौन से चैनल का मालिक साल दो साल के लिये उनके द्वारा ठीक प्रकार से बेवकूफ बन सकता है। यह प्रैस क्लब में बैठकर ये भी तय करते हैं कि किस चैनल के मालिक को उसी के दफ्तर में बैठकर कितना 'काटा' जा सकता है। ये वह लोग होते हैं जो अक्सर अपने आप को थोड़ा सा बेकार में ही व्यस्त रखते हैं। ये आपको दिल्ली की हर उस पार्टी में मिल सकते हैं जहां मुफ्त की दारू और मुर्गा मिलता हो। इनका दिल महिलाओं के प्रति नरम होता है। इन्हें अगर कोई महिला युवा पत्रकार बात कर लें तो ये उनसे चिपक ही जाते हैं। इनका एक ही उद्देश्य होता है जीवन में मैक्सिमम एन्जाय और वह भी फोकट में।ये नये लोगों को उपदेश खूब देते हैं लेकिन कभी सही रास्ता नही बताते।
यह हमेशा अपने जुगाड़ में रहते हैं और नये लोगों को हमेशा आत्मबल गिराते रहते हैं। उनका विश्वास तोड़ते रहते हैं। ऐसी बाते सुनाते हैं कि कोई कमजोर दिल का युवा हो तो बेचरा आत्महत्या ही कर ले। ये नये लोगों को इतना डिप्रैस करते हैं कि वह या तो इस फील्ड को छोड़ने का मन बना लेता है या फिर ये मानने लगता है कि उसने जीवन की सबसे बड़ी गलती पत्रकारिता में आकार कर दी। इनमें से कुछ लोग जो चैनलों में काम करते हैं महिलाओं की इज्जत से भी खूब खेलते हैं। अभी हाल की ही मैं बात करू तो कुछ ही समय पहले लगभग छह महीने पहले देश के एक प्रमुख चैनल के रिपोर्टर के खिलाफ एक युवा पत्रकार ने आरोप लगाया कि, फलां आदमी ने मुझे पिछले छह महीने से यहां नौकरी का झंसा दिया हुआ है और वह पिछले छह महीने से मेरी आबरू से खेल रहा है। इस बात को सुनकर चैनल के बड़े अधिकारियों को बोलती बंद हो गयी। क्योंकि भाई जान पहले भी कई बार ऐसे मामलों में नाम कमा चुके थे। इस बात को जो भी कोई सुनता वह यही कहता, भाई जान के लिये ये कौन सा नया काम है। यह तो वह हर छह महीनें में करते हैं। लेकिन युवा महिला पत्रकार भी हार मानने वाली नही थी। उसने भाई जान के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करवाने के कोशिश की, लेकिन भाई जान का नाम ऐसा है कि अपने देश की पुलिस भी नाम सुनकर सन्न रह गयी। मामला चैनल के प्रमुख लोगों तक पहुंचा, लेकिन ऊपर के लोग अगर रिपोर्टर के खिलाफ जाये तो उनके चैनल से एक ऐसा चेहरा कम होता है जिसके बल पर चैनल पूरे बाजार में एक टांग पर कूदता फिरता है। अब चैनल क्या करे, तो उसने वही किया जो अक्सर होता है। जब शिकारी शेर का शिकार नही कर पाता तो अपनी झेप मिटाने के लिए साले गधे का शिकार कर देता है। इससे दो फायदे होते हैं, एक तो गधे को मुक्ति दिलाने का भाग्यफल शिकारी को मिलता है। दूसरा गधे का शिकार करने पर कोई कुछ नही कहता। इसे एक्सीडेंट या गधे की शोर मचाने की आदात के बदले दी जाने वाली सजा के प्रावधान में जोड़ा जा सकता है। बाद में यह भी कहा जा सकता है कि साला गधा था, काम करना आता ही नही था। हम तो डंडे से काम करवाया करते थे। अब साले को सही रास्ता दिखा दिया। इस तरह से चैनल की खाल भी बच गयी और रिपोर्टर की शान को भी बट्टा नही लगा। कुछ दिनों की गहमा गहमी रही फिर सभी कुछ शांत, मामला रफा दफा।हालांकि बाद में सुनने में आया कि इस पीड़ित पत्रकार को एक नये चैनल में भाई जान ने काम भी दिलवा दिया। लेकिन काम के बदले युवा महिला पत्रकार को कितना अपमान सहना पड़ा इसका अंदाजा हम तो कम से कम नही लगा सकते। लेकिन भाई जान हैं कि मानते ही नही। अब सुना है कि भाई जान एक और युवा एंकर के साथ जीभर कर प्रेम का पान कर अपनी आत्म को तृप्त कर रहें हैं। इन्हें अक्सर चैनल की लिफ्ट में देखा जा सकता है। वैसे ऐसे किस्से हर एक चैनल में होते हैं। यहां भी है तो हमें क्या परेशानी है भाई। लेकिन एक बात तो है कि 'मीडिया का लुच्चा और घर का चोर' साला कभी हाथ नही आता। कारण बड़ा ही साफ है, ये दोनों ही ऊंची आवाज में बात करते हैं। असल में तो बात यह है कि मीडिया में जो एक बार चल गया वह अपने आपको "बाबा" मानता है।तो भाईयों आप को और बड़े मगरमच्छों की जानकारी देते हुए मैं आगे बताता हूं कि मीडिया में केवल ऐसे ही लोग नही है जो महिलाओं की इज्जत से खेलते हैं ऐसे भी लोग हैं जो समाज का खुले में चीर हरण कर देते हैं। यह लोग ऐसे हैं जिन्हें आप एक नजर से पहचान नही पायेंगे।
ये ऐसे लोग हैं जो मीडिया में हैं ही केवल गंद फैलाने के लिए। ये वह लोग हैं जो शार्टकट से उंची जगह पहुंचे हैं औऱ वहां रहने के लिए किसी भी तरह की कुर्बानी देने के लिए तैयार रहते हैं। यहां ऐसे भी लोग है जो आपको दिखने में बेहद सभ्य लग सकते हैं, लेकिन वह इतने कमीने हैं कि आप उनकी सोच तक पहुंच ही नहीं पायेगें। अब हाल ही का एक वाक्य में आपको सुनाता हूं। मेरे एक दोस्त हैं। अच्छा मेरे बहुत से दोस्त हैं इनमें ज्यादातर वह हैं जिनका जिक्र में यहां जरूर करने वाला हूं। ये दोस्त मेरा ऐसा है जो दिखने में बिल्कुल सतीश कौशिक जैसा है। फर्क केवल इतना है कि सतीश कौशिक मात्र कलाकार है और ये कलाकारों का भी कलाकार है। इन दिनों आप इन्हें आजतक के कार्बनकापी चैनल पर देख सकते हैं। अब यार हम से ये मत पूछना कि आजतक की कार्बनकापी कौन सा चैनल है। पहले ही हम इतने पंगे ले रहें हैं अब कुछ से तो पंगा नही ही लेंगे। खैर ये यहीं पर पाये जाते हैं और देखा गया है कि ये चैनल की टीआरपी बढ़ाने के लिये आरूषि का मोऱफ्ड किया हुआ एमएमएस चलवा रहें थे। मेरी समझ में ये नही आता कि बगैर किसी सबूत और ठोस प्रमाण के ये आदमी किसी के
आत्मा पर कैसे चोट मार सकता है। पहले ये चैनल के वरिष्ठ लोगों से एक्सक्लूसिव खबरें देने का झांसा देता रहा। यह कोई अच्छी खबर तो कर नही पाया हां आरूषि की हत्या को जरूर भुना गया। शर्म आनी चाहिए ऐसे पत्रकारों को जो अपने अधकचरे ज्ञान से इस क्षेत्र में गंदगी फैला रहें हैं। ये साले वह मगरमच्छ हैं जो समाज को भी गंदा कर रहें हैं और पत्रकारिता को भी।अब भाई लोग लगता है मैं तो भावूक हो गया। क्या करुं भाई लोगों इन दिनों कुछ चैनलों के द्वारा जो बदतमीजी मैंने आरूषि के मामले में होती देखी है इससे तो ये लगता है कि कुछ ही दिनों में ये 'बाइट सोल्जर' साले हम जैसे नये लोगों की बजा देने वाले हैं। क्योंकि इन्हीं को देखकर आने वाला समाज इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की भूमिका तैयार करेगा। वैसे भी आजकल पत्रकारों को 'दलाल' का पद तो मिल ही गया है। अब तो ये देखना है कि इस तमगे पर और कितने तमगे लगने बाकी हैं।
6 comments:
जितना भी आपने लिखा है उसमें सच्चाई छुपी हुई है। लेकिन खाटी की पत्रकारिता आज के वक्त में खत्म हो चुकी है। आज की पत्रकारिता है जुगाड़ की पत्रकारिता
Apane sach likha hai----aj patrakarita men bhee mathadheeshee aur chamachageeree aatee ja rahee hai. shubhakamnayen.
चीखोगे तभी दुनिया बदलेगी
Aap sabhi ko dhanyawad aapne mera blog pada aur ous par apni raye rakhi. ek baar phir se dhanyawad
Taqreeban har kshetr me yahee haal hai!
Aapka tahe dilse swagat hai..
Post a Comment