दिल्ली एनसीआर लोकल न्यूज पेपर्स का गढ कहा जा सकता है। ये वह जगह भी है जहां छोटे पेपर्स खासी पकड़ रखते हैं और एनसीआर की बेहतर कबरेज के साथ अच्छी खबर भी परोसते हैं। लेकिन यहीं पर कुछ अखबार ऐसे भी है जो खबर के लिए कम और इन अखबारों के मंसूवों को पूरा करने के लिए ज्यादा निकलते हैं। इन्हीं में से गाजियाबाद का एक अखबार है दैनिक महामेधा।
दैनिक महामेधा देश के उन अखबारों में से है जो डीएवीपी के आंकड़ों के मुताबिक निकलता तो 60 कापी प्रतिदिन के हिसाब से लेकिन छपता मात्र ढाई हजार ही है और बटता केबल कुछ सरकारी महकमों में। इसके अलावा ये अखबार आपको कहीं ओर नहीं दिखाई देगा। हां इसमें अगर आपकों विज्ञापन लगवाना है तो उसका रेट वहीं है जो देश के दूसरे बड़े अखबारों का है। खासकर के सरकारी विज्ञापनों का क्योंकि इसमें सरकारी विज्ञापन लगाने से सरकारी महकमों से जुड़े लोगों की जेबें खासी गर्म होती हैं तनख्वाह से अलग तनख्वाह का जुगाड़ हो जाता है। इस जुगाड़ में गाजिबाद के कई बाबू दिन रात राकेश मोहन से बातें करते हैं। महकमें के लोग बातें भी क्यों न करे जब कम में ज्यादा फायदा हो तो इसका फायदा भला कौन नहीं उठाना चाहेगा। ये तो रही बात महामेधा अखबार की सोच की अब इस अखबार की भीतरी बनावट यानी सिस्टम पर आते हैं। गाजियाबाद के अशोक नगर में इस अखबार का मुख्य दफ्तर है और सूरजपूर ग्रेटर नोयडा में प्रैस। इस अखबार में आरंभ से ही कई धांधलियां चल रही थी। इसमें पहले शेखर कपूर के व्यक्ति संपादक के रूप में आये जिन्होंने न केवल इस अखबार की नींब रखी बल्कि इस अखबार को एक दिशा भी प्रदान की लेकिन इसे वह ज्यादा आगे नहीं ले जा पाये और अपने लंगोट के कारण काफी चर्चा में रहने के बाद आजकल हिंट का दिवाला निकलाने में लगे हैं। क्योंकि चोर का साथी चोर ही हो सकता है इसलिए शेखर कपूर हिंट में जोर अजमाइश कर रहे हैं। हिंट की चर्चा फिलहाल हम यहीं छोड़े दे रहे हैं लेकिन आगे इसपर चर्चा अवश्य करेंगे। अब बात करते हैं आगे की, महामेधा ने 2006 से लेकर आजतक कई उतार चढ़ाव देखें और इस बीच इसी उठापटक के बीच अखबार के मालिक व महामेधा अर्बन को.ऑपरेटिव बैंक के चैयरमेन की मृत्यु के बाद अब इसकी बागडोर श्री पप्पू भाटी के छोटे भाई राज सिंह भाटी ने संभाली। कहने को तो राजसिंह भाटी जी महामेधा ग्रुप के चैयरमेन हैं, लेकिन अखबार की असल कमान अब राकेश मोहन के हाथ है। राकेश मोहन स्व. श्री भाटी के टुकडों पर पले हैं। इनका बचपन और जवानी श्री भाटी के जूतों में गयी और अब जब भाटी जी नहीं रहे तो श्री भाटी के जूतों की ताकत बढ़ गयी है। राकेश मोहन और इनके परम भक्त राजीव सिंह दोनों मिलकर इन दिनों दैनिक महामेधा में दबाकर पंजीरी खा रहे हैं। दोनों अखबार में काम करने वाले रिपोर्टरों से खबर के साथ विज्ञापन लाने को कहते हैं। पहले ये दोनों कहते हैं कि विज्ञापन लाने के बदले वे इन्हें कमीशन देंगे जब विज्ञापन आ जाता है तो ये कमीशन का पैसा आपस में बांटकर दिल्ली आकर दारू पीते हैं और गुलछर्रें उड़ाते हैं। राकेश मोहन को हर शनिवार को दिल्ली के प्रैस क्लव में देखा जा सकता है जहां वह हमेशा किसी नयी महिला मित्र के साथ होते हैं और महिला मित्र आमतौर पर छुट्टी के दौरान राकेश मोहन का लंगोट उतारकर उनका दिल बहलाती है। इसी तरह से राजीव सिंह है जो महामेधा के उच्च अधिकारी हैं और महामेधा में राकेश मोहन के बॉस हैं। राजसिंह भाटी क्योंकि अपने भाई की तरह आंखों से अंधे और कानों से बहरे हैं तो इन्हें तो अपनी तारीफ के अलावा और कुछ सुनाई या दिखाई नहीं देता। ये दोनों लोग इनके तख्त के चारों ओर सुबह शाम आकार बैठ जाते हैं जहां ये दोनों इनके टट्टे चाटकर इनका मंनोरंजन कर इनसे अपनी गांड में थूकवाते हैं। इतना होंने के बाद ये दोनों मालिक को प्रसन्न करने में कामयाब हो जाते हैं और अखबार की कमान अपने हाथ में ले लेते हैं। कमान हाथ में आते ही पहले इनका शिकार गाजियाबाद ब्यूरों में काम करने वाले सात साल पुराना कर्मचारी विनोद खरे बनता है जो असल में न तो पूरा पत्रकार ही है और न ही कुछ और, लेकिन आदमी बहुत नेक है और हाजिर जवाब भी। राकेश मोहन इनपर अपने दमन का कई बार तीर चला चुके लेकिन अभी तक विनोद खरे उससे बचे हुए हैं। लेकिन आजकल दवाब में आकार ये इनके जुल्म का लगातार शिकार हो रहे हैं और विज्ञापन ला लाकर दे रहे हैं।
कैसे करता है राकेश मोहन दलाली
राकेश मोहन चूंकि पत्रकार तो है नहीं लेकिन पत्रकार होने के दावे खूब जमकर करता है। हर रोज अखबार के माध्यम से राकेश मोहन गाजियाबाद नगर निगम से आने वाली प्रैस विज्ञप्ति पर जो मूल रूप से सरकारी या फिर अजय शंकर पाण्डे के मीडिया सलाहकार ने लिखी होती है पर अपने नाम से अखबार में छपवा देता है। राकेश मोहन दूसरों की जूठन पर अपनी जुबान फेर कर अपने आप को संतुष्ट करता है और दूसरे दिन गाजियाबाद जिला कलेक्ट्रेट पर नवलकांत तिवारी को जाकर दिखाता है और प्रैस मान्यता के लिए अनुन्यय विनय करता है। इतना ही नहीं अखबार में अपने आप को डायरेक्टर के पद पर बता कर लोगों को धमकाता है और फिर उनसे सुविधा शुल्क भी वसूलता है। इतना होने के बाद भी राकेश का दिल नहीं भरता तो वह गाजियाबाद बस अड्डे पर पहुंचता हैं और कोने में खड़े पीपल के पेड़ के नीचे मौजूद पान वाले से फ्री में सिगरेट पीकर व पान मसाला खाकर अपनी सरकारी गाड़ी 800 (मारूति) में अपने चमचे ड्राइवर शिव कुमार के साथ तनकर बैठ जाता है और पान वाले के द्वारा पैसें मांगने पर फटकार लगाते हुए कहता है कि साले हम से पैसा मांगता है जानता नहीं हम कौन हैं। साले तेरी दुकान बंद करवा दूंगा। इतना करने के बाद राकेश का थोड़ा पेट भरता है।इतना करने के बाद राकेश मोहन कलेक्ट्रेट में पिस्टल का लाइसेंस, श्री भाटी जी के लिए गनर, श्री भाटी जी की चोरी गयी कार के बदले जब्ती की कार लेने आदि के कार्यों को करते देखा जा सकता है। जिला कलेक्ट्रेट में इनके साथ गाजियाबाद का महामूर्ख फोटोग्राफर जीतेन्द्र इनके साथ देखा जा सकता है जो दिमाग से कम और पेट से ज्यादा सोचता है और हमेशा भूखा रहता है।
वहीं दूसरी ओर राजीव दफ्तर में ही दफ्तर की सुंदर सुंदर महिलाओं को देखकर अपनी बाहों में न आने वाली तोंद के पीछे से सभी को निहारता है और अपनी गंजी खोपड़ी पर हाथ फेरता रहता है।
अपनी भारी भरकम काया और छोटी सी खोपड़ी में न के बराबर अक्ल का स्वामी राजीव महामेधा में बैठकर जमकर पंजीरी खाने में तेज हो गया है। वह महामेधा की जेब से कैसे पैसे निकाल लेता है इसका पता न तो श्री पप्पू भाटी को लगा और न ही अब उनसे भाई को लग रहा है। लेकिन कुल मिलाकर राकेश और राजीव महामेधा में ऐश की जिंदगी जी रहे हैं और हर शुक्रवार को महामेधा भवन में होने वाले कीर्तन में कहता है, जय महामेधा कहते जाओं जेब अपनी भरते जाओं। जय महामेधा।
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