Thursday, February 25, 2010

जो कुछ नहीं होता वह पत्रकार होता है

ये सुनकर आपको बेशक मुझपर थोड़ी खीज हो सकती है लेकिन ये सच है कि जो कुछ नहीं होता वह पत्रकार हो जाता है। इस बात पर हमारे बड़े भाई एक दिन चिढ़ गये और कहने लगे कि ये क्या बात हुई। हमने उनके दर्द को समझ लिया क्योंकि बड़े भाई पहले आई एस और फिर आई पी एस और फिर न जाने कितने एस वाले इम्तहानों में नकारा साबित हो चुके थे और दिल्ली में एक छोटे से अखबार में काम करते हुए अपने मुल्क यानी आप समझ ही रहे होंगे से एक भूमिहार लड़की के पिता से मोटा दहेज प्राप्त करने में 100 फीसदी कामयाब हो गये थे और आजकल पत्रकारिता में झंडे गाढ़े हुए थे। ऐसा वह समझते थे झंडे उन्होंने गाढ़े या उखाड़े ये तो हमें नहीं मालूम लेकिन इतना अवश्य जानते हैं कि इन दिनों वह एक ऐसा चैनल चला रहे हैं जिसे वह अकेले देखते हैं और स्वंय ही चैनल की टीआरपी बढ़ाते हैं। इन्होंने बाकायदा अपने स्टाफ से कहा हुआ है कि घर जाते ही केबल स्टाफ अपना चैनल ही देखें क्योंकि हो सकता है उनके टीवी में टैम का आईसी लगा हो। (टैम – टीआरपी मापने की कंपनी)।
खैर, बड़े भाई को हमारी बात कुछ कड़वी लगी और उन्होंने अपना जूता जमीन पर पटकते हुआ कहा कि चलो तुम बताओं की पत्रकारिता में कौन लोग आ रहे हैं। मैंने मोर्च संभालते हुए कहा सर देखिये पत्रकारिता में जो लोग आपके देश से आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर वह लोग है जो पहले आईएस फिर पीसीएस और फिर बैंकों आदि में नौकरी पाने के लिए कम्पीटीशन की दौड़ में शामिल होते हैं और जब वह कुछ नहीं कर पाते तो वह पत्रकारिता में आ जाते हैं। इसका कारण पहला तो ये है कि इन लड़को की आयु 30 का आंकड़ा पार कर जाती है इसलिए इन्हें सरकारी नौकरी तो नहीं मिल सकती। दूसरा हिंदी पत्रकारिता एक ऐसा धंधा है जिसमें दिमाग की कम और जुगाड़ की ज्यादा जरूरत है। क्योंकि जिस तरह की खबर और आजकल के चैनल दिखा रहे हैं उन्हें देखकर नहीं लगता कि एज एन रिपोर्टर कुछ सोचने की जरूरत है। बस माइक पकड़ना आता हो और पीटूसी करने का स्टाइल समझ में आता हो बस हो गयी पत्रकारिता। इतनी बात सुनकर बड़े भाई विभर पड़े और मुझपर चिल्ला कर बोले यार तुम तो करते हो बेकार की बाते। क्योंकि उन दिनों बड़े भाई हमारे बॉस थे तो हम चुप हो गये और उनके चेहरे की ओर देखने लगे। चेहरा देखकर हमें लगा कि भाई थोड़े परेशान हो गये हैं और फिर कुछ देर के बाद अपने देश के दो चेलों से उन्होंने पूछ ही लिया कि क्यों भाई तुम लोगों ने भी क्या कभी आईएस के पेपर्स दिये हैं। दोनों ने ही हां में गधे की तरह गर्दन हिला कर बड़े भाई को जबाव दिया जिसे सुनकर बड़े भाई ने जोर से जमीन पर पैर पटका और कुछ बुदबुदाते हुए कमरे से बाहर हो लिये।

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